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॥ मेघमाला विचार प्रारंभः ॥
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मेघमाला.
कर्ता
श्री विजयप्रनसूरिजी
संस्कृतपरथी तेनुं मूलसहित गुजरांती नाषांतर जामनगर निवासि पंडित श्रावक हीरालाल वि. हंसराज पासे
करावी उपावी प्रसिद्ध करनार. श्रावक नीमसिंह माणेक
____ मुंबई. संवत १९५६ सने १५००
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॥ श्री जिनायनमः ॥
मेघमाला विचार.
कर्ता श्री विजयप्रनसूरि
श्री युगादि प्रज्जुं नत्वा, ध्यात्वा च श्रुत देवताम् । मेघमालाख्यग्रंथोऽयं, रच्यते जनकामदः१ अर्थ- श्री रुषनदेव प्रजुने नमस्कार करीने, तथा शासनदेवतानुं ध्यान धरीने, लोकोना इश्चितने देनारो आ " मेघमाला ” नामनो ग्रंथ रचाय बे. ॥ १ ॥
कार्तिके मार्गशीर्षे वा, संक्रांतौ यदि वर्षति । मध्यमं जायते शस्यं, पौषमा सि सुनिक्षितम २
अर्थ- कार्तिक अथवा मागसर मासमां संक्रांतिने दिवसे, जो वरसाद वरसे, तो मध्यम प्रकारनं धान्य याय, अने पोशमासनी संक्रांतिने दिवसे जो वरसे, तो सुकाल थाय. ॥ २ ॥
| दीपोत्सव दिने वारौ, जौमार्को न शुभावहौ । संक्रांतौ वर्षति चेच्च, शुजमर्यादिके न हि ॥३॥ - दीवालीने दिवसे जो मंगल, तथा रविवार होय, तो ते शुभ करनारां नथी, अने ते संक्रां तिने दिवसे जो वरसाद श्राय, तो ते धन आदिकमां शुभकारक नथी. ॥ ३ ॥
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मेघमा०
॥ १ ॥
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| गर्जिते कार्तिके मासे, चतुर्मासेषु वर्षति । सुनिक्षं जायते तत्र, शस्यसंपत्तिरुत्तमा ॥ ४ ॥ - जो कार्तिक मासमां गर्जना थाय, तो चतुर्मासमां सारो वरसाद याय, तथा सुकाल थाय, ने धान्योनी निपज पण सारी थाय ॥ ४ ॥
| सर्ववर्णास्तथा मेघा, जायंते च पृथक् पृथक् । कार्तिके चैत्र मासे तु, श्दृशं गर्भलक्षणम् ॥ ५ ॥ अर्थ- कार्तिक मासमां, जुदा जुदा रंगनां जो वादलांडे बुटां बुटां थाय, तो जाणवुं के, वरसादनो गर्ज बंधायो बे. ॥ ५ ॥
| कार्तिके पुष्प निष्पत्ति, र्मार्गे स्नानं मतं किल । पौषे त्वत्र शुजो वतो, नित्यं माघो घनान्वितः ६ - कार्तिक मासमां पुष्पोनी निष्पति, मागसर मासमां स्नान, तथा पोश मासमां उत्तम वायु, अने | महा महीनो हमेशां वादलाए सहित होय. ॥ ६॥
| फाल्गुनः फल्गुवातःस्या, चैत्रे किं चित्पयो दितम्। वैशाखः पंचरुपी च, ज्येष्टश्चोष्मान्वितः शुनः अर्थ-फागण मासमां उत्तम वायु होय, चैत्रमां कंइंक कईक जो वादलां थाय, तथा वैशाख मास जो पंचरूपी होय, ने जेठ मास जो गरमीवालो होय, तो शुभ जावो. ॥ ७ ॥
मासाष्टक निमित्तेन, चतुष्टयमजीष्टदम् ।
अर्थ-एवी तनां वे मासनां जो निमित्तो होय, तो चतुर्मासनां चारे महिना चितने देनारा थाय.
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विचार.
॥ १ ॥
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INEादश्यां कार्तिके मासे, शुक्लायां रजनी यदा।सकला निर्मलाचेच्च,पुष्पबंधः सउच्यते॥ | अर्थकार्तिक मासनी सुद बारसने दिवसे आखी रात्रि जो निर्मल होय, तो तेनुं नाम "पुष्पबंध" कहेवाय बे. “वली कोश् आचार्यनो एम पण मत डे के, जो कार्तिक मासनी सुद चौदसनी रात्रि निर्मल होय, तो "पुष्पबंध" कहेवाय." कार्तिक सुदि पडवाने दिवसे जो बुधवार होय, तो ते वर्षमां रसनी चीजोना नावो ऊंचा रहे. ॥ ७ ॥ कार्तिका पूर्णमासी चेत्,पूर्णा कृत्तिकान्विता।सर्वशस्यसमुत्पत्ति,न विरोधो महीजुजाम्॥ । अर्थ-कार्तिक सुदि पुनेम जो, पूर्ण तथा कृत्तिका नक्षत्रवाली होय, तो सर्व धान्यनी उत्पत्ति श्राय, तथा || | राजा वच्चे विरोध न थाय. ॥ ए॥
अथवा जरणी तत्, पूर्णा स्यात् पूर्णिमादिने।कुत्रचिच्च नवेसृष्टिः,कुत्रचित्स्यादवर्षणम् न अर्थ अथवा एवीज रीतें कार्तिक सुदी पुनेमने दिवसे, जो संपूर्ण भरणी नक्षत्र होय, तो क्यांक वृष्टि थाय, अने क्यांक बिलकुल वरसाद न श्रायः ॥ १० ॥
अथवा रोहिणी तहत् पूर्णास्यात् पूर्णिमादिने।तदा त्वदेमसंतापौ,उर्जितश्चप्रजायते११ । KI अर्थ-अथवा तेवीज रीतें कार्तिक सुदि पुनेमने दिवसे जो संपूर्ण रोहिणी नक्षत्र होय, तो अक्षम,
संताप, तथा उकाल थाय. ॥११॥ ईश्वर नामना ज्योतिषिए पण कर्वा ने के,
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मेघमा
पुष्पबंधप्रवक्ष्यामि,शृणु तत्वेन मानिनि।कार्तिक्यां पूर्णमास्यां तु,नक्षत्रं कृत्तिका यदि१२ ॥ विचार. पुष्पबंधःसमादिष्ट,श्चतुर्मासेषु वर्षणम्।सुनिदः देममारोग्यं,शस्यनिष्पत्तिरेव च॥युग्मम् |
अर्थ हे मानिनि ! हुँ तने तत्वश्री पुष्पबंधनुं स्वरूप कढुंवं, ते तुं सांजल ? कार्तिक सुदी पुनेमने दिवसें| जो कृत्तिका नत्र होय, तो “पुष्पबंध" कहेलो , अने तेथी चतुर्मासमां सारो वरसाद थाय, तेम सुकाल, देम, आरोग्यपणुं, अने धान्यनी निपज सारी श्रायः ॥ १५॥ १३ ॥ अथवा तहिने देवि, नरणी चेत्संजायते।रोगदीर्घ मनावृष्टिः, षखंडे च प्रजायते ॥१४॥ ___ अर्थ-वली हे देवी ! ते दिवसे जो जरणी नक्षत्र होय, तो बखममा रोगनी घणी उत्पत्ति, तथा ||N|| अनावृष्टि श्राय . ॥१४॥ संतापाविविधाकारा, उत्पाताविविधास्तथा।मध्यमं जायते शस्य,मेघा वर्षतिमध्यमाः १५
अर्थ वली तेथी विविध प्रकारना संतापो, तथा उत्पातो पाय, अने धान्य अने वरसाद मध्यमसर थाय. श्रथवा रोहिणी चेच, तदिने वर्तते प्रिये। द्विपादाश्चतुःपादाश्च, विकलीनूतमानसाः॥१६॥
अर्थ-वली हे प्रिये !ते दिवसे जो रोहिणी नत्र होय,तो मनुष्य, अनेचोपगां जानवोरोने मनमा पीडा थाय. कार्तिके चैत्रमासेतु, यदीऽग्रहणं नवेत्।तारकापतनं चैव, उक्कापातो यदा नवेत् ॥१७॥
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नूमिकंपो विनिर्घातः, पतंति जलबिंदवः। श्राकाशे च तथा दृष्टवा,कुंडलं चेंऽसूर्ययोः॥१॥ इंसायुधस्य वज्रस्य, धूमकेतोश्च दर्शनम्।संग्रहं सर्वशस्यानां, प्रयत्नेन तु कारयेत् ॥१॥
॥ त्रिनिर्विशेषकम् ॥ अर्थ-कार्तिक मासमां जो चंजनुं ग्रहण होय, अथवा तारा खरे, उक्कापात थाय, नूमिकंप थाय, निर्घात थाय, जलना बिंड पडे, आकाशमां चंड अने सूर्यनी आसपास कुंमालुं देखाय, तथा इंधनुष्य अने धूमकेतु (पुंगडी तारो ) जो देखाय, तो यत्न पूर्वक सर्व धान्योनो संग्रह करवो. ॥१७॥१॥१॥ एवीरीतें कार्तिक मासनो विचार जाणवो.
हवे मागसर मासनो विचार कहेछे. मार्गादिपंचमासेषु, शुक्ल षष्ठी रवेर्युता।पुष्कालश्वत्रंजंग वा, जायते हिमहीजुजाम् ॥१॥ __ अर्थ-मागसर आदिक पांच मासोमा सुद ब जो रविवारी होय, तो फुकाल अथवा राजऊना उत्रनो
जंग थाय. ॥१॥ मार्गशीर्षेयदामासे, सप्तमी नवमी दिने।ऐशानी दिशमाश्रित्य, दृश्यते मेघमंडलम् ॥२॥ स्तोकं वर्षतिपर्जन्यो,घनवातंसमादिशेत्। दशम्यामुत्तरोवातःप्रचंडोघनघातकः३॥युग्मम्
अर्थ-जो मागसर मासमां सातेम अने नोमने दिवसे, ईशान दिशामां मेघनुं मंडल देखाय, तो वरसाद
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मेघमा०
॥३॥
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थोडोथा, ने प्रचंड वायु वाय; अने दशमने दिवसे उत्तर दिशामां जो प्रचंड वायु वाय बिलकुल न थाय ॥ २ ॥ ३ ॥
तो वरसाद
| मासस्य मार्गशीर्षस्य, मघानक्षत्रमेव चेत् । कृष्णपदे चतुर्थ्यां तु, सविद्युन्मेघदर्शनम् ॥४॥ तस्मिनृदे तदाषाढे, जलपूर्णा मही नवेत् । संपूर्णा शस्य निष्पत्तिः, सुनि च समादिशेत् ५
अर्थ - मागसर महिनाना कृष्णपनी चोथने दिवसे जो मघा नक्षत्र होय, तथा वीजली सहित जो मेघनुं दर्शन थाय, तो असार महिनाना ते नक्षत्रमां ( एटले मघा नक्षत्रमां ) पृथ्वी जलथी संपूर्ण थाय, धान्यनी उपज घणी याय, तथा सुकाल पण श्राय ॥ ४ ॥ ५ ॥
| रात्रौ दृष्ट्वा दिने वृष्टि, दिने दृष्ट्वा नवेन्निशि । पुरुषस्त्री संयोगोव, विद्युन्मेघस्तथैव च ॥ ६ ॥
- रात्रि जो वीजली दिवामां आवे तो दिवसें वृष्टि थाय, तथा जो दिवसे देखवामां श्रावे, तो रात्रि वृष्टि थाय, एवी रीते पुरुष ने स्त्रीना संयोगनी पेठे वीजली छाने मेघनो संयोग जाणवो. ॥ ६ ॥ कृष्णे पदे तथाष्टम्यां नवम्यां हस्त किल । सर्वतो दिशि दृश्येच्च, विद्युदज्रेण संयुता ॥ ७॥ | तहदे चैव माषाढे, जलपूर्णा मही जवेत् । सुनिकं शस्य निष्पत्ति, वसुधा नंदते तथान्युग्मम् अर्थ- वली मागसर मासनी कृष्ण पनी श्रग्म तथा नोमने दिवसे जो हस्त नक्षत्र होय, अने वादलां
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विचार.
॥३॥
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| सहित जो सर्व दिशाउंमां बिजली देखाय, तो आषाढ महीनाना ते नक्षत्रमां पृथ्वी जलथी संपूर्ण थाथ, सुकाल थाय, धान्यनी उत्पत्ति याय, तथा पृथ्वी मां आनंद याय. ॥ ७ ॥ ८ ॥
चतुर्थीपंचमी षष्ठ्यां, अश्लेषा च मघा तथा । यदा च पूर्वफाइ, त्रिरात्रंवर्षते ध्रुवम् ॥ ए ॥
अर्थ-वली मागसर मासनी चोथ, पांचम, अने बने दिवसे, अभ्लोषा, मघा, तथा पूर्वाफागुनी नक्षत्र जो होय, तो खरोखर त्रण दिवससुधि वरसाद थाय ॥ ए ॥
अष्टमी नवमी चैव, चित्रनक्षत्रसंयुता । श्राषाढे श्वेतपदेच, तद्दिने वर्षते ध्रुवम् ॥ १० ॥
अर्थ- मागसर मासनी आम ने नोम जो चित्र नक्षत्र सहित होय, तो आषाढ मासना शुक्ल पक्षमां ते दिवसोए खरेखर वरसाद थाय. ॥ १० ॥
| नवमी दशमी चैव, एकादशी यदा जवेत् । स्वातिनक्षत्र संयुक्ता, शस्यनाशो जलं विना ११ अर्थ - मागसर मासनी नोम, दशम, तथा अग्यारस जो स्वाति नक्षत्रवाली होय, तो पाणी विना खेतीनो नाश श्रशे, एम जावुं ॥ ११ ॥
व्यवहारकल्पमां श्री हरिजप्रसूरिजी पण कहे वे के, मार्गशीर्षनवमी दशमी चैकादशी च तिथिरत्र कराला स्वातिकसहिता सितपक्ष्या शस्यनाशक लिता कलिताका ॥ १२ ॥
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विचार.
अर्थ-मागसर मासना शुक्ल पदनी नोम, दशम, अने अग्यारसनी तिथी, जो स्वाति नक्षत्र सहित होयII
तो तेने जयंकर, धान्यनो नाश करनारी तथा कष्ट उपजावनारी जाणवी. ॥१॥ ॥४॥ छादश्यां च त्रयोदश्यां,चतुर्दश्यां तथैव च।अमावास्यांतथाचस्या,नक्षत्रंचमघानिधम्१३]
संध्याकालश्च तासुचेन्, मेघबिंऽसमन्वितः।आषाढे श्वेतपदे तु,वर्षते नात्र संशयःयुग्मम्
अर्थ-मागसर मासनी बारस, तेरस, चौदस तथा अमासने दिवसे जो मघा नक्षत्र होय, अने ते तिथीउनो संध्याकाल जो मेघना बिंउड सहित होय, तो आषाढ महिनाना शुक्ल पक्षमा वरसाद वरसे, तेमा संशय नथी.॥ १३ ॥१४॥ एवी रीते मागसर मासनो विचार जाणवो.
