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पूजा-संग्रह |
नरेश ॥ २ ॥ लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान । करकडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान ॥ ३ ॥ मान गयं दो अंशथी, देखी वीर अनंत। पूजा बलें भवजल तस्था, पूजो खंध महंत ॥ ४ ॥ रत्नत्रय गुण ऊजली, सकल सुशुण विश्राम । नाभी कमलनी पूजना, करता अविचल धाम ॥ ५ ॥ हृदय कमल उपशम बलें, बाल्यो राग द्वेष । हेम दहै वनखंडने, हृदय तिलोक संतोष ॥ ६ ॥ सोल पहर देई देशना, कंठ विवर वरतल । मधुर धुनी सुर नर सुने, तिम गले तिलक अमूल ॥ ७ ॥ तीर्थंकर पद पुन्य थी, त्रिभुवन जिन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ॥ ८ ॥ सिद्ध शिला गुण ऊजली; लोकांतिक भगवंत । वसिया ति कारण वहीं, शिर शिखा पूजंत ॥ ६ ॥ उपदेशक नवतत्वना, तिम नव अंग जिणंद पूजो बहु विध भाव थी. कहेसहु वीर मुनिद । ॥ १० ॥ इति ॥
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