________________
फिर वह सताता है । कोई सच बोल रहा हो उसके साथ भी और कोई झूठ बोल रहा हो उसके साथ भी ‘एडजस्ट' हो जाओ। हमें कोई कहे कि 'आपमें अक़्ल नहीं है।' तब हम तुरंत उससे एडजस्ट हो जाएँगे
और उसे कहेंगे कि, 'वह तो पहले से ही नहीं थी। आज तू कहाँ से खोजने आया है? तुझे तो आज मालूम हुआ, लेकिन मैं तो यह बचपन से ही जानता हूँ।' यदि ऐसा कहें तो झंझट मिट जाएगी न? फिर वह हमारे पास अक़्ल खोजने आएगा ही नहीं।
पत्नी के साथ एडजस्टमेन्ट हमें किसी कारणवश देर हो गई, और पत्नी कुछ कहा-सुनी करने लगे कि , 'इतनी देर से आए हो? मुझे ऐसा नहीं चलेगा।' और ऐसा वैसा कहने लगे... उसका दिमाग घूम जाए, तब आप कहना कि 'हाँ, तेरी बात सही है, तू कहे तो वापस चला जाऊँ और तू कहे तो अंदर आकर बैलूं।' तब वह कहे, 'नहीं, वापस मत जाना। यहाँ सो जाओ चुपचाप।' लेकिन फिर पूछो, 'तू कहे तो खाऊँ, वर्ना सो जाऊँ।' तब वह कहे 'नहीं, खा लो।' तब आपको उसका कहा मानकर खा लेना चाहिए। अर्थात् एडजस्ट हो गए। फिर सुबह फर्स्ट क्लास चाय देगी और अगर धमकाया तो फिर चाय का कप मुँह फुलाकर देगी और तीन दिन तक वही सिलसिला जारी रहेगा।
भोजन में एडजस्टमेन्ट व्यवहार निभाया किसे कहेंगे कि जो 'एडजस्ट एवरीव्हेर' हुआ! अब डिवेलपमेन्ट का ज़माना आया है। मतभेद नहीं होने देना। इसलिए अभी लोगों को मैंने सूत्र दिया है, 'एडजस्ट एवरीव्हेर'! कढ़ी खारी बनी तो समझ लेना कि दादाजी ने एडजस्टमेन्ट लेने को, कहा है। फिर थोड़ी सी कढ़ी खा लेना। हाँ, अचार याद आए, तो फिर मँगवा लेना कि थोड़ा सा अचार ले आओ। लेकिन झगड़ा नहीं, घर में झगड़ा नहीं होना चाहिए। खुद किसी जगह मुसीबत में फँस जाएँ, तब वहाँ खुद ही एडजस्टमेन्ट कर ले, तभी संसार सुंदर लगेगा।