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स्तवन-संग्रह।
॥श्रीअभिनंदन स्वामी का स्तवन ॥
॥ आज नहेज़्यो रे दीसे नाहलो ॥ ए चाल ॥ ॥ अभिनंदन जिन दरशन तरसियै, दरसण दुर्लभ देव ॥ मत २ भेदे रे जो जइ पूछिये ॥ सहु थापै अहमेव ॥ अभि० ॥ १॥ सामान्ये करी दरिसण दोहलं, निरणय सकल विशेष ॥ मदमें घेख्यो रे अंधो किम करे, रवि-शशि रूप विलेख ॥ अ०॥२॥ हेतु विवादे हो चित्त धरि जोइये, अति दुरगम नय वाद ॥ आगम वादे हो गुरुगम को नही, ए सबलो विखवाद ॥१०॥३ घाती डूंगर आड़ा अतिघणा, तुझ दरिसण जगनाथ ॥ धीठाइ करी मारग संचरू, सेंगु न कोई साथ ॥ अ०॥४॥ दरिसण २ रटतो जो फिरू, तो रणरोझ समान ॥ जेहने पीपासा हो अमृत पाननी, किम भाजै विष पान ॥ अ० ॥५॥ तरस न आवे हो मरण-जीवन तणो, सीझेजो दरसण आज ॥ दरिसण दुलभ सुलभ कृपाथकी, आनंदघन माहाराज ॥ अ०॥६॥
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