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इसलिए करना है कि सामनेवाले के प्रति खराब भाव हुआ। उसके लिए नालायक है, लुच्चा है, ऐसा मन में विचार आ गए हो तो प्रतिक्रमण करना है। बाकी कोई भी गाली दे तो वह अपना ही हिसाब है। यह तो निमित्त को ही काटते हैं(दौड़ता है) और उसीके यह सब झगड़े हैं।
दिन भर में जो व्यवहार करते हैं उसमें जब कुछ उल्टा हो जाता है, तो हमें पता चलता है कि इसके साथ उल्टा व्यवहार हो गया, पता चलता है या नहीं चलता? हम जो व्यवहार करते हैं, वह सब क्रमण है। क्रमण यानी व्यवहार। अब किसी के साथ उल्टा हुआ तब, हमें ऐसा पता चलता है कि इसके साथ कड़क शब्द निकल गए या वर्तन में उल्टा हुआ, वह पता चलता है या नहीं चलता? तो वह अतिक्रमण कहलाता है।
अतिक्रमण अर्थात् हम उल्टा चले। उतना ही सीधा वापस आए उसका नाम प्रतिक्रमण।
प्रतिक्रमण की यथार्थ विधि प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण में क्या करना है?
दादाश्री : मन-वचन-काया, भावकर्म-द्रव्यर्कम-नोकर्म, चंदूलाल तथा चंदूलाल के नाम की सर्व माया से भिन्न, ऐसे उसके 'शुद्धात्मा' को याद करके कहना कि, 'हे शुद्धात्मा भगवान ! मैंने ज़ोर से बोल दिया, वह भूल हो गई इसलिए उसकी माफी माँगता हूँ, और फिर से वह भूल नहीं करूँगा, ऐसा निश्चय करता हूँ, फिर कभी भी ऐसी भूल नहीं हो, ऐसी शक्ति देना।' 'शुद्धात्मा' को याद किया या दादा को याद करके कहा कि, 'यह भूल हो गई है'; तो वह आलोचना है, और उस भूल को धोना मतलब प्रतिक्रमण और 'ऐसी भूल फिर कभी भी नहीं करूँगा', ऐसा तय करना वह प्रत्याख्यान है! समानेवाले को नुकसान हो ऐसा करे अथवा उसे हमसे दुःख हो, वे सभी अतिक्रमण हैं और उसका तुरंत ही आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करना पड़ता है।
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