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की कृपा उतरती है, जिससे निरंतर जागृति उत्पन्न हो जाती है, उससे प्रज्ञा की शुरूआत हो जाती है।
दूज में से पूनम हम जब ज्ञान देते हैं तब अनादि काल से, अर्थात् लाखों जन्म की जो अमावस्या थी, अमावस्या समझे आप? 'नो मून' अनादि काल से 'डार्कनेस में' ही जी रहे हैं सभी। उजाला देखा ही नहीं। मून देखा ही नही था! तो हम जब यह ज्ञान देते हैं तब मून प्रकट हो जाता है। पहले वह दूज चाँद के जितना उजाला देता है। पूरा ही ज्ञान दे देते हैं फिर भी अंदर कितना प्रकट होता है? दूज के चंद्रमा जितना ही। फिर इस जन्म में पूनम हो जाए, तब तक का आपको करना है। फिर दूज से तीज होगी, चोथ होगी, चोथ से पंचमी होगी....और पूनम हो जाएगी तो फिर कम्पलीट हो गया! अर्थात् केवलज्ञान हो गया। कर्म नहीं बँधेगे, कर्म बँधने रूक जाएँगे। क्रोध-मान-माया-लोभ बंद हो जाएँगे। पहले वास्तव में अपने आपको जो चंदूभाई मानता था, वही भ्रांति थी। वास्तव में 'मैं चंदूभाई हँ' वह गया। वह भ्रांति गई। अब तुझे जो आज्ञाएँ दी हैं, उन आज्ञाओं में रहना। ___यहाँ ज्ञानविधि में आओगे तो मैं सभी पाप धो दूंगा, फिर आपको खुद को दोष दिखेगा और खुद के दोष दिखे तभी से समझना कि मोक्ष में जाने की तैयारी हुई। ११. आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद आज्ञापालन का महत्व
आज्ञा, ज्ञान के प्रोटेक्शन के लिए ( हेतु) हमारे ज्ञान देने के पश्चात आपको आत्म अनुभव हो जाने पर क्या काम बाकी रहता है? ज्ञानीपुरुष की आज्ञा' का पालन। 'आज्ञा' ही धर्म और 'आज्ञा' ही तप। और हमारी आज्ञा संसार (व्यवहार) में ज़रा सी भी बाधक नहीं है। संसार में रहते हुए भी संसार का असर नहीं हो, ऐसा यह अक्रम विज्ञान है।
यह काल कैसा है कि सर्वत्र कुसंग है। रसोईघर से लेकर ऑफिस