हवे पोश मासनो विचार कहेछे. पौषे शुक्लचतुर्थ्यां तु, विद्युतादर्शनंशुजम्।अभ्रउन्नं नजःश्रेष्ट, मस्यामिऽधनुस्तथा ॥१॥
| अर्थ-पोश मासनी शुक्ल चतुर्थीने दिवसे, जो विजली देखाय, आकाश वादलांथी ज्वाएलु देखाय, मला तथा जो इंजधनुष्य देखाय, तो ते उत्तम जाणवां. ॥१॥
मेषपदं गतश्चंसो, गर्जनं पूर्व दिग्गतम्।कुंमलं च तथा जानौ, सुनिदं जायते तदा ॥२॥
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अर्थ-वली ते दिवसे जो चंद्र मेषराशिमां होय, पूर्व दिशामां गर्जना था, ने सूर्यनी आसपास जो | कुंकालुं देखाय, तो सुकाल थाय. ॥ २ ॥
तद्दिने च प्रतीच्यां तु, संध्याकाले जवेद्यदि । पीतवर्णो घटाटोपो, घनानां गगनांगणे ॥३॥ भूमीकंपो जवेन्नूनं, प्रचंको जनजीतिदः । पंचवींशत्यहर्मध्ये, तदेशे नात्र संशयः॥ युग्मम्
1
अर्थ- वली पोषमासनी चोथने दिवसे, संध्याकाले पश्चिम दिशामां, आकाशमां जो वादलांनो पीला रंगनो घटाटोप थाय, तो ते देशमां खरेखर पचीस दिवसोनी अंदर, प्रचंक ने लोकोने जय उपजावनारो भूमिकंप थाय; तेमां संशय नथी. ॥ ३ ॥४॥
पौषशुक्लपंचम्यां तु, सवातो घनडंबरः । प्रजाते जायते मयां, विद्युद्गर्जसमन्वितः ॥५॥ तदा तस्यां चतुर्मास्यां, चातकैरिव मानुषैः । लभ्यते जलबिंडुन, नजसो मेघसंजवः युग्मम्
- जो पोससुदी पांचमने दिवसे प्रजातमां वायु, वीजली ने गर्जना सहित मेघनो आडंबर थाय, तो ते चतुर्मासमां चातकोनी पेठे माणसोने पण आकाशमांथी वरसादना पाणी नुं बिंदु पण मली शकतुं नथी. पौषस्य शुक्लषष्टयां तु, मध्याह्ने नजसि स्थितः । नजोम णिर्मेघवृंदैर्यदा श्वेतैस्तिरो हितः॥७॥ तदा देशे समभ्येति, कराला क्षुद्रपक्षिणाम् । शस्यनक्षणशीला च श्रेणिर्नाद्रपदे ध्रुवम् -पोस सुदी वने दिवसे मध्यान्हकाले आकाशमां रहेलो सूर्य जो, श्वेत रंगनां वादलांना समूहोथी
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॥५॥
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बवाई गयो होय, तो जादरवा मासमां ते देशमां जयंकर, तथा धान्योनुं नक्षण करनारी दुपदिनी (ती डोनी) श्रेणि खरेखर आवे छे. ॥ ७ ॥ ८ ॥
पौषे तु सप्तमी शुक्ला, अष्टमी नवमी तथा । रेवती रुक्षसंयुक्ता, तदा धान्यं न संग्रहेत्॥९॥ अर्थ - पौष मासनी शुक्ल पनी आग्म तथा नोम जो रेवती नक्षत्र सहित होय, तो धान्यनो संग्रह करवो नहीं; अर्थात् ते वर्षमां धान्यनी उपज सारी थाय. ॥ ए ॥
तस्य मासस्य सप्तम्यां प्रजाते सूर्य मंगलम् । जयदेवाभ्रवन्नं चेत्, तदान्नं जायते शुभम् १०
अर्थ - पौष मासनी सातेमे प्रजातमां सूर्यनुं मंडल उगतांज जो वादलांउंथी ब्वाएलुं होय, तो धान्य घणुं श्राय ॥ १० ॥
श्रष्टमी तस्य मासस्य, चंद्रवासरसंयुता । मारीप्रभृतिरोगाणां, कारिणी विबुधैर्मता ॥ ११ ॥
अर्थ - पोषमासनी सोमवारे करीने संयुक्त एवी जो ( सुद) आम होय, तो ते मरकी आदिक रोगोनी करनारी बे, एम विधानोए मानेतुं बे ॥ ११ ॥ नवमी जरणी युक्ता, वातविद्युत्समन्विता । ज्योतिषिकैः समन्यस्ता, दुद्रोपद्रवकारिणी १२ अर्थ - पोसमासनी नोम जरणी नक्षत्र वाली तथा वायु ने वीजली सहित जो होय, तो ते लुप्र उपप्रवोने करनारी बे. ॥ १२ ॥
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॥ ५ ॥
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दशम्यां तस्य मासस्य, यदा विद्युछिमान्विता।तदातिवृष्टितोधान्य, निष्पत्तिर्नहि संजवेत् |
अर्थ पोस मासनी ( शुक्ल ) दशमीने दिवसे जो हिम सहित वीजली थाय, तो ( ते वर्षमा ) अतिवृष्टि थवाथी धान्यनी उपज अती नश्री.॥ १३ ॥ एकादशी तथा झेया, सूर्यतापेन वर्जिता।पशुनाशकरा प्राझै, स्तृणसंहतिवर्जिता ॥१४॥
अर्थ-पोस मासनी ( शुक्ल ) अग्यारस जो सूर्यना तापश्री रहित होय, तो ते वर्षमां घासनो समूह नहीं अवाश्री, पशुऊनो नाश थाय . ॥१५॥ पौर्णमासी द्वितीयाच,तस्य मासस्य चेद्यदा।क्रमेण च शनिसूर्य,वासरान्यां समन्विता१५|
आषाढे शुक्लपक्ष च,प्रजूतं जलवर्षणम् । निष्पत्तिःसर्वशस्यानां,प्रजाच निरुपजवा ॥१६॥ __ अर्थ-पोस मासनी पुनेम, तथा बीज अनुक्रमे जो शनि, अने रविवारी होय, तो असाम महिनाना || al | शुक्ल पक्षमा घणो वरसाद श्राय, सर्व धान्योनी उपज थाय, तथा प्रजा पण उपजव रहित श्रायः॥१५॥१६
पौषमासस्य संक्रांती, रविवारो यदा नवेत्। हिगुणं धान्यमूल्यं च, कथितं मुनिसत्तमैः१७ | अर्थ-पोस मासनी संक्रांतिने दिवसे जो रविवार होय, तो धान्योनुं मूटय बेवॉ श्राय, एम उत्तम मु-| निए कहेलुं जे. ॥१७॥ शनौ च त्रिगुणं प्रोक्तं, नौमे चैव चतुर्गुणं । तुल्यं च बुधशुक्राच्या, मूख्याधं गुरुसोमयोः १०
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अर्थ-वली ते संक्रांतिने दिवसे जो शनिवार होय, तो धान्योनुं मूट्य त्रणगj, मंगलवार होय तो
विचार. चोगणुं, बुद्ध अने शुक्रवार होय तो तुझ्य, तथा जो गुरु अने सोमवार होय तो अरधुं मूट्य जाणवु.॥१॥ वर
शनिजानुकुजे वारे, संक्रांतिश्च नवेद्यदा।धान्यमूल्यस्य वृद्धिश्च, जायते राज्यविवरम् १ए। IN अर्थ-ज्यारे शनि, रवि अने मंगलवारे संक्रांति होय, त्यारे धान्योना मूटयनी वृद्धि, तथा राज्यमां|
विग्रह थाय. ॥ १५ ॥
शन्यर्कनौमवारे तु,संक्रांती मृगकर्कयोः। यदा तदानमूल्यस्य, वृद्धिःसंजायते ध्रुवम् ॥२०॥ । अर्थ-मकरसंक्रांति अने कर्कसंक्रांति जो शनि, सोम अथवा मंगलवारी होय, तो खरेखर धान्यनाk
मूट्यनी वृद्धि थाय . ॥२०॥ | पौषस्य पूर्णमास्यांच,संध्याकाले नवेद्यदि।मेघैश्छन्नो निशानाथः,पीतवर्णैर्मनोहरैः॥२१
तदा वैश्वानरोत, जयो जगहिनाशकः।कथितश्चंतप्रज्ञप्त्यां, सर्वशास्त्रविचक्षणैः युग्मम् । ___ अर्थ-वली पोससुदी पुनेमने दिवसे संध्याकाले चंड़ जो मनोहर एवा पीला रंगना वादलांनी उवाएलो होय, तो जगतने नाश करनारो एवो अग्निथी उत्पन्न भएलो जय थाय, एम सर्व शास्त्रोमां विचक्षण एवा ( जिनेश्वरोए) चंपन्नत्तिमां कहेलु . ॥ २१॥२२॥ तदिने नौमवा रश्चे, चंतश्चैव प्रजोन्फितः।बालमृत्युप्रदो शेयो, माघमासस्तदाखिलः२३||
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अर्थ-ते पोससुदी पुनेमने दिवसे जो मंगलवार होय, अने चंड जो कांतिविनानो होय, तो आखो महामहीनो बालकोना मृत्युने देनारो जाणवो. ॥ २३ ॥ तदिने रविवारश्चेद्, रक्तमेधैश्च राजिता।पूर्व दिग्यदि मध्यान्हे, उकालो हि तदा नवेत् २४
अर्थ- वली ते दिवसे जो रविवार होय, अने मध्यान्हकाले लाल रंगना वादलांनथी जो पूर्व दिशा || शोनिती अएली होय, तो खरोखर उकाल पडे. ॥ २४॥ तदिने शनिवारश्चे,त्प्रातः सूर्यश्च बादितः।धुम्रतुयैयदा मेघे,स्तदा मारी न संशयः ॥२५॥
अर्थ- वली ते दिवसे जो शनिवार होय अने प्रजातमां जो सूर्य धुंवाडा सरखां वादलांनथी आना|दित अयो होय, तो मरकीनो उपञ्व थाय, तेमां संशय नथी. ॥ २५॥
पौषे मूलजरण्यांत,श्चंजमानेन साज्रके।आदिौ च विशाखांते, रवेर्मानेन वर्षति ॥२६॥ । अर्थ-वादलांसहित एवा पोष मासमां मूल नक्षत्र तथा जरणी नक्षत्रमा जेटलो चंजमा होय तेना मानथी आ श्री मांडीने विशाखासुधि सूर्यना माने करीने वरसाद वरसे बे. ॥ २६ ॥ पौषस्य पूर्णमासी चे,दूना च घटिका त्रयम्।धान्यराशिप्रदामह्यां,तदा वर्षा शुजा नवेत्। | अर्थ-वली जो पोससुदी पुनेम त्रण घडी उनी होय, तो पृथ्वीमां धान्यना समूहने देनारो उत्तम वरसाद श्राय के.॥ २७॥ एवी रीते पोषमासनो विचार जाणवो.
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हवे माघमासनो विचार कहे छे.
माघशुक्ल द्वितीयायां प्रातः सूर्यो जवेद्यदि । तीव्रतापयुतो ह्यत्र, तदा दुष्कालसंजवः ॥ १॥
- माहा सुदी बीजने दिवसे प्रजातमां जो अहीं तीव्र तापवालो सूर्य होय, तो खरेखर फुकाल पडे. १ | तद्दिने चैव मध्यान्हे, प्रतीच्यां मेघडंबरः । श्वेतवर्णो यदा जात, स्तदा धान्यं न जायते ॥२॥ - वली ते दिवसे मध्यान्हकाले पश्चिम दिशामां श्वेतरंगना वादलांनो जो आडंबर थाय, तो धान्यनी उत्पत्ति न श्राय ॥ २ ॥
माघशुक्ल तृतीयायां, संध्याकाले निशाकरः । हरिद्वर्णयुतैर्मेघै, रबादितो यदि चेङ्गवेत् ॥ ३ ॥ तदा सप्त दिनैर्नूनं, नवेद्वृष्टिस्तदा दितः । गोधूम चणकादीनां नाशश्च जवति ध्रुवम् ॥ ४ ॥
अर्थ- महासु त्रीजने दिवसे संध्याकाले जो चंद्र लीला रंगवालां वादलांउंथी ब्वाएलो होय, तो खरेखर त्यारथी सात दिवसोनी अंदर वृष्टि थाय छे, छाने घटं तथा चणादिकनो खरेखर नाश थाय बे. ॥ ३ ॥४॥ तद्दिने रविवारश्चे, दर्कोऽपि च दिनोदये । परिवृत्तो यदा त्वचैः, सजलेश्वा दितो जवेत् ॥ ५ ॥ तदा नूनं न वृष्टिः स्याद्वर्षंयावऊन प्रिया । दुःखिनः पशवोऽपिस्यु, स्तृणतोय विवर्जिताः॥६॥ - वली महासुदीत्रीजने दिवसे जो रविवार होय, ने दिनोदय वखते सूर्य पण जलसहित वाद
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॥ ७ ॥
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लाउथी उवाएलो होय, तो खरेखर लोकोने प्रिय एवी वृष्टि ( एक ) वर्षसुधि श्राय नहीं, अने पशुन पण INT Mघास अने पाणीथी रहित थया अका मु:खी थाय. ॥५॥६॥
माघशुक्लचतुर्थ्यांतु, निशीथे चंबरे यदि। रक्तवर्णयुता विद्यु,दृश्यते गर्जनैर्युता ॥७॥ तदा वृष्टिनवेन्नूनं, ज्येष्टमासि मनोहरा।धान्यतृणादिवस्तूनां, निष्पत्तिश्चनवेलुना॥ ७ ॥ । अर्थ- वली महासुदी चोथने दिवसे मध्यरात्रिए आकाशमां जो गर्जनाउंसहित लाख रंगनी विजली देखाय, तो खरेखर जेठमासमां मनोहर वृष्टि थाय, तथा धान्य, घास आदिक वस्तुऊनी उपज पणसारी थाय जे. ॥७॥॥
तदिने रक्तवर्णाढ्य, मेकमनं च पूर्वतः। पश्चिमतो द्वितीयं च, समागच्च दृश्यते ॥ ए॥ लाप्रातर्यदेकवेलायां,तदा नाशो नवेवम्। जलप्लवैर्हि देशस्य, मासस्यावधिना ततः॥१॥
अर्थ- वली ते महासुदी चोथने दिवसे प्रजातमा एकी वखते लाल रंगर्नु पूर्व दिशातरफश्री एक वा
दलं अने बीजं पश्चिम दिशातरफथी जो आवतुं देखाय, तो त्यारथी मांडीने एक महिनानी अंदर पाणीपलानी रेखथी खरेखर देशनो नाश थाय.॥ ए॥१०॥
माघशुक्लस्य पंचम्यां, घटित्रयदिने गते। बिंवमर्कस्य रक्तं स्या,त्तदा धान्यदयो नवेत् ११
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मेघमा
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| अर्थ- महा सुदी पांचमने दिवसे त्रण घमी दिवस गयाबाद सूर्यनुं बिंब जो लाल रंगनुं पाय, तो धा- न्यनो नाश आय. ॥ ११॥ तदिने शनिवारश्चे,झीमवृष्टिनवेत्तथा। तदा जुवि महामारी, चैत्रे नवति निश्चितम् ॥१२॥
अर्थ- महासुदी पांचमने दिवसे जो शनिवार होय, अने वली हिमनी वृष्टि श्राय, तो पृथ्वीमां चैत्र IN|मासमां खरेखर मरकीनो मोटो उपध्व थाय. ॥ १२॥
षष्ट्यां च माघशुक्लस्य, सूर्यास्तसमये खलु । दृश्यते सर्ववर्णाढ्य, मिंडचापो यदांवरे ॥१३॥ तदा वृष्टिनवेठीघ्रं,तस्यामेव निशिध्रुवम्। निष्फलैव महारोग,दायिनी देहिनां सदा ॥१४॥
अर्थ- वली महासुदी उच्ने दिवसे सूर्यास्त समये आकाशमां सर्व रंगोवालु जो इंधनुष्य देखाय तो खरेखर तुरत तेज रात्रिए निष्फल तथा प्राणीउने हमेशां महारोगनी आपनारी एवी वृष्टि थाय.॥१३॥१४ माघशुक्लस्य षष्ठीचे, निवारान्विता यदा।कृष्णपदे तदाषाढे, वृष्टिर्जवति निश्चितम् ॥
अर्थ- महासुदी उठ जो शनिवारी होय, तो खरेखर असार महिनाना कृलपदमा वृष्टि श्राय. ॥१५॥ गतायां घटिकापंच, रात्रौतत्रदिने यदा। तारकाणां नवेत्पातः,प्रतीच्या मनिवारितः॥१६॥ पशूनां च तदा नाशो, जवति हि तृणैर्विना। यतो बिंपुरपिवृष्टे,जवति नो वर्षावधिम् ॥१७॥
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अर्थ- वली ते दिवसे पांच घडी रात्रि गयाबाद जो पश्चिम दिशामा घणां तारा पडे. तो घासविना खरेखर पशुऊनो नाश थाय; केमके एक वर्षसुधिमा वरसादनुं बिंदु पण परतुं नथी.॥१६॥१७॥ __ हवे महासुदि बच्ने दिवसे प्रयोगकरी वरसादनी परीक्षा करवानो श्रीसमंतनाचार्येपोताना ज्योतिनिर्णय नामना ग्रंथमां कहेलो विधि कहे जे.
