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________________ मेघमा० ॥ १४ ॥ Jain Educational अर्थ- जो माघ मासनी कृलपदनी त्रीज वादलांवाली होय, ने वृष्टिविना जो गर्जना थाय, तो घनो संग्रह करवो, छाने यवोनो विशेष प्रकारें संग्रह करवो. ॥ ७२ ॥ चतुर्थी मेघसंयुक्ता, बिंडु निर्जलसंजवैः । नालिकेर फलानीह, मर्घ्याणि जवंति हि ॥ ७३ ॥ - वली महावदि चोथ जो वादलांवाली तथा जलना बिंदुवाली होय, तो अहीं नाली एरनां फलो खरेखर अत्यंत मोंघां थाय बे. ॥ ७३ ॥ पंचमी मेघसंयुक्ता, यदा बिंडु विवर्जिता । उदग्रवायुसंयुक्ता, जाद्रपदे न वर्षति ॥ ७४ ॥ - वली महावदि पांचम जो वादलांवाली ने जलबिंदु विनानी होय, तथा अत्यंत प्रचंड वायुवाली होय, तो जादरवा मासमां वृष्टि यती नथी. ॥ ७४ ॥ षष्ठी सबिंडुका ज्ञेया, निरजा निर्मला दिशः। कार्पाससंग्रहे तत्र, लाजो जवति पुष्कलः ॥ ७५ ॥ - वली महावदिह जो बिंदुवाली होय, अने दिशाने जो वादलांविनानी तथा निर्मल होय, तो कपासनो संग्रह करवो, केमके तेथी घणो लाज थाय बे. ॥ ७५ ॥ | सप्तमी सोमवारेण, संयुक्ता यदि जायते । तदा वृष्टिर्महाधारा, चतुर्मासे जवेवम् ॥ ७६ ॥ अर्थ- वली माहावदि सातेम जो सोमवारी होय, तो चतुर्मासमां खरेखर अत्यंत धारावाली मेघवृष्टि थाय. अष्टम्यां यदि मार्तंडो, जवति मेघवेष्टितः । न वर्षति तदार्द्रायां, श्रावणांते तथैव च ॥ ७७ ॥ For Personal and Private Use Only विचार. ॥ १४ ॥ jainelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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