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________________ तदा ज्येष्टस्य शुक्ले हि, पदे वृष्टिर्न संशयः।धान्यं तृणं तथा नूरि, जायते प्राणिहर्षदम् | | अर्थ-माहासुदि अगियारसने दिवसे जो जोमवार होय, तथा मध्यरात्रिए जोः विजली देखाय, तो | खरेखर ज्येष्ट मासना शुक्लपक्षमा वृष्टि थाय, तेमां संशय नश्री, तथा प्राणीउने हर्ष आपनारं एवुधान्य तथा घास पुष्कल थाय. ॥२६॥ तदिने रविवारश्चे, त्तथा मेघस्य डंबरः। पूर्वदिशिच मध्यान्हे, सजलः श्यामवर्णकः॥५॥ तदा हि फाल्गुनेमासे, वृष्टिरतीव जायते । षट्मासावधि चैव, ततो वृष्टरसंजवः ॥५॥ __ अर्थ-वली ते महासुदि अगीयारसने दिवसे जो मध्यान्य काले पूर्व दिशामा जलसहित श्यामरंगवालो मेघनो आडंबर थाय, तो खरेखर फागण मासमां घणोज वरसाद श्राय, अने पनी उ माससुधि वरसाद थाय नहीं. छादश्यां माघशुक्लस्य, शनिवारो यदानवेत्। तदा तैलादिवस्तुनां, मूल्यवृद्धि वेवम् ॥ | अर्थ-माहासुदि बारसने दिवसे जो शनिवार होय, तो तेल आदिक वस्तूउँना मूख्यनी वृद्धि खरेखर श्राय. तदिने धूमकेतुश्चे, दक्षिणे निशिथेऽबरे। दृश्यते हि तदा नूनं, राजमृत्युन संशयः॥६० ॥ अर्थ-वली माहासुदि बारसने दिवसे मध्यरात्रीए दक्षिण दिशामां जो धूमकेतु ( पुंबडीउ तारो) देखाय, तो खरेखर राजानुं मृत्यु थाय, तेमां संशय नथी. ॥ ६ ॥ तदिने रविवारश्चे, ननश्च निर्मलं नवत्। तीवः सूर्यस्तथा चैव, शीतवायोरसंजवः ॥६॥ Jain Educational For Personal and Private Use Only nelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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