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________________ चतुर्दशी कृष्लपदया, माघमासस्तथा मता।रविवारेण संयुक्ता, महामारीप्रदा सदा५॥ अर्थ- वली माघ मासनी कृमपदनी चौदस जो रविवारी होय, तो तेणीने हमेशां महामारी देनारी | जाणेली ॥५॥ माघस्य चोत्तमावास्या, अनबन्ना यदा नवेत्। हैमवातेन संयुक्ता, गोधूमादिप्रणाशिनी ॥ | अर्थ- माघमासनी अमावास्या जो वादलांवाली, तथा ठंडा वायुथी युक्त अएली होय, तो तेणीने ते घचं आदिकनी नाश करनारी जाणवी. ॥ ६ ॥ एवी रीते माघ मासनो विचार जाणवो. हवे फागण मासनो विचार कहेछे. फाल्गुनेऽस्तमिते शुक्र, उर्जिदं कथितं जिनैः। षएमासावधि प्राणि, जयदं पुःखर्जितम् || । अर्थ- जो फागण मासमां शुक्रनो अस्त वाय, तो उ माससुधी प्राणिने नय आपनारो, तथा मुख गर्जित फुकाल पडे, एम श्री जिनेश्वर प्रनुए कहेलं . ॥१॥ | फाल्गुने सप्तमी चैव, अष्टमी नवमी तथा। एकादशी च शुक्ला स्या,त्कृत्तिकाशसंयुतार नाउपदे त्वमावास्या,घोणमेघ प्रवर्षति।ज्योतिश्चक्र इति प्राक्तं, श्रीहरिजमसूरिणा ३ अर्थ- फागण मासनी शुक्लपदनी सातम, आठम, नोम अने अगीयारस जो कृत्तिका नत्रवाली होय Jain Educational For Personal and Private Use Only S iljainelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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