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________________ मेघमा० ॥१०॥ अर्थ-चैत्र मासनी कृप्त पदनी पांचम, सातम अने नोमने दिवसे जो जलना बिंडुन पडे, तो उकाल पाय. विचार. पंचमी सह रोहिण्या, सप्तमी चार्डसंयुता। नवमी चैव पुष्येण, तदारसमहर्घ्यता ॥ १७ ॥ । अर्थ-चैत्र मासनी शुक्ल पदनी पांचम जो रोहिणी सहित होय, सातम जो आजै नत्रवाली होय,IY] अने नोम जो पुष्य नक्षत्रवाली होय, तो रसनी वस्तुनी घणी किम्मत वधे. ॥१७॥ स्वात्या सह पूर्णमासी, विद्युन्मेघसमन्विता। तदा वृष्टिर्न विज्ञेया, कार्तिकावधि पंडितैः २० अर्थ चैत्र मासनी पूनम जो स्वाति नक्षत्रवाली अने विजली तथा मेघ सहित होय, तो पंडितोए जाएवं के, बेक कार्तिक मास सुधी वृष्टि नहीं पाय. ॥ १०॥ चैत्रस्य शुक्लपदे तु, त्रयोदश्यां तथैव च।धूमिका जायते चैव, मेघस्तत्र न वर्षति ॥१५॥ अर्थ-वली तेमज चैत्र मासना शुक्लपक्ष्मां तेरसने दिवसे जो धूमरी श्राय, तो त्यां वरसाद न वरसे. १५ ___एवी रीते चैत्र मासनुं स्वरूप जाणवू.. __ हवे वैशाख मासतुं खरूप कहे छे. वैशाखे गर्जितं नूरि,सलिलं पवनो घनो। उप्लोज्येष्टो विशिष्टः स्यात्, कथितं मुनिसत्तमैः ॥ I अर्थ-वैशाख मासमां गर्जना थाय, घणुं पाणी होय, घणो पवन होय, अने ज्येष्ट मास जो जप्म होय, का तो ते सारा जाणवा; एम उत्तम मुनिए कहेलुं .॥१॥ Jain Educational nal For Personal and Private Use Only G ainelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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