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अभय रत्नसार । ६२५ भगवंत । त्रिगडै बैठा जिनवरू, परषद बार मिलंत ॥ १॥ गणधर गौतम तिणसमे,पूछ श्री जिनराय। दश पञ्चरखाण किसा कह्या, कोयां कवण फल थाय ॥२॥
ढाल १ ॥ सीमंधर करज्यो—ए देशी ! श्रोजिनवर इम उपदिस, सांभल गोमय ताम । दस पञ्चक्खाण कियां थकां, लहिये अविचल ठाम ॥ श्री० ३॥ नवकारसी बीजी पोरसी २, साढपोरसी-पुरिमड्ढ ४ । एकासण-नीवी कही ६, एकलठाण देवढि ॥ श्री०४॥ दात ८ आंबिल : उपवास १० ही, एहिज दस पच्चक्खाण । एहना फल सुण गोयमा, जूजवा करू वखाण ॥ श्री० ५॥ रतनप्रभा १ सकरप्रभा २, वालुक तीजी जाण । पंकप्रभा ४ तिम धूमप्रभा ५ तमप्रभा ६ तमतम ७ ठाम ॥ श्री० ६ ॥ नरक सात कही ए सही, करम कठिन करजोर। जीव करम वस ते सही, ऊपजै तिणहीज ठोर ॥ श्री० ७॥ छेदन भेदन ताडना,
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