Book Title: Aatmsakshatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ स्टडी करते ही रहते हैं न ! और दूसरा, ये आंतर विज्ञान कहलाता है, जो खुद को सनातन सुख की तरफ ले जाता है । अतः खुद के सनातन सुख की प्राप्ति करवाए वह आत्मविज्ञान कहलाता है और ये टेम्परेरी एडजस्टमेन्टवाला सुख दिलवाए, वह सारा बाह्य विज्ञान कहलाता है । बाह्य विज्ञान तो अंत में विनाशी है और विनाश करनेवाला है और यह अक्रम विज्ञान तो सनातन है और सनातन करनेवाला है। 3. I and My are seperate 'ज्ञानी' ही मौलिक स्पष्टीकरण दें I ‘I' भगवान है और ‘My' माया है । 'My' वह माया है । 'My' is relative to ‘I'. 'I' is real. आत्मा के गुणों का इस 'I' में आरोपण करो, तब भी आपकी शक्तियाँ बहुत बढ़ जाएँगी। मूल आत्मा ज्ञानी के बिना नहीं मिल सकता। परंतु ये 'I' and 'My' बिल्कुल अलग ही है। ऐसा सभी को, फ़ॉरेन के लोगों को भी यदि समझ में आ जाए तो उनकी परेशानियाँ बहुत कम हो जाएँगी । यह साइन्स है। अक्रम विज्ञान की यह आध्यात्मिक research का बिल्कुल नया ही तरीका है। ‘I' वह स्वायत्त भाव है और 'My' वह मालिकीभाव है। सेपरेट, 'I' एन्ड 'My' आपसे कहा जाए कि, Separate 'I' and ‘My' with Separator, तो आप 'I' और 'My' को सेपरेट कर सकेंगे क्या ? ‘I' एन्ड ‘My' को सेपरेट करना चाहिए या नहीं? जगत् में कभी न कभी जानना तो पड़ेगा न! सेपरेट ‘I’ एन्ड 'My'। जैसे दूध के लिए सेपरेटर होता है न, उसमें से मलाई सेपरेट (अलग) करते हैं न? ऐसे ही यह अलग करना है। आपके पास ‘My’ जैसी कोई चीज़ है? 'I' अकेला है या 'My' साथ में है? प्रश्नकर्ता : ‘My' साथ में होगा न ! ४

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60