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विचार.
मेषमावाडंबरविनानुं देखाय, तो एक वर्षसुधि वृष्टि न बाय, अने लोकोने नाश करनारो नाना प्रकारना रोगोना।
उदअपो श्राय, एम माणसोए जाणवू. ॥ २५॥ २६॥
आषाढकृतपक्ष्या हि, सप्तमी वातपूरिता।मेघश्छन्ना च विझेया, वृष्टिदा जुवि मानुषैः २७ | अर्थ- आषाढ मासना कृमपदनी सातम जो पवनधी पुरेली तथा वादलाउथी उवाएली होय, तो नामाणसोए तेने वृष्टिने आपनारी जाणवी. ॥२७॥
आषाढपूर्णिमारात्रौ, यदि चंसो न दृश्यते। चतुरोऽपि तदामासान् , जलंवर्षति माधवःश्न ___ अर्थ- आषाढ शुद पुनमनी रात्रिएं जो चंज न देखाय, तो चार मासोसुधि वरसाद जलनेवरसावे.॥॥
यदि तत्रामलश्चंयो, परिवेषयुतोऽत्रवा। तदा जगत्समुहां, शक्रेणापि न शक्यते ॥ श्ए ॥ Mall अर्थ- जो आषाढ शुद पुनमने दिवसे चं निर्मल होय, अथवा कुंडालांवालो होय, तो जगतनो छघार करवाने इंज पण शक्तिवान श्राय नहीं. ॥ ए॥
यदि तत्राग्निवातः स्या-दस्थिशेषा मही नवेत् ।
दाक्षिणात्यो यदा वात-स्तदा राज्यक्षयो ध्रुवम् ॥३०॥ अर्थ-वली जो ते दिवसे अग्नि खुणानो वायु होय, तो फक्त हामकां बाकी रहे एवी पृथ्वी थाय, अने जो दक्षिण दिशानो वायु होय, तो खरेखर राज्यनो क्ष्य थाय.॥३०॥
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