Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगंढसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाइयदसाओ.पण्हावापरणाई.विवागसूर्य AVANAVAVI VAVAVALAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAS वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निगंथं पावयणं अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोववाइयदसाओ . पण्हावागरणाई विवागसुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन ( जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि : विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १२ (२५०० व निर्वाण दिवस ) पृष्ठांक २५ मूल्य: ८०/ मुद्रक : एस. नारायण एण्ड संस ( प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO, UWĀSAGADASÃO. ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Väćana PRAMUKHA ACARYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kārtic Kțishna 13 2500th Nirvana Day Pages 925 Rs. 80/ Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणयुटवं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्माण - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पणिहाणपुध्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लोन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभुओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुथ्वं ॥ जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं । संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक: सहयोगी : पाठ-संशोधन : मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए । आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे । वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की वात ठहरी। इस तरह नंदी मिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मात-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाडनूं में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-"ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण। २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में--(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहन्झयणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में-(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए । समवायांग का मुद्रण-कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ । पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवैकालिक वर्गीकृत ( धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २ ) 1 उक्त प्रकाशन-कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी ) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गूंज रहे हैं - “धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कोन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा ( विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया । आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंग सुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत्, स्थान, समवाय-- ये प्रथम चार अंग हैं । दूसरे खण्ड में भगवती - पाँचवाँ अंग है । तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक —ये ६ अंग हैं । इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त प्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है । ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा । केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवैकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है; जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है । दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है । 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मुद्रण कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिंटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन ( भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है । इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्त्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है । 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोड़िया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा । इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है । सन् १९७३ में मैं जैन विश्व भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चुना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मुद्रण 'की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा | स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है । उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्त्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत् वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है । ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व भारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध- आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं- अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं । उनकी संख्या बारह है - १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६ ज्ञाताधर्मकथा ७ उपासकदशा ८. अंतकृतदशा 8. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं - १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग । प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है। इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंत गडदसाओ, अणुत्तरोक्वाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं - इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है। विस्तृत भूमिका और शब्द सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द-सूची होगी । प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं । लेखनकार्य में कुछ त्रुटियां हुई हैं । कुछ त्रुटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं । वे कब हुई यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता । पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हुई हैं, यह संभावना की जा सकती है । 'नायाधम्मक हाओ' १५५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है । स्थानांग ४/१३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है । बाईस तीर्थकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है, पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि अगार-विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है । इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति राय सेणइय सूत्र 'के आधार Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें-नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकहाओ १।१२:३६, १।१६।२१, १।१६।४६ में भी मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र १०।४ में 'कायवर' पाठ मिलता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर'-प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है। लिपि-दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया। निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सुत्र १) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है। काँचपात्र और वज्रपात्र-दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं। इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है। लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण-विपर्यय अन्यत्र भी हआ है। 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा पचंकमण' के स्थान पर एवंकमण' पाठ मिलता है। पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं। उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है। प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओक. ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मूलपाठ यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है। यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है। ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित यह प्रति गर्वया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं। प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इथर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए। प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं। उनमें अन्तिम श्लोक एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥१॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्मप्रदेशटीकेति ॥छ।। ४२५५ ग्रंथानं ।। वत्ति । एवं सूत्र वृत्ति १७५५ ग्रंथाग्रं ॥१॥छ।। ग. नायाधम्मकहाओ (मूलपाठ) यह प्रति गर्धया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं ।प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं। प्रति जीर्ण-सी है। बीच में वावड़ी है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घ. १५ लिपि संवत् १५५४ है । अंतिम प्रशस्ति में लिखा है - संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण दि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायक श्री सुमतिसाधसूरि । तत्पट्टे श्रीहेमविमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन ॥ साह श्री सूरा लिखापितं । जोसी पोपा लिखितं । भ्राति उज्जल संजुक्त घी लिखापितं ॥ १ ॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं । टब्बा यह प्रति १२ वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है । २. उवासगदसाओ क. उवासगदसाओ --- मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) - इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है । पत्र क्रमांक संख्या १५२ से २०२ तक है। फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है। इसकी लम्बाई १४ इंच चौड़ाई 3 इंच है । प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीब अक्षर हैं । प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् १९८६ है | अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है । ख. उवासगदसाओ --टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित) -- यह प्रति गया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पृष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है । प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४० इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओ क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट ) । पत्र संख्या २०३ से २२२ तक । विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् १९८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी १९८६ से पहले की होनी चाहिए । ख. हस्तलिखित – गधैया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति ( उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय - देखें अणुत्तरोववाइथ 'ख' प्रति -- लेखन • संवत् १४६५ है । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग. हस्तलिखित~-गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच तथा चौड़ाई ४३ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं। प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है। केवल इतना लिखा है--॥छ।। ग्रंया ८६० 1100 1100 पुण्यत्नसूरीणा।। यह प्रति मात्रैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है। पत्र की लम्बाई १० इंच व चो०४५ इंच है। प्रति के अंत में तीन दोहे लिखे हुए हैं। थली हमारौ देश है, रिणी हमारो ग्राम । गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारो नाम ॥१॥ गणेश हमारा है पिता, मैं सुत मुन्नीलाल । अड़ो गच्छ है खरतरो, उजियागर पोसाल ॥२॥ बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां नाम । जंगलधर बादस्या, गंगासिंहजी नाम ॥३॥ श्रीरस्तु ॥छ।। कल्याणमस्तु ॥छ।। ४. अणुत्तरोववाइयदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है। अतः क्रमानुसार यह प्रति ११८६ से पहले की है। ख. गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की (उपासकदमा, अन्तक्रत और अनूतरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पत्र १३१ इंच लम्बा तथा ५१ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं। प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यग्रुचिरजायत ॥२१॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ।।३।। तदंगजन्माजनि वाहडाख्यः सद्धर्मकर्मार्जनबद्धकक्षः । वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंचकाराब्जमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तवंशविशालकेतु: कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्र कलावानपि यः प्रकामं वधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ।।५।। तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥६॥ तस्यार्हदह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य ! आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभुवुरभितोप्युद्योतयंत: कुलं, चत्वारस्तनया नयाजितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तार्तीयस्त्रिभवाभिधस्तदपरो गेलाह्वयोमा भुवि ।।८।। चत्वारोपि व्यधूरघरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातन्धनभृतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहदयास्तीह जैनांहिलीना 1811 तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा। द्वादप्यभूतां गुरुदेवभक्तौ मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥१०॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्री यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण, सारेण सहिता शुभा। गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पपौ ॥१२॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरतरं। एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षत: ॥१३॥ विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण निधि वाद्धौंदु मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे ।।१४।। गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांगपुस्तकं । दत्तस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ।।१। छ। श्रीः ॥ ग, हस्तलिखित प्रति मधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र तथा पृष्ठ १५ हैं। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं। प्रति Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की लम्बाई १०२ इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं-- ॥छ। अणु त्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्त छ।। श्री: श्रीः श्री: श्री: श्रीः श्री: छ छ: प्रति का अनुमानित समय १६०० है । ५. पण्हावागरणाई-- क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ---- पत्र संख्या २२८ से २५६ ख. पंचपाठी । हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तरार्ध । यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १०४४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा बीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति को जगह-- ग्रंथान १२५० शुभं भवत् कल्याणमस्तु ।। लिखा है । लेखन कर्ता तथा लिपि-संवत का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए। ग. त्रिपाठी (हस्तलिखित)-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र १११ हैं। प्रत्येक पत्र १०x४१ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ से ८ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वत्ति तथा बीच में कलात्मक बावडी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच बीच के कई पन्ने लप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथार १२५० ।छ। श्री ।। छ।।।। लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए। घ. मूलपाठ (सचित्र)-- पूनमचंद दुधोडिया, छापर द्वारा प्राप्त । इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं। बीच में वावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र हैं। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानत: १५७० के लगभग की होनी चाहिए ! अशुद्धि बहुल है ! च. मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । पत्र संख्या ८३ ।' क्व. यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ है । बालावबोध पंचपाठी । पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं । अक्षर २८ से ३५ तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है। ६. विवागसुयंक. मदनचन्दजी मोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मुलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है । लेखन संवत् ११८६ आश्विन मुदि ३ सोमवार। पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है। प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में लिखी हुई है ! मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं। पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हआ है। प्रति प्राय: शुद्ध है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं ।छ।।। मूलपाठ-- ___ यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी गानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पष्ठ ७० हैं। प्रत्येक पत्र १११ इंच लम्बा तथा ४६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-- एक्कारसयं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथान १२१६ ।। टीका ६०० एतस्या ॥ लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। ७. एम. सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १६३५, 'विवागसय। सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयल भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थदृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। _हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं--पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है ! मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू। प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट) ने तैयार किया है। कार्य-निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्म में किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। ___ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प' और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। जैन विश्व-भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व-भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ' के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। ___ एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस। मुनि नथमल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मकहाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशानी का छठा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्र तस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है। दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओं बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है। प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित-दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं।' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' नाथधर्मकथा) मिलता है। नाथ का अर्थ है स्वामी। नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा। कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है। आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण-प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म-कथाएं' है। दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्धीकरण का उल्लेख किया है।' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार 'ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पइग्णगसमवाप्रो, सून १४ ॥ २. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा । ३. (क) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि-उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरा. दित्वात्पूर्वपदस्य दीन्तिता। (ख) समवायांगवत्ति, पन १०८ : ज्ञातानि- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घवं संज्ञात्वाद अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिघायकत्वात् ज्ञातानि, द्वितीयस्तु तथव धम्मकथाः । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है--भगवान् महावीर की धर्म कथा'। वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त है उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा --यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्म कथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञान) है। इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल-शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप-मंदूक की कया बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परिवाजिका चोखा जितशत्र के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है--'तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्त:पुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा---'तुम कूप-मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप-मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा। चोखा ने कहा--'कुएं में एक मेंढक था । वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कृप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समदी मेंढक उस कूप में आ गया । कूप-मंडुक ने कहा--तुम कौन हो ? कहां से आए हो? उसने कहा--- मैं समद्र का मेंढक हैं, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा--वह समुद्र कितना बड़ा है ? समद्री मेंढक ने कहा----वह बहुत बड़ा है । कूप-मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा--क्या समद्र इतना बडा है ? सुमद्री मेंढक ने कहा---इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फूदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा--इससे भी बहत बड़ा है। कूप-मडूक इस पर विश्वास नहीं कर सका । इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों को दष्टि से प्रस्तुत आगम वहत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं। १.जन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका, पत्र ६६० । २. Stories From the Dharma of NAYA ई० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३.(क) समवरो, पइग्ण गसमवायो, सून ६४ (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. तायाधम्मकहाओ मा१५४, पृ० १५६,१८७ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ उवासगदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। धमण-परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे। उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं। TOTAद . विषय-वस्तु भगवान महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म---इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मनि के लिए पांच महावतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमगोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है। व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है। इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तर तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मनि का आचार-धर्म अनेक आगमों में मिलता है कि गृहस्थ का आचार-धर्म मुख्यत: इसी आगम में मिलता है। इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है। इसकी रचना का मख्य प्रयोजन ही गृहस्थ के आचार का वर्णन करना है। प्रसंगवश इममें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सन्दर चर्चा हुई है। उपासको की धामिक कसोटी को घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखने थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है। उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं -दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति रात्रिबोजन विरति ग्रहाचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था। व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा-ये दो पद्धतिया हैं। समवायांग और नन्दी सूत्र में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमा का उल्लेख है। १. कसायपाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सूत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्देशनकालो के अन्तर का आशय हो ज्ञात नहा । नासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' है । चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं---एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे नाम, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र'। तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सदर्शन, यमलीक, बलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवायो, पइण्णगसमवाओ, सून ६६ :.... 'दस अज्झयणा सत्त दगा। २. नंदी, सूत्र ८६."अट्ठ वगा। ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयेव पटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त बग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पत्र ११२ : ततो भणित-अठ्ठ उद्दसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः ।। ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पु० ६५: पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृतिसहित पृ०६३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकद्दशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ०६८: दस त्ति-अवस्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०, पृ०७३ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है'। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता हैं। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं । इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे- गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्ण । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है। 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं-अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासदेवकष्ण के छोटे भाई गजसकमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है। छठे वर्ग में अर्जनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य बनताबिगड़ता है-इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं ! ___ अतिमवतक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं। भगवान महावीर ने उपवास और ध्यान दोनों को स्थान दिया था। तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं। भगवान् महावीर ने अपने साधना-काल में उपवास और ध्यान--दोनों का प्रयोग किया था। यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बल क्यों दिया गया? विस्मति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है। १. तत्त्वार्यवातिक १२०, पृ० ७३ :... इत्येते दश बर्धमानतीर्थकरतीर्थे 1 एवमुषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थे वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृत: दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहट भाग ११० १३०: अंतयडदसा णाम अंगं चउम्बिहोवसग्गे दारुण सहिऊण पारिहेर लढण णिम्वाणं __ गदे सुदंसपादि-दस-दस-साहू तित्यं पहि वपणेदि । ३. स्थानांगबत्ति पत्र ४५३..."ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति सम्भाषयामः । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवां अंग है । इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओ' है । नंदी सूत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्वानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवार्तिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मुनियों का वर्णन है | समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग -- दोनों का उल्लेख है । उसमें अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं । अतिमुक्त | २६ (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद तेतली दशार्णभद्र और 2 अणुतरोववाइयदसाओ (२) राजवार्तिक के अनुसार ऋषिदास वान्य, सुनक्षत्र, काशिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलापुत्र' । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे - यह तत्त्वार्थ वार्तिककार का मत है । धवला में कालिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसूरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य, ५. ठाणं १०/११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक १।२० पृ०७३ । ७. षट्खण्डागम १३१२ 1 १. नंदी, सून ८ तिणि वगा । २. ठाणं १०१११४ ३. (क) तस्वार्थपातिक १२०, पृ० ०३ ....... इत्येते दश वर्धमानतीर्थ करतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानमारा दश दनुजस्य विजयातपूरयन्ना इत्येवमनुशरोपपादिकः दास्यन्त इत्यनुत्तरोपपादिकदशा । (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंगं चउब्विहोवसम्गे दारुणे सहिपूर्ण चउवीसन्हं तित्ययराणं तिथेसु अणुत्तरविमाणं गये दस दस मुणिवस हे वण्णेदि । ४. समयाओ, पइण्णगसमवाओ १७ । .......दस अज्झयणा तिष्णि बरसा स्थानांगवृति पत्र ४०३: तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाध्ययनविभाग उपसो नभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास- ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय -- ये दो अध्ययन प्राप्त हैं, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं । विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है। धन्य अनगार के सपोमय जीवन और तप से कुश बने हुए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पहा वागरणाई नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का दसवां अंग है । समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पन्हा वागरणवसाओ' है' समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग निदिष्ट नाम भी सम्मत है जयधवला में 'पण्हवावरणं' और तत्त्वार्थदाशिक में प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए हैं— उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित महावीर-भाषित, क्षौमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी मे इनके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है। स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, (ख) नंदी, सूत्र पइण्णग समवाओ ६० । सूत्र ६८ । २. ठाणं १०।११० । ३. (क) कसा पाहुड, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंगं । (ख) तत्त्वार्थवार्तिक १।२० : ```प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पावरपदमा दक्ष असा पत्ता जहा उनमा संथा दक्षिभाविवाद, आवरियमानियाई, महावीर भासियाई, खोमगपसिणाई, कोमलप सिणाई, अद्दागपरिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुप सिणाई । ५. (क) समवाओ, पण समवाओ सूत्र ६५: पहायागरणे अद्भुतरं परिगसवं असरं अपसियत अट्टतरं पविणावणियं विन्जाइया सिद्धि दिव्यादायानिति । (ख) नंदी, सूत्र ६० । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षौम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वर्णित हैं । इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्दे शनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है । तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है । जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी-इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख, जीवन और मरण वा वर्णन करता है । उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं है। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नंदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है । समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नंदी में प्रस्तुत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नदी में उनका उल्लेख मिलता है। यह संभव है कि पूर्णिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविनाधितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम्। दथिल्लोफिनदिकानानां वियः । २. कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२: परमावरणं गाम अंगं परवेणी-विशेवणी-संवेणी-पिन्वेवीणामाश्रो चव्विहं कहाओ पहादो मुकि चिता-लाहालाह- सुखदुक्ख जीवियमरणाणि च वष्णेदि । ३. नंदी सूत्र, चूर्णि सहित पू० ६९ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૯ विवागसुयं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकत और दुष्कत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं है। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते हैं। वे अपनी र मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं। दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, यह भी जानने को मिलता है। दसरे विभाग में सुकत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे कर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं । अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है। स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं-मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी' ! ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है। इस आधार पर यह अनमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की। भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है। १. (क) समबाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १६ । (ब) नंदी, सूत्र ६१ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १२०॥ (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ. १३२ 1 २. ठाणं १०११०1 ३. ठाणं १०११११॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NĀYĀ DHAMMAKAHÃO The title The present Āgama is the sixth Anga of Dwādaśāngi. It has two Śrutaskandhas. The first is called as 'NĀYA' and the second as 'DHAMMAKAHĀO'. On combining both the Śrutaskandhas, the present Āgama has the title as 'NÄYĀDHAMMAKAHĀO'. 'NĀYĀ' (Jnāta) means examples and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables.? In the Jayadhawalā the title of this Āgama is found as 'Nähadhammakahā' (Nāthadharma-kathā). “Natha' means the Lord. 'Nāthadhamma kahā' i.e, the dharmakathā expounded by the Tirthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Inātsidharmakatha'. Acharya Akalanka too has given the title of this Agama as 'Inātadharmakatha'. Acharya Malayagiri and Abhayadeva Süri give the title of 'Jnātadharmakathā. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Śrutasakandha has illustrations and the second Śrutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word Jnāta'.: The family name of lord Mahavīra has been given as 'Jnāta' and 'Natha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahavira. They hold that *Jnātadharmakathā' or 'Nātha-dharmakathā' means the 'Dharmakathā by lord Mahāvira'. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnātriwansi Mahāvira, is titled as NĀYADHAMMAKAHĀ. But, on the account found in the Samwāyanga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, painnaga samawao, Sutra 94. 2. Tatwartha Vartika, 120. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. $. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakatha of Jnátriwanst Mahavira' does not seem to be appropriate. It has been told there that in the 'Jnätadharmakatha', the cities and gardens. etc. of the 'Inatas' (the persons cited) have been described. The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanaye' (Utkshiptajņāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations and fables in the present Agama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also. While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her-You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said-You are like a Küpa-Mandika. Who is that Küpa Mandeka? Chokha said-There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered-I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him-Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered-Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said-Is the ocean so big? The ocean-frog answered-It is far more bigger than this too. The well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well. 1. (a) Samwao, pa innagasamawao, Sutra 94. (b) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Agama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWĂSAGADASÃO The title The present Agama is the seventh Anga of the Dwadasangi. It has the biographies of ten Upasakas (lay devotees), therefore, it is called as ‘Upāsagadasão' in the Sramanū order the laymen serving the Sramanas are called Sramaṇopāsakas or Upāsakas. Lord Mahavira had large number of Upāsakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upāsakas. The Content Lord Mahavira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upāsakas. Five Mahāyratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upasaka, śramanopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidentiy, Niyatiwada has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upasakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahavira took care of the accomplishment of the Upāsakas. and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawalā the present Agama narrates eleven-fold practices of the 'Upåsakas'. They are-Darsan, Vrat, Sāmayika, Pausadhopawā. Sacitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati Anumáti-Virati, and Uddista Virati'. The Srāwakas, beginning from 1. Kasyapahuda, parti, pages 129-30. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ananda, had practised above said eleven Pratimas. The Vratas are practised. indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimas also. These Vratãs and Pratimas are the two religious codes for an Upäsaka. In the Samawayanga and the Nandi Sutra, Vrata and Pratima both are mentioned. The Jayadhawala gives an account of Pratimas only. 34 ANTAGADADASÃO The title The present Agama is the eighth of the Dwadasangi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasão'. The Samwayanga tells us that it contained ten Adhyayanas and seven Vargas'. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sari has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawayanga Sutra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives cight Vargas only with no mention of Adhyayanas". But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawayanga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kalas) of this Agama and the Nandi Sütra gives only eight. Sri Abhayadeva Suri admits that he does not understand the purpose behind the difference in the number of the Uddeśankälas. The Churgikar of the Nandisutra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikar, Sri Haribhadra Süri also write that the present Agama is given the title 'Antagadadasão' as it has ten Adhyayanas in the first Varga". The Chürnikar takes the meaning of 'Dasa' as 'Awastha' (condition) also. Three traditions are found to narrate the present Agama: firstly, that of the samawāyānga; secondly, that of the Tatwärtha Vartika, and thirdly, that of the Nandi Sūtra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96, 2. Nandi Sutra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35 According to the first tradition, the present Āgama has ten Adhyayanas. The Sthānānga Sūtra supports it. The Sthānānga mentions the tco Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mātanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamäti, Bhagāli, Kimkașa, Cilawaka, Pāla, and the Ambashthaputtra. These headings are fou d in the Tatwārthavartika aiso with some variance, such as, Nami, Mātang, Somila, Ramaguptā, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pāla and Ambaşthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Āgama gives an account of the Antaksīta Kcwalis, in groups of ten contemporaries of cach Tirthankara. The Jayadhawala, too. supports this statement of the Tatwārthavrāt.ka. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayabas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawāyanga and the Tatwārthavartika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the abovc- said headings. i.c., Gautama, Samudra, Sāgara, Gambhira, Stanita, Acala Kāmpilya, Aksetra, Prasenjit and Vişnu. In the 'Sthänăngavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vācna. This shows that the Vaena' of the 'Nandi' is different from the 'Vāónā 'found in the 'Samawāyānga'. The word 'Antagada' has two Sanskrit forms.Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but 'gāda' goes more with the Sanskrit version Ksita' so far as morphology is concerned. tent The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Krisna and his family. The Diksā (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krişna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Ariuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Agama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both--the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mahavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWAIYA-DASÃO The title This Agama is the ninth Anga of the Dwādaśangi. As it contaisten Adhyayanas regarding the Munis born in the Aruttara Swarga class, its title is given as Anuttarowawāiya-Dasāo'. The Nandi Sūtra mentions only three Vargas? The Sthānānga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavärttika groups of ten Anuttaropapātika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it.* The Samawāyanga mentions the ten Adhyayanās and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyavanas have not been given in it. According to the Sthānänga and the Tattwärtha vårttika they read as, Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Karttika. Swastban, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśārnabhadra and Atimuktas, and as Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Kärttika, Nandanandana, Sätibhadra, Abhaya, Warişeņa, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporarics of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tatta wārtha värttika." In the Dhawala we find Kartikeya instead of Kärttika and Anand instead of Nanda?. The present form of the Agama is different from the 'Vaćna' of the Sthânāga and the Samawāyānga. Abhayadeva Süri holds that it is a different Vacna'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tatiawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130. 4. Samawao, painnaga samawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tatiwarthvarttjka 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Risidasa, are found. In the first Varga, only two Adhyayanas, named as Wārisrena and Abhaya, are seen. The contents This Agama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagära and his body emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHAWĀGARANĀIN The title The present Āgama is the tenth Anga of the Dwādaśāngi. Its title has been mentioned as 'Panhāwāgaraņāin' in the Samawāyanga Sūtra and the Nandi. Its name is found as 'Paṇhāwägaradasão" in the Sthānānga and the same reads as 'Panhāwāgaranadasásu' in the Samawāyānga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthānānga is also in concurrence with the Samawāyānga. The Jayadhawala and the Tattwärthavarttika note it as Panhäwayaraña or Praśna-Vyakaraņā. The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Agama. The Sthānanga citcs its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Risibhāsita, Ācāryabhāsitä, Mahavira-bhăşitā, Kșaumaka-Praśna, Komala-Praśna, ĀdarśaPraśna. Angustha-Praśna and Bahu-Praśna.* The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawāyānga and the Nandi, the present Āgama has various types of queries, sciences (vidyās) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthānanga. The Samawāyānga makes no mention of its Adhyayanas. 1. (a) Samawao painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi. Sutra 90, 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapanuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thadam 10/116. 5. (a) Samawao, pa innagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Panhāwāgaranadasāsu paragraph, it may be inferred that the Samawāyanga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama, The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāsita, Atāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhäşita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Prašna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Kșauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakarana-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The tcaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärtha vārttika many queries have been expoucded in this Agama , depending on cause and inference by 'Āksepa' and Viksepa'. Also the Laukika (sccular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalá notes that this Agama narrates the Naşta, Musti, Cintā, Labha, Aläbha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Marana with the help of the four kinds of fables, ic, Aksepani, Prakṣepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. The contents of the Āgama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsă, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmatarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawäyānga mentions the Adhyayanas beginning from Acārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Āgama formerly were in the form of the queries and subsequently, the Icarning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The Vacna' of this Agama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Curni of the Nandi does it. Likely it is that the Cürnikära did it on the basis of the present form of the Agama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapa huda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 VIVĀGASUYAM The title The present Āgama is the 11th Anga of the Dwādaśāngi. The Vipāka (fruit) of the Suksita and Duşkļita deeds has been dealt with in it. therefore the title "Vivāgasuyam." The Sthānānnga gives its title as "Kāmma Vivāgadasa." The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipäka and the Sukha Vipāka. The first division contains the topics on the lives of the individuals doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affcct their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthānānga Sūtra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipaka such as, Mrigāputra, Gotrāsa, Anda, Sakata, Māhan, Nandişeņa, Saurika Udumbara, Sahasoddāha-Amaraka, and Kumar Licchavī. These headings have been taken from some other Vaćna'. The account of the Anga-Sūtras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred that the obtained form of the Agama Sutras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the Anga. Sūtra is ancient and how much modern, as well as who of the Āćaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. 