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________________ मेघमा० ॥ १ ॥ Jain Educationa In | गर्जिते कार्तिके मासे, चतुर्मासेषु वर्षति । सुनिक्षं जायते तत्र, शस्यसंपत्तिरुत्तमा ॥ ४ ॥ - जो कार्तिक मासमां गर्जना थाय, तो चतुर्मासमां सारो वरसाद याय, तथा सुकाल थाय, ने धान्योनी निपज पण सारी थाय ॥ ४ ॥ | सर्ववर्णास्तथा मेघा, जायंते च पृथक् पृथक् । कार्तिके चैत्र मासे तु, श्दृशं गर्भलक्षणम् ॥ ५ ॥ अर्थ- कार्तिक मासमां, जुदा जुदा रंगनां जो वादलांडे बुटां बुटां थाय, तो जाणवुं के, वरसादनो गर्ज बंधायो बे. ॥ ५ ॥ | कार्तिके पुष्प निष्पत्ति, र्मार्गे स्नानं मतं किल । पौषे त्वत्र शुजो वतो, नित्यं माघो घनान्वितः ६ - कार्तिक मासमां पुष्पोनी निष्पति, मागसर मासमां स्नान, तथा पोश मासमां उत्तम वायु, अने | महा महीनो हमेशां वादलाए सहित होय. ॥ ६॥ | फाल्गुनः फल्गुवातःस्या, चैत्रे किं चित्पयो दितम्। वैशाखः पंचरुपी च, ज्येष्टश्चोष्मान्वितः शुनः अर्थ-फागण मासमां उत्तम वायु होय, चैत्रमां कंइंक कईक जो वादलां थाय, तथा वैशाख मास जो पंचरूपी होय, ने जेठ मास जो गरमीवालो होय, तो शुभ जावो. ॥ ७ ॥ मासाष्टक निमित्तेन, चतुष्टयमजीष्टदम् । अर्थ-एवी तनां वे मासनां जो निमित्तो होय, तो चतुर्मासनां चारे महिना चितने देनारा थाय. For Personal and Private Use Only विचार. ॥ १ ॥ ainelibrary.org
SR No.600175
Book TitleMeghmala Vichar
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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