महासुदी बच्ने दिवसे सूर्योदय वखते आकाश प्रदेशमां एक कुमारिकाए सूर्यसन्मुख त्रीश पल सुधि दृष्टि राखीने पट्यंकासनथी पाटलापर बेस. तथा पोतानी सन्मुख हाथ पहोंचे त्यांसुधि निर्मल पाणीश्री नरेली एक कांसानी गोल थाली राखवी. पडी ते थालीमां ते कुमारिकाए पोतानी अनामिका आंगलीश्री तेलमा पलारेखा कंकुना त्रण वार बांटणां नाखवा. पजी " उनमः सूर्याय, उनमो मेघाधिपतये अस्यां स्थाव्यामवतरतु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र नणीने अंजलिमां कणेरना पुष्पो ले ते थालीमां नाखवां. पठी ते सघलुं पाणी एक कोरा माटीना घडामां नरवं. तेनापर एक शरावलुं ढांक. तथा उपर लीला रंगर्नु वस्त्र काचा सूत्रधी बांधवू, पजी ते घडाने मध्यान्हकालसुधि त्यां तडकामांज राखवो; पण तेनापर बिलकुल गया आववा देवी नहीं. मध्यान्हकाल पठी ते घडाने उघाडी तेमां त्रिफलान (एटले हरडां, बेडां तथा आंबलांनु) एक वाल चूर्ण नाखवू. पछी फरीने ते घडाने तेवीज रीते बंध करीने पागे तमकामां मुकवो. संध्याकाले ज्यारे सूर्य अरधो अस्त थयो होय, तेज वखते ते घडो ते कुमारिकाना मस्तकपर चडावीने घरमां लाववो. अने चेक प्रजातपर्यंत तेने घरमा राखवो. पनी प्रजाते सूर्योदय वखतेज ते घडो उघाडीने तेमां एक श्वेत वस्त्रनो टुकमो बोलवो. अने ते टुकडाने तेमां (घडामां) एक घडीसुधी राखवो;
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मेघमा०
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पछी ते टुकडाने नीचोव्याविना बायामां सूकाववो. सूकायाबाद ते वस्त्रना टुकडामां जो श्यामरंगना डाघा - + मालुम 'पडे तो जाएवं के, चतुर्मासमां वरसाद सारो थशे अने जो लाल रंगना डाघार्ज देखाय, तो | जाणवुं के चतुर्मासमां वरसाद बिलकुल नहीं थाय. तथा जो कई पण डाघा न देखाय तो जाणवुं के, अ त्यंत वरसाद थइ धान्यनो पाक निष्फल जशे.
(उपरना प्रयोगमाटेनुं केटलुंक गुरुगम मेलववानुं बे, एम मोने अनुमान थाय बे.)
| माघशुक्लस्य सप्तम्यां घटित्रय दिने गते । धूलिवृष्टिरीशाने चे, राकंपस्तदा निशि ॥ १८ ॥ अर्थ- माहासुद| सातेमने दिवसे त्रण धमी दिवस गयाबाद ईशान दिशामां जो घुडनी वृष्टि थाय तो रात्रिए धरतीकंप थाय. ॥ १० ॥
| माघशुक्लस्य सप्तम्यां रविवारो यदा जवेत् । मध्यान्हे धूलिवृष्टिश्च प्रतीच्याम निलैर्युता १० तदा विद्युत्समुत्पातो, जवति जनघातकः । तम्यांहि तद्दिने तत्र, जूरिजयसमन्वितः ॥२०॥
अर्थ-माहासुदी सातमने दिवसे जो रविवार होय, तथा मध्यान्हकाले पश्चिम दिशामां पवनसहित जो धूलिनी वृष्टि थाय, तो त्यां तेजदिवसे रात्रिये खरेखर लोकोनो नाश करनारो, तथा घणा जयवालो विजलीनो उपद्रव थाय.
माघशुक्लस्य सप्तयां, संध्याकाले जलैर्युतो । मेघयूयो यदा प्राच्यां तदा दुष्कालसंभवः
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- माहासुदी सातमने दिवसे संध्याकाले जो पूर्व दिशामां जलसहित वादलांनो समूह ( होय ) तो 5कालनो संभव जाणवो ॥ २१ ॥
| माघशुक्लस्यचाष्टम्यां जोमवारो यदा जवेत् । श्राच्छादितस्तथासूर्यः, सूर्यास्तसमये यदिश् | नीलवर्णैर्महामेघे, निष्कंपैश्च किलोन्नतैः । तदा धान्यस्य मूल्यं हि, जायते द्विगुणं महौ ॥ २३ ॥
अर्थ- वली महासुदी आमने दिवसे जो मंगलवार होय, तथा सूर्यास्तसमये सूर्य जो लीलारंगना, निकंप, ने उंचां वादलांथी आबादित थएलो होय तो खरेखर या पृथ्वीमां धान्यनुं मूल्य बेवडुं थायडे. माघशुक्लस्य चाष्टज्यां, शनिवारो यदा भवेत् । तदा वृष्टिः शुभाचोक्ता, चतुर्मासि जिनाधिपैः अर्थ- वली महासुदि श्रवमने दिवसे जो शनिवार होय, तो चतुर्मासमां सारी मेघवृष्टि याय, एम जिनराजो कहेलुं d. ॥ २४ ॥
नजसि हि प्रजाते च, माघ शुक्लाष्टमी दिने । इंद्रचापो यदा त्वर्धा, दृश्यते घटिकावधि ॥२५ | तदा मारीसमुत्पातो, जायते जननाशकः । विदेशगमनं कार्यं, ततो जीवितवां विनिः ॥ २६ ॥
- वली महासुदी श्रामने दिवसे प्रजातमां जो एक घडीसुधि रधुं इंद्रधनुष्य देखाय, तो माण| सोने नाश करनारो मरकीनो उपद्रव थाय, माटे जीवितना इक लोकोए परदेशमां जनुं ॥ २५ ॥ २६ ॥ | जायते तद्दिने चैवं, धूलिवृष्टिर्यदांबरे । मध्यान्हे नैकते जागे, तदा दुष्काल संजवः ॥ २७ ॥
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अर्थ-वली ते महासुदी आतुमने दिवसे जो आकाशमां मध्यान्हकाले नैशत दिशामां धूलिनी वृष्टि थाय, तो उकाल पडे. ॥ २७॥ माघशुक्लाष्टमी चैव, पुर्दिना यदि जायते। तदा पशुविनाशः स्या,विविधव्याधिजिवम् _ अर्थ-वली माहासुदी श्रामि जो वादलांवाली होय, तो खरेखर विविधप्रकारना रोगोथी पशुजनो विनाश थाय. ॥२७॥ | निशानाथो निशि जातो, माघशुक्लाष्टमी दिने। रक्तवर्णेन संवृत्तो, यदा नामंडलेन च श्ए तदाऽतिवृष्टिविज्ञेया,चतुर्मासावधि जनैः। महामारी समुत्पातो,धान्योत्पत्तेरसंचवः ॥३॥ __ अर्थ-वली महासुदी आवमने दिवसे रात्रिए जो चंज लाल रंगना नामंडलथी घेराएलो देखाय, तो चतुर्माससुधि अत्यंत वृष्टि थाय, एम लोकोए जाणवू, वली तेथी मोहोटी मरकीनो उपज्व थाय, तथा धान्यनी उत्पत्ति न पाय. ॥ २५ ॥ ३० ॥ . माघशुक्लस्य चाष्टम्यां, यदाहि विद्युदर्शनम्।जायतेऽग्नौ दिशि चैव, तदा वृष्टिर्न जायते
अर्थ-वली महासुदी आवमने दिवसे जो अग्निखुणामां विजली देखाय, तो वरसाद श्रतो नश्री. ॥३१॥ धूम्रयुक्तं यदाकाशं, माघशुक्लाष्टमीदिने। दृश्यते हि तदा मह्यां, नूमिकंपो जवेधूवम् ३२
अर्थ-वली महासुदी आठमने दिवसे श्राकाश वाडाउँवालुं देखाय,तो पृथ्वीपर खरेखर धरतीकंप थाय..
॥१०॥
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तदिने गुरुवारश्चेत्, प्रनाते मेघवर्षणम् । तदा वृष्टिर्न जायेत, वर्षावधि हि निश्चितम् ॥३३॥ __ अर्थ-ते दिवसे जो गुरुवार होय,तथा प्रजातमां वरसाद श्राय, तो खरेखर एक वर्षसुधि वृष्टि अती नश्री. IN माघशुक्लनवम्यां च, रविवारो यदा नवेत्। करकाणां समुत्पातो, प्रनाते च यदानवेत् ३४ ।। तदा स्वर्णादिधातूनां, मूख्यं हि द्विगुणं मतम्। त्रिगुणं शनिवारश्चे,नौमवारे चतुर्गुणम् ॥३५
अर्थ- वली महासुदी नोमने दिवसे जो रविवार होय, अने प्रजातमां जो कराउँनो उपञ्च थाय, तो खरेखर सुवर्णादिक धातुनुं मूट्य बेवडुं श्राय, ते दिवसे शनिवार होय तो त्रणगणुं श्राय, अने ते दिवसे जो जोमवार होय, तो चारगणुं थाय. ॥ ३४॥ ३५॥ मध्यान्हे तदिने चैव, पूर्व दिग्यदि मंडिता।पंचवर्णेमहामेधै,स्तदा मारी न संशयः॥३६॥ __ अर्थ-वली ते दिवसे एटले माहासुदी आठमने दिवसे मध्यान्हकाले पूर्व दिशा जो पचरंगी मोटां वादलांथी मंडित थएली होय तो मरकीनो उपजव श्राय, तेमां संशय नथी.॥३६॥ माघशुक्लनवम्यां च, यदा हि विद्युद्दर्शनम्।जायते संध्यासमये, तदा धान्यं न जायते ३७ __ अर्थ- वली माहासुदी नवमीने दिवसे जो संध्याकाले विजली देखाय, तो धान्य निपजतुं नथी. ॥३॥ तदिने रविवारश्चे,दाकाशं च जलप्लुतम्। सूर्यस्य दर्शनं चैव, नो जायेत दिनावधि ॥३॥ तदा हि पशु विध्वंसः, फाल्गुने नवति ध्रुवम् । स्फोटकादिमहारोगै, रेवं जिनविनाषितम्॥
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मेघमा० अर्थ- वली ते दिवसे जो रविवार होय, अने आकाश पाणीश्री जीजाएलुं होय, तथा लेक सूर्यास्त-
सुधिनो सूर्य न देखाय, तो स्फोटक (शीतला) आदिक महारोगोथी पशुओनो नाश थाय, एम श्रीजिने
श्वरोए कहेढुंचे. ॥ ३० ॥३॥ ॥११॥
तदिने नोमवारश्चे,त्पूर्व दिक्चैव नूषिता।श्याममेधैस्तदा वृष्टि,राषाढे हि न संशयः ॥४॥ ___ अर्थ- वली ते दिवसे जो जोमवार होय,अने पूर्व दिशा जो श्याम रंगनां वादलांउथी जूषित भएली | || होय, तो आषाढमासमां खरेखर वृष्टि श्राय, तेमां संशय नथी. ॥ ४० ॥ लातदिने चांबरे प्राच्यां, निशीथे यदि जायते।पतनं तारकाणां च,राज्यबंशो न संशयः॥४१॥
अर्थ- वली ते दिवसे आकाशमा पूर्व दिशामां मध्यरात्रिए जो ताराश्रोनुं खरवु थाय, तो राज्यनो || IN नाश थाय, तेमां संशय नथी. ॥१॥ तदिने धूमकेतोश्च, दर्शनं यदि जायते। निशितदा जनानां हि नाशो जवति मारीतः॥४॥
अर्थ- वली ते महासुदी नोमने दिवसे रात्रिए जो धूमकेतुनुं दर्शन थाय, तो खरेखर मरकीश्री माणसोनो नाश थाय. ॥ ४॥ तहिने च निशानाथे,संध्याकालेऽनिलैर्युते। दृश्यते शंखचिन्हं चेत् तदा वृष्टेरसंचवः॥४३॥
अर्थ-वली ते दिवसे वायुसहित एवा संध्याकाले चंजनी अंदर जो शंखनु चिन्ह दखाय,तो वृष्टि न पाय
॥११॥
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तदिने चैव नजसि, प्रजाते यदि जायते। चंडवातस्तदा झेया, वृष्टिर्धान्यप्रदाजुवि ॥४४॥
अर्थ-वली ते दिवसे आकाशमांप्रनाते जो महावायु, थाय तो पृथ्वी मांधान्यने आपनारी वृष्टि जाणवी. दशम्यां माघशुक्लस्य, शक्रचापो विदृश्यते।संध्याकाले सदा झेया,वृष्टिर्मारीप्रदा तदा
अर्थ-महासुदि दशमने दिवसे संध्याकाले जो इंजधनुष्य देखाय, तो मरकीने आपनारी वृष्टि जाणवी.४५ दशमी माघशुक्लस्य, नौमवारान्विता यदि। तदा बालविनाशोहि,विडेयो फाल्गुने ध्रुवम्
अर्थ-वली माहासुदि दशम जो लोमवारी होय, तो खरेखर फागण मासमां बालकोनो नाश जाणवो. विद्युत्पातो यदा जात,स्त दिने वृषनोपरि। तदा प्राणिसमूहस्य, नाशो नवेजलं विना ४७
अर्थ-वली ते महासुदि दशमने दिवसे बलदपर जो वीजली पडे, तो पाणीविना प्राणीजना समूहनो || |विनाश थाय. ॥४७॥ तदिने सूर्यमध्ये चेद्,दृश्यते रक्तनान्वितम्। तदस्तसमये नून,मत्स्यचिन्हं सकंपनम्॥॥ तदाष्टदिनमध्ये हि, जायते वार्धिसंजवः। जलप्लवो महाघोरो, ध्रुवं जगतीनाशकः ॥४
अर्थ-वली ते महासुदि दशमने दिवसे सूर्यास्त समये जो सूर्यना मध्य लागमा लालकांतिवालुं तथा कंपसहित जो मत्स्य, चिन्ह देखाय, तो आठ दिवसोनी अंदर खरेखर अत्यंत जयंकर, तथा जगतने नाश करनारी समुपनी रेल आवे.॥10॥पए॥
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मेघमातदिने पूर्व दिग्नागे, यदाहि मेघमंडलम् । पीतप्रनं प्रनाते च, मेघमार्गे तु दश्यते ॥५०॥
तदा ज्वरोत्पत्तिईया, मनुष्येषु जुविध्रुवम्। विनाशश्च तथा तेषां,ततो शेयो जयप्रदः॥५१॥ ॥१२॥ अर्थ-वली ते महासुदि दशमने दिवसे जो आकाशमा पूर्व दिशामा प्रजाते पीली कांतिवालुं वदालां
उनुं मंगल देखाय, तो पृथ्वीमां माणसोमां खरेखर तावनी उत्पत्ति जाणवी; अने तेथी जयने आपनारो एवो तेउनो ( माणसोनो ) विनाश जाणवो. ॥ ५० ॥५१॥ तदिने नैश्ते जागे, यदा च विद्युदर्शनम्। तदा गर्भवतीनारी, ध्वंसो जवति निश्चितम् ५५
अर्थ-ते दिवसे जो नैऋत दिशामा विजली, दर्शन श्राय, तो खरेखर गर्भवती स्त्रीउनो नाश श्राय.॥॥ माघशुक्लदशम्यां च, संध्याकाले यदा नवेत्। मृत्युदो नूरिगाढश्च, विद्युत्पातो जनोपरि तदा वन्दिनवोत्पातो, नवति जननीतिदः। तदेशेह्यथवा तस्मिन्, नगरे निश्चितं निशि
अर्थ-वली माहासुदी दशमने दिवसे संध्याकाले जो मृत्यु करनारो तथा अत्यंत तीव्र एवो विद्युत्पात जो माणसपर थाय, तो (ते) रात्रिए खरेखर ते देशमां अथवा ते नगरमां लोकोने नय आपनारो अग्निनो उपजव थाय. ॥ २३ ॥४॥ माघशुक्लस्यैकादश्यां, नौमवारो यदा जवेत्। विद्युतां दर्शनं चैव, निशीथे यदि जायते५५
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तदा ज्येष्टस्य शुक्ले हि, पदे वृष्टिर्न संशयः।धान्यं तृणं तथा नूरि, जायते प्राणिहर्षदम् | | अर्थ-माहासुदि अगियारसने दिवसे जो जोमवार होय, तथा मध्यरात्रिए जोः विजली देखाय, तो | खरेखर ज्येष्ट मासना शुक्लपक्षमा वृष्टि थाय, तेमां संशय नश्री, तथा प्राणीउने हर्ष आपनारं एवुधान्य तथा घास पुष्कल थाय. ॥२६॥ तदिने रविवारश्चे, त्तथा मेघस्य डंबरः। पूर्वदिशिच मध्यान्हे, सजलः श्यामवर्णकः॥५॥ तदा हि फाल्गुनेमासे, वृष्टिरतीव जायते । षट्मासावधि चैव, ततो वृष्टरसंजवः ॥५॥ __ अर्थ-वली ते महासुदि अगीयारसने दिवसे जो मध्यान्य काले पूर्व दिशामा जलसहित श्यामरंगवालो मेघनो आडंबर थाय, तो खरेखर फागण मासमां घणोज वरसाद श्राय, अने पनी उ माससुधि वरसाद थाय नहीं. छादश्यां माघशुक्लस्य, शनिवारो यदानवेत्। तदा तैलादिवस्तुनां, मूल्यवृद्धि वेवम् ॥ | अर्थ-माहासुदि बारसने दिवसे जो शनिवार होय, तो तेल आदिक वस्तूउँना मूख्यनी वृद्धि खरेखर श्राय. तदिने धूमकेतुश्चे, दक्षिणे निशिथेऽबरे। दृश्यते हि तदा नूनं, राजमृत्युन संशयः॥६० ॥
अर्थ-वली माहासुदि बारसने दिवसे मध्यरात्रीए दक्षिण दिशामां जो धूमकेतु ( पुंबडीउ तारो) देखाय, तो खरेखर राजानुं मृत्यु थाय, तेमां संशय नथी. ॥ ६ ॥ तदिने रविवारश्चे, ननश्च निर्मलं नवत्। तीवः सूर्यस्तथा चैव, शीतवायोरसंजवः ॥६॥
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मेघमा
॥१३॥
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तदा चैत्रेमधौ चैव, महामारी प्रजायते । वमनारेचसंयुक्ता, तूर्णमृत्युप्रदा जुवि॥६॥विचार. | अर्थ- ते महासुदि बारसने दिवसे जो रविवार होय, अने आकाश निर्मल होय, तथा सूर्य आकरो | होय, अने लंको वायु न वातो होय, तो चैत्र अने वैसाक मासमां वमन अने जुलाबवाली तथा तुरत मृत्यु यापनारी महामारी (कोलेरा) पृथ्वीमां थाय. ॥६१॥६॥ माघशुक्लत्रयोदश्या, मीशाने यदि विद्युतां।दर्शनंजायते तम्यां,तदा वृष्टिर्न वार्षिका॥६३॥ | अर्थ-महासुदि तेरसने दिवसे शानदिशामांजो विजलीउनु रात्रिए दर्शन याय, तो वार्षिक वृष्टियती नश्री.]
