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________________ INEादश्यां कार्तिके मासे, शुक्लायां रजनी यदा।सकला निर्मलाचेच्च,पुष्पबंधः सउच्यते॥ | अर्थकार्तिक मासनी सुद बारसने दिवसे आखी रात्रि जो निर्मल होय, तो तेनुं नाम "पुष्पबंध" कहेवाय बे. “वली कोश् आचार्यनो एम पण मत डे के, जो कार्तिक मासनी सुद चौदसनी रात्रि निर्मल होय, तो "पुष्पबंध" कहेवाय." कार्तिक सुदि पडवाने दिवसे जो बुधवार होय, तो ते वर्षमां रसनी चीजोना नावो ऊंचा रहे. ॥ ७ ॥ कार्तिका पूर्णमासी चेत्,पूर्णा कृत्तिकान्विता।सर्वशस्यसमुत्पत्ति,न विरोधो महीजुजाम्॥ । अर्थ-कार्तिक सुदि पुनेम जो, पूर्ण तथा कृत्तिका नक्षत्रवाली होय, तो सर्व धान्यनी उत्पत्ति श्राय, तथा || | राजा वच्चे विरोध न थाय. ॥ ए॥ अथवा जरणी तत्, पूर्णा स्यात् पूर्णिमादिने।कुत्रचिच्च नवेसृष्टिः,कुत्रचित्स्यादवर्षणम् न अर्थ अथवा एवीज रीतें कार्तिक सुदी पुनेमने दिवसे, जो संपूर्ण भरणी नक्षत्र होय, तो क्यांक वृष्टि थाय, अने क्यांक बिलकुल वरसाद न श्रायः ॥ १० ॥ अथवा रोहिणी तहत् पूर्णास्यात् पूर्णिमादिने।तदा त्वदेमसंतापौ,उर्जितश्चप्रजायते११ । KI अर्थ-अथवा तेवीज रीतें कार्तिक सुदि पुनेमने दिवसे जो संपूर्ण रोहिणी नक्षत्र होय, तो अक्षम, संताप, तथा उकाल थाय. ॥११॥ ईश्वर नामना ज्योतिषिए पण कर्वा ने के, Jain Educationa in al For Personal and Private Use Only Bottinelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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