Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

View full book text
Previous | Next

Page 770
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय - रत्नसार । ७३६ ६ वरियाली भी सचित्त कही जाती है; क्योंकि जो चीज़ें बोनेसे पैदा होती हैं, वह सवित्त हैं 1 अतएव सुखी वरियाली भी यदि सेकी हुई हो तभो काममें ला सकते हैं । ७ नमक भी सवित है, परन्तु भूमिकायमें लिखे अनुसार अवित्त होनेपर व्यवहारमें ला सकते हैं । ८ लाल सेंधानमक सचित्त है-सफेद सैंधव अवित्त है । ६ खड़िया भी सचित्त है । यह खाने के काममें तो नहीं आती पर मंजन बनानेके काममें आती है। इसे पहले कहे अनु सार अचित्त बनाकर व्यवहार करना चाहिये । कैम्फर चाँक आदि जो चीजें आती हैं, उनका व्यवहार नहीं करना चाहिये, क्योंकि मालूम नहीं, वे किस प्रकार बनायी जाती हैं । १० " वलित रस" शीर्षक के नीचे जिन चीजोंकी सूची दी हुई है, वे सब सचित्त हैं और इसीलिये अभक्ष्य हैं । ११ उबाल देने पर पानी अचित्त हो जाता है। जहाँ जीव पड़ने का डर हो, वहाँ पानी कपड़ेसे ढककर रखना चाहिये । चौमासेमें । गरम किया हुआ पानी भी सिर्फ ३ पहर तक काम में ला सकते हैं। बादमें सचिन्त हो जाता है । १२ तरह- तरहके शरबत, सोडा गुलाबजल, केवड़ाजल, आदि कभी व्यवहारमें नहीं लाना चाहिये । १३ अंग्रेजी दवाएँ जो अर्ककी तरह हों, कभी नहीं लेनी । अगर लाचारी लेना ही पड़े तो प्रायश्चित्त भी करना चाहिये । बर्फ आदि एकदम अभक्ष्य है । १४ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788