तदिने निशिथे चंडो, यदा रक्त प्रजान्वितः।तदाषाढे रुधिरस्य वृष्टिनवति निश्चितम् ॥६॥ | अर्थ- वली ते महासुदि तेरसने दिवसे मध्यरात्रिए जो चंज लाल कांतिवालो होय, तो असाड मासमां खरेखर रुधिरनी वृष्टि श्राय. ॥ ६ ॥ तदिने चंगरश्मिश्चे,द्यदा मेघैः परिवृतः। नीलवर्णैः प्रजातेच, घटिकाद्वितीयावधि ॥६५॥ तदानूनमनावृष्टि, र्जायते कार्तिकावधि।ज्योतिश्चक्र इति प्रोक्तं, श्रीहरिजमसूरिणा६६ __ अर्थ- वली ते महासुदि तेरसने दिवसे जो प्रत्नातमां बे घमी सुधि सूर्य लीला रंगनां वादलाउथी| विंटाएलो होय, तो खरेखर बेक कार्तिक माससुधि वृष्टि अती नश्री, एवी रीते श्रीहरिजप्रसूरिजी महा-IN राजे ( पोताना ) ज्योतिष्चक्रमां कहेलुं . ॥६५॥६६॥
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माघशुक्ल चतुर्दश्यां, संध्याकाले नवेद्यदि । उल्कापातः प्रतीच्यां चे, तदा नाशोऽवनिनुजां
अर्थ- माहासुदि चौदसने दिवसे संध्याकाले पश्चिम दिशामां जो उस्कापात थाय, तो राजार्जुनो नाश थाय. न माघे पतितं सीतं, ज्येष्ठे मूलं न वृष्टिकृत् । नार्द्रायां पतिता वृष्टि, ईष्टकालस्तदाजवेत् ६८ अर्थ- जो माहा मासमां टाढ न पके, तथा जेठ सुदि पडवाने दिवसे जो मूल नक्षत्र वृष्टि न करे, तथा | नक्षत्रमां जो वृष्टि न थाय, तो काल पडे. ॥ ६८ ॥
पंचार्काः पंचजौमाश्च, पंचसूर्यसुतास्तथा । एकमासे यदायाता, स्तदा पुर्जि संजवः॥६९॥
अर्थ- वली एक मासमां जो पांच रविवार, पांच मंगलवार, तथा पांच शनिवार यावे तो काल पडे. | सर्वेषु चैव मासेषु, रुक्षवृद्धिः सुनिकृत् । माघस्य प्रतिपच्चैव, सवाता मेघवर्जिता ॥॥॥७०॥ अर्थ- सघला मासोमां जो नक्षत्रोनी वृद्धि थाय, तो सुकाल याय, अने माहा मासनो पडवो जो वायुसहित होय, तो वरसाद वरसे नहीं. ॥ ७० ॥
द्वितीया मेघसंपूर्णा, माघकृष्णे यदा भवेत् । सविद्युायते तत्र, धान्यमूल्यं चतुर्गुणं ॥ ७१ ॥ - जो महावदि बीज मेघवाली, ने वीजलीवासी होय, तो त्यां धान्यनुं मूल्य चारगणुं थाय बे. तृतीया अत्रसंयुक्ता, निर्जला गर्जते यदा । गोधूमांस्तत्र गृह्णीया, यवांश्चैव विशेषतः॥ ७२॥
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अर्थ- जो माघ मासनी कृलपदनी त्रीज वादलांवाली होय, ने वृष्टिविना जो गर्जना थाय, तो घनो संग्रह करवो, छाने यवोनो विशेष प्रकारें संग्रह करवो. ॥ ७२ ॥
चतुर्थी मेघसंयुक्ता, बिंडु निर्जलसंजवैः । नालिकेर फलानीह, मर्घ्याणि जवंति हि ॥ ७३ ॥ - वली महावदि चोथ जो वादलांवाली तथा जलना बिंदुवाली होय, तो अहीं नाली एरनां फलो खरेखर अत्यंत मोंघां थाय बे. ॥ ७३ ॥
पंचमी मेघसंयुक्ता, यदा बिंडु विवर्जिता । उदग्रवायुसंयुक्ता, जाद्रपदे न वर्षति ॥ ७४ ॥ - वली महावदि पांचम जो वादलांवाली ने जलबिंदु विनानी होय, तथा अत्यंत प्रचंड वायुवाली होय, तो जादरवा मासमां वृष्टि यती नथी. ॥ ७४ ॥ षष्ठी सबिंडुका ज्ञेया, निरजा निर्मला दिशः। कार्पाससंग्रहे तत्र, लाजो जवति पुष्कलः ॥ ७५ ॥ - वली महावदिह जो बिंदुवाली होय, अने दिशाने जो वादलांविनानी तथा निर्मल होय, तो कपासनो संग्रह करवो, केमके तेथी घणो लाज थाय बे. ॥ ७५ ॥ | सप्तमी सोमवारेण, संयुक्ता यदि जायते । तदा वृष्टिर्महाधारा, चतुर्मासे जवेवम् ॥ ७६ ॥ अर्थ- वली माहावदि सातेम जो सोमवारी होय, तो चतुर्मासमां खरेखर अत्यंत धारावाली मेघवृष्टि थाय. अष्टम्यां यदि मार्तंडो, जवति मेघवेष्टितः । न वर्षति तदार्द्रायां, श्रावणांते तथैव च ॥ ७७ ॥
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विचार.
॥ १४ ॥
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__ अर्थ- वली माहावदि आठमने दिवसे सूर्य जो वादलाउथी वीटाएलो होय, तो आजै नत्रमा तथा लश्रावणने अंतें पण वरसाद थाय नहीं. ॥ ७॥ नवम्यां हि निशानाथो,निशीथे यदि नीलनः। नाषाढे सकले वृष्टि, लोके धान्यमहर्म्यता॥
अर्थ- वली माहावदि नवमीने दिवसे मध्यरात्रिए चंड जो लीली कांतिवालो होय, सो आखा असाडमासमां वृष्टि यती नथी, तथा मुनीयामां धान्य घणुं मोघु थाय. ॥ ७ ॥ माघस्य कृष्णपदे तु, सप्तम्यादिदिनत्रये। रवावस्ते यदा वृष्टि, रिधान्यं प्रजायते॥॥
अर्थ- माहा महिनाना कृमपदमां सप्तमी श्रादिक त्रण दिवसोमां (एटले सातेम, आग्मे अने नोमने |दिवसे ) जो सूर्यास्त समये वरसाद थाय, तो घणुं धान्य उत्पन्न थाय. ॥ ७ ॥
दशम्यां कृष्णपदे तु, माघमासे प्रवर्षति। तदाद्विदलधान्यस्य, मूल्यवृद्धिःप्रजायते ॥७॥ all अर्थ- माघ मासमां कृप्लपक्षमा दशमीने दिवसे जो वरसाद श्राय, तो कठोलना धान्यना मूट्यनी वृद्धि श्राय . ॥७॥
दशम्यां खातियोगे यदि पतति हिमं माघमासेंधकारो । वातो वा चंडवेगः सजलजलघनो गर्जते वाप्यजस्रम्
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मेघमाग
विचार.
॥१५॥
विद्युन्मालाकुलं वा तदपि हि च नवेन्नष्टचंडार्कतारं ।
विझेया प्रावृडेषा मुदितजनपदैः सर्वशस्यैरुपेता ॥१॥ अर्थ- माघ मासना कृष्लपक्षनी दशमीए जो स्वाति नक्षत्रनो योग होय, तथा हिम पडे, अंधकार थाय, अत्यंत वेगवालो वायु होय, जलसहित वरसाद हमेशां गर्जना करे, विजली श्राय, तथा सूर्य, चंड अने तारा न देखाय, तो हर्षित भएला लोकोए सर्व प्रकारना धान्योने उत्पन्न करनारो वरसाद जाणवो.॥१॥ माघस्य नवमी कृष्णा, दशम्येकादशी तथा।सवाता विद्युता युक्ता, शस्यनाशप्रदा मता॥
अर्थ- माघ मासनी कृतपदनी नोम, दशम, तथा अगीयारस जो वायु अने विजलीसहित होय, तो ! तेने धान्यनो नाश करनारी जाणवी. ॥ ५॥ माघस्य छादशी कृष्ला, शनिवारेण संयुता।समेघा ज्वरदा ज्ञेया, प्राणीसंहारकारिणी ३
अर्थ- माघ मासनी कृप्तपदनी बारस जो शनिवारी तथा वादलांवाली होय, तो तेने ताव आपनारी तथा प्राणीजनो संहार करनारी जाणवी. ॥ ३ ॥ कृष्लपक्ष्या सदा झेया, माघमासत्रयोदशी।सेंजचापा सुवृष्टिदा, ज्येष्टमासे च निश्चितम् ॥
अर्थ- वली माघ मासनी कृलपदनी धनुष्यवाली तेरसने खरेखर ज्येष्ठ मासमां उत्तम वृष्टि देनारी जाणवी.॥४॥
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चतुर्दशी कृष्लपदया, माघमासस्तथा मता।रविवारेण संयुक्ता, महामारीप्रदा सदा५॥
अर्थ- वली माघ मासनी कृमपदनी चौदस जो रविवारी होय, तो तेणीने हमेशां महामारी देनारी | जाणेली ॥५॥ माघस्य चोत्तमावास्या, अनबन्ना यदा नवेत्। हैमवातेन संयुक्ता, गोधूमादिप्रणाशिनी ॥ | अर्थ- माघमासनी अमावास्या जो वादलांवाली, तथा ठंडा वायुथी युक्त अएली होय, तो तेणीने ते घचं आदिकनी नाश करनारी जाणवी. ॥ ६ ॥
एवी रीते माघ मासनो विचार जाणवो.
हवे फागण मासनो विचार कहेछे. फाल्गुनेऽस्तमिते शुक्र, उर्जिदं कथितं जिनैः। षएमासावधि प्राणि, जयदं पुःखर्जितम् || । अर्थ- जो फागण मासमां शुक्रनो अस्त वाय, तो उ माससुधी प्राणिने नय आपनारो, तथा मुख
गर्जित फुकाल पडे, एम श्री जिनेश्वर प्रनुए कहेलं . ॥१॥ | फाल्गुने सप्तमी चैव, अष्टमी नवमी तथा। एकादशी च शुक्ला स्या,त्कृत्तिकाशसंयुतार नाउपदे त्वमावास्या,घोणमेघ प्रवर्षति।ज्योतिश्चक्र इति प्राक्तं, श्रीहरिजमसूरिणा ३ अर्थ- फागण मासनी शुक्लपदनी सातम, आठम, नोम अने अगीयारस जो कृत्तिका नत्रवाली होय
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मेघमा
विचार
॥१६॥
तो जादरवा मासनी अमासे एक प्रोण प्रमाण मेघ वरसे, एवं श्रीहरिजसूरिजी महाराजे ( ज्योतिष्चक्र नामना ग्रंथमां कडं जे. ॥२॥३॥ फाल्गुने शुक्लसप्तन्यां, पूर्णमास्यां तथैव च। निर्वाता गगने मेघा, ज्येष्टेहिवृष्टिदा मताः४ | अर्थ- फागणसुदि सामने दिवसे तथा पुनेमने दिवसे आकाशमां वायुविनाना जो वादलांउ होय, तो |ते ज्येष्ठ मासमां वृष्टिने देवावाला खरेखर जणाएलां वे ॥४॥ फाल्गुनस्य शुक्लाष्टम्यां,यदा विद्युछि नैझते। तदाषाढशुक्ले पके,नैव वर्षा नवेड्वम्॥५॥
अर्थ- जो फागण मासनी शुक्ल अष्टमीने दिवसे नैऋत्यखुणामां विजली श्राय, तो आषाढमासना शुक्ल| पदमां खरेखर बिलकुल वरसाद थाय नहीं.॥५॥ फाल्गुनस्य च मासे च,वर्षते नवमीदिने।सुनिदं च समादेश्य, शस्यनिष्पत्तिरेव च॥६॥ अर्थ-जो फागुण मासनी शुक्ल नोमने दिवसे वरसाद वरसे तो सुकाल थाय, तथा धान्यनी नीपज पण श्राय. IN
एवीरीते फागण मासनो विचार जाणवो.
