________________
जिसे एडजस्ट होना नहीं आया, उस मनुष्य को मनुष्य कैसे कहेंगे? जो संयोगों के वश होकर एडजस्ट हो जाए, उस घर में कुछ भी झंझट नहीं होगा। (संयोगों का) लाभ उठाना हो तो एडजस्ट हो जाओ। यह तो फायदा भी किसी चीज़ का नहीं, और बैर बाँधेगे, वह अलग।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ प्रिन्सिपल (सिद्धांत) होने ही चाहिए। फिर भी संयोगानुसार वर्तन करना चाहिए। संयोगों के साथ एडजस्ट हो जाए, वह मनुष्य। यदि प्रत्येक संयोग में एडजस्टमेन्ट लेना आ जाए तो ठेठ मोक्ष में पहुँचा जा सके, ऐसा ग़ज़ब का हथियार है।
डिस्एडजस्टमेन्ट, यही मूर्खता अपनी बात सामनेवाले को 'एडजस्ट' होनी ही चाहिए। अपनी बात सामनेवाले को 'एडजस्ट' नहीं हो तो वह अपनी ही भूल है। भूल सुधरे तो 'एडजस्ट' हो पाएगा। वीतरागों की बात 'एवरीव्हेर एडजस्टमेन्ट' की है। 'डिसएडजस्टमेन्ट' ही मूर्खता है। 'एडजस्टमेन्ट' को हम न्याय कहते हैं। आग्रह-दुराग्रह, वह कोई न्याय नहीं कहलाता।
__ अभी तक एक भी मनुष्य हम से डिसएडजस्ट नहीं हुआ है। और इन लोगों को तो घर के चार सदस्य भी एडजस्ट नहीं होते हैं। यह एडजस्ट होना आएगा या नहीं आएगा? ऐसा हो सकेगा कि नहीं हो सकेगा? हम जैसा देखते हैं वैसा तो हमें आ ही जाता है न? इस संसार का नियम क्या है कि जैसा आप देखोगे उतना तो आपको आ ही जाएगा। उसमें कुछ सीखने जैसा नहीं रहता।
__ संसार में और कुछ भले ही न आए, तो कोई हर्ज नहीं है। कामधंधा करना कम आता हो तो हर्ज नहीं है, लेकिन एडजस्ट होना आना चाहिए। अर्थात्, वस्तुस्थिति में एडजस्ट होना सीखना चाहिए। इस काल में एडजस्ट होना नहीं आया तो मारा जाएगा। इसलिए 'एडजस्ट एवीव्हेर' होकर काम निकाल लेने जैसा है।
३७