Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 771
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४० भक्ष्याभक्ष्य विचार । १५ बबूल आदिके हरे दाँतौन सचित्त हैं। १६ ताम्बूल, नीमपत्ते, तुलसी, इलायची आदिके पसे सचित्त होनेके कारण व्यवहारमें नहीं लाने चाहिये। परन्तु नीमके पत्ते कढ़ीमें डाले जायें या नागर बेलका पत्ताधी आदिमें गरम करके डाला गया हो, तो वह चीज अचित्त और व्यवहारमें लाने योग्य हो जाती है। १७ नोम और आमकी मोजरे, तथा गुलाब आदिके फूल सचित्त ह, इसलिये व्यवहार नहीं करना चाहिये। गुलाबके फूल मिठाइयोंपर छिड़कते हैं, वह अवित्त होनेपर व्यवहार करना कहा है। १८ धनिये या पुदीनेकी चटनीमें वनस्पति और नमक दोनों ही सचित्त हैं; पर पीस देनेसे वे दोनों दो घड़ी बाद अचित्त हो जाते हैं, इस लिये २ घड़ीके बाद खाना चाहिये। १८ पिसे हुए मसाले, जिनमें नमक मिला हो या आँचार भी दो घड़ी बाद खाये जा सकते हैं, परन्तु ग्वार आदिके अंचारके अचित्त होने में देर लगती है, क्योंकि उनके अन्दर बीज होते हैं, इसलिये उनपर नमकके शस्त्रका शीघ्र प्रभाव नहीं पड़ता। २० अनार और अमरुद भी सचित्त हैं, ये दो घड़ी बाद अचित्त नहीं होते, इसलिये इनका सर्वथा त्याग करना चाहिये। सर्वथा त्यागके २ भेद हैं-एक सर्वथा-सचित्त त्याग और दूसरा सर्वथावस्तु-त्याग जिन्होंने सचित्तका सर्वथा त्याग किया है, वे तो उसे भाग मादिके द्वारा प्रचित्त कर व्यवहारमें ला सकते हैं; पर जिन्होने अमोर और अमेरुद्ध For Private And Personal Use Only

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