2. Thanam 10/110. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Āgama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं पढमो सुयक्कंधो पढ़मं अज्झयणं पृ०७१७-७३१ उक्खेव-पदं १, मियावृत्तवण्णग-पदं ६, गोयमस्स जाइअधपुरिसविसए पूच्छा-पदं १६, भगवया मियापुत्तरूव-निरूवण-पदं २६, गोयमस्स मियापुत्तदंसण-पदं २७, गोयमेण मियापुत्तस्स पुदभवपुच्छा-पदं ४१, मियापुत्तस्स एक्काइभव-वण्णग-पदं ४३, मियापत्तस्य वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ५८, मियापुत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ७०, निक्खेव-पदं ७१।. बीयं अज्झणं स० १-७४ पृ०७३२-७४३ उक्खेव-पदं १, गोयमेण उज्झियस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं १२, उझियस्स गोतासभव-वण्णगपदं १७, उज्झियस्स बत्तमाणभव-वण्णग-पदं ४३, उज्झियस्स आमामिभव-वण्णग-पदं ६६, निक्खेव-पदं ७४! तइयं अज्झयणं प०७४५ से ७५६ उक्केव-पदं १, गोयमेण अभग्गमेगस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं १३, अभग्गसेणस्स निन्नयभववण्णग-पदं १७, अभग्गसेणस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं २३, अभग्गसेणस्स आगामिभववण्णग-पद ६५, निक्खेव-पदं ६६ । चउत्थं अज्झयणं सू०१-४० पृ०७५७ से ७६२ उक्खेव-पदं १, सगडस्स पुन्वभवपुच्छा-पदं १२, सगडस्स छन्नियभव-वण्णग-पदं १३, सगडस्स वत्तमाणभव-वण्ण ग-पदं १८, सगडस्स आगमिभव-वण्णग-पदं ३२. निक्खेव-पदं ४०। पंचमं अज्झयणं सू० १-३० पृ०७६३ से ७६६ उक्खेव-पदं १ गोयमेण बहस्सइदत्तस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं १०, वहस्सइदत्तस्स महेसरदत्तभव बण्णग-पदं ११, वहस्सइदत्तस्स बत्तमाणभव वण्याग-पदं १७, बहस्सइदत्तस्स गमिभव-वण्णग-पदं २६, निक्खेव-पदं ३० ! छठं अज्झयणं पृ०७६७-७७३ उक्खेव-पदं १, गोयमेण नंदिवद्धणस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं ७, नंदिवद्धणस्स दुज्जोहणभववण्णग पदं ६, नंदिवद्धणस्स वत्तमाण भव-वण्णग-पदं २५. नंदिवद्धणस्स आगामिभबवण्णग-पदं ३७. निक्खेव-पदं ३८ । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं सू०१-३६ पृ०७७४ से ७८२ उक्खेव-पदं १, गोयमेण उंबरदत्तस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं ७, उंवरदत्तस्स धणंतरिभव-वण्णगपदं १३, उबरदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १८, उबरदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३८, निक्खेव-पदं ३६। अट्ठमं अज्झयणं सू० १-२८ पृष्ठ ७८२-७८७ उखेव-पदं १, सोरियदत्तस्स पुन्वभवपुच्छा-पदं ८, सोरियदत्तस्स सिरीयभव-वण्णग पदं ६. सोरियदत्तस्स बत्तमाणभव-वण्णग-पदं १४, सोरियदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २७, निक्खेव-पदं २८ । नवमं अज्झयणं सू० १-६० पृ० ७८८-७६७ उक्खेव-पदं १, देवदत्ताए पुबभवपुच्छा-पदं ६, देवदत्ताए सीहसेणभव-वणग-पदं ७, देवदत्ताए वत्तमाणभव-बण्णग-पदं ३०, देवदत्ताए आगामिभव-वण्णग-पदं ५६, निक्खेव-पदं ६० दसमं अज्झयणं सू०१-२० पृ०७९८-८०१ उक्खेव-पदं १, अंजूए पुन्वभवपुच्छा-पदं ४, अंजूए पुढविसिरीभववण्णग-पदं ५, अंजूए वत्तमाणभव-वष्णग-पदं ६, अंजूएआगामिभव-अण्णग-पदं १६, निक्खेव-पदं २०॥ बीओ सुयक्खंधो पढम अज्झयणं सू०१-३७ ८०२-८०६ उक्खेव-पदं १, सुबाहुकुमार-पदं ४, सुबाहुस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं १५ सुबाहुस्स सुमुहभववणणग-पदं १६, सुबाहुकमारस्स पव्वज्जा-पदं ३१, सूबाहुकमारस्स आगामि भव-बण्णग-पदं ३५, निक्खेव-पदं ३७, २-१० अज्झयणाणि। पृ०८१०८१३ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपूर्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [[ और उसके समापन में रिक्त विन्दु [0] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २ सू ६ । [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३. सूत्र ७ ॥ .' ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूत्ति स्थल का निर्देश है । देखें-पष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८। काश [x] पाठ न होने का द्योतक है। देखें--पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [• ] अपूर्ण पाठ का द्योतक है । देखें-१० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५। 'जहा' 'तहेब' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं । देखें-पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० ॥ क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'व्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें--पृष्ठ ३६६ टिप्पण १। 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श । सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें-पष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति-सम्मत पाठान्तर । देखें--पष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें—पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें-पष्ट ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ। अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ। सूय सूयगडो। उवा० उवासगदसाओ। जंबू० जंबूदीवपण्णत्ति । ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ। भ०, भग०, भगवई। राय० रायपसेणइयं । पाहा० पण्हावागरणाई। वि० विवागसूयं । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो सुयक्खंधो पढम अज्झयणं मियापत्ते उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम' नयरो होत्था --वण्णो '। पुण्णभद्दे चेइए॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं अणगारे जाइसंपण्णे वण्णो ', चउद्दसपुब्बी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडे पुवाणुपुब्बि' 'चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी' जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं' •ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह। परिसा निग्गया। धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ! तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे सत्तुस्सेहे जहा गोयमसामी तहा जाव झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ! ३. १. नाम (क, ख)। २. ओ० सू०१। ३. चेतिते (क); चेईए (ग); वण्णो (घ)। ४. ना० १६१६४। ५. °पुच्ची (क, ख); सं० पा०—पुव्वाणुपुट्वि जाव जेणेव। ६. सं० पा०---ग्रहापडिरूवं जाव विहरइ। ७. ओ० सू० ८२ चेइए तहा ७१७ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ ४. ५. ६. ७. ८. विवागसु तए णं प्रज्जजंबू नामे' प्रणगारे जायसड्ढे जाव' जेणेव अज्जसुहम्मे अणगारे तेणेव उवागए तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जाव' पज्जुवासमाणे एवं वयासी - जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावोरेणं जाव' संपत्तेणं दसमस्त अंगस्स पण्हावागरणाणं श्रयमठ्ठे पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते ! अंगस्स विवागसुयस्स समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? तए णं अज्जसुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासी - एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं एक्कारसमस्त अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा- दुहविवागा य सुहविवागा य || जइणं भंते! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागस्यस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा - दुहविवागा य सुहविवागा य । पढमस्सगं भंते ! सुयक्खंधस्स दुहविवागाणं समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? संग्रहणी - गाहा तज्जहम्मे अणगारे जंबू-प्रणगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं दस प्रज्भयणा पण्णत्ता, तं जहा -- १. 'मियउत्ते" य २. उज्झियए, ३. प्रभग्ग " ४. सुगडे ५. बहस्सई ६. नंदी | ७. उंबर ८. सोरियदत्ते य, ६. देवदत्ता य १०. अंजू य३ ॥१॥ जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं दुहविवागाणं दस १. नामं ( ग ) २. प्रो० सू० ८३ । ३. प्रो० सू० ८३ । ४. पज्जुवा सइ (क, ख, ग, घ ) 1 एतादृशे प्रसंगे प्रायेण 'पज्जुवासमाणे' इति पाठो लभ्यते, लिपिदोषात् 'पज्जुवासद' इति जातः संभाव्यते । ५६. ना० ११११७ । ७. ना० १/१/७ ८. सुम्मे ( क ) | ६. ना० १११७ । १०. मियापुत्ते (ख, ध ) ११. अभग्गे ( ख ) । १२ सगते ( ग ) ! १३. ठाणं ( १०११११) सूत्रे विपाकाध्ययननामसु विपर्ययो दृश्यते, तद्यथा- मियापुते य गोत्तासे, अंडे सगडेति यावरे । माहणे दिसेणे, सोरिए य उदुंबरे || सहसुद्दा हे आमलए, कुमारे लेच्छई इति । १४. ना० १/११७ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं (मियापुत्ते) ७१६ अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - मियउत्ते जाव' अंजू य । पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तणं के पट्टे पण्णत्ते ? मियापुत्त वण्णग-पदं ε. दिसीभाए चंदणपायवे तणं से सुहम्मे अणगारे जंबू- अणगारं एवं वयासी - एवं खलु जंबू ! तेणं काणं ते समएणं मियग्गामे नामं नयरे होत्था - वण्णो ॥ १०. तस्स णं मियग्गामस्स नयरस्स वहिया उत्तरपुरत्थि मे नाम उज्जाणे होत्था -- सव्वोउय- पुप्फ-फल-समिद्धे - वण्णो ॥ ११. तत्थ णं सुम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था - चिराइए जहा पुष्णभद्दे || १२. तत्थ णं मियग्गामे नयरे विजए नाम खत्तिए राया परिवसइ - वणो ॥ १३. तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स मिया नामं देवी होत्था - प्रहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा - वण्णो ॥ १४. तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियाए देवीए श्रतए मियापुत्ते नाम दारए होत्था -- जातिअंधे जातिमुए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे' । नत्थि गं तस्स दारगस्स हत्या वा पाया वा कृण्णा वा अच्छी वा नासा वा । केवलं से तेसि गोवंगाणं आगिती प्रागितिमेत्ते । १५. तए णं सा मियादेवी तं मियापुतं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी- पडिजागरमाणी विहरइ ॥ गोयमस्स जाइधपुरिसविसए पुच्छा-पदं १६. तत्थ णं मियग्गामे नयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ । से णं एगेणं सचक्खुएणं पुरिसेणं पुरनो दंडणं' 'पकडिज्जमाणे- पकड्ढिज्जमाणे "" फुट्ट हडाहड-सीसे मच्छिया-चडगर-पहकरेणं णिज्ज माणमग्गे मियग्गामे नयरे गेहे - गेहे कोलुणवडियाए वित्ति कप्पेमाणे विहरइ || १७. तेण कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे" पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे १. वि० ११३७ । २. प्रो० सू० १ । ३. ना० १।३।३ । ४. ओ० सू० २ । ५. ओ० सू० १४ । ६. ओ० सू० १५ । ७. मिपुत्ते ( क ) । ८. वायवे (क, घ ) । 8. डंडएम (क, ग)। १०. पगड्ढज्जमाणे २ (ख); पगडिज्जमाणे २ (घ) । ११. सं० पा० - महावीरे जाव समोसरिए । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुर्य गामाशुगामं दूइज्माणे सुहंसुहेणं विहरमाणे मियन्यामे नयरे चंदणपायवे उज्जाणं • समोसरिए । परिसा निग्गया || १८. तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लट्टे समाणे जहा कूणिए तहा निग्गए जाव' पज्जुवासइ | o १६. तए णं से जाइग्रंधे पुरिसे तं महयाजणसद्दं च जणवूहं ए जणवोलं च जणकलकलं च सुत्तातं पुरिसं एवं वयासी - किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा उज्जाण -गिरिजत्ता इ वा, जओ णं बहुवे उग्गा भोगा' एगदिसि एगाभिमुहा निम्गच्छति ? २०. तए णं से पुरिसे तं जाइग्रंथ पुरिस एवं वयासी - - नो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा उज्जाणगिरिजत्ता इवा, जो णं बहवे उग्गा भोगा एगदिसि एगाfभमुहा० निग्गच्छति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे इहमामए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव मियग्गामे नयरे चंदणपायवे उज्जाणे अहापडिरूवं योग्यहं ग्रगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ० विहरइ । तए णं एए जाव" निग्गच्छति ॥ ७२० २१. तए से अंधे पुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी- गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! हे वि समणं भगवं" महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ° पज्जुवासामी ॥ २२- तए णं से जाइअंधे पुरिसे तेणं पुरो दंडणं पुरिसेणं पकड्डिज्जमाणेपकड्डिज्जमाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव 'उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्त प्रायाहिण -पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ जाव" पज्जुवासइ ॥ २३. तए णं समणे भगवं महावीरे विजयस्स रण्णो तीसे य" महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइक्खई" । परिसा " पडिगया विजए वि गए || १. ओ० सू० ५४ - ६६ । २. सं० पा०-- जणसद्दं च जाव सुणेत्ता । ३. सं० पा० - इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छति । १२. उवागए २ ( ख, ग ) 1 ४. पू० - ना० १।१।९६ १३. ना० १/१/६६ । ५. ५० ना० १।१।६६ १४. सं० पा०—तीसे य० । ६. सं० पा०-- इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छति । १५. धम्मं परिकहेइ ( ख ) 1 १६. परिसा जाव (क, घ) । ७. ८. पू० ना० १।११६६ । ६. सं० पा० - समणे जाव विहरइ । १०. वि० १।१।१९ । ११. सं० पा० भगवं जाव पज्जुवासामो । ર Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (मियायुत्ते) ७२१ २४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे लाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। २५. तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंध पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे 'जाय संसए जायकोउहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उदाए उट्टेइ, उद्वेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता नच्चास नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे ° एवं वयासी--अत्थि णं भंते ! केइ पुरिसे जाइग्रंधे जायग्रंधारूवे' ? हंता अस्थि ।। भगवया मियापुत्तरूव-निरूवण-पदं २६. कह णं भंते ! से पुरिसे जाइअंधे जायअंधारूवे ? एवं खलु गोयमा ! इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियापुत्ते नाम दारए जाइअंधे जायग्रंधारूवे । नत्थि पां तस्स दारगस्स' 'हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती प्रागितिमेत्ते। तए णं सा मियादेवी' 'तं मियापुत्तं दारगं रहस्सियंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणणं ° पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ ।। गोयमस्स मियापुत्तदसण-पदं २७. तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी --इच्छामि णं भंते ! अहं तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मियापुत्तं दारगं पासित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! २८. तए णं से भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए' समाण हतुटे समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरिय मचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरनो रियं ° सोहेमाणे १. ओ० सू०५२। २. सं० पा०-जायसड्ढे जाव एवं। ३. जाइअंधारूवे (घ)। ४. सं० पा.---दारमस्म जाव आगितिमेत्ते । ५. सं० पा०—मियादेवी जाव पडिजागरमाणी। ६. अणुण्णाते (क)। ७. सं० पा०-अतुरियं जाव सोहेमाणे। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ विवागसुयं सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियग्गामं नयरं मझमझेणं जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ ।। २६. तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुटु' चित्त माणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया प्रासणारी अब्भुटेइ, अब्भुतुत्ता सत्तटुपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो प्रायाहिणपयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणप्पिया ! किमागमणप्पओयण ? । ३०. तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी --अहं णं देवाणुप्पिए ! तव पुत्तं पासि हब्वमागए॥ ३१. तए णं सा मियादेवी मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेइ, करेत्ता भगवनो गोयमस्स पाएसु पाडेइ, पाडत्ता एवं वयासी- एए णं भंते ! मम पुत्ते पासह ।।। ३२. तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी नो खलु देवाणु प्पिए ! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हब्बमागए । तत्थ णं जे से तव जेट्टे पुत्ते मियापुत्ते दारए जाइअंधे जायअंधारूवे, जं णं तुमं रहस्सि यंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरसि, तं णं अहं पासिउं हव्वमागए॥ ३३. तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी–से के णं गोयमा! से तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं' एसमढे मम ताव रहस्सीकए' तुब्भं हव्वमक्खाए, जओ णं तुब्भे जाणह ? ३४. तए णं भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! मम धम्माय रिए समणे भगव' •महावीरे तहारूवे नाणी वा तबस्सी वा, जेणं एसमटे तव ताव रहस्सीकए मम हव्वमक्खाते°, जो णं अहं जाणामि । जावं च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धि एयमटुं संलवइ, तावं च णं मियापुतस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था ।। ३५. तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी -तुब्भे णं भंते ! 'इहं चेव" चिह, जा णं अहं तुब्भं मियापुत्तं दारगं उबदसेमि त्ति कटु जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वत्थपरियट्टय' करेइ, करेत्ता कट्टसगडियं १. स० पा०-हतुदहियया । भगवं जओ णं (क); महावीरे जाव ततेणं २. जेणं तव (क, ख, ग, घ); प्रतिषु एतत् पदं (घ)। लिपिदोषात् समुल्लिखित प्रतिभाति । अग्ने ५. इहच्चेव (क)। तुब्भ इति पाठदर्शनात् । ६. भत्तपाणघरए (घ) । ३. रहस्सकडे (क)। ७. परियट्ट (ब)। ४, सं० पा०-भगवं जाव जनो णं [ख, ग]; ८. कद्रसडि (ग)। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (मियापुत्ते) ७२३ गिण्हइ, गिण्हित्ता विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स भरेइ, भरेत्ता तं कटुसगडियं अणुकड्डमाणी-अणुकड्माणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगव गोयम एवं वयासी -एह ण 'भंते ! तुब्भे मए सद्धि अणुगच्छह, जा णं अहं तुभं मियापुत्त दारगं उवदंसेमि ॥ ३६. तए णं से भगवं गोयमे मिय देवि पिट्ठओ समणुगच्छइ ।। ३७. तए णं सा मियादेवा तं कट्ठसगडियं अणुकड्डमाणी-अणुकड्डमाणी जेणेव भूमिघरए' तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता च उप्पुडण वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोयमं एवं वयासी-तुम्भे वि णं भंते ! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह ।। ३८. तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ ।। ३६. तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेइ । तए णं गंधे निग्गच्छइ, से जहानामए –'अहिमड इ वा गोमडे इ वा सुणहमडे इ वा मज्जारमडे इ वा मणुस्समडे इ वा महिसमडे इ वा मूसगमडे इ वा आसमडे इ वा हत्थिमडे इ वा सीहमडे इ वा वग्घमडे इ वा विगमडे इ वा दीविगमडे इ वा मय-कुहिय-विण-दुरभिवावण्ण-दुब्भिगंधे किमिजालाउलसंसत्ते असुइ-विलीण-विगय-बीभत्सदरिसणिज्जे भवेयारूवे सिया? नो इण? सम? । एत्तो अणिढ़तराए चेव अकंततराए चेव अप्पियत राए चेव प्रमणण्णतराए चेव अमणामतराए चेव गध पण्णत्तं ।।। तए णं से मियापुने दाराए तस्स विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स गंधेणं अभिभए समाणे तंसि विउलंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि मच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसएणं आहारेइ, आहारेत्ता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसेत्ता तो पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य पारिणामेइ, तं पि य णं पूयं च सोणियं च आहारेइ ।। गोयमेण मियापुत्तस्स पुन्वभवपुच्छा-पदं ४१. तए णं भगवओ गोयमस्स तं मियापुत्तं दारगं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिाए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाण दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं 'पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया ४०. १. तुब्भे भंते मम (ख, ग, घ)। २. भूमिधरे (स्व, घ)। ३ चउप्पालेणं (ग)। ४. अहिमडे इ वा सप्पकडेवरे इ वा (व); सं० पा०-अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणिट्र तराए चेव जाव गंधे। ५. x (क, ख, ग)। ६. पावफलविवागं (ग)। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ विवागसुयं वा। पचक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेदिति त्ति कटु मियं देवि पापुच्छइ, आपुच्छित्ता मियाए देवीए गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता मियग्गामं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निगच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खुल अहं तब्भेहि अब्भणण्णाए समाणे मियग्गामं नयरं मझमज्झेणं अणुप्पविसामि, जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा मियादेवी ममं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हवा, तं चेव सव्वं जाव' पूर्य च सोणियं च आहारेइ । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--ग्रहो णं इमे दारए पुरा' •पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे ° विहरई ॥ ४२. से णं भंते ! पुरिसे पुब्बभवे के पासि ? किं नामए वा किं गोते वा ? 'कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा ? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा कि वा समायरित्ता, केसि वा पुरा' •पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे ° विहरइ ? मियापुत्तस्स एक्काइभव-वण्णग-पदं ४३. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे नाम नयरे होत्था - रिथिमियसमिद्धे वण्णो' ।। ४४. तत्थ णं सयदुवारे नयरे धणवई नामं राया होत्था-वण्णो । ४५. तस्स णं सयदुवारस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरथिमे दिसीभाए विजय वद्धमाणे नामं खेडे होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्धे ।। ४६. तस्स णं विजयबद्धमाणस्स खेडस्य पंच गामसयाई प्राभोए यावि होत्था ।। ४७. तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई" नाम रटकूडे होत्था-अहम्मिए" अधम्मा १. वेत्ति (ख); वेयह (घ)। ७. ओ० सू०१। २. वि० १६१६२६-४० । ५. ओ० सू० १४ । ३. सं० पा०-पुरा जाव विहरइ । ६. °वड्ढमाणस्स (क, ख, ग) सर्वत्र । ४. गोए (घ)। १०. एकायि (क, ग)। ५. कयरं गाम (क); कयरं गामं कि कए (ख)। ११. सं० पा०-- अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे । ६. सं० पा०—परा जाव विहरइ । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयण (मियापुत्ते) ७२५ णुए अधम्मिट्ठ अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चैव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुब्वए ° दुप्पडियाणंदे ।। ४८. से णं एक्काई रटकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्डं गामसयाणं 'पाहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्च कारेमाणे पाले माणे" विहरइ।। ४६. तए णं से एक्काई र?कूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई वहूहि करेहि य भरेहि य विद्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि य देज्जेहि य भेज्जेहि य कुतेहि य छपोसेहि य पालीवणेहि य पंथकोहि य प्रोवीलेमाणे ओवीलेमाणे विहम्मेमाणे-विहम्मेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाण तालेमाणे-तालेमाणे निद्धणे करेमाण-करेमाणे विहरइ ।। ५०. तए णं से एक्काई रटूकडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स वहणं राईसर 'तलवर माडबिय-कोडविय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ°-सत्थवाहाण, अण्णेसिं च वहणं गामेल्लगपुरिसाण बहुसु 'कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य गुज्झएसु य निच्छएसु य" ववहारेसु य सुणमाण भणइ 'न सुणेमि,' असुणमाणे भणइ 'सुणेमि,' "पस्समाणे भणइ 'न पासेमि,' अपस्समाणे भणइ ‘पासेमि, भासमाणे भणइ 'न भासेमि ।' अभासमाणे भणइ 'भासेमि,' गिण्हमाणे भणइ 'न गिण्हेमि,' अगिण्हमाणे भगइ 'गिण्हेमि,' जाणमाणे भणइ 'न जाणेमि,' अजाणमाणे भणइ 'जाणेमि' । तए णं से एक्काई रट्ठकूडे एयकम्मे एयप्पहाण एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं 'पावं कम्म" कलिकलुसं समज्जिणमाणे विहरइ ।। ५२. तए णं तस्स एक्काइस्स" र?कूडस्स अण्णया कयाइ सरीरगसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, [त जहा सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले" भगंदले। अरिसा" अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले" अकारए। अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू" उदरे कोढे ॥११॥] १८ १. आहेवच्च जाव पालेमाणे (क, ख, ग)। १०. एगाइयस्स (क, ख, ग, घ) २. वित्तिहि (वृपा)। ११. रोयायंका (क); रोयातका (ख)। ३. पराभएहि (क, ग)। १२. जोणिसूले (ग); 'जोणिसूले' ति अपपाठः ४. देज्जए (क)। 'कुच्छिसूले' इत्यस्यान्यत्र दर्शनात (वृ)। ५. कुत्तेहि (क, घ)। १३. भगंदरे (ख, ग, घ)। ६. सं० पा.-राईसर जाव सत्यवाहाणं । १४. अरसा (ख)। ७. कज्जेसु कारणेसु मंतेसु गुज्झएसु निच्छएसु १५. मुहसूले (क, ग) । (क); ° गुज्झेसु° (घ)। ८. सं० पा०—एवं पस्समाणे भासमाणे गिह १६. कंदू (ख)। माणे जाणमाणे। १७. दओदरे (क)। ६. पावकम्मं (ग)। १८. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांश: प्रतीयते। ५१. तएणत Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ विवागसुर्य ५३. तए णं से एक्काई रटुकडे सोलसहि रोगायकेहि अभिभए समाणे कोडबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एव वयासी-- गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्धोसेमाणा-उग्धोसेमाणा एवं वयह–इहं खलु देवाणुप्पिया ! एक्काइस्स' र?कूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउन्भूया, तं जहा-सासे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया ! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा 'जाणुगो वा जाणुयपुत्तो" वा तेगिच्छियो वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रट्टकूडस्स तेसि सोलसण्हं रोगायंकाण एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रट्टकूडे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ । दोच्चं पि तच्च पि उग्घोसेह, उग्घोसेत्ता एयमा णत्तियं पच्चप्पिणह ।। ५४. तए णं ते कोडं वियपूरिसा जाव' तमाणत्तियं पच्चप्पिणति ।। ५५. तए णं विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्धोसणं सोच्चा निसम्म वहवे वेज्जा य वेज्जपत्ता य जाणया य जाण्यपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियत्ता य सत्थकोसहत्थगया 'सएहि-सएहि गिहेहितो" पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मज्झमझेणं जेणेव एक्काई-रटकूडस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एक्काई-रकूडस्स सरीरगं परामुसंति, परामुसित्ता तेसि रोगायंकाणं निदाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता एक्काई-रटकूडस्स बहूहि अभंगेहि य उव्वट्टणाहि" य सिहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणहि य सेयणेहि" य अवदहणाहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणाहि य बत्थिकम्मेहि य निरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणेहि य पच्छणेहि य सिरबत्थीहि" य तप्पणाहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य बल्ली हि य मूलेहि य कदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य प्रोसहहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामित्तए। (ख)। १. एक्काइयस्स (घ)। ___६. रोगाणं (ख, ग, घ)। २. असो कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । १०. उ. ३. जाणो वा जाणपत्तो (ख, ग, घ)। ११. सेयणाहि (क); सेवणेहि (ख) । ४. उवसमित्तए (क)। १२. अबद्दणाहि (क, ख, ग); अवद्दणेहि (घ)। ५. वि० ११५३ । १३. निरु भेहि (ग); निरुहेहि (७)। ६. सएहितो (क्व)। १४. सिरोबस्थीहि (३)। ७. गेहेहितो (क)। १५. X (ख, ग, घ) ८. एगाती (क)। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (मियापुत्ते) ७२७ ५६. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य ते गिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उबसामित्ताए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।। ५७. तए णं एक्काई रटुकडे वेज्ज-पडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निविण्णोसह भेसज्जे सोलसरोगायंकेहिं अभिभूए समाणे रज्जे य रट्रे य कोसे य कोडागारे य बले य वाहणे य, पुरे य° अंतउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे रज्जं च रटुं च' 'कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च° प्रासाएमाणे पत्थेमाणे पीहेमाणे" अभिलसमाणे अट्टदुहट्टवसट्टे अड्डाइज्जाइं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्को सेणं सागरोवमट्ठिइए सु ने रइएसुनेरइयताए उववणे ।। मियापुत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ५८. से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव मियम्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबवण्णे ।। ५९. तए णं तीसे मियाए देवीए सरीरे वेयणा पाउन्भूया उज्जला' विउला कक्कसा पगाढा चंडा दुक्खा तिव्वा दुरहियासा' जप्पभिई च णं मियापुत्ते दारए मियाए देवीए कुच्छिसि गल्भत्ताए उववणे, तप्पभिई च णं मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया यावि होत्था ।। तए णं तीसे मियाए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियाए जागरमाणीए इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे"-एवं खलु अहं विजयस्स खत्तियस्स पुचि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा धेज्जा वेसासिया अणुमया पासि । जप्पभिई च णं मम इमे गब्भे कुच्छिसि गब्भत्ताए उववण्णे, तप्पभिई च णं अहं विजयस्स खत्तियस्स अणिट्ठा सकता अप्पिया ग्रमणु ण्णा अमणामा जाया यावि होत्था । नेच्छइ णं विजए खत्तिए मम नाम वा गोयं वा गिण्हित्तए, किमंग पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? तं सेयं खलु मम एयं गभं वहूहि गभसाडणाहि य -- --- १. निवट्टोसह ° (क्व)। ७. सं० पा०-उज्जला जाव दुरहियासा। २. सं० पा०---रट्टे य जाव अंतेउरे । ८. जलंता (क, ग, घ)। ३. सं० पा०--रटु च। ६. पुत्तत्ताए (क)। ४. आसयमाणे (क); आसायमाणे (ख, घ)। १०. कुडुबजागरिय (क)। ५. वीहेमाणे (घ)। ११. समुपज्जित्था (घ) । ६. नरएसु (ग)। १२. गिण्हितए वा (क)। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं पाडणाहि य गालणाहि य मारणाहि य साडित्तए वा पाडित्ता वा गालित्तए वा मारित्तए वा-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता बहूणि खाराणि य कडुयाणि य तूवराणि य गब्भसाडणाणि य पाडणाणि य गालणाणि य मारणाणि य खायमाणी य पियमाणी' य इच्छइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा मरइ वा ।। ६१. तए णं सा मियादेवी जाहे नो संचाएइ तं गम्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा ताहे संता तता परितंता प्रकामिया असयंवसा तं गभं दुहंदुहेणं परिवहइ ।। ६२. तस्स णं दारगस्स गभगयस्स चेव अट्ठ नालीग्रो अभितरप्पवहानो, अट्ठ नालीनो बाहिरप्पवहाओ, अट्ठ पूयप्पवहानो, अट्ठ सोणियप्पवहाओ, दुवे दुवे कण्णतरेसु, दुवे दुवे अच्छितरेसु, दुवे दुवे नक्कतरेसु, दुवे दुवे धमणिपतरेसु अभिक्खणं-अभिक्खणं पूर्य च सोणियं च 'परिसवमाणीयो-परिसवमाणोनो' चेव चिट्ठति ।। ६३. तस्स णं दारगस्स गब्भगयस्स चेव अग्गिए नामं वाही पाउन्भूए । जेणं से दारए आहारेइ, से णं खिप्पामेव विद्धसमागच्छई, पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणमइ, तं पि य से पूयं च सोणियं च पाहारेइ ।। १४. ताणं सा मियादेवी अण्णया कयाइ नवण्डं मासाण बहपडियष्णाणं दारगं पयाया जातिअंधे' 'जातिमूए जातिबहिरे जातियंगुले हुंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छो वा नासा व। । केवलं से तेसि अंगोवंगाणं सागिती आगितिमेत्ते ।। ६५. तए गं सा मियादेवो तं दारग हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया अम्मधाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो गच्छह णं देवाणुप्पिया ! तुम एवं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि । ६६. तए णं सा अम्मधाई मियादेवीए तहत्ति एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव विजए खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी –एवं खलु सामी ! मियादेवी नवण्हं मासाणं 'बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया-जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले १. पीयमाणी (ख, ग, घ)। २. गभंतर° (क, ग); अभंतर° (ख)। ३. परिस्सवमाणीमो (क)। ४. X (क, घ)। ६. विद्धसे ति (घ)। ७. सं० पा०-जातिमधे जाव आगितिमेत्ते। ८. सं. पा.-मासाणं जाव प्रागितिमेत्ते । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्मयणं (मियापुत्ते) ७२६ हंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा। केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती° ग्रागितिमेत्ते । तए णं सा मियादेवी तं दारगं हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विगा संजायभया ममं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि। तं संदिसह ण सामी ! तं दारगं अहं एगते उज्झामि उदाहु मा । ६७. तए णं से विजए खत्तिए तोसे अम्मधाईए अंतिए एयभट्ट सोच्चा तहेव संभंते उट्ठाए उद्वेइ, उद्वेत्ता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियं देवि एवं वयासी-देवाणुप्पिए ! तुब्भं 'पढमे गम्भे'! तं जइ णं तुमं एवं एगते उक्कुरुडियाए उज्झसि, तो णं तुब्भं पया नो थिरा भविस्सइ, तो णं तुम एयं दारगं रहस्सियगंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणण पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहराहि, तो णं तुभं पया 'थिरा भविस्सइ ।। ६८. तए णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं रहस्सियंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणणं पडि जागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ ।। ६६. एवं खलु गोयमा ! मियापुत्ते दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्क ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ॥ मियापुत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ७०. मियापत्ते णं भंते ! दारए इनो कालमासे कालं किच्चा कहि गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाइं परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव' जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयडगिरिपाय मूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ सीहे भविस्सइ-अहम्मिए 'बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सुबहुं पावं 'कम्म कलि कलुसं° समज्जिणइ, समज्जिणित्ता कालमासे १. उक्करुडियाए (घ)। २. पढमगम्भे (क, ख, ग); पढम गब्भे (क्व)। ३. नो प्रथिरा भविस्संति (क, ख) ४. सं० पाल-पोराणाणं जाव पच्चणुभव माणे। ५. इहं (क)। ६. पयाहिति (क)। ७. सं. पा.---अहम्मिए। जाव साहस्सिए । सिंहवर्णनत्वात् 'अहम्मिटे अहम्मक्खाई' इत्यादिनि विशेषणानि अन्यत्रोक्तान्यपि इह न घटन्ते। ८. सं० पा-पावं जाव समज्जिणइ । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० विवागसुयं कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिइएसु' •नेरइएसु ने रइयत्ताए° उववज्जिहिइ । से णं तनो अणंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ । तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं तिणि सागरोवम टिइएसु नेरइएसु नेरइत्ताए उववज्जिहिइ । से ण तो अणंतरं उव्वट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहिइ । तत्थ वि कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए सत्त सागरोवम टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ° । से गं तो सीहेसु, तयाणंतरं चोत्थीए, उरगो, पंचमीए, इत्थीग्रो, छट्ठीए, मणुनो, अहेसत्तमाए। तो अणंतरं उव्वट्टित्ता से जाई इमाइं जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छ - कच्छभ-गाह-मगर-संसुमाराईणं अड्डतेरस जाइकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्साइं, तत्थ णं एगमेगसि जोणिविहाणंसि अगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्येव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तमो अणंतर उव्वट्टित्ता चउपएसु उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेसु खयरेसु चरिदिएसु तेइंदिएसु वेइंदिएसु वणप्फइ-कडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ-तेउआउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो' 'उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्ठपुरे नयरे गोणत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे अण्णया कयाइ पढमपाउसंसि गंगाए महानईए खलीणमट्टियं खंणमाणे तडीए' पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइट्ठपुरे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ ।। से णं तत्थ उम्मुक्क बालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते. जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म मुंडे भवित्ता अगारामा अणगारियं पव्वइस्सइ। से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ-इरियासमिए' •भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिद्वावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्त बंभयारी। १. सं० पा०-० दिइएसु जाव उववज्जिहिइ। २. सं. पा० - सागरोवम । ३. सं० पा सागरोवम । ४. पुढवी (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-० खुत्तो । ६. तडीए पडीए (घ)। ७. पुमत्ताए (ख)। ८. सं०पा-उम्मुक्त जाव जोवणग° । ६. रियासमिते (क); सं० पा०-इरियासमिए जाव बंभयारी। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झय गं (मियापुत्त) से णं तत्थ बहुई वासाइं सामग्णपरियागं पाउणित्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कणे देवत्ताए उव्ववज्जिहिइ । से णं तो अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाई कुलाइं भवंति–अड्डाई अपरिभूयाई तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति । जहा दढपइण्णे' जाव' सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ७१. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते । --त्ति बेमि ।। १. पू०-ओ० सू० १४१ । __३. ओ० सू० १४२-१५४ । २, दढपइन्ने सच्चेव वत्तव्वया कलाओ ४. ना० १११७ । जाव ( क, ख, ग, घ) Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं उज्झियए उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स' समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं ___ कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्धे । ३. तस्स णं वाणियगामस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए दूइपलासे नाम उज्जाणे होत्था॥ ४. तत्थ णं दूइपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था ।। ५. तत्थ णं वाणियगामे नयरे मित्त नाम राया होत्था-वण्णयो । ६. तस्स णं मित्तस्स रण्णो सिरी नामं देवी होत्था-वण्णओ ।। ७. तत्थ णं वाणियगामे कामज्भया नामं गणिया होत्था-अहीण- पडिपुण्ण पंचिदियसरीरा लक्खण-वंजण-गणोववेया माणम्माण-प्पमाण-पडिपूण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार-कंत-पिय-दसणा सुरूवा वावत्तरिकलापडिया १. ना० १११ २. अज्झयणस्स दुहविवागाणं (ख, ग, घ) ३. वाणियग्गामे (ख, ग, घ)। ४. पू०-ओ० सू०१। ५. X (ख, घ)। ६. ओ० सू० १४॥ ७. ओ० सू० १५ ८. सं० पा०--अहीण जाव सुरूवा। . च उसट्ठीकलापडिया (ना० ११३८); 'बावत्तरीकलापंडिय'त्ति लेखाद्या शकूनिरुतपर्यन्ता गणितप्रधानाः कलाःप्रायः पुरुषाणामेव अभ्यासयोग्याः । स्त्रीणां तु विज्ञेया एव प्रायः (व)। ७३२ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (उज्झियए) ७३३ च उसट्ठिगणियागुणोववेया एगणतीसविसेसे रममाणी एक्कवीस रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिकोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा गीयरइगंधव्वणट्टकसला संगय-गया- भणिय हसिय-विहियविलास-सललिय-संलाव-निउणजत्तोवयारकसला संदरथण- जहण-व्यण-करचरण-नयण-लावष्ण-विलासकलिया' असियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्तचामर-वालवीयणीया कण्णी रहप्पयाया यावि होत्था । बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारे माणी पालेमाणी विहरइ ।। ८. तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नाम सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे ।। ६. तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नाम भारिया होत्था ॥ १०. तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभट्टाए भारियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था-अहीण - पडिपुण्ण-पंचिदिय-सरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माण प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे • सुरूवे !! ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। राया निग्गो, जहा कूणिो निग्गयो । धम्मो कहियो। परिसा पडिगया राया य गो॥ गोयमेण उज्झिययस्स पुटवभवपुच्छा-पदं १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नामंणगारे गोयमगोत्तेणं जाव संखित्तविउलतेयलेसे छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १३. तए णं भगवं गोयमे छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतरियमचवलमसंभते मूहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता १. सं० पा०-संगयगय; पू० --ना० ११३८ ६. सं० पा०-अहीण जाव सरुवे। पादटिप्पणमपि । ७. समोसरिए (क); समोसरणं (ग)। २. सं० पा०-सुंदरथण ° । ८. ओ० सू० ५-६६ । ३. सं० पा०-आहेबच्चं जाव विहरइ । ६. ओ० सू० ८२। ४. पृ०---ओ० मू० १४१ । १०. सं० पा०-छटुंछट्टेणं जहा पण्णत्तीए पढम ५. होत्था । अहीण (घ)। जाव जेणेव । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ विवागसु नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अम्भणुण्णाए समाणे छक्मणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्च-नीय मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रत्तिए । हासुहं देवापिया ! मा पडिबंधं ॥ १४. तएण भगवं गोयमे समणेण भगवया महावीरेण ग्रब्भणुष्णाए समाणे समणस्स भगवन महावीरस्स प्रतियाम्रो दुइपलासाश्रो उज्जाणाम्रो पडिनिक्खमइ, पडनिमित्ता तुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरोरियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-तीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए माणे जेणेव रायमग्गे तेणेव प्रगाढे । तत्थ बहवे हत्यो पासइ - - सण्णद्ध - बद्धवम्मिय-गुडिए उप्पीलियकच्छे उद्दामियघंटे नाणामणिरयण - विविह-गवेज्जउत्तरकचुइज्जे पडिकप्पिए भयपडागवरपंचामेल-आरूढहत्था रोहे गहियाउहप्पहरणे | अण्णेय तत्थ बहवे आसे पासइ - सण्णद्ध - बद्धवम्मिय-गुडिए ग्राविद्धगुडे ओसारियपक्खरे उत्तरकंचुइय-प्रोचूलामुहचंडाघर' चामर थासग परिमंडियकडीए आरूढप्रसारोहे गहियाउहप्पहरणे | प्रणेय तत्थ बहवे पुरिसे पासइ सण्णद्ध - बद्धवम्मियकवए उप्पी लियस रासणपट्टीए पिवेज्जे विमलवरवद्ध - चिधपट्टे गहियाउहप्पहरणे | तेसि च णं पुरिसाणं मज्झगयं एवं पुरिसं पासइ अवप्रोडयबंधणं उक्त्ति - कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्भ - करकडि जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वज्झषाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमसाई खावियंत पावं खक्खरसएहिं हम्ममाणं अणेगनर-नारी- संपरिवुडं चच्चरेचच्चरे खंडपडहएणं उग्घोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ' - नो खलु देवाणुप्पिया ! उज्भियगस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणी से सयाई कम्माई अवरज्भंति ॥ १५. तए णं भगवओो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता प्रयमेयारूवे ग्रज्झथिए चितिए पिए पत्थि मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अहो णं इमे पुरिसे' पुरा पोराणाणं दुच्चिरणाणं दुष्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं O १. चूला ० ( ख ) | २. विद्धि (क, ख, ग ) ! ३. उक्खत्त (क, ख, ग ); उक्त्त (घ ) | ४. बद्ध (क, ख ) 1 ० ५. कक्खरग° (क, ग ) ; कक्कर (ख, घ) 1 ६. पडिसणे ( क्व ) | ७. केयी (क, घ ) । ८. सं० पा० - पुरिसे जाव निरयपडिरूविय । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati अभयण (अभियए) ७३५ पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरड । न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा । पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिम-कुलाई अडमाणे महापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिन्हित्ता वाणियगामे नयरे मज्झमज्भेण पडिनिक्खमइ, अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरस्रो रियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव दूइपलासए उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवो महावीरस्स दूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं ग्रालोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं व्यासो - एवं खलु ग्रहं भंते ! तुब्भेहि भगुणाए समाणे वाणियगामे नयरे जाव' तहेव सव्वं निवेएइ' || १६. से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के आसि ? कि नामए वा किं गोते वा ? कयरसि गामंसि वा नयरंसि वा ? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किंवा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्पडिक्कताणं सुभा पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? उभययस्स गोत्तासभव-वण्णग-पदं १७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे' वासे हत्थणाउरे नाम नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ १८. तत्थ णं हत्यिणाउरे नयरे सुनंदे नामं राया होत्या -- मह्याहिमवंत-महंत मलयमंदर-महिंदसारे ॥ १६. तत्थ णं हत्यिणाउरे नयरे बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे गोमंडवे होत्था - अगखं भयसंनिविट्टे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे परूिवे || २०. तत्थ णं बहवे नगरगोरूवा सणाहा य प्रणाहा य 'नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डिया य नगरवसभा य" पउरतण पाणिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेण परिवसति ॥ २१. तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे भीमे नाम कूडग्गाहे होत्या -- प्रहम्मिए जाव" दुपडियाणंदे || १. स० पा०-- मज्ममज्भेणं जाव पडिदंसेइ । २. वि० १।२।१३-१५ ३. वे एइ (क, ख, ग ) ४. सं० पा०---आसि जाव पच्चणुभवमाणे । ५. पू० - वि० ११११४३ । ६. भरहे ( क ) 1 ७. पृ० - ओ० सू० १ । ८. पू० ओ० सू० १४ । ६. नगरवला य नगरपडियाओ य महिसिओ य य वभाण ( ग ) । १०. वि० २।१।४७ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३६ विवागसुयं २२. तस्स णं भीमम्स कूडग्गाहस्स उप्पला नाम भारिया होत्था-अहीण-पडिपुण्ण पंचिदियसरीरा॥ २३. तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णदा कयाइ प्रावण्णसत्ता जाया यावि होत्था॥ २४. तए णं तीसे उप्पलाए कडरमाहिणीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोडले पाउभार .. धण्णायो णं ताओ अम्मयानो, संपण्णायो णं तानो ग्रम्मयाग्रो, कयत्थानो णं तानो अम्मयाग्रो, कयपण्णाम्रो णं तापो अम्मयानो, कयलक्खणानो णं तायो अम्मयानो, कयविहवानो णं तारो अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि गाणुस्सए जम्मजोवियफले °, जाओ णं बहूणं नगरगोरूवाणं सणाहाण य प्रणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य काणेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य प्रोटेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणीग्रो वीसाएमाणीग्रो परिभाएमाणीयो परिभंजेमाणीयो दोहलं विणेति । तं जइ णं अहमवि बहूर्ण नगर गोरूवाणं सणाहाण य प्रणाहाण य नगरगावियाण य नगरवलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य बहेहि य कणेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य प्रोटेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधु च पसणं च प्रासाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं • विणिज्जामि त्ति कटु तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा अोलुग्गा अोलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा' पंडुल्लइयमुही" प्रोमंथिय-नयणवदणकमला जहोइयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकाराहारं अपरि जमाणी करयलमलियव्व कमलमाला प्रोहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया ° झियाइ ।। १. पू०--वि० १२१७ 1 ८. सिधु (ख)। २. सं० पा० - अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ। ६. सं० पा०-नगर जाव विणिज्जामि । ३. सं० पा० -- सगाहाण य जाव वसभाण । १०. दीणविभणहीणा (व); दीपविमणवयणा ४. कक्कुहेहि (क)। (वृपा)। ५. सोल्लिाहि (वृ)। ११. ° मुहा (घ)। ६. भज्जेहि (ग)। १२. सं० पा०-प्रोहय जाब झियाइ। ७. लावणिएहि (क, ग)। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (उज्झियए) ७३७ २५. इमं च णं भीमे कूडग्गाहे जेणेव उप्पला कूडग्गाहिणी' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता [उप्पलं कडग्गाहिणि ? ] अोहय मणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्माणोवगयं भूमिगयदिट्ठीयं झियायमाणि ° पासइ, पासित्ता एवं वयासीकिं णं तुमं देवाणुप्पिए ! प्रोहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिबीया • झियासि ? तए णं सा उप्पला भारिया भीमं कूडग्गाहं एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! ममं तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउन्भए-धण्णानो णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णानो णं तारो अम्मयानो, कयत्थानो णं तारो अम्मयानो,कयपुण्णाश्रो णं तानो अम्मयानो, कयलक्खणाप्रो णं तानो अम्मयानो, कयविहवाश्रो गं तारो अम्मयानो, सुलद्धे णं तासि माणुस्सए जम्मजीवियफले, जानो णं बहूणं" 'नगरगोरूवाणं सणाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड़ियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कण्णेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य प्रोटेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य° लावणेहि य सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणीयो वीसाएमाणीयो परिभाएमाणीनो परिभुजेमाणीयो दोहलं विणेति । तए णं अहं देवाणुप्पिया ! तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि" 'सुक्का भुक्खा निम्मंसा प्रोलुग्गा अोलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पंडुल्लइयमुही ओमंथिय-नयणवदणकमला जहोइयं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकाराहारं अपरिभुंजमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियामि ।। २७. तए णं से भीमे कूडग्गाहे उप्पलं भारियं एवं वयासी---मा णं तुमं देवाणप्पिया! अोहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया' झियाहि । अहं ण तहा करिस्सामि जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ-- ताहि इट्ठाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहि समासासेइ ।। २८. तए णं से भीमे कूडग्गाहे अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए' सण्णद्ध"-'बद्धवम्मिय कवए उप्पीलियस रासणपट्टीए पिणद्ध गेवेज्जे विमलवरवद्ध-चिंधपट्टे गहिया १. कूडग्गाही (क, ख)। ६. सं० पा०-ओहय । २. सं० पा०-ओहय जाव पासइ। ७. करीहामि (क)। ३. सं० पा.-ओहय जाव झियासि । ८. अड्ढ (क, ग)। ४. सं० पा०-बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव ६. अव्वितीए (ग)। __ लावणेहि। १०. सं० पासण्णद्ध जाब पहरणे । ५. सं०पा०-अविणिज्जमाणंसि जाव झियामि। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ विवागसुयं उह पहरणे सानो गिहारो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता 'हत्थिणाउरं नयरं" मज्झमझणं जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागए बहूर्ण नगरगोरूवाणं'सणाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगर - वसभाण य - अप्पेगइयाणं ऊहे छिदइ', 'अप्पेगइयाणं थणे छिदइ, अप्पेगइयाणं वसणे छिदइ, अप्पेगइयाणं छप्पा छिदइ, अप्पेगइयाणं ककहे छिदइ, अप्पेगइयाणं वहे छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णे छिदइ, अप्पेगइयाणं नासा छिदइ, अप्पेगइयाणं जिब्भा छिदइ, अप्पेगइयाणं प्रोटे छिदइ°, अप्पेगइयाण कंबलए छिदइ, अप्पेगइयाणं अण्णमण्णाई अगोवंगाई वियंगेइ', वियंगेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उप्पलाए कूडग्गाहिणीए उवणेइ ।। २६. तए णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहूहिं गोमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसपणं च प्रासाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी तं दोहलं विणेइ । ३०. तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला विच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।। ३१. तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया ।। ३२. तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया [चिच्ची ?] सद्देणं' विघटे विस्सरे ग्रारसिए॥ ३३. तए णं तस्स दारगस्स पारसियसई सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा' सणाहा य प्रणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियाओ य नगर वसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सब्वनो समंता विपलाइत्था । ३४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्जं करेंति -- जम्हा गं अम्ह इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया चिच्चीसद्देण विधुढे विस्सरे प्रारसिए, तए णं एयस्स" दारगस्स प्रारसियसई सोच्चा निसम्म हस्थिणाउरे १. हस्थियाउरे नयरे (क्व)। ७. बुद्धे (ख); विदुट्टे (ग) २. सं. पा०-नगरगोरूवाण जाव धसभाण। ८. वीसरेणं (ख); चिच्चीसरे (ग); विसरे ३. सं० पा--छिदइ जाव अप्पेगइयाणं । ४. विगत्तेत्ति (क) ६. मं० पा०-नगरगोरूवा जाव वसभा । ५. वोच्छिन्त (ख, घ) । १०. विप्प लाइत्था (क, घ) । ६. ३४ सूत्रे पुनरावर्तने 'चिच्चीसद्देणं' इति ११. तस्स (क)। पदमस्ति । तदत्र कथं न स्यात? Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अभयणं (उज्झियए) नयरे बह्वे नगरगोरूवा' 'सणाहा य अणाहा य नगरगावीश्रो य नगरबलीवद्दा य नगरपडिया य नगरवसभा य० भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्व समंता विपलाइत्था, तम्हा णं होउ अम्हं दारए गोत्तासे नामेगं ॥ ३५. तए गं से गोत्तासे दारए उम्मुक्कबालभावे जाए यावि होत्था || ३६. तए गं से भी कूडगाहे प्रण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते || ३७. तए ण से गोत्तासे दारए बहूणं मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे भीमस्स कूडग्गाहस्स नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयमय किच्चाई करेइ ॥ ३८. तए णं से सुनंदे राया गोत्तासं दारयं अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहत्ताए ठवेइ ॥ ३६. तए गं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे जाए यावि होत्था -- श्रहम्मिए जाव' दुपडियादे || ४०. तए ण से गोत्तासे' कूडग्गाहे' कल्ला कल्लि अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अवीए सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए जाव गहियाउहप्पहरणे साओ गिहाम्रो 'निज्जाइ, निज्जाइत्ता" जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता बहूणं नगरगोरूवा सणहाण य अणाहाण य जाव' वियंगेइ, वियंगेत्ता जेणेव सए गेहे तेव उवागए ॥ ४१. तए गं से गोतासे कूडग्गाहे तेहि बहूहि गोमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि परिहि लावणेहि यसुरं च महुं च मेरगं च जाई च सोधुं च पसण्णं च श्रसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ || ४२. तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे एकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता पंचवाससयाई परमाउं पालइत्ता दुहट्टोव गए' कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसं तिसागरोवमठिइएस नेरइएसु इयत्ताए उबवण्णे ।। उज्झ्यियस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ४३. तए गं सा विजयमित्तस्स सत्यवाहस्स सुभद्दा नामं भारिया जायनद्या यावि होत्था - जाया जाया दारगा विणिहाय मावज्जति ॥ १. सं० पा० - नगरगोरूवा भीया । २. वि० १।१/४७ । ३. गोतामे दारए (क, ख, ग, घ ) । ४. ४ ( क ) । ५. वि० १२ १४ १ ६. निग्गच्छइ २ (घ) । ७३६ ७. वि० ११२१२८ । ८. (घ) ६. निहुवा (क, घ); निड्डुया (ग); यत्प्रसूतिका निदु: ( श्रभिधान चिन्तामणि ३११६३)। १०. तस्याः इति गम्यम् (वृ) | Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० विवागसुयं ४४. तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोच्चाए पुढवीए अणंतरं उध्वट्टित्ता इहेव वाणिय गामे नयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ ४५. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया ! ४६. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगते उक्कुरुडियाए' उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चं पि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अणुपुट्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेइ॥ ४७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं' च चंदसूरदसणं' च जागरियं च महया इड्डीसक्कारसमुदएणं करेंति ॥ ४८. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते बारसाहे अयमेयारूव गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति—जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झिए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं ॥ ४६. तए णं से उज्झियए दारए पंचधाईपरिग्गहिए, [तं जहा-खीरधाईए मज्जण धाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंकधाईए] जहा दढपइण्णे जाव निव्वाय निव्वाघाय-गिरिकंदरमल्लीणे व्व चंपगपायवे सहसहेण विहारह। ५०. तए णं से विजयमित्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्ज च-चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेण उवागए। ५१. तए णं से विजय मित्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तोए निब्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मुणा संजुत्ते ।। ५२. तए णं तं विजयमित्तं सत्थवाहं जे जहा बहवे ईसर-तलवर-माउंबिय-कोडुबिय इब्भ-सेट्ठि-सत्थवाहा लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुडुभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेति, ते तहा हत्थनिक्लेवं च बाहिरभंडसारं च गहाय एगतं अवक्कमंति ।। ५३. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही विजयमित्तं सत्यवाहं लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुड्डभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेइ, सुणेत्ता महया पइसोएणं अप्फुण्णा १. उक्करुडियाए (ग)। २. संवड्ढेमाणीति (क)। ३. ठियपडिय (क); ठियपडिकम्मं (घ) । ४. चंदसूरपासणियं (वृ)। ५. इमेयारूवं (घ): ६. असो कोष्ठकवर्ती पाठ: व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. ओ० सू० १४४, वाचनान्तर पृ० १५१, १५२। ८. भंडगं (घ)। ६. लवणसमुद्दे पोय ° (क, ख, ग, घ)। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४१ बोयं अज्झयणं (उज्झियए) समाणी परसुनियत्ता इव' चंपगलया धस त्ति धरणीयलंसि सव्वंगेहि सन्निडिया ॥ ५४. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही मुहत्तंतरेणं आसत्था समाणी बहूहि मित्त'- नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणेहिं सद्धि ° परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलव माणी विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स लोइयाई मयकिच्चाई करेइ।। ५५. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्थविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचितेमाणी-अणुचितेमाणी कालधम्मुणा संजुत्ता। ५६. तए णं ते नगरगुत्तिया सुभई सत्थवाहि कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं सानो गिहाओ निच्छुभेति, निच्छुभेत्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति ॥ ५७. तए णं से उझियए दारए सानो गिहाम्रो निच्छूढे समाणे वाणियगामे नगरे सिंघाडग' - 'तिग - चउक्क - चच्चर - च उम्मुह-महापह° पहेसु जूयखलएसु वेसघरएसु" पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्डइ ॥ ५८. तए णं से उज्झियए दारए अणोहट्टए' अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी 'चोर-जूय"-वेस-दारप्पसंगी जाए यावि होत्था ॥ ५६. तए णं से उज्झियए अण्णया कयाइ कामज्झयाए गणियाए सद्धि संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामझयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भंजमाणे विहरइ ॥ ६०. तए णं तस्स मित्तस्स रपणो अपणया कयाइ सिरीए देवीए जोणिसूले पाउन्भए यावि होत्था, नो संचाएइ मित्ते राया सिरीए देवीए सद्धि उरालाई माणस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए॥ ६१. तए णं से मित्त राया अण्णया कयाइ 'उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहारो निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता कामज्झयं गणियं अभितरिय ठवेइ ठवेत्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाइं भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ॥ ६२. तए णं से उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहारो निच्छुभेमाणे" १. विव (क्व)। २. सं० पा०-मित्त जाव परिवुडा । ३. सं० पा०---सिंघाडग जाब पहेसु । ४. जूयखंधएसु (क)। ५. वेसियाघरएसु (घ)। ६. अणोहट्टिए (क, ख)। ७. बत्ती'चोर-जूय' इति पदे व्याख्याते नरूस्तः। ८. उज्झियदारए (क, घ); अत्र विभक्ति व्यत्ययो दृश्यते, अन्यथा व्याकरणदृष्ट्या 'उज्झिययं दारयं' इति पाठो युक्तः स्यात् । ६. अभितरयं (ख, घ)। १०. निच्छुभमाणे समाणे (क); निच्छुभे समाणे (घ)। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ विवागसुयं कामज्झयाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थइ सुई च रइं च धिइं च अविदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदझवसाणे तदह्रोव उत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए कामज्झयाए गणियाए वहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ ।। ६३. तए णं से उज्झियए दारए अण्णया कयाइ 'कामज्झयाए गणियाए'' अंतर' लभेइ, लभेत्ता कामज्झयाए गणियाए गिहं रहसियं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता काम ज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ ।। ६४. इमं च णं मित्ते राया पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सवाल कारविभूसिए मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते जेणेव कामझयाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ ण 'उज्झिय गं दारगं" कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणं' पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते स्ट्रे कूविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलि भिउडि निडाले साहट उझियगं दारगं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अट्ठि-मुट्ठि-जाणु-कोप्परपहारसंभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवप्रोडग-बंधणं करेइ, करेत्ता एएणं विहाणेणं वज्झं प्राणवेइ ।। ६५. एवं खलु गोयमा ! उज्झियए दारए पुरा' •पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्क ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ उज्झिययस्स प्रागामिभव-वण्णग-पदं ६६. उज्झियए णं भंते ! दारए इनो कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ? गोयमा ! उज्झियए दारए पणुवीसं' वासाई परमाउं पाल इत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूल भिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए ने रइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ ।! ६७. से णं तो अणतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयङगिरिपायमूले वाणरकुलं सि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ ।। ६८. से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे १. कामझियागणियं (घ)। २. अंतराणि (ख) । ३. उज्झियए दारए (क, ख, ग, घ)। ४. विहरमाणं (क, ख, ग)। ५. भग्ग (क)। ६. सं० पा०--पुरा जाव विहरइ । ७. पणवीस (ग)। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्भय णं (उझियए) जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ । तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे' कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नयरे गणिया कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ ।। ६६. तए णं तं दारयं अम्मापियरो जायमेत्तकं वद्धेहिति', नपुंसगकम्म सिक्खावेहिति ।। ७०. तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्ज करेहिति-होउ णं अम्हं इमे दारए पियसेणे नामं नपुंसए । ७१. तए णं से पियसेणे नपुंसए उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणमेत्ते जोव्वणगमणु प्पत्ते रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठ उक्किटुसरीरे भविस्सइ ।। ७२. तए णं से पियसेणे नपुंसए इंदपुरे नयरे बहवे राईसर- तलवर-माइंबिय कोडुबिय-इब्भ-से ट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह पभियग्रो वहूहि य विज्जापओगेहि य मंतपनोगेहि य चुण्णपनोगेहि य हिय उड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभियोगिएहिं आभियोगित्ता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरिस्सइ ।। तए णं से पियसेणे नपुंसए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबह पावकम्म समज्जिणित्ता एक्कवीस याससय परमाउ पाल इत्ता कालमासे काले किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पढवीए नेरइएस नेरइयत्ताए उववज्जिविड । ततो सिरीसिवेसु, संसारो तहेव जहा पढमे जाव' 'वाउ-तेउ-आउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्तातत्थेवभुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । ' से गं तो अणतरं उध्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए महिसत्ताए पच्चायाहिइ।। से ण तत्थ अण्णया कयाइ गोहिल्लएहि जीवियानो ववरोविए समाणे तत्थेव चंपाए नयरीए सेट्ठिकुलसि पुत्तत्ताए' पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कवालभावे तहारूवाणं थेराणं अतिए केवलं बोहि बुज्झिहिइ, अणगारे भविस्सइ, सोहम्मे कप्पे, जहा पढमे जाव' अंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ७४. “एवं खलू जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं बिइयस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते। -त्ति बेमि ॥ १. एयसमुदाचारे (वृ)। २. पुमत्ताए (क, ग)। ३. वड्ढेहिति (क)। ४. सं० पा०-राईसर जाव पभियओ। ५. वि० ११११७०, सं० पा०-~-जाव पुढवी । ६. पुमत्ताए (क, ग)। ७. वि० १११७०। ८. सं० पा-निखेवो। है. ना० ११७ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं प्रभग्गसेणे उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समजेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमटे पण्णत्ते, तच्चस्स गं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू ! तेणं ___ कालेणं तेणं समएणं पुरिमताले नाम नयरे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धे । ३. तस्स णं पुरिमतालस्स नय ररस उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं अमोहदंसी उज्जाणे ॥ ४. तत्थ णं अमोहदंसिस्स जक्खस्स प्राययणे होत्था । ५. तत्थ णं पुरिमताले नयरे महब्बले नाम राया होत्था ॥ ६. तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभाए देसप्पते अडवि-संसिया, एत्थ णं सालाडवी नामं चोरपल्ली होत्था-विसमगिरिकंदर-कोलंब-संनिविट्ठा वंसीकलंक-पागारपरिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा अभितरपाणीया सुदुल्लभजलपेरंता अणेगखंडी विदियजणदिन्न-निग्गमप्पवेसा सुबहुस्स' वि कुवियजणस्स दुप्पहंसा यावि होत्था ॥ ७. तत्थ णं सालाडवीए चोरपल्लीए विजए नाम चोरसेणावई परिवसइ-अहम्मिए" अहम्मिट्रे अहम्मक्खाई प्रधम्माणुए अधम्मपलोइ अधम्मपलज्जणं अधम्मसीलसमूदायारे अधम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ-हण-छिद-भिंद-वियत्तए । १. सं० पा०तच्चस्स उक्खेवो। २. ना० १२१७। ३. पू०-ओ० सू० १। ४. सुबहुयस्स (क)। ५. सं० पा०—अहम्मिए जाव लोहियपाणी। ७४४ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयणं (अभग्गसेणें ) ७४५ लोहियपाणी बहुनयरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारे साहसिए सद्दवेही असि - लट्ठिपढममल्ले । से णं तत्थ सालाडवीए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरस्याणं ग्राहेवच्च' "पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं प्राणा- ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ॥ D ८. तए णं से विजए चोरसेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण' य खंडपट्टाण' य, अण्णेसि च बहूणं छिण्ण- भिष्ण बाहिराहिया कुडगे यावि होत्था || ६. तए णं से विजए चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमिल्लं जणवयं बहूहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोग्गहणेहि य बंदिग्रहणेहि यपथको हि य 'ओवीलेमाणे- प्रोवीलेमाणे" "विहम्मेमाणे विहम्मेमाणे " तज्जेमाणे तज्जेमाणे तालेमाणे- तालेमाणे नित्थाणे निद्धणे निक्कणे" करेमाणे विहरइ, महम्बलस्स रण्णो अभिक्खणं अभिक्खणं कप्पायं गेहइ || त् १०. तस्स गं विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरी नामं भारिया होत्था - श्रहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा ॥ ११ तस्स णं विजयस्स चोरसेणावइस्स पुत्ते खंदसिरीए भारियाए अत्तए अभग्गसेणे नामं दारए होत्या - ग्रहीणपडिपुण्ण- पंचिदियसरीरे ॥ १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमताले नयरे समोसढे । परिसा निम्गया । राया निग्रगो । धम्मो कहियो । परिसा राया य गयो || गोयमेण अभग्गणस्स पुग्वभवपुच्छा-पर्द १३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी गोयमे जाव" 'रायमग्गंसि श्रगाढे, तत्थ णं बहवे हत्थी पासइ", ग्रण्णे य तत्थ बहवे से पास", अण्णेय तत्थ बहवे पुरिसे पासइ सण्णद्ध - बद्धवम्मियकवए" । तेसिं व" पुरिसार्ण मज्भमयं एवं पुरिसं पासइ - प्रवओोडय" बंधणं उक्त्ति कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झकर कडि - जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडिय १. सं० पा० - आहेवच्चं जाव विहरइ । २. गठियाण (क, ख, ग, घ ) 1 ३. संधिच्छेयाण (क, ख, ग, घ ) । पहारेहिय विद्वंसेमाणे २ (घ) 1 ७. X ( क, वृ) 1 ८. पू०--प्रो० सू० १५ ६. पू० - वि० ११२ १० ४. खंडवाडिया (वृपा ) 1 ५. उवीलेमाणे २ (घ, वृ ) । ६. विद्धसेमाणे २ अत्थापहारेहिं (ख); अत्था- १२, १३, १४, पू० वि० १ २ १४ । १५. X ( क, ख, ग, घ ) 1 १६. सं०पा० – अवओडय जाव उग्घोसिज्जमाणं । १०. वि० १२ १२-१४ । ११. रायमग्गं समवगाढे (ख, घ); रायमगं समोसले (ग) 1 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ विवागसुयं गातं चण्णयं वज्झपाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमसाई खावियंतं पावं खक्ख रसएहिं हम्ममाणं अणेगनर-नारी-संपरिवुडं चच्चरे-चच्चरे खंडपडहएणं • उरघोसिज्जमाणं [इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ- नो खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माइं अवरज्झति' ?] 1 १४. तए णं तं परिसं रायपरिसा पढमंसि चच्चरंसि निसियावेंति, निसियावेत्ता अट चुलप्पिउए अग्गयो घाएंति, घाएत्ता कसप्पहारेहिं 'तासेमाणा-तासेमाणा" कलुणं काकणिमसाई खावेंति, रुहिरपाणं च पाएंति। तयाणंतरं च णं दोच्चंसि चच्चरंसि अट्ठ चुल्लमाउयाओ अग्गो घाएंति, 'घाएत्ता कसप्पहारेहि तासेमाणा-तासेमाणा कलुणं काकणिमंसाइं खाति, रुहिरपाणं च पाएंति । एवं तच्चे चच्चरे अट्ठ महापिए, चउत्थे अट्ठ महामाउयानो, पंचमे पुत्ते, छठे सुण्हायो, सत्तमे जामाउया, अट्ठमे धूयायो, नवमे नत्तुया, दसमे नत्तईओ, एक्कारसमे नत्तुयावई, बारसमे नत्तुइणीप्रो, तेरसमे पिउस्सियपइया, चोइसमे पिउस्सियानो, पण्णरसमे माउस्सियापइया, सोलसमे माउस्सियाओ, सत्तरसमे मामियाओ, अट्ठारसमे अवसेस [स्स ? ] * मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं [स्स ? | अग्गा घाएंति, धाएत्ता कसप्पहारेह तासेमाणा-तासेमाणा कलुणं काकणिमसाइं खाति, रुहिरपाणं च पाएंति ॥ १५. तए ण 'भगवनो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता" अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ । न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कटु पुरिमताले नयरे उच्चनीय-मज्झिम-कुलाई अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झमझेणं पडिनिक्खमइ जाव' समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं भंते ! "तुब्भेहिं अभणुषणाए समाणे पुरिमताले नयरे जाव' तहेव सव्वं निवेएइ ।। १. द्रष्टव्यम् -वि० ११२।१४ सूत्रम् । सारेण अयं पाठो लिखितः । २. तालेमाणा २ (घ)। ६. सं० पा०-समुप्पण्णे जाव तहेब निगए। ३. सं० पा.---धाएंति २।। ७. वि० १।२।१५। ४. पूर्वक्रमेण अत्रापि षष्ठी विभक्तियुज्यते। ५. सं० पा.-तं चेव जाव से णं । ५. से भगवं गोयमे तं पुरिसं पासइ। (क, ख, ६. वि० १।३।१३-१५ । ग, घ)! ११११४१ तथा १।२।१५ सूत्रानु Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (अभग्गसेणे) १६. से गं भंते ! पुरिसे पुश्वभवे के पासी' ? किं नामए वा किं गोते वा ? कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा ? कि वा दच्चा कि वा भोच्चा किंवा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसे सं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? अभग्गसेणस्स निन्नयभव-वण्णग-पदं १७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पुरिमताले नाम नयरे होत्था-रिद्धथिमियसमिद्धे ।। १८. लत्थ णं पुरिमताले नयरे उदिलोदिए नामं राया होत्था - महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे ।। १६. तत्थ णं पुरिमताले निन्नए नामं अंडयवाणियए होत्था--अडढे जाव' अपरि. भूए, अहम्मिए अधम्माणुए अधम्मि? अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुव्वए ° दुप्पडियाणंदे ॥ २०. तस्स णं निन्नयस्स अंडय-वाणियस्स बहवे परिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्ला कल्लि कुद्दालियाओ य पत्थियपिडए" य गिण्हंति, गिण्हित्ता पुरिमतालस्स नयरस्स परिपेरंतेसु बढे काइअंडए य धूइअंडए य पारेवइअंडए य टिट्टिभिअंडए य वगिअंडए य मयूरिअंडए य कुक्कुडिअंडए य, अण्ण सिं च बहूणं जलयरथलयर-खयरमाईणं अंडाई गेहंति, गेण्हित्ता पत्थियपिडगाइं भरेंति, भरेत्ता जेणेव निन्नए अंडवाणियए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता निन्नयस्स अंडवाणियस्स उवणेति ।। २१. तए णं तस्स निन्नयस्स अंडवाणियगस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे काइअंडए य जाव कक्कडिग्रंडए य.अण्णेसिं च बहणं जलयर-थलयरखहय रमाईणं अंडए तवएसु य कवल्लीसु य कंडुसुय भज्जणएसु य इंगालेसु य तलेंति भज्जेंति सोल्लेति, तलेत्ता भज्जेत्ता सोल्लेत्ता य रायमग्गे अंतरावणंसि अंडयपणिएणं वित्ति कप्पेमाणा विहरंति । अप्पणा वि णं से निन्नयए अंडवाणियए तेहिं बहूहि काइअंडएहि य जाव कुक्कुडिग्रंडएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं १. सं० पा०-~आसी जाव विहरइ। २. अंड (क, ग)1 ३. ओ० सू० १४१। ४. सं० पा० --अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। ५. पत्थियापडिए (क, ख, ग, घ)। ६. अंडयाई (क)। ७. वि० ११३।२०। ८. अंडयाई (क)। १. कंदुसु (क); कंदूएसु (ग)। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ विवागसुयं च जाइं च सीधुं च पसणं च प्रासाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजे माणे विहरइ ॥ २२. तए णं से निन्नए अंडवाणियए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्म समज्जिणित्ता एगं वाससहस्सं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं' सत्तसागरोवमठिइएसु नरएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ।। प्रभग्गसेणस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोर सेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ २४. तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अण्णया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउन्भूए-धण्णाप्रो णं तारो अम्मयानो' 'जागो ण बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं, अण्णाहि य चोरमहिलाहि सद्धि संपरिवुडा बहाया 'कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल °-पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महं च मेरगं च जाइंच सीधं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था' सण्णद्ध-बद्ध वम्भियकवइया उप्पीलियसरासणपट्टीया पिणद्धगेवेज्जा विमलवरबद्ध-चिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणावरणा भरिएहि, फलएहि निक्कट्ठाहिं असीहिं, अंसागएहि तोणेहि,सज्जीवेहि अंसागएहिं धहिं, समुक्खित्तेहिं सरेहि, समुल्लालियाहि दामाहि", ओसारियाहि" ऊरुघंटाहिं, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि"- सोहणाय-बोलकलकल-रवेणं पक्खुभियमहा समुद्दरवभूयं पिव करेमाणीओ सालाडवीए चोरपल्लीए सव्वनो समंता अोलोएमाणीप्रो-प्रोलोएमाणीग्रो आहिडमाणीयोप्राहिंडमाणीनो दोहलं विणेति । तं जइ अहं पि जाव दोहलं विणिएज्जामि" १. उक्कोस (क); उक्कोसे (ख, ग, घ)। ६. समुल्लासियाहिं (वृ)। २. पू०-वि० १।२।२४ । १०. दामाहि दाहाहिं (ख); दाहाहिं (वृपा)। ३. जाणं (क, ख, ग, घ)। ११. लंबियाहि (क, ग)। ४. सं० पा०—ण्हाया जाव पायच्छित्ता। १२. बज्जमाणेणं २ (ख, ग, घ)। ५. गयाओ (ख, ग, घ)। १३. सं० पा०-उक्किट्ठि जाव समुद्द° ; उक्किट्ठ ६. नेवत्थिया (क, ख, ग, घ)। ७. सं० पा०–सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा । १४. विणेज्जामि (क); विणीज्जामि (ख, ग, घ)। ८. निक्किट्ठाहिं (ख)। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ तइयं अज्झयणं (अभग्गसेणे) त्ति कटु तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव' अट्टज्माणोव गया भूमिगयदिट्ठीया झियाइ ।। २५. तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरिभारियं प्रोहयमणसंकप्पं जाव' झियाय___ माणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी-किं णं तुमं देवाणुप्पिए ! अोहयमणसंकप्पा जाव भूमिगयदिट्ठीया झियासि ? २६. तए णं सा खंदसिरी विजयं चोरसेणावई एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउन्भूए जाव' भूमिगयदिट्ठीया भियामि। २७. तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरीए भारियाए अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म खंदसिरिभारियं एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पिए! ति एयमद्रं पडिसुणेइ ।। २८. तए णं सा खंदसिरिभारिया विजएणं चोरसेणावइणा अब्भणुण्णाया समाणी हतुट्टा बहूहि मित्त'-'नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं', अण्णाहि य बहूहि चोरमहिलाहिं सद्धि संपरिवुडा पहाया जाव' विभूसिया विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागया पूरिसने वत्था सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवइया जाव' आहिडमाणी दोहलं विणेइ॥ २६. तए णं सा खंदसिरिभारिया संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला विच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गम्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।। ३०. तए णं खंदसिरी चोरसेणावइणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया॥ ३१. तए णं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स महया इड्डीसक्कारसमुदएणं दसरत्तं ठिइवडियं करेइ ।।। ३२. तए णं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स एक्कारसमे दिवसे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणं आमतेइ, आमतेत्ता जाव' तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स पुरनो एवं वयासी-जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि समाणंसि इमे एयारूवे दोहले पाउन्भूए, तम्हा ण होउ अम्हं दारए अभग्गसेणे नामेणं । १. वि० ११२।२४। २. वि० ११२।२५ । ३. वि० ११३।२४ । ४. सं० पा०-मित्त जाव अण्णाहि । ५. वि० ११३१२४३ ६. वि० ११३॥२४॥ ७. वोच्छिण्ण° (क, ख, घ)। ८. ठितिपडितं (क, वृ)। ९. ना० ११७६। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० विवागसुयं ३३. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए जाव' परिवडइ ॥ ३४. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कवालभावे यावि होत्था । 'अट्ट दारियानो जाव अट्ठरो दारो । उप्पि भुंजइ" ।। ३५. तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते ।। ३६. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहि चोरसएहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाण कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्डीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता केणइ कालेण अप्पसोए जाए यावि होत्था ॥ ३७. तए णं ताई पंच चोरसयाई अण्णया कयाइ प्रभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेगावइत्ताए अभिसिंचति ।। ३८. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स रण्णो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पाय गिण्हइ ।।। ३६. तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहुगामघायणाहिं' ताविया समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरिल्लं जणवयं बहूहि गामघाएहिं जाव निद्धणं करेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो एयभट्ट विण्णवित्तए । ४०. तए णं ते जाणवया पुरिसा एयमढें अण्णमण्णणं' पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता महत्थं महग्ध महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे तेणेव उवागया" महब्बलस्स रण्णो तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति, .- - - ---- १. वि० १।२।४६ । मिति, 'उप्पि भुजई' त्ति अस्यायमर्थः-- २. 'अदारियाओं' त्ति, अस्यायमर्थ:-'तए 'तए णं से प्रभग्गसेणे कूमारे उपि पासायण तस्स अभरगसेणस्स कुमारस्स वरगए फुडमाणेहि मुयगमथएहि वरतरुणिअम्मापियरो अभग्गसेणं कुमारं सोहणंसि संप उत्तेहि बत्तीसइबद्धहि नाडएहिं उवगिज्ज माणे विउले माणसए कामभोगे पच्चणभवतिहिकरणणक्खत्तमुत्तसि अट्टहिं दारयाहिं माणे विहरई' त्ति (व)। सद्धि एगदिवमेण पाणि गिहाविसु' त्ति, ३. ४ (क)। यावत्करणादिदं दृश्यं-'तए ण तस्स ४. वि० ११३१७-६ । अभय सेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो इम ५. घायावणाहिं (ख, ग, घ)। एयारूवं पीईदाणं दलयति' ति 'अटुओं ६. तासिता (क)। दामो' त्ति अष्टपरिमाणमस्येति अष्टको ७. वि० ११३८ । दायो --दानं वाच्य इति शेषः, स चैवम्'अट्र हिरण कोडीओ अट्र सूवष्णकोडीओ' ८. निवायत्तए (क), निवएतए (ग)। इत्यादि यावत् 'अट्ठ पेसणकारियाओ अण