Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 4
________________ • का विदीर्ण कर ज्योतिस्तम्भ के रूप में ज्ञान का प्रकाश दिया; अधर्म के इस युग . को धर्म की नयी परिभाषा दी, अनुशासन हीन जीवन को धर्म और नैतिकता के नियमों से अनुशासित किया और भौतिकता के भँवरजाल में फंसे संसार को आध्यात्मिकता के द्वारा मुक्त किया। आचार्यश्री की वाणी के द्वारा इस शताब्दी में जो निर्झरणी प्रवाहित हुई, . इसमें असंख्य श्रावकों ने डुबकी लगाई। आचार्यश्री की वाणी में ज्ञान और साधना का अमृत निर्झर की तरह प्रतिक्षण प्रतिपल फूटता रहा, जिसने असंख्य लोगों के जीवन को स्वार्थ से परमार्थ की ओर, राग से विराग की ओर और भोग से योग की ओर मोड़ा । अनपढ़ से लेकर विद्वान, सामान्य जन से लेकर बड़े-बड़े श्रीमन्त आपके दर्शन के लिये लालायित रहते थे। आपने भगीरथ रूप में आध्यात्मिकता की मन्दाकिनी को भारत के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक; पश्चिम से लेकर पूर्व तक, मरुप्रदेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक, उत्तर से लेकर दक्षिण तकपंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु तक लम्बी लम्बी पदयात्राएं करके सम्यकज्ञान, सम्यकदर्शन और सम्यककर्म के उपदेशों के द्वारा डगर-डगर में, ग्राम-ग्राम में और नगर-नगर में धर्म का अलख जगाकर नैतिकता का शंखनाद किया। आज हम वैज्ञानिक उपभोक्तामूलक, भौतिकवादी और सुखवादी युग में . गुजर रहे हैं । इस भौतिकवादी, सुखवादी और उपभोक्तावादी वैज्ञानिक युग ने एक । सर्प की तरह आज के आदमी को अपने जहर से मरणासन्न बनाया है। आचार्यश्री की वाणी हमें, एक दिशा प्रदान करती हैं - भौतिकवादी, सुखवादी और उपभोक्तावादी युग से आत्मवादी और आध्यात्मवादी युग की ओर । आज का मनुष्य युग की विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं के मध्य जी रहा हैं, तड़प रहा है, पीड़ित है। आचार्यश्री ने आध्यात्मिकता का अमृत पिलाकर उसे जीवनदान दिया है । मृगतृष्णा की छलना में आज का मनुष्य भौतिक सुख की खोज में भटक रहा है, किन्तु उसे गन्तव्य नहीं सूझता, वह जीवन की भूल भुलैया में फंस गया है, आचार्यश्री की वाणी ने उसे गन्तव्य दिशा दी है, उसे भौतिकता के भँवरजाल से मुक्त किया है और भौतिक सुखों के गरलपान के स्थान पर आध्यात्मिकता का पीयूष पिलाया है। आज न जाने कितनी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ इस भटके हुए मनुष्य को दिशा प्रदान करने के भ्रम में और अधिक भटका रही है, सेवा के नाम पर छद्म सेवा का ढिंढोरा पीटती है, सेवा का भौंडा, घिनौना और निर्लज्ज प्रदर्शन करती है। आचार्यश्री ने इन सबके परे आज के जीवन को और आज के मनुष्य

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