Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 758
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय-रत्नसार। ७२७ कारण, उसमें बस जीव पैदा हो जाते हैं। गरमीमें भी सुखौंता बड़ी हिफ़ाजतसे रखना चाहिये, नहीं तो कीड़े पड़ जाते हैं। चौमासेमें तो इसका खास कर त्याग करना चाहिये। ४-चबेना-चावल, गेहू बाजरा, ज्वार, मका, चना आदिका भुना हुआ चबेना कभी नहीं खाना ; क्योंकि इस प्रकार भुने हुए अन्नमें बहुतसे जीवोंके विनाशका भय रहता है। ५-किसी भी वनस्पतिका भर्त्ता बनाकर नहीं खाना चाहिये ६-पान-इसके खानेसे बहुतसे त्रस जीवोंके नाशका भय है। इसलिये पान नहीं खाना । ब्रह्मचारियोंके लिये तो यह और भी बुरा है । जिनको पान खानेकी आदत लग गयी है, उनको भी कमी करनी चाहिये। ___७-चक्कीका आटा-अजकल बड़े-बड़े शहरोंमें विदेशी चक्कीका आटा बिकता और बाहर भी चालान होता है। कितने दिन बाद भी यह आटा बिकता रहता है, अतएव इसमें बहुतसे जीव पैदा हो जाते हैं । अतएव इसका व्यवहार नहीं करना चाहिये । जिस घरमें इस आटेकी चीजें बनी हों, वहाँ खाने नहीं जाना चाहिये । इस आटे या मेदेकी बनी मिठाई, पुरो, कचौरी, नानखताहो बिलकुट, आदिका त्याग करना ही उचित है। नहीं है। केवल लोगोंने अपने पारामके लिये ही यह प्रथा जारी कर रखी है। मारवाड़ बीकानेरकी ओरके श्रावकों ने तो जमो कंदके सुखोंतेको भी खानेकी प्रथा चला रखो है । यह तो और भी खराब है। हमारे खयालसे तो किसी सागका सुखोंता बनाना ही नहीं चाहिये। इसमें अनेक तरहके दोष हैं ।।। संपादक For Private And Personal Use Only

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