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है,' ऐसा कहा है। हर एक मनुष्य, अरे, जीवमात्र बैर रखता है। हद से ज्यादा हुआ तो बैर रखे बगैर रहेगा नहीं। क्योंकि सभी में आत्मा है। आत्मशक्ति सभी में एक समान है। कारण यह है कि, इस पुद्गल (शरीर) की कमज़ोरी की वजह सहन करना पड़ता है, लेकिन सहन करने के साथ वह बैर रखे बगैर रहता नहीं है। और फिर अगले जन्म में वह उसका बैर वसूल करता है वापस।
कोई मनुष्य बहुत बोले, तो उसके कैसे भी बोल से हमें टकराव नहीं होना चाहिए। और अपनी वजह से सामनेवाले को अड़चन हो, ऐसा बोलना बड़े से बड़ा गुनाह है।
सहन? नहीं, सोल्यूशन लाओ टकराव टालना यानी सहन करना नहीं है। सहन करोगे तो कितना करोगे? सहन करना और 'स्प्रिंग' दबाना, वे दोनों एक जैसे हैं। 'स्प्रिंग दबाई हुई कितने दिन रहेगी?' इसलिए सहन करना तो सीखना ही नहीं। सोल्यूशन लाना सीखो। अज्ञान दशा में तो सहन ही करना होता है। बाद में एक दिन 'स्प्रिंग' उछलती है, वह सब बिखेर देती है।
किसी के कारण यदि हमें सहन करना पड़े, वह अपना ही हिसाब होता है। लेकिन आपको पता नहीं चलता कि यह किस बहीखाते का और कहाँ का माल है, इसलिए हम ऐसा मानते हैं कि इसने नया माल देना शुरू किया है। नया माल कोई देता ही नहीं, दिया हुआ ही वापस आता है। यह जो आया, वह मेरे ही कर्म के उदय से आया है, सामनेवाला तो निमित्त है।
टकराए, अपनी ही भूल से इस दुनिया में जो भी टकराव होता है, वह आपकी ही भल है, सामनेवाले की भूल नहीं है ! सामनेवाले तो टकराएँगे ही। आप क्यों टकराए?' तब कहेंगे, 'सामनेवाला टकराया इसलिए!' तो आप भी अंधे और वह भी अंधा हो गया।
___टकराव हुआ तो आपको समझना चाहिए कि 'ऐसा मैंने क्या कह दिया कि यह टकराव हो गया?' खुद की भूल मालूम हो जाएगी तो हल
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