Book Title: Aatmsakshatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 26
________________ जाओगे तो संसार स्पर्श नहीं करेगा । हमारी आज्ञा का पालन करोगे तो आपको कुछ भी स्पर्श नहीं करेगा । 'आज्ञा' पालन से वास्तविक पुरुषार्थ की शुरूआत मैंने आपको ज्ञान दिया तो आपको प्रकृति से जुदा किया। ‘मैं शुद्धात्मा' यानी पुरुष और उसके बाद में वास्तविक पुरुषार्थ है, रियल पुरुषार्थ है यह। प्रश्नकर्ता : रियल पुरुषार्थ और रिलेटिव पुरुषार्थ उन दोनों के बीच का फर्क बताइए ना। दादाश्री : रियल पुरुषार्थ में करने की चीज़ नहीं होती। दोनों में फर्क यह है कि रियल पुरुषार्थ अर्थात् ' देखना' और 'जानना' और रिलेटिव पुरुषार्थ यानी क्या? भाव करना । मैं ऐसा करूँगा । आप चंदूभाई थे और पुरुषार्थ करते थे वह भ्रांति का पुरुषार्थ था लेकिन जब ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' कि प्राप्ति की और उसके बाद पुरुषार्थ करो, दादा की पाँच आज्ञा में रहो तो वह रियल पुरुषार्थ है। पुरुष (पद) की प्राप्ति होने के बाद में (पुरुषार्थ किया) कहलाएगा। प्रश्नकर्ता : यह जो ज्ञान बीज बोया वही प्रकाश है, वही ज्योति है? दादाश्री : वही ! लेकिन बीज के रूप में। अब धीरे-धीरे पूनम होगी। पुद्गल और पुरुष दोनों जुदा हुए, तभी से सही पुरुषार्थ शुरू होता है। जहाँ पर पुरुषार्थ की शुरूआत हुई, तो वह दूज से पूनम कर देगा । हाँ! इन आज्ञाओं का पालन किया तो वैसा होगा । और कुछ भी नहीं करना है सिर्फ आज्ञा का पालन करना है । प्रश्नकर्ता : दादा, पुरुष हो जाने के बाद का पुरुषार्थ का वर्णन तो कीजिए थोड़ा। वह व्यक्ति व्यवहार में कैसा बर्ताव करता है? दादाश्री : है ना यह सब, ये अपने सभी महात्मा पाँच आज्ञा में रहते हैं न! पाँच आज्ञा वही दादा, वही रियल पुरुषार्थ । पाँच आज्ञा का पालन करना, वही पुरुषार्थ है और पाँच आज्ञा के २३

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