__ हवे चैत्र मासनो विचार कहे छे. चैत्रमासस्य संक्रांती,यदा वर्षति वारिदः।विचित्रं जायते शस्य,वैशाखज्येष्ठयोस्तदा॥१॥
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अर्थ-चैत्रमासनी संक्रांते जो वरसाद वरसे, तो विचित्र प्रकारनं धान्य पाके, तथा वैशाख अने ज्येष्ठ | मासनी संक्रांतिए पण जो वरसाद वरसे, तो पण तेज प्रमाणे विचित्र प्रकारनं धान्य नीपजे. ॥ १ ॥ चैत्रे वा श्रावणे वापि, पंचार्का यदि चागताः । दुर्निदं हि तदा ज्ञेयं कथितं पूर्वसूरिभिः २ अर्थ–चैत्र अथवा श्रावण मासमां पण जो पांच रविवारो आवे, तो खरेखर मुकाल जावो, एम पूर्वा - चार्योए कहेलुं बे ॥ २ ॥
चैत्रस्य शुक्लसप्तम्यां मेघछन्नं यदा नजः । निर्मला वा दिशः सर्वा दृश्यंते वायुना सह ॥ ३ ॥ गोधूमांस्तत्र गृह्णीयान्, महर्ध्यान पिबुद्धिमान् । संप्राप्ते श्रावणे मासि, लाजो हि त्रिगुणोभवेत्।
अर्थ-चैत्र मासनी शुक्ल सातमने दिवसे जो आकाश वादलांउंथी बवाएलुं होय, अथवा सर्व दिशा वायुसहित निर्मल देखाय, तो बुद्धिमान माणसे मोंघा एवा पण घटं ग्रहण करवा, केमके श्रावण मास आवते ते तेथी गणो लाज थाय. ॥ ३ ॥ ४॥
द्वितीया दिवसे प्राप्ते, चैत्रे वायुश्च सर्वतः । नवेयुर्यदि मेघा न, वृष्टिर्जाद्रपदे ध्रुवम् ॥ ५ ॥ - चैत्रमासनी बीजने दिवसे जो सर्व बाजुथी वायु होय, अने वादलांर्ज न होय, तो खरेखर जादरवा मासमां वृष्टि श्राय ॥ ५ ॥
तृतीया असंयुक्ता, निर्जला गर्जते यदा । गोधूमांस्तत्र गृह्णीयात्, यवांश्चैव विशेषतः ॥६॥
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मेघमा०
॥ १७ ॥
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अर्थ- चैत्र मासनी त्रीज जो जलरहित वादलांवाली होय, अने जो गर्जना थाय, तो घटनो श्र यवोनो विशेष प्रकारे संग्रह करवो. ॥ ६ ॥
तृतीये दिवसे प्राप्ते, उत्तरो यदि मारुतः । न च मेघाः प्रदृश्यते, कार्तिके वृष्टिमादिशेत् ॥ ॥ - चैत्र सुदीजने दिवसे जो उत्तर दिशामां वायु होय, अने वादलां जो न देखाय, तो कार्तिक मासमा वृष्टि थाय ॥ ७ ॥
| चतुर्थे दिवसे प्राप्ते, मेघजालं प्रदृश्यते । दुर्भिक्षं जायते घोर, मनावृष्ट्या न संशयः ॥ ८ ॥ - चैत्र सुद चोथने दिवसे जो वादलांनो समूह देखाय, तो वरसाद विना जयंकर दुकाल थाय, तेमां संशय नथी. ॥ ८ ॥
दिनद्वयं यदा वाति, वायुर्द क्षिणपश्चिमः । तदा न जायते धान्यं, दुर्भिक्षं चात्र जायते ॥ ॥ - ज्या चैत्र सुद ( चोथथी ) मांडीने बे दिवससुधी दक्षिण पश्चिम दिशामां वायु वाय, त्यारे
धान्य न थाय, अने काल पडे. ॥ ए ॥
तृतीया पंचनवम्यां वायुः पूर्वोत्तरो यदि । सर्वशस्यानि जायंते, प्रजाश्च सुखिनो ध्रुवम् ॥ १० अर्थ - चैत्र सुदीज, पांचम ने नोमने दिवसे जो पूर्व ने उत्तर दिशानी वच्चे वायु होय, तो सर्व प्रकारनां धान्यो थाय ने प्रजा पण खरेखर सुखी थाय. ॥ १० ॥
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विचार.
॥ १७ ॥
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चैत्रमासस्य पंचम्यां, शुक्लपदे विलोक्यते । अन्नं नः सर्व, विद्युर्जनसंकुलम् ॥ ११ ॥ गोधूमानत्र गृह्णीया, न्महर्ष्यानपि बुद्धिमान् । श्रावणे विक्रयेत्तांश्च, लाजो हि त्रिगुणो नवेत्
अर्थ - चैत्र मासनी शुक्लपक्षनी पांचमने दिवसे जो सर्व आकाश वादलांंथी बवालुं, ने विजली तथा गर्जनासहित देखाय, तो बुद्धिवान माणसे हीं बहु मूल्यवाला एवा पण घरं ग्रहण करवा; अने | तेर्जने श्रावण मासमां वेहेंचवा, केमके, तेथी त्रण गएो लाज थाय. ॥ ११ ॥ १२ ॥ चैत्रमासस्य दिवसे, शुक्ले च पंचमी दिने । सप्तम्यां च त्रयोदश्यां यदा मेघः प्रवर्षति ॥ १३ ॥ | तारकापतनं चैव, गर्जनं विद्युता सह । वर्षांतो हि तदा नूनं, नात्र कार्या विचारणा ॥ १४ ॥
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अर्थ- चैत्र मासना शुक्लपक्षना पांचमने दिवसे, सातमने दिवसे, तथा तेरसने दिवसे जो वरसाद वरसे, | तारा पडे, ने विजली साथै गर्जना थाय, तो खरेखर वर्षारुतुनो अंत आव्यो जावो; तेमां कई प विचार नहीं करवो. ॥ १३ ॥ १४ ॥
मूलमादौ यमं चांते, चैत्रे कृम्झे निरीक्षयेत् । यावद्द क्षिण दिग्वायु, स्ताव ष्टिप्रदायकः १५ - चैत्रमासना कृ पक्षमां मूल नक्षत्रथी मांडीने भरणी नक्षत्र सुधीमां दक्षिण दिशा तरफ जेटलो वायु होय, तेटलो वृष्टिने देनारो जावो. ॥ १५ ॥
चैत्रस्य कृष्तपंचमी, सप्तमी नवमीषु च । डुर्जिकं जायते चेच्च, पतंति जलबिंदवः ॥ १६ ॥
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मेघमा०
॥१०॥
अर्थ-चैत्र मासनी कृप्त पदनी पांचम, सातम अने नोमने दिवसे जो जलना बिंडुन पडे, तो उकाल पाय. विचार. पंचमी सह रोहिण्या, सप्तमी चार्डसंयुता। नवमी चैव पुष्येण, तदारसमहर्घ्यता ॥ १७ ॥ । अर्थ-चैत्र मासनी शुक्ल पदनी पांचम जो रोहिणी सहित होय, सातम जो आजै नत्रवाली होय,IY] अने नोम जो पुष्य नक्षत्रवाली होय, तो रसनी वस्तुनी घणी किम्मत वधे. ॥१७॥ स्वात्या सह पूर्णमासी, विद्युन्मेघसमन्विता। तदा वृष्टिर्न विज्ञेया, कार्तिकावधि पंडितैः २०
अर्थ चैत्र मासनी पूनम जो स्वाति नक्षत्रवाली अने विजली तथा मेघ सहित होय, तो पंडितोए जाएवं के, बेक कार्तिक मास सुधी वृष्टि नहीं पाय. ॥ १०॥ चैत्रस्य शुक्लपदे तु, त्रयोदश्यां तथैव च।धूमिका जायते चैव, मेघस्तत्र न वर्षति ॥१५॥ अर्थ-वली तेमज चैत्र मासना शुक्लपक्ष्मां तेरसने दिवसे जो धूमरी श्राय, तो त्यां वरसाद न वरसे. १५
___एवी रीते चैत्र मासनुं स्वरूप जाणवू..
__ हवे वैशाख मासतुं खरूप कहे छे. वैशाखे गर्जितं नूरि,सलिलं पवनो घनो। उप्लोज्येष्टो विशिष्टः स्यात्, कथितं मुनिसत्तमैः ॥ I अर्थ-वैशाख मासमां गर्जना थाय, घणुं पाणी होय, घणो पवन होय, अने ज्येष्ट मास जो जप्म होय, का तो ते सारा जाणवा; एम उत्तम मुनिए कहेलुं .॥१॥
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वैशाखे शुक्ल पंचम्यां, अचछन्नं यदा नजः । गर्जते वर्षते चापि पूर्ववातो नवेद्यदा ॥ २ ॥ | उदयास्तसमयेऽर्कस्य, जायते मुवि चेद्ध्रुवम् । संग्रहेत्सर्वशस्यानि, प्रचूराणि प्रयत्नतः॥३॥ मासे जाऊपदेऽत्यंतं, महर्ष्याणि जवंति हि । ज्ञातमेवं हि विद्वनि, ज्योतिर्विद्याविशारदैः ॥
अर्थ- वैशाख मासमां शुक्ल पंचमीने दिवसे सूर्योदय तथा सूर्यास्त समये जो आकाश वादलांंथी बवाएलुं होय, गर्जना थाय, वृष्टि थाय तथा पूर्व दिशानो जो वायु होय, तो प्रयत्नपूर्वक घणां धान्योनो | संग्रह करवो; केमके ते धान्यो नादरवा मासमां अत्यंत मोंघां थाय बे; एवी रीते ज्योतिष विद्यामां विचक्षण एवा विधानोए खरेखर जाणेलुं बे. ॥ २ ॥ ३ ॥ ४॥
वैशाखे तु प्रतिपदि, मेघा वा विद्युतो यदा । सर्वधान्यस्य निष्पति, र्नवति हि सुखप्रदा ॥२५॥ - वैशाख सुदिपडवाने दिवसे वादलां अथवा जो वीजली थाय, तो सर्व धान्यनी नीपज सुखने आपनारी थाय ॥ ५ ॥
तृतीया शुक्लपक्षस्य, वैशाखे गुरुतोऽन्विता । रोहिणी कक्षसंयुक्ता, नूरिधान्यप्रदा मता ॥
अर्थ- वैशाख मासना शुक्लपक्षानी त्रीज जो गुरुवार सहित, तथा रोहिणी नक्षत्र सहित होय, तो ते घणां धान्योने देनारी मानेली बे. ॥ ६ ॥
वैशाखशुक्ल द्वितीया, यदा हि गर्जनान्विता । संध्याकाले मध्याह्ने वा, तदा पुर्जि संजवः
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मेघमा०
॥ १५ ॥
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अर्थ- वैशाख मासना शुक्ल पक्षनी बीज जो खरेखर संध्याकाले अथवा मध्यान्हकाले गर्जनावाली होय, तो डुकालनो संजव जावो. ॥ ७ ॥
वैशाखशुक्लचतुर्थ्यां सूर्योदये नवेद्यदि । इशानी दिशमाश्रीत्य, चंडवायुर्जयप्रदः ॥ ८ ॥ | महामारी समुत्पातो, जवति जन विनाशकः । ज्येष्ठमा सि तदा नूनं, युद्धं चैव महीभुजाम् ॥
अर्थ- वैशाख मासनी शुक्ल चतुर्थीने दिवसे सूर्योदय वखते जो इशान दिशमां जयंकर चंडवायु वाय, तो माणसोने नाश करनारो एवो मोटी मरकीनो उत्पात ज्येष्ठ मासमां खरेखर थाय ने राजा वच्चे युद्ध पण श्राय ॥ ८ ॥ ५ ॥
| पंचमी रविवारा चे, द्वैशाखे शुक्लपक्षका । तदाऽतिवृष्टितो ज्येष्ठे, जलप्लवैर्जगत्दयः ॥१०॥ - वैशाख मासना शुक्लपक्षनी पांचम जो रविवारी होय, तो ज्येष्ठ मासमां अतिवृष्टिथी, पाणीनी रेलोथी जगतनो दय थाय. ॥ १० ॥
षष्ठी च शनिवारा चे, न्मेघवन्नो नजोमणिः । उदयकाले संजातो, धूलिवृष्टिश्च पूर्वगा ॥ ११ ॥ | तदाषाढे ध्रुवं वष्टिः, करकाणां संजायते । नदी सरोहदा चैव, संपूर्णाः सबिलैर्भुवम् ॥ १२ ॥ अर्थ- वैशाख मासना शुक्लपक्षनी बघ जो शनिवारी होय, अने उदय वखते सूर्य जो वादलांंथी ब
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विचार.
