Book Title: Aatmsakshatkar Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust View full book textPage 5
________________ में ही रहें, उससे तो आपका हरएक काम हो जाएगा, सभी पज़ल सॉल्व हो जाएँगे (और मोक्ष प्राप्त होगा)। अतः मनुष्य का अंतिम ध्येय क्या? मोक्ष में जाने का ही, यही ध्येय होना चाहिए। आपको भी मोक्ष में ही जाना है न? कब तक भटकना है? अनंत जन्मों से भटक-भटक... भटकने में कुछ भी बाकी नहीं रखा न! क्यों भटकना पड़ा? क्योंकि मैं कौन हूँ, वही नहीं जाना। खुद के स्वरूप को ही नहीं जाना। खुद के स्वरूप को जानना चाहिए। 'खुद कौन है' वह नहीं जानना चाहिए? इतने भटके फिर भी नहीं जाना आपने? सिर्फ पैसे कमाने के पीछे पड़े हो? मोक्ष का भी थोड़ा बहुत करना चाहिए या नहीं करना चाहिए? मनुष्य वास्तव में परमात्मा बन सकते हैं। अपना परमात्मा पद प्राप्त करना वह सब से अंतिम ध्येय है। मोक्ष, दो स्टेज पर प्रश्नकर्ता : मोक्ष का अर्थ साधारण रूप से हम ऐसा समझते हैं कि जन्म-मरण में से मुक्ति। दादाश्री : हाँ, वह सही है लेकिन वह अंतिम मुक्ति है, वह सेकन्डरी स्टेज है। लेकिन पहले स्टेज में पहला मोक्ष अर्थात् संसारी दुःखों का अभाव बर्तता है। संसार के दु:ख में भी दुःख स्पर्श नहीं करे, उपाधि में भी समाधि रहे, वह पहला मोक्ष। और फिर जब यह देह छूटती है तब आत्यंतिक मोक्ष है लेकिन पहला मोक्ष यहीं पर होना चाहिए। मेरा मोक्ष हो ही चुका है न! संसार में रहें फिर भी संसार स्पर्श न करे, ऐसा मोक्ष हो जाना चाहिए। वह इस अक्रम विज्ञान से ऐसा हो सकता है। २. आत्मज्ञान से शाश्वत सुख की प्राप्ति जीवमात्र क्या ढूँढता है? आनंद ढूँढता है, लेकिन घड़ीभर भी आनंद नहीं मिल पाता। विवाह समारोह में जाएँ या नाटक में जाएँ, लेकिन वापिस फिर दुःख आ जाता है। जिस सुख के बाद दुःख आए, उसे सुख ही कैसे कहेंगे? वह तो मूर्छा का आनंद कहलाता है। सुख तो परमानेन्ट होता है।Page Navigation
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