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________________ विचार. मेघमाण ॥३१॥ हवे आश्विन मास→ खरूप कहे छे. याश्विने शुक्लपदे हि,प्रतिपद्यदि गर्जिता। तदा मारी समुत्पातो, जवति खलु कार्तिके | | अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षनी एकमने दिवसें जो गर्जारव श्राय, तो कार्तिकमासमां खरेखर मरकीनो उपजव थाय. ॥१॥ श्राश्विनस्य द्वितीयायां, शुक्लपक्षे यदांबरम्।पीतवर्णेमहामेधे, श्लादितं हि दिनोदये॥२॥ तदा हिमकृतोत्पातो,नवति माघे निश्चितम्। नूरयः पशवो येन, पंचत्वं च प्रयांति हि॥३॥ अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षमां बीजने दिवसे सूर्योदय समये आकाश जो पीला रंगनां मोटां वादलाउथी उवाएलु होय, तो माहा मासमा खरेखर हिम पडवाथी उपञ्व थाय ने, अने जेश्री घणां पशु खरेखर मृत्यु पामे बे. ॥२॥३॥ शुक्लपक्ष्या तृतीयाच, सोमवारान्विताश्विने।समेघा ज्वरदा झेया, लोकोपऽवकारिणी॥४ | अर्थ- आसु मासना शुक्लपक्षनी त्रीज जो सोमवारी तथा वादलांउवाली होय, तो तेणीने तावनी श्रा- | पनारी तथा लोकोने उपव करनारी जाणवी. ॥ ४॥ आश्विनशुक्लपंचम्यां, सूर्यबिंबं यदांबरे।मध्याह्नसमये रक्तं, निरनं चंडनान्वितम् ॥५॥ ३२॥ SanEducationaire For Personal and Private Use Only Jainelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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