॥ १९ ॥
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वाएलो होय, तेम पूर्व दिशामां जो धूलिनी वृष्टि थाय, तो आषाढ (असाड ) मासमां खरेखर कराउनी |वृष्टि श्राय, अने नदी, तलावो अने हो पण खरेखर जलश्री संपूर्ण थाय. ॥ ११ ॥१५॥ वैशाखशुक्लपदस्य, सप्तम्यां च निशापतिः। सूर्यास्तसमये नूनं, रक्तैराछादितोऽनकैः १३ । तदा बालविनाशःस्यादाषाढे समुपनवैः। तदिने जोमवारश्चे--तदा नाशो हि नूनुजाम् १४
अर्थ- वैशाख मासना शुक्लपक्षनी सातेमने दिवसे सूर्यास्त समये जो चंड खरेखर लाल वादलांउथी आबादित थयो होय, तो आषाढ मासमां जपज्वोथी बालकोनो विनाश थाय, अने ते दिवसे जो जोमवार होय, तो खरेखर राजाऊनो विनाश थाय. ॥ १३ ॥१४॥ अष्टम्यां तस्य मासस्य, सोमवारो यदा नवेत्। निशीथे तारकाणां च, पतनं पूर्व दिशि यदि तदा हि बननंगः स्या-त्तथा मार्या उपजवः।अनावृष्टिश्च लोकानां, पशूनां च विनाशिनी । । अर्थ-वैशाख मासना शुक्लपहनी आम्मने दिवसें जो सोमवार होय, अने मध्यरात्रिए पूर्व दिशामां जो तारा खरे, तो खरेखर उत्रनंग श्राय, तथा मरकीनो उपञ्व थाय, अने लोकोनो तथा पशु-नो नाश करनारी अनावृष्टि थाय.॥ १५॥ १६॥ वैशाखशुक्लनवमी, जरणी संयुता यदि। मेघेशबन्ना सगर्जा च,विद्युन्निश्च समन्विता॥१७॥ तदा ज्येष्ठे नवेन्नूनं, वृष्टि उपदे तथा।सर्वधान्यस्य निष्पत्तिः, सर्वलोकाः सुखान्विताः॥
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मेघमा
॥२०॥
Ital अर्थ- वैशाख मासना शुक्लपदनी नोम जो जरणि नक्षत्र वाली, वादलांथी बवाएली, गर्जनावाली. विचार, तथा विजली वाली होय, तो ज्येष्ठ मासमां अने नादरवा मासमा खरेखर वृष्टि श्राय, सर्व धान्योनी उपज श्राय, अने सर्व लोको सुखीया थाय.॥१७॥१०॥ दशम्यां तस्य मासस्य, सूर्यास्तसमये यदि । शुक्लपक्ष नवेदिंड-चापस्य दर्शनं ध्रुवम् १५ तदा ज्येष्ठे न वृष्टिः स्या-दाषाढेऽपि तथैव च।श्रावणे नाउमासे च, ह्यतिवृष्टिनवेत्किल २० ___ अर्थ- ते वैशाख मासना शुक्लपदनी दशमीने दिवसे सूर्यास्त समये जो खरेखर इंधनुष्यनुं दर्शन थाय, तो ज्येष्ठ मास अने असाड मासमां पण वृष्टि न थाय; अने श्रावण तथा जादरवा मासमां खरेखर अत्यंत वृष्टि श्रायः ॥ १५ ॥२०॥ शुक्लपदस्यैकादश्यां,तस्मिन्मासि यदांबरमाश्राछादितं हि मध्याह्ने,श्यामवर्णैः किलानकैः तदा वृष्टिर्जवेन्नूनं, कार्तिके व्याधिदा जुवि। चतुर्मास्यां तु वर्षाया,बिंदोरपि न संचवः॥२॥
अर्थ- ते वैशाख मासमां शुक्लपक्षनी अगीयारसने दिवसे मध्याह्न काले आकाश जो श्याम रंगनां वादलांउथी बवाएलुं होय, तो पृथ्वीमां रोगने आपनारी एवी कार्तक मासमां वृष्टि श्राय; अने चोमासामां
॥२०॥ तो वरसादनुं एक बिंदु पण पडे नहीं ॥२१॥२२॥ तस्य मासस्य छादश्यां,संध्याकाले नवेद्यदि। विद्युतां दर्शनं प्राची-दिशि रक्तप्रवान्वितम्
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तदाषाढे नवेन्नूनं, वह्निजोऽत्र द्युपद्रवः । धनधान्यहरो मह्यां तृणानां चैव नाशकः ॥ २४ ॥
अर्थ- वैशाख मासना शुक्लपक्षनी बारसने दिवसे संध्याकाले पूर्व दिशामां लालकांतिवालुं जो विजलीनुं दर्शन थाय, तो असाड मासमां खरेखर या पृथ्वी पर धनधान्यनो ध्वंस करनारो, तथा घासने नाश करना अनि उत्पन्न थएलो उपव थाय. ॥ २३ ॥ २४ ॥ त्रयोदशी तन्मासस्य, निर्मला च जवेद्यदि । गुरुवासरसंयुक्ता, ज्येष्ठे वृष्टिस्तदा ध्रुवम् १५
अर्थ - ते वैशाख मासनी शुक्लपक्षनी तेरस जो निर्मल तथा गुरुवारे करीने संयुक्त होय, तो ज्येष्ठ मासमां खरेखर वृष्टि थाय. ॥ २५ ॥
चतुर्दशी च संयुक्ता, रविवारेण वृष्टिदा । चतुर्मास्यां हि धान्यानां तृणानां च मता प्रदा ॥
अर्थ- ते वैशाख मासना शुक्लपक्षनी चौदस जो रविवारी होय, तो चतुर्मासमां ते वृष्टिनी देनारी, अने धान्य तथा घासनी देनारी ( पंडितोए) मानेली बे. ॥ २६ ॥
पूर्णमासी सदा ज्ञाता, वैशाखस्य शनैर्युता। पशुनाशकरी ज्योति - विद्यासार विशारदैः 29
अर्थ- वैशाख मासनी पुनम जो शनिवारी होय, तो ते पशुर्जनो नाश करनारी बे, एम ज्योतिषवि - द्याना तत्वमां पंडित एवा लोकोए हमेशां जाएयुं बे. ॥ २७ ॥ वैशाखकृलपक्षस्य, पंचमी मेघसंयुता । राज्यजंगकरा ज्ञाता, सोमवासरसंयुता ॥ २८ ॥
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मेघमा
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अर्थ- वैशाख मासना कृमपदनी वादलांजेवाली, अने सोमवारें करीने युक्त एवी पंचमी राज्यनो नंग करनारी जणाएदी बे. ॥२०॥ नवमी दशमी चैव, विद्युजियदि संयुता।कृष्लपदया हि वैशाखे, मेघबन्नप्रजाकरा ॥२॥ तदाषाढे कृमपके,वृष्टिनवति निश्चितम्। महिला व नदीवेगा, उछलंति जलैर्युताः॥३॥
अर्थ- वैशाख मासना कृष्णपदनी नोम अने दशम जो विजलीए करीने संयुक्त, तथा वादलाउथी बवाएला सूर्यवाली होय, तो असाड मासना कृमपदमां खरेखर मेघवृष्टि थाय, अने जलोथी जराएला नदीउँना प्रवाहो गांडा माणसोनी पेठे उबट्या करे . ॥ २५ ॥ ३० ॥ वैशाखस्य चामावास्या, मेघगर्जसमन्विता। सूर्यास्तसमये नूनं, शस्यनाशप्रदा मता ३१
अर्थ-वैशाख मासनी अमास जो सूर्यास्त समये मेघना गर्जारववाली होय तो खरेखर ते धान्योनो नाश करनारी मानेली . ॥ ३१॥ एवीरीते वैशाख मासनुं स्वरूप जाणवू.
हवे ज्येष्ठ मासनुं स्वरूप कहेछे ज्येष्ठस्य प्रथमे पदे, या तिथिःप्रथमा नवेत्। श्रायाति केन वारेण, तामन्वेषय यत्नतः॥१॥
भा॥
१॥
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अर्थ- ज्येष्ठ मासना शुक्लपक्षमा जे तिथि पेहेली होय, ते कया वारवाली श्रावे , तेनी प्रयत्न पूक शोध करवी.॥१॥ नानुना पवनो वाति, कुजो व्याधिकरो मतः। राजपुत्रेण निदं, नवति हि न संशयः॥२॥ | अर्थ- जो जेठ शुद पडवाने दिवसे रविवार होय, तो पवन (घणो) वाय, मंगलवार होय तो व्याधि
करे, बुधवार होय तो उकाल थाय, तेमां बिलकुल संशय नथी. ॥२॥ all गुरुनार्गवसोमानां, यद्येकोऽपि हि जायते।जलेन पूरिता पृथ्वी, धनधान्यं च संमतम् ॥३॥ N अर्थ- वली ते पडवाने दिवसे जो गुरु, शुक्र के सोमवारमांथी एक पण होय, तो पृथ्वी जलथी नल राय, अने घणुं धान्य थाय.॥३॥
कदाचिदैवयोगेन, शनिवारो यदा नवेत्। जलैर्विना प्रजानाश-छत्रनंगश्च जायते ॥४॥al NI अर्थ- कदाचित् दैवयोगे ते दिवसें जो शनिवार होय, तो पाणीविना प्रजानो नाश अने उत्रनंग थाय.
श्राओदीनि च दाणि, ज्येष्ठशुक्ने निरीक्षयेत्। सान्राणि हन्यते वृष्टिं, निरत्रे वृष्टिरुत्तमा all अर्थ- ज्येष्ठ मासना शुक्लपक्षमा आजै आदिक नक्षत्रो जोवां, जो ते वादलांउसहित होय, तो ते
वृष्टिनो नाश करे , अने जो वादलांन रहित होय, तो उत्तम वृष्टि श्राय . ॥ ५॥ ज्येष्ठमासस्य शुक्ने हि, पकेऽत्र द्वितीयादिने।गर्जनं यदि जायेत, वृष्टिनैव जवेध्रुवम्॥६॥
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मेश
॥श्शा
अर्थ- ज्येष्ठ मासना शुक्लपक्षमां बीजने दिवसे जो गर्जना थाय तो खरेखर वृष्टि नज थाय. ॥ ६ ॥ ज्येष्ठशुक्ल तृतीयाया, माओ चेहर्षति यदा।संध्याकाले तदा नूनं, उर्जिदस्यात्र संनवः | अर्थ- ज्येष्ठ मासना शुक्लपक्ष्नी त्रीजने दिवसें जो आजै नक्षत्र होय, अने संध्याकाले वरसाद पडे,
तो अहीं उकालनो संजव (जाणवो.)॥७॥ |चित्राखातिविशाखासु, ज्येष्ठमासि निरज्रता।श्राषाढं निर्जलं कृत्वा, श्रावणे वर्षति ध्रुवम्॥ | अर्थ-ज्येष्ठ मासना चित्रा, स्वाति अने विशाखा नक्षत्रोमां जो वादलांउ न श्राय, तो आषाढ मासमां वरसाद नहीं थतां खरेखर श्रावण मासमां वृष्टि थाय. ॥७॥ पंचग्रहतारा यत्र, सोमं कुर्वति दक्षिणे।मंगले म्रियते राजा, नार्गवे म्रियते प्रजा ॥ ए॥ बुधे रसः दयं याति, गुरुः कुर्यान्निरूदकम् । शनौ घृतदयं विद्यान् ,मासे मासे निरीक्षयेत् ।
अर्थ-जे मासमां पांच ग्रहना तारा चंने दक्षिणतरफ करे, तो तेमां मंगल होते बते राजा मरे, शुक्र होते बते प्रजा मरे, बुध होते ते रसनो नाश थाय, गुरु निर्जलता करे, शनि होते बते घृतनो नाश जाणवो; एवी रीते दरेक मासमां जो. ॥ ए॥१०॥ ज्येष्ठस्य शुक्लपंचम्यां, गर्जनं श्रूयते यदि। दाक्षिणश्च यदा वायु-रज्रबन्नं यदा नलः ॥११॥ तिलानां संग्रहंकुर्या-तस्मिन् काले विचक्षणः।कार्तिके विक्रयेत्तानि, लाजश्चत्रिगुणो नवेत्
॥३
॥
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अर्थ-ज्येष्ठ मासना शुक्लपक्षनी पांचमने दिवसे जो गजरव संजलाय, श्रने दक्षिण दिशानो जो वायु | होय तथा प्रकाश जो वादलांन्थी बवाएलुं होय, तो ते समये विचक्षण माणसे तलोनो संग्रह करवो; अने ते तलोने कार्तक मासमां वेंचवा, के जेथी त्रणगणो लाज थाय ॥ ११ ॥ १२ ॥
ज्येष्ठस्य कुलपदे तु, चंद्रोदयं निरीक्षयेत् । सात्रेण वर्षते मेघो, निरज्रे वृष्टिहीनता ॥ १३ ॥
अर्थ-ज्येष्ठ मासना कृष्णपक्ष्मां चंद्रना उदयने जोवो, जो ते वादलांवालो होय, तो वरसाद वरसे, ने जो वादलांविनानो होय, तो वृष्टि न थाय. ॥ १३ ॥ ज्येष्ठशुक्लस्यैकादश्यां कृत्वा च शुभमंगलं । उच्चस्थाने तु संस्थाप्यो, महद्दएको महाध्वजः॥ | एवं कृत्वा प्रयत्नेन, साधयेत्काल निर्णयः । एको वातो यदा वाति, चतुर्दिनानि चोत्तरे १५ चत्वारो वार्षिका मासा, ध्रुवं वर्षंति लाजदाः । धन्यतृण निष्पत्तिश्च जायते प्राणिहर्षदा १६ ॥ त्रिनिर्विशेषकम् ॥
अर्थ- ज्येष्ठ मासना शुक्ल पहनी छागीयारसने दिवसे उत्तम मंगल करीने उंचे स्थानके मोटा दंडवालो | मोटोध्वज स्थापवो; एवी रीते करीने प्रयत्नपूर्वक कालनो निर्णय करवो; तेम करतां चार दिवसोसुधी उत्तर तरफ जो एकज वायु वाय, तो लाजने देनारा एवा वर्षना चारे मासोमां खरेखर वृष्टि याय, तथा प्राणी जेने हर्ष पनारी एवी धान्य ने घांसनी उपज थाय. ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६ ॥
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मेघमा०
॥ २३ ॥
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यदिचेत्पश्चिमो वात- चतुर्दिनानि वाति च । श्रनावृष्टिं विजानीयात्, पुर्जि रौववं नवेत् - ते करतां चार दिवसोसुधी पश्चिम दिशातरफनो वायु वाय, तो अनावृष्टि तथा जयंकर
काल थाय ॥ १७ ॥
वायव्यां च तथा प्राच्यां, नैकृत्यां वाति वा सदा । श्राषाढे श्रावणे चैव, जव तिवृष्टिरुत्तमा १० अर्थ- तेम करतां जो वायव्य, पूर्व अथवा नैरुत्य दिशामां जो हमेशां वाय, तो आषाढ मासमा उत्तम वृष्टि श्राय ॥ १८ ॥
श्रावण
ज्येष्ठे चेद्रोहिणी योगो, निरस्त्वतिवृष्टिदः। सालको धान्य निष्पत्ति-दायको हि मतो बुधैः
अर्थ- ज्येष्ठ मासमा रोहिणीनो योग जो वादलां विनानो होय, तो ते अति वृष्टि आपे वे तथा जो वादलांसहित होय, तो धान्यनी उपजने देनारो बे, एम पंकितोएं मानेतुं छे. ॥ १९ ॥ ज्येष्ठे च रोहिणी योगे, यदा मेघः प्रवर्षति । सुनिक्षं जायते मह्यां, तृण निष्पत्तिरुत्तमा ॥२०॥
अर्थ- ज्येष्ठ मासमां रोहिणीनो योग होते बते, जो वरसाद वरसे, तो पृथ्वीमां सुकाल थाय, तथा घांसनी उपज पण सारी थाय. ॥ २० ॥
| रोहिणीं समायोगे, तस्मिन्मासे यदा न हि । वृष्टि मेघछन्नेऽपि, कीटकोपद्रवस्तदा ॥ १२१ ॥
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विचार.
॥ २३ ॥
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अर्थ- ते ज्येष्ठ मासमां वादलांथी बवाएलो एवो पण रोहिणी ने चंडनो योग याते बते पण जो वृष्टि न थाय, तो कीडार्जनो उपद्रव थाय. ॥ २१ ॥
ज्येष्ठशुक्लस्य द्वादश्यां घटिकाइयगते निशि । चंद्रबिंबं यदा बन्नं, नीलवर्णैर्जयंकरैः ॥ २२ ॥ अस्तदा न ज्येष्ठे हि वृष्टिर्भवति निश्चितम् । श्राषाढे रक्तसंयुक्त- मेघवृष्टिश्च जायते २३
"
अर्थ- ज्येष्ठ शुदी बारसने दिवसे रात्रिए वे घडी जाते बते चंद्रनुं बिंब जो जयंकर एवां कालां वादलांथी ढंकालुं होय, तो खरेखर ज्येष्ट मासमा वृष्टि न थाय, अने आषाढ मासमां रुधिरसहित मेघवृष्टि श्राय ॥ २२ ॥ २३ ॥
तष्टितो हि नाशश्च, भूमिजातैर्दि की टकैः। क्षेत्रारोपितबीजानां, तृणराशेरसंजवः ॥२४॥
अर्थ- ते रुधिरसहित वृष्टिथी खरोखर क्षेत्रोमां वावेलां बीजोनो भूमिश्री उत्पन्न थला कीडाउंथी नाश थाय बे; अने घासनो समूह पण थतो नथी. ॥ २४ ॥
| दशमी ज्येष्ठमासस्य, शनिवारेण संयुता। जलवृष्टिस्तदा न स्या- जीवंति विरला जुवि२५
अर्थ-ज्येष्ठ मासनी दशम शो शनिवारी होय, तो जलनी वृष्टि न थाय, छाने पृथ्वीमां विरला प्राणी जीवी शके ॥ २५ ॥
ज्येष्ठस्य कृमपक्षस्य, मूलं प्रवर्षते यदि । षष्टिदिनं न वर्षेत, पश्चादृष्टिर्नवेद्ध्रुवम् ॥ २६ ॥
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मेघमा ||N|| अर्थ-ज्येष्ठ मासना कृमपदनुं मूल नत्र जो वरसे, तो साठ दिवसोसुधी वरसाद न वरसे; अने पी| विचार.
खरेखर वृष्टि श्रायः ॥ २६॥ ॥२४॥
ज्येष्ठस्य पूर्णमास्यांतु, मूलं प्रस्रवते यदि। षष्टिघस्त्रा न वर्षते, पश्चाहर्षति माधवः ॥२७॥ | अर्थ- वली ज्येष्ठ मासनी पुनमने दिवसे जो मूल नक्षत्र वरसे, तो साठ दिवसोसुधी वृष्टि न पाय, अने पालथी वरसाद वरसे. ॥ २७॥
ज्येष्ठस्य कृष्लपक्ष च, शदे श्रवणादिके।न वर्षते न वर्षेते, वर्षेते वर्षते सदा ॥ २७ ॥ IN अर्थ- ज्येष्ठ मासना कृमपक्षमा श्रवण अने धनिष्ठा नक्षत्र जो वरसे, तो वरसाद श्राय, अने न
वरसे तो न थाय. ॥ २० ॥ ज्येष्ठमासे त्वमावस्या, पूर्णमास्यां मघापि वा। दिवा वा यदि वा रात्रौ, मेघा गति नांबरे श्रवृष्टिस्तु नवेत्तत्र, नात्र कार्या विचारणा। चतुर्मासावधि नूनं, प्राणिनां हि जयंकरा॥३॥ | अर्थ- ज्येष्ठ मासनी अमासने दिवसे अथवा पुनमने दिवसे जो मघा नक्षत्र होय, अने दिवसे अथवा रात्रिए जो आकाशमा वादलां न आवे, तो खरेखर चार मासोसुधी प्राणीने जयंकर एवीअवृष्टि थाय; ॥२४॥ (अर्थात् वृष्टि न थाय) तेमां कई पण विचार करवो नहीं. ॥शए ॥ ३० ॥ ___एवी रीते ज्येष्ठ मास, स्वरूप जाणवू.
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हवे आषाढ मासर्नु स्वरूप कहे छे. आषाढमासे प्रथमे च पदे निरमार्तंडसुमंडले च ॥
न चैव संगर्जति नैव वृष्टि सिघ्यं वर्षति नैव मेघः ॥ १॥ अर्थ-आषाढ मासना शुक्लपक्षमा वादलांविनानुं सूर्यमंझल होते उते जो गर्जना न थाय, तथा वृष्टि न थाय, तो वे माससुधी वृष्टि नज थाय. ॥१॥
आषाढशुक्लपंचम्यां, मेघा वा विद्युतोऽपिवा। तदासुदृष्टिर्विज्ञेया, धान्यतृणप्रदा जुवि॥२॥ | अर्थ- आषाढ मासना शुक्लपक्ष्नी पांचमने दिवसे जो वादलार्ज अथवा वीजली होय, तो पृथ्वीपर IN||धान्य अने घासने आपनारी उत्तम वृष्टि थशे, एम जाणवू ॥२॥
आषाढशुक्लपंचम्या, पश्चिमः किंतु मारुतः। गर्जतिवर्षतेचापि, शकचापं च दृश्यते ॥३॥y संग्रहेत्सर्वधान्यानि, कार्तिके हिमहर्घता। बहुलानं करोति च नान्यथा मुनिजाषितम् । | अर्थ-आषाढ मासनी शुक्लपक्ष्नी पंचमीने दिवसे गर्जना थाय, मेघ वरसे, इंधनुष्य देखाय, पण जो पश्चिम दिशानो वायु होय, तो सर्व धान्योनो संग्रह करवो, केम के, तेथी कार्तिक मासमां घणीज मोंघारत श्राय, अने तेथी घणो लान करे; (एवी रीतनुं ) मुनि नुं वचन अन्यथा अतुं नथी. ॥३॥ ४॥ श्राषाढे शुक्लपदेतु, रोहिणीयोगउत्तमः। तथानविद्युमोवा, शस्यनिष्पत्तिदोमतः ॥५॥
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चार
मेघमा
अर्थ- आषाढ मासना शुक्लपक्षमा रोहिणीनो योग उत्तम जाणवो, तथा वादलां, विजली अथवा
|| गर्जना धान्यनी उपजने देनारां मानेला . ॥ ५॥ nunान वृष्टी रोहिणीयोगे, नच पूर्वोत्तराजलम्। आषाढेच यदा जातं,तदार्जिवसंजवः ॥६॥
अर्थ- आषाढ मासमां रोहिणीनो योग अते उते जो वृष्टि न आय, तेम पूर्वाषाढा अने उत्तराषाढा-N जल पण न पडे, तो उकालनो संनव जाणवो. ॥ ६॥ माघे फाल्गुने मासि, चैत्रवैशाखयोस्तथा।आषाढे खातियोगश्च, सर्वशस्यप्रदः स्मृतः॥ly __ अर्थ- माहा, फागण, चैत्र, वैसाक अने आषाढ मासमां स्वाति नक्षत्रनो योग सर्व धान्योने देनारो जणाएलो . ॥७॥ नवम्यां तिथावाषाढे, शुक्लायां निर्मलो रविः। उदये चापि मध्याह्ने, निरजं यदिचांबरम् | वर्षते चतुरो मासाः, सर्वधान्यफलप्रदाः। तृणानामपि निष्पत्ति, र्जायते पशुतोषदाः ॥ __ अर्थ- आषाढ मासना शुक्लपक्ष्नी नोमने दिवसे जो सूर्य निर्मल होय, तथा सूर्योदय समये अने मध्यान्हकाले आकाश वादलांट रहित होय, तो सर्व धान्योनां फलोने देनारा एवा चारे मासोमां वरसाद थाय, अने पशुज्रने संतोष देनारी एवी घासनी उपज थाय. ॥ ७ ॥ ए॥ आषाढे चैव संक्रांतो, यदि वर्षति माधवः।व्याधिरुत्पद्यते घोरा, मनुष्यपशुनाशदा ॥१॥
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G॥२५॥
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अर्थ- श्राषाढ मासमा संक्रातिने दिवसे जो वरसाद वरसे, तो मनुष्य अने पशुज्रनो नाश करनारी नयंकर व्याधि उत्पन्न थाय. ॥१०॥ अषाढे शुक्लपदेच, छादश्यां यदि विद्युतः। प्रजाते यामीकाष्ठायां, दृश्यंते नजसिध्रुवम् ११ गर्जनाच श्रवःपुट-स्फोटनाना प्रजायते।मध्याह्वावधि मेघाश्च, वर्षते जनकामदाः॥१॥ | अर्थ- श्राषाढ मासना शुक्लपदमां बारसने दिवसे प्रजातसमये दक्षिण दिशामां जो आकाशमां खरेखर विजली देखाय, अने कानने फोडी नाखे एवी गर्जना श्राय, तो लोकोना इन्छितने देनारा एवा वरसाद मध्यान्हकालसुधिमां थाय. ॥ ११ ॥१॥ तहिने यदि पूर्यायां, दिशि शक्रधनुर्भुवम् । दृश्यतेहि प्रजातेचे-तदाऽदिसंजवः ॥१३॥ | अर्थ- वली ते दिवसे जो पूर्वदिशामां प्रनाते इंऽधनुष्य देखाय तो उकालनो सन्नव जाणवो. ॥१३॥ ५॥ श्राषाढशुक्ल पक्षस्य, त्रयोदश्यां यदांबरे।पश्चिमायां हि मेघाःस्युः, पंचवर्णाः प्रजान्विताः तदातत्कृसपदे हि, वृष्टिनवति निश्चितम्।तथा पुनरपि जाओ,पृथ्वी स्यात्सखिलान्विता
अर्थ- आषाढ मासना शुक्लपक्षनी तेरसने दिवसे आकाशमां पश्चिमदिशातरफ जो कांतिवाला पचरंगी |वादलां थाय, तो ते मासना कृलपदमां खरेखर वृष्टि श्राय, अने फरीने जादरवा मासमां पृथ्वी जलसहित थाय.॥ १५ ॥१५॥
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मेघमाला पूर्णिमा सोमवारेण, संयुताऽषाढगायदा। तदा वृष्टिर्नतन्मासि, विज्ञेया विबुधैः सदा॥१६॥ विचार.
| अर्थ- आषाढ मासना शुक्लपदनी पुनम जो सोमवारसहित होय, तो पंडितोए हमेशां जाणवू के, ते ॥६॥ मासमां वृष्टि थशे नहीं. ॥१६॥
आषाढे कृष्लपदेच,शूक्रोहस्तं प्रयातिचेत् । तदायवगोधूमानां,नाशोनवतिहीमतः॥१७॥
अर्थ-जो आषाढ मासना कृलपक्षमा शुक्रनो अस्त थाय, तो यव अने घनो हीमथी नाश थाय ॥१७॥ श्राषाढकृष्लपक्षस्य, द्वितीया विद्युदन्विता।सोमवारेण संयुक्ता, द्विदलध्वंसदा स्मृता
अर्थ- आषाढ मासना कृलपत्नी बीज विजलीउवाली अने सोमवारें करीने संयुक्त होय, तो ते कगेलनो नाश करनारी जणाएली . ॥ १७ ॥ तृतीयायामाषाढस्य, कृक्षपदे यदांबरम्। संध्याकाले न संउन्नं, श्याममेघैश्चर्बुवम्॥१॥ तदा मारी समुत्पातो, जवति विश्वनाशकः।नवरं शनिवारण, युक्तायां रविणा पुनः॥॥ ___ अर्थ- आषाढ मासना कृलपक्षनी त्रीजने दिवसे संध्याकाले आकाश जो चलायमान एवा श्याम मेघोथी खरेखर बवाएलुं न होय, तो जगतने विनाश करनारो एवो मरकीनो उपजव थाय बे; पण तेमां एटलुं
॥२६॥ विशेष के, ते त्रीज शनिवार अथवा रविवारें करीने युक्त होय, तो तेम बने. ॥ १५ ॥२०॥ पूर्णमास्यांत्वमावास्या, माषाढे यदि तारकाः।पतंति पूर्व दिग्नागे, निशीथे धान्यनाशदाः
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अर्थ- आषाढ मासनी पुनम ने श्रमासने दिवसे जो तारा मध्यरात्रिए पूर्व दिशामां पडे, तो ते धान्यनो नाश करे बे. ॥ २१ ॥
श्राषाढकुम्भपदेच, चतुर्थी तु शनियुता । तदा चणक धान्यस्य, ध्वंसो मिहिकातो ध्रुवम्श्
अर्थ- श्राषाढ मासना कृलपक्ष्मां चोथ जो शनिवारी होय, तो खरोखर हिमथी चणा नामना धान्यनो नाश थाय बे. ॥ २२ ॥
| कृष्मपदे त्वाषाढस्य, पंचमी वासरे यदा । संध्याकाले च पूर्वाया, मिंद्रचापो यदीक्ष्यते ॥ २३ ॥ | तदा तंडुलवृंदोहि, संग्राह्यो वणिजैः सदा । कार्तिके विक्रयस्तस्य कथितो बहुलाजदः २४
अर्थ- आषाढ मासना कृलपक्षमां पांचमने दिवसे संध्याकाले पूर्वदिशामां जो इंद्रधनुष्य देखाय, तो वेपारीउए हमेशां चोखाना समूहनो संग्रह करवो, केम के ते चोखाने कार्तिक मासमां वेचवाथी ते बहु लाजने देनारो थाय बे. ॥ २३ ॥ २४ ॥
| तन्मासि कृतपदेच, मध्याह्ने सूर्यमंगलम् । सजलंस्याद्यदाषष्ट्यां, संत्यक्तमेघडंबरम् ॥१५॥ | तदा न वृष्टिर्विज्ञेया, वर्षावधि महाजनैः । नानारोगसमुत्पाता, नवंति जननाशकाः ॥ २६ ॥ अर्थ-ते ( आषाढ) मासना बठने दिवसे मध्यान्हकाले सूर्यनुं मंडल जो जलसहित ने मेघना -
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विचार.
मेषमावाडंबरविनानुं देखाय, तो एक वर्षसुधि वृष्टि न बाय, अने लोकोने नाश करनारो नाना प्रकारना रोगोना।
उदअपो श्राय, एम माणसोए जाणवू. ॥ २५॥ २६॥
आषाढकृतपक्ष्या हि, सप्तमी वातपूरिता।मेघश्छन्ना च विझेया, वृष्टिदा जुवि मानुषैः २७ | अर्थ- आषाढ मासना कृमपदनी सातम जो पवनधी पुरेली तथा वादलाउथी उवाएली होय, तो नामाणसोए तेने वृष्टिने आपनारी जाणवी. ॥२७॥
आषाढपूर्णिमारात्रौ, यदि चंसो न दृश्यते। चतुरोऽपि तदामासान् , जलंवर्षति माधवःश्न ___ अर्थ- आषाढ शुद पुनमनी रात्रिएं जो चंज न देखाय, तो चार मासोसुधि वरसाद जलनेवरसावे.॥॥
यदि तत्रामलश्चंयो, परिवेषयुतोऽत्रवा। तदा जगत्समुहां, शक्रेणापि न शक्यते ॥ श्ए ॥ Mall अर्थ- जो आषाढ शुद पुनमने दिवसे चं निर्मल होय, अथवा कुंडालांवालो होय, तो जगतनो छघार करवाने इंज पण शक्तिवान श्राय नहीं. ॥ ए॥
यदि तत्राग्निवातः स्या-दस्थिशेषा मही नवेत् ।
दाक्षिणात्यो यदा वात-स्तदा राज्यक्षयो ध्रुवम् ॥३०॥ अर्थ-वली जो ते दिवसे अग्नि खुणानो वायु होय, तो फक्त हामकां बाकी रहे एवी पृथ्वी थाय, अने जो दक्षिण दिशानो वायु होय, तो खरेखर राज्यनो क्ष्य थाय.॥३०॥
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तद्दिनेनैकते वायु- र्द्दश्यते निर्जलंनजः विक्रयित्वा तदा सर्व, कर्तव्यो धान्यसंग्रहः ॥ ३१ ॥
- वाषाढ शुद पुनमने दिवसे जो नैशत्य खुणानो वायु ने जलविनानुं श्राकाश देखाय, तो सघलुं वेंचीने धान्योनो संग्रह करवो. ॥ ३१ ॥
तदिने वारुणो वातो, वृष्टिशस्यप्रदो ध्रुवम् । वायव्यः शलजादीना मुपद्रवयुतो मतः ॥३२॥
अर्थ- वली ते आषाढ शुद पुनमने दिवसे जो पश्चिम दिशानो वायु होय, तो खरेखर वृष्टि अने धान्यने आपनारो बे; अने वायव्य दिशानो वायु तीड यादिकना उपवोसहित मानेलो बे ॥ ३२ ॥ | उत्तरेमारुते लोको, महद्धर्षयुतो जवेत् । ईशाने मारुते धान्य- निष्पत्तिर्भवति शुभा ॥ ३३ ॥
- वली ते श्राषाढ सुद पुनमने दिवसे उत्तर दिशानो पवन जो होय, तो लोको अत्यंत हर्षवाला थाय ने इशान दिशामां वायु होते ते धान्योनी नीपज उत्तम श्राय ॥ ३३ ॥ आषाढ्यां त्वमावास्यां, पूर्वगो यदि मारुतः । अस्तं गच्छति तीक्ष्णंशौ, शस्य निष्पत्तिरुत्तमा
अर्थ- आषाढ मासनी श्रमावास्याने दिवसे सूर्यास्त होते ते जो पूर्व दिशानो वायु होय, तो धान्योनी निपज सारी थाय ॥ ३४ ॥
श्राषाढे कृमपदेतु, चतुर्थीपंचमी जवः । षष्ठी सप्तमीजातश्च, गर्भो वृष्टिप्रदोमतः ॥ ३५ ॥
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- श्राषाढ मासना कृष्णपक्षमां चोथ, पांचम, बव श्रने सातमनो उत्पन्न थलो गर्न वृष्टिने | देनारो मानेलो बे ॥ ३५ ॥
| श्राषाढे कृप्तपदेच, पंचम्यां नैकते यदि । चचाणि पीतवर्णानि, जायंते हि दिनोदये ॥ ३६ ॥ तदा वृष्टिश्च विज्ञेया, श्रावणे शस्यदा जुवि । पूर्वायां यदि तानिस्यु-स्तदा वृष्टिर्नश्रावणे ३७ - वली आषाढ मासना कृष्लपक्ष्मां पांचमने दिवसे नैरुत्य दिशामां जो सूर्योदय समये पीलां रंगनां वादलां थाय, तो श्रावण मासमां पृथ्वीपर धान्यने पनारी वृष्टि जावी, अने तेवां वादलां जो पूर्वदिशामां थाय, तो श्रावण मासमां वृष्टि न थाय ॥ ३६ ॥ ३७ ॥ | आषाढे दशमी कृष्मा, सुनिक्षाय सरोहिणी । एकादशी तु मध्यस्था, द्वादशी कालभंजिनी अर्थ- आषाढ मासमां कृमपनी दशम जो रोहिणी नक्षत्रवासी होय, तो ते सुकाल माटे थाय बे, अग्यारस मध्यस्थ जाणवी, छाने बारस कालनो नाश करनारी जाणवी : ३८ ॥
एव ते आषाढ मासनुं स्वरूप जाणवुं.
हवे श्रावण मासनुं खरूप कहे छे.
चैत्रे च श्रावणे चापि, पंचार्काश्च नवं तिचेत्। डुर्निदं तत्र जानीया - छत्रजंगं च जायते ॥ १ ॥ अर्थ- चैत्र ने श्रावण मासमां पण जो पांच रविवार होय, तो 5काल जाणवो; अने बत्रजंग थाय ॥ १ ॥
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विचार.
॥ २८ ॥
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बुधः प्राच्यां प्रतीच्यां च नृगुर्हि श्रावणे यदा । तदा वृष्टिर्न विज्ञेया ध्रुवं जाऊपदावधि ॥२॥
अर्थ- ज्यारे श्रावण मासमां बुध पूर्वदिशामां, अने शुक्र पश्चिम दिशमां होय, त्यारे खरेखर जादरवा माससुधि वृष्टि न थाय, एम जाणवुं ॥ २ ॥
श्रावणे शुक्ल पंचम्यां, स्वातियोगजलं यदा । निष्पत्तिः सर्वशस्यानां, प्रजा च निरुपद्रवा ३ अर्थ- श्रावण मासनी शुक्ल पंचमीने दिवसें जो स्वाति नक्षत्रना योगनुं पाणी पडे, तो सर्व धान्योनी उपज थाय, तथा प्रजा उपद्रवरहित थाय. ॥ ३ ॥
श्रावणे शुक्लसप्तम्यां अस्तं गच्छति जास्करे । न दृष्टो यदि पर्जन्यो, जलाशां मुंच सर्वथा ४
अर्थ- - श्रावण मासना शुक्कपनी सातमने दिवसे सूर्यास्त पामते बते ज्यारे वरसाद वरश्यो नहीं, त्यारे सर्वथा प्रकारे जलनी आशा तजो ? ॥ ४ ॥
श्रावणे पूर्णिमास्यां तु, श्रावणे सलिलं यदा । सुनिक्षं च समादेश्यं कुर्याच्चात्र न संशयः ५
अर्थ- - श्रावण मासंमां पुनेमने दिवसे श्रवण नक्षत्र होते ते जो पाणी पडे, तो सुकाल जाणवो, तेमां ( कंपण ) संशय न करवो. ॥ ५ ॥
श्रावणस्य त्वमावास्या-मुपरागो जानोर्य दि । तदा मारीसमुत्पातो जवति कार्तिके ध्रुवम् ६
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विचार.
मेघमाण अर्थ- श्रावण मासनी अमासने दिवसें जो सूर्य, ग्रहण होय, तो कार्तिक मासमां खरेखर मरकीनो
उपव थाय.॥६॥
एवी रीते श्रावण मासनुं स्वरूप जाणवू. ॥श् ॥
हवे भादरवा मासनुं स्वरूप कहे छे. नाअपदस्य शुक्लायां, द्वितीयायां यदा नजः। मेघबन्नं तदा मह्यां, शस्यनिष्पत्तिरुत्तमा ॥१॥y NI अर्थ- लादरवा मासना शुक्लपक्ष्नी बीजने दिवसे आकाश जो वादलाउथी उवाएलु होय, तो पृथ्वी-IN
मां धान्योनी उपज सारी थाय. ॥१॥ तदिने शनिवारश्चे-दाकाशं च निरन्तकम्। तदा हि शीतकालस्य, धान्यपाको न जायते । - अर्थ- वली ते नादरवा सासनी बीजने दिवसें जो शनिवार होय, अने आकाश वादलांउ विनानुं होय, तो शीयालु धान्योनो पाक न थाय. ॥२॥ नाउपदे तृतीयायां, शुक्लपक्ष यदांबरे। नैऋते विद्युतां वातो, निशीथे हि विदृश्यते ॥३॥ तदा वन्दिनवोत्पातो, जवति जननीतिदः।कृष्क्षपदे च तन्मासे, देशे ग्रामे पुरेऽथवा॥ अर्थ- जादरवा मासना शुक्लपक्ष्नी त्रीजने दिवसें श्राकाशमां नैऋत्य दिशामां मध्यरात्रिए जो वि
॥श्ए
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जलीउनो समूह देखाय, तो लोकोने जय आपनारो एवो अग्निथी उत्पन्न अतो उत्पात ते मासना कृमप
मां देश, गाम अथवा नगरमां थाय. ॥३॥५॥ || चतुर्थ्यां तस्य मासस्य,संध्याकाले सदागतिः। दाक्षिणात्योयदा वाति, तदा गोधूमसंक्षयः | अर्थ- ते नादरवा मासनी ( शुक्लपदनी ) चोथने दिवसें संध्याकाले जो दक्षिण दिशानो पवन वाय, तो घटना ( पाकनो) नाश थाय. ॥५॥
नाजस्य शुक्लपंचम्यां, यदा सूर्यस्य मंडलम्। श्वेतमेधैर्नवेचन्नं,मध्यान्हे ननसिस्थितम् ६ मतदाहि पतनं तम्यां, नवति विद्युतः किल।तस्मिन्नगरेऽरण्ये, ऽथवा ग्रामे नयप्रदम् ॥
| अर्थ- जादरवा मासना शुक्ल पक्ष्नी पांचमने दिवसें मध्यान्ह काले आकाशमा रहेढुं सूर्यन मंडल जो || M||श्वेत रंगनां वादलांउथी उवाएलं होय, तो ते नगरमां, वनमां अथवा गाममा रात्रिने वखते खरेखर जय
आपनारुं एवं विजलीनुं पडवापणुं थाय . ॥ ६॥ ७॥ नाउपदे शुक्लषष्ट्या, चंडवातो यदा निशि। तदा हि तस्य मासस्य, कृष्लपक्ष प्रवर्षति ॥॥ ___ अर्थ- जादरवा मासमां शुक्लपदनी ब्उने दिवसें रात्रिए जो नयंकर वायु होय, तो ते मासना कृप्तपक्षमा खरेखर वरसाद श्राय .॥७॥ सप्तम्यां तस्य मासस्य, सोमवारो यदानवेत्।अनबन्नं नचाकाशं,सूर्यास्तसमये खबु॥ए॥
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मेघमा
॥३०॥
तदा वृष्टिर्न विज्ञेया, तस्मिन्मासे सदाबुधैः नानारोगसमुत्पातो, प्रजासुच प्रजायते ॥१॥ विचार. NI अर्थ- ते लादरवा मासना ( शुक्लपक्षनी ) सातमने दिवसें जो सोमवार होय, अने सूर्यास्त वखते आ
काश जो खरेखर वादलांउथी बवाएलुं न होय, तो हमेशां पंडितोए जाणवु के, ते मासमां वृष्टि अशे नही; | अने प्रजाठमां नाना प्रकारना रोगोनो उपञ्व अशे. ॥ ए॥ १० ॥
नापपदे तथाष्टम्यां, प्रनाते यदि दृश्यते।इंचापःप्रतीच्यां हि, तदा वृष्टिनिशिध्रुवम्११ ।। all अर्थ- वली लादरवा मासमां शुक्लपहनी आम्मने दिवसें प्रनाते पश्चिम दिशामां जो इंजधनुष्य दे
खाय, तो रात्रिए खरेखर वृष्टि थाय. ॥११॥ नवम्यां नामासस्य, रविवारो यदा नवेत्। वायव्ये च महावायु-स्तदा वृष्टेरसंजवः॥१२॥ | अर्थ- नादरवा मासना ( शुक्लपक्ष्नी ) नोमने दिवसें जो रविवार होय, तथा वायव्य दिशामां जो महान वायु होय, तो वृष्टिनो असंनव जाणवो. ॥१२॥ दशमी नाउमासस्य, कुर्दिना यदि जायते। गर्जनं च प्रजाते हि, नूरिधान्यं तदा मतम् १३, __ अर्थ- नादरवा मासनी शुक्लपक्षसी दशम जो वादलांढवाली होय अने प्रजातमां जो गर्जना थाय तो ||NIInsan घणुं धान्य थाय, एम मानेबुं बे. ॥१३॥ नाअस्यैकादशी जाता, यदा वातैः समन्विता। जोमवारयुता चापि, शुक्लपक्ष्या जलप्रदा
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अर्थ- ज्यारे जादरवा मासना शुक्लपदनी अगीयारस वायुवाली, अने नोमवारे करीने युक्त होय, व त्यारे ते जलनी देनारी . ॥१५॥
पूर्णिमायां हि जासस्य, सजलं चंप्रमंडलम्। दृश्यते मेघरहितं, तदा वृष्टेरसंगवः ॥ १५ ॥ ॥ अर्थ- जादरवा मासनी पुनमने दिवसें चंजनुं मंडल जो जलसहित तथा वादलाविनानुं देखाय,
तो वृष्टिनो असंजव जाणवो. ॥ १५॥ नास्य कृतपंचम्यां, यदा वृष्टिर्न जायते।संध्याकाले तदा मह्यां, शलजोपडवो मतः॥१६॥
अर्थ- ज्ञादरवा मासना कृप्तपदनी पांचमने दिवसें संध्याकाले जो वृष्टि न थाय, तो पृथ्वीपर तीमोनो उपजव थाय, एम मानेलं . ॥१६॥ कृष्लषष्टिदि नापस्य, नौमवारान्विता यदि।समेघा गर्जनैर्युक्ता, सर्वशस्यप्रदामता ॥१७॥ | अर्थ-नादरवा मासना कृष्णपक्षनी बन जो जोमवारी, वादलांवाली अने गर्जारवोथी युक्त होय, तो ||| तणीने सर्व प्रकारनां धान्योने देनारी मानेली . ॥ १७॥
अमावास्यां च नाजस्य, याम्यां हि विद्युतां यदाादर्शनं जायते रात्रौ, तदा धान्य महर्घता, | अर्थ- नादरवा मासनी अमासने दिवसे, रात्रिने दक्षिणदिशामां जो विजलीउनुं दर्शन थाय, तो धान्य बहु मोंधू श्राय.॥१८॥
एवीरीते नादरवा मासर्नु स्वरूप जाणवू.
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विचार.
मेघमाण
॥३१॥
हवे आश्विन मास→ खरूप कहे छे. याश्विने शुक्लपदे हि,प्रतिपद्यदि गर्जिता। तदा मारी समुत्पातो, जवति खलु कार्तिके | | अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षनी एकमने दिवसें जो गर्जारव श्राय, तो कार्तिकमासमां खरेखर मरकीनो उपजव थाय. ॥१॥ श्राश्विनस्य द्वितीयायां, शुक्लपक्षे यदांबरम्।पीतवर्णेमहामेधे, श्लादितं हि दिनोदये॥२॥ तदा हिमकृतोत्पातो,नवति माघे निश्चितम्। नूरयः पशवो येन, पंचत्वं च प्रयांति हि॥३॥
अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षमां बीजने दिवसे सूर्योदय समये आकाश जो पीला रंगनां मोटां वादलाउथी उवाएलु होय, तो माहा मासमा खरेखर हिम पडवाथी उपञ्व थाय ने, अने जेश्री घणां पशु खरेखर मृत्यु पामे बे. ॥२॥३॥
शुक्लपक्ष्या तृतीयाच, सोमवारान्विताश्विने।समेघा ज्वरदा झेया, लोकोपऽवकारिणी॥४ | अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षनी त्रीज जो सोमवारी तथा वादलांउवाली होय, तो तेणीने तावनी श्रा- | पनारी तथा लोकोने उपव करनारी जाणवी. ॥ ४॥
आश्विनशुक्लपंचम्यां, सूर्यबिंबं यदांबरे।मध्याह्नसमये रक्तं, निरनं चंडनान्वितम् ॥५॥
३२॥
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तदाहि तस्य मासस्य, कृलपदे सदा बुधैः। विज्ञेयं हि महायुद्धं, नृपाणां तु परस्परम्॥६॥
अर्थ- बासु मासना शुक्लपक्षनी पांचमने दिवसे मध्यान्ह समये आकाशमां सूर्यनुं बिंब जो लाल || रंगजें, वांदलां विनानुं अने जयंकर कांतिवालुं जणाय, तो ते मासना कृष्णपदमां, खरेखर डाह्या माण| सोए जाणवू के, राजाऊमां मांहो मांहे मोटुं युद्ध थशे. ॥ ५॥६॥ थाश्विनशुक्लैकादश्यां, संध्याकाले यदांबरे।प्रतीच्या पर्वताकारा, मेघाः कौमुदीसंनिन्नाः तदा चणकगोधूम-नाशो जवतिनिश्चितम्। वृष्टितः शलन्नेन्यो वा,प्रोक्तमेवं जिनाधिपैः । अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षनी अगीयारसने दिवसे संध्याकाले पश्चिम दिशामां आकाशमां पर्वतना
आकारवालां अने चांदनी सरखां श्वेत एवां वादलां जो ( देखाय) तो खरेखर वृष्टिथी अथवा तीडोथी चणा अने घनो नाश श्राय, एम जिनेश्वरोए कहेलुं बे. ॥ ७॥७॥ छादश्यामाश्विने मासे, शुक्लपदे निशियदा। चंडबिंब नवेछन्नं, श्याममेघैस्तदा ध्रुवम्॥॥ कृप्तपदे हि तन्मासे, वृष्टिनवेजनप्रिया। लवलीखर्जुरादीनां, पाकश्च त्रिगुणो जवेत्॥१॥
अर्थ- वली श्रासु मासना शुक्लपक्षनी बारसने दिवसें, रात्रिए चंजनुं बिंब जो श्याम रंगनां वादलाउथी बवाएलुं होय, तो खरेखर ते मासमां कृष्णपदमां लोकोने प्रिय एवी वृष्टि थाय, तथा चारोली अने खजुर आदिकनो त्रणगणो पाक थाय. ॥ ए॥१०॥
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मेघमा
॥३॥
आश्विनपूर्णिमायां च, संध्याकाले यदांबरे।चंडबिंबं घनबन्न,मुदेति श्यामनान्वितैः ११ विचार. तदा वाधौँ महोत्पात-चंडवायुकृतो नवेत्।रिपोतविनाशःस्याद्योजनशतकावधि॥१५॥
अर्थ- आसुसुद पुनमने दिवसें संध्याकाले आकाशमां चंजनुं बिंब श्याम कांतिवालां वादलांउथी बवाएलुं अकुं जो उदय पामे, तो नयंकर वायुए करेलो एवो मोटो उत्पात समुघमां श्राय, अने सो जोजन सुधिमां घणां वहाणोनो विनाश थाय. ॥११॥१२॥ ___एवीरीते आसुमासनुं स्वरूप जाणवू.
इत्याचार्यश्रीविजयप्रनसूरिविरचितो मेघमालाख्या
___ ग्रंथः संपूर्णः ॥ श्रीरस्तु॥
॥३२॥
निर्णयसागर प्रेसमां उपायु.
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________________ जाहेर खबर. नीचेनां नवां पुस्तको गुजराती भाषांतर सहित तैयार बे. योग शास्त्र रु. 3-4-0 प्रकरण रत्नाकर चोथो जाग रु. 5-7-7. सामुजिक शास्त्र रु. 1-0-0 हात्म्य रु.२-४-० शुकन शास्त्र रु. 0-6-0 हिंगुल प्रकरण / रु. 0-5-0 जलजात्रादि विधि रु. 0-6-7 चैत्यवंदनचोविसी रु. 0-5-0 अष्टकजी ( हारिजजीय) रु.१-१२-० मेघमाला रु. 0-5-0 कल्पसूत्र (सुखबोधिका ) रु. 5-7-0 वीसस्थानकनो रास रु.२-०-० कस्तूरीप्रकरण रु. --- नीचेनां पुस्तको मूल तथा गुजराती भाषांतर सहित तैयार थाय ले. वैराग्यकल्पलता (कर्ता श्रीयशोविजयजी) जैन कुमार संचव (कर्ताश्रीजयशेखरसूरि) उपदेशतरंगिणी. कृषिमंडल. (अथवा प्रजाविक पुरुषोनां चरित्र) मागधीलाषा- व्याकरण ( कर्ता श्री हेमचंद्राचार्य ) ( ढुंढिका टीका सहित ) Jain Education international For Personal and Private Use Only