Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 753
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२२ भक्ष्याभक्ष्य विचार । ३ दुकानदार अपने यहाँ लहसुन, प्याज़ वगैरह अशुद्ध चीज़ भी रखते हैं । बाजारकी चटनीमें तो प्रायः लहसुन मिला होता है। साथही वे बासी चीजें भी गरम करके ताजीके समान बेंचते हैं। अतएव बाजारू चीजोंके खाने में कई तरह के दोष हैं । जिस कढ़ाई या तेलमें लहसुन प्याज तले गये हैं, उसमें फिर कोई चीज़ नहीं तली जानी चाहिये । कितने ही लोग दालमें अदरक छोड़ते हैं कितने ही लहसुन-प्याज़से बघारते हैं, कभी कभी लोग दाल या कढ़ीमें हरी इमलो डाल देते हैं । इनकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिये छुआ-छूतका भी विचार रखना उचित है। अनजानकी बात दूसरी है, पर जान बूझ कर दोष करना ठीक नहीं है । ४ मेथी पालक वगैरहके सागोंमें भुआ और लोनीका साग जो अनन्तकाय है, मिले तो उसे निकाल देना चाहिये। अनजाने की बात और है । एक और ग्रन्थमें ये नीचे लिखे बाईस पदार्थ अभक्ष्य बतलाये गये हैं (१) गूलर (२) प्लक्ष (३) काकोदुम्बरी (४) बड़ (५) पीपल (इस किस्मके पांच फल ); (६) मांस, (७) मदिरा, (८) मक्खन और मधु (ये चारों महा विकृत या महाविगई कहे जाते हैं।) (E) अनजाने फल (१०) अनजाने फूल (११) हिम (बर्फ) (१२) विष (१३) ओले (१४) सच्चित्तभिटी (१५) रात्रि-भोजन (१६) दही-बड़े आदि जो कच्चे दही-दूधमें नाजकी बनी चीजे डाल कर बनाये जायें (१७) बैगन (१८) पोश्ता (१८) सिंघाड़ (यद्यपि अनन्तकाय नहीं है तथापि काम बृद्धि करता है, इस लिये वर्जित है) (२०) छोटे बैगन और (२१) कायंवानी। २२ खस खसके दाड़े। For Private And Personal Use Only

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