Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02 Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal View full book textPage 3
________________ आमुख भारतीय श्रमण संस्कृति के दैदीप्यमान सूर्य और महाकल्पवृक्ष आचार्यश्री हस्तीमल जी म. सा. महामनीषी, महान जैन इतिहासकार, महान आध्यात्म योगी, महान साधक, दिव्य पुरूष, महान सिद्ध पुरूष और आत्मजयी आचार्य थे, जिनके व्यक्तित्व में सागर की गहराई और पर्वत की ऊँचाई, आचार की दृढता और विचारों की उदारता, अदभुत तेज और अपूर्व शान्ति, साम्प्रदायिक सौहार्द्र और समता का नवनीत था। आचार्यश्री ज्ञान का शिखर और साधना के श्रृंग थे; युग प्रवर्तक होकर भी युग युगीन थे. सामायिक और स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक होने के साथ, अहिंसा, करुणा और दया के महासागर थे; इतिहास मनीषी होने के साथ आध्यात्म के गौरव शिखर थे; रत्नवंशीय सम्प्रदाय के सप्तम पट्टधर होते हुए भी सम्प्रदाय निरपेक्ष थे। आचार्यश्री प्राणिमात्र के प्रति रागी होकर भी घोर विरागी थे। आचार्यश्री कर्मयोगी थे, जिनका समग्र व्यक्तित्व श्रेष्ठ जीवन मूल्यों का प्रतिमान था । आचार्यश्री के व्यक्तित्व में भाव कर्म और ज्ञान की त्रिवेणी प्रवाहित होती थी। __मरुभूमि के अंचल में जोधपुर राज्य के पीपाड़ सिटी में वि. सं. १९६७ पौष शुक्ला चतुर्दशी को ओसवंश के श्री केवलचन्दजी बोहरा के परिवार में मातुश्री रूपादेवी की कोख से जन्म बालक हस्ति ने जीवनपर्यन्त आध्यात्मिकता की स्रोतास्विनी प्रवाहित करदी। आपकी दीक्षा दस वर्ष की अल्पायु में गुरूवार वि. सं. १९७७ माघ शुक्ला द्वितीय द्वितीया को अजमेर में हुई । आपके दीक्षा प्रदाता आचार्यश्री शोभाचन्द्र जी म. सा. थे । आचार्यश्री हस्तीमलजी म.सा. ने जैन और जैनेतर दर्शनों का, संस्कृत प्राकृत और हिन्दी ग्रंथों का अध्ययन मनन कर उन्हें अपने जीवन में ही नहीं उतारा, किन्तु असंख्यजनों को उसका अमृत पिलायां । रत्नवंश के षष्टम आचार्यश्री शोभाचन्द जी म. सा. के महाप्रयाण के पश्चात् बीस वर्ष की आयु में ही आचार्यश्री हस्तीमल जी म. सा. वि. सं. १९८७ वैसाख शुक्ला तृतीया गुरुवार को आचार्य पद पर अभिसिक्त किया गया। आचार्यश्री ने सात दशकों तक अपने प्रवचनों के माध्यम से जैन समाज की सुप्त आत्मा को जगाया, मूल्य हीनता के इस युग को श्रेष्ठ मूल्यों का नवनीत प्रदान किया। आचार्यश्री ने असत्य के स्थान पर सत्य का, हिंसा के स्थान पर अहिंसा का, असहिष्णुता और अधैर्य के स्थान पर सहिष्णुता और धैर्य का; क्रूरता के स्थान पर करूणा का; कटुता के स्थान पर मृदुता का, भय के स्थान पर अभय का, अप्रामाणिकता के स्थान पर प्रामाणिकता का जयघोष किया। आचार्यश्री ने अज्ञानPage Navigation
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