Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 767
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३६ भदयाभक्ष्य. विचार । २१ फलसी २२ भिण्डी २३ हरी मिर्च २४ मरवा २५ मोगरा २६ खट्टे नीबू २७ मटर २८ आलकुल ऊपर जिन वनस्पतियोंके नाम लिखे है, इनमें भी जिनका त्याग करते बने, करना चाहिये । जो वनस्पति बारहों महीने मिलती हो, उसका उपयोग करना, जैसे-केला। इसके सिवा प्रत्येक हरी साग-सब्जी अमुक समय तक खानी, फिर नहीं; इसका ध्यान रखना चाहिये । जैसे कार्तिक महीनेमें अमुक-अमुक चीजे खानी चाहिये, परन्तु यदि उनका बारह महीनेका आश्रय ले रखे, तो विरतिपनका फल मिलता है। क्योंकि आम जाड़ेके बाद चैतसे आर्द्रा नक्षत्र तक खाना चाहिये, फिर नहीं । इस प्रकार नियम कर लेनेसे बड़ा लाभ होता है। नियम लेनेके बाद प्रति वर्ष कुछ चीज़ोंका सर्वथा त्याग करना होगा। ऐसा करनेसे त्याग और अभयदानकी भावना प्रबल होती है । जबतक नियम नहीं किया जाता, तबतक कोई फल नहीं मिलता। श्रावकोंको तो चाहिये कि छओं “अट्ठाईयोंमें" * तो वनस्पतियोंका एकदम त्याग करदें। ॐ चैत्र और आश्विनकी दो अट्ठाई शाश्वती हैं । वह चैत सुदी ७ से १५ For Private And Personal Use Only

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