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हिसाब है न! बही खाता बाकी है इसलिए, वर्ना कोई कभी हमारा कुछ भी नहीं ले सकता। किसी से ले सके, ऐसी शक्ति ही नहीं है। और ले लेना वह तो हमारा कुछ अगला-पिछला हिसाब है। इस दुनिया में ऐसा कोई पैदा ही नहीं हुआ कि जो किसी का कुछ कर सके। इतना नियमवाला जगत् है।
कारण का पता चले, परिणाम से यह सब रिज़ल्ट है। जैसे परीक्षा का रिजल्ट आता है न, यह मैथेमैटिक्स (गणित) में सौ मार्क्स में से पंचानवे मार्क्स आएँ और इंग्लिश में सौ मार्क्स में से पच्चीस मार्क्स आएँ। तब क्या हमें पता नहीं चलेगा कि इसमें कहाँ भूल रह गई है? इस परिणाम से, किस कारण से भूल हुई वह हमें पता चलेगा न? ये सारे संयोग जो इकट्ठा होते हैं, वे सभी परिणाम हैं। और उस परिणाम से, क्या कॉज़ था, वह भी हमें पता चलता है।
इस रास्ते पर सभी लोगों का आना-जाना हो और वहाँ बबल का काँटा सीधा पड़ा हुआ हो, बहुत से लोग आते-जाते हैं लेकिन काँटा वैसे का वैसा पड़ा रहता है। वैसे तो आप कभी भी बूट-चप्पल पहने बगैर घर से नहीं निकलते लेकिन उस दिन किसी के यहाँ गए और शोर मचे कि चोर आया, चोर आया, तब आप नंगे पैर दौड़े और काँटा आपके पैर में लग जाए। तो वह आपका हिसाब!
कोई दुःख दे तो जमा कर लेना। जो तूने पहले दिया होगा, वही वापस जमा करना है। क्योंकि बिना वजह कोई किसी को दुःख पहुँचा सके, यहाँ ऐसा कानून ही नहीं है। उसके पीछे कॉज़ होने चाहिए। इसलिए जमा कर लेना।
भगवान के यहाँ कैसा होता है? भगवान न्याय स्वरूप नहीं है और भगवान अन्याय स्वरूप भी नहीं है। किसी को दुःख नहीं हो, वही भगवान की भाषा है। न्यायअन्याय तो लोकभाषा है।
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