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भुगते उसी की भूल
कुदरत के न्यायालय में .... इस जगत् के न्यायाधीश तो जगह-जगह होते हैं लेकिन कर्म जगत् के कुदरती न्यायाधीश तो एक ही हैं, 'भुगते उसी की भूल'। यही एक न्याय है, जिससे पूरा जगत् चल रहा है और भ्रांति के न्याय से पूरा संसार खड़ा है।
एक क्षणभर के लिए भी जगत् न्याय से बाहर नहीं रहता। जिसे इनाम देना हो, उसे इनाम देता है। जिसे दंड देना हो, उसे दंड देता है। जगत् न्याय से बाहर नहीं रहता, न्याय में ही है, संपूर्ण न्यायपूर्वक ही है। लेकिन सामनेवाले की दृष्टि में यह नहीं आता, इसलिए समझ नहीं पाता। जब दृष्टि निर्मल होगी, तब न्याय दिखेगा। जब तक स्वार्थ दृष्टि होगी, तब तक न्याय कैसे दिखेगा?
आपको क्यों भुगतना? हमें दुःख क्यों भुगतना पड़ा, यह ढूँढ निकालो न? यह तो हम अपनी ही भूल से बँधे हुए हैं। लोगों ने आकर नहीं बाँधा। वह भूल खत्म हो जाए तो फिर मुक्त। और वास्तव में तो मुक्त ही हैं, लेकिन भूल की वज़ह से बँधन भुगतते हैं।
जगत् की वास्तविकता का रहस्यज्ञान लोगों के लक्ष्य में है ही नहीं और जिससे भटकना पड़ता है, वह अज्ञान-ज्ञान के बारे में तो सभी को खबर है। यह जेब कटी, उसमें भूल किसकी? इसकी जेब नहीं कटी और तुम्हारी ही क्यों कटी? दोनों में से अभी कौन भुगत रहा है? भुगते उसी की भूल!'
भुगतना खुद की भूल के कारण जो दुःख भुगते, उसी की भूल और जो सुख भोगे तो, वह उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है। भगवान का कानून, रियल कानून तो जिसकी भूल होगी, उसी को पकड़ेगा। यह
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