Book Title: Aatmsakshatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ अर्पण विधि कौन करवा सकते हैं? प्रश्नकर्ता : ज्ञान लेने से पहले जो अर्पण विधि करवाते हैं न, उसमें यदि पहले किसी गुरु के समक्ष अर्पण विधि कर ली हो, और फिर यहाँ वापस अर्पण विधि करें तो फिर वह ठीक नहीं कहलाएगा न? दादाश्री : अर्पणविधि तो गुरु करवाते ही नहीं हैं। यहाँ तो क्या-क्या अर्पण करना है? आत्मा के अलावा सभीकुछ। यानी सबकुछ अर्पण तो कोई करता ही नहीं है न! अर्पण होता भी नहीं है और कोई गुरु ऐसा कहते भी नहीं हैं। वे तो आपको मार्ग दिखाते हैं, वे गाईड के रूप में काम करते हैं। हम गुरु नहीं है, हम तो ज्ञानीपुरुष हैं और ये तो भगवान के दर्शन करने हैं। मुझे अर्पण नहीं करना है, भगवान को अर्पण करना है। आत्मानुभूती किस तरह से होती है? प्रश्नकर्ता : 'मैं आत्मा हूँ' उसका ज्ञान किस तरह से होता है? खुद अनुभूति किस तरह से कर सकता है? दादाश्री : यही अनुभूति करवाने के लिए तो 'हम' बैठे हैं। यहाँ पर जब हम 'ज्ञान' देते हैं, तब 'आत्मा' और 'अनात्मा' दोनों को जुदा कर देते हैं और फिर आपको घर भेज देते हैं। __ ज्ञान की प्राप्ति अपने आप नहीं हो सकती। यदि खुद से हो पाता तो ये साधु सन्यासी सभी करके बैठ चुके होते। लेकिन वहाँ तो ज्ञानीपुरुष का ही काम हैं । ज्ञानीपुरुष उसके निमित्त हैं। जैसे इन दवाओं के लिए इन डॉक्टर की ज़रूरत पड़ती है या नहीं पड़ती या फिर आप खुद घर पर दवाई बना लेते हो? वहाँ कैसे जागृत रहते हो कि कोई भूल हो जाएगी तो हम मर जाएँगे! और आत्मा के संबंध में तो खुद ही मिक्स्चर बना लेता है ! शास्त्र खुद की अक्ल से गुरु द्वारा दी गई समझ के बिना पढ़े और मिक्स्चर बनाकर पी गए। इसे भगवान ने स्वछंद कहा है। इस स्वछंद से तो अनंत जन्मों का मरण हो गया! वह तो एक ही जन्म का मरण था!!!

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60