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६६६ भल्याभक्ष्य विचार । .. १४–रात्रिभोजन-रातको भोजन करना इस भव आर परभव. दोनोंहीके लिये दुःखका कारण है। रातको खानेबाले उल्ल काग, गोध, बिच्छू, चहा, बिल्ली, सांप चिमगादड़ आदिकी योनिमें उत्पन्न होते हैं, बड़े दुःख पाते हैं और धर्मकी तो उन्हें प्राप्ति ही नहीं होती ! स्वयं रातको भोजन करनेसे बाल-बच्चे भी बहो चाल चलने लगते हैं। रातको खानेसे भोजनके साथ जीव-जन्तु ओंके मिल जानेका भी बड़ा डर रहता है। उत्तम पशु-पक्षी भी रातको नहीं खाते । दिनको भी अन्धेरे या छोटे बरतनमें खाना मना है। दिनका बना हुआ भोजन रातको और रातका बना हुओ दिनको खाना भी दोषयुक्त है, सूर्योदयके दो घड़ी बाद तथा सूर्यास्तके दो घड़ी पहले खाना चाहिये । इसके पहले या पीछे खाना मना है। रातको पानी पीना रुधिरपान तथा भोजन करना मांस-भोजन करनेके समान है। प्यारके मारे बच्चोंको रातमें खिलाना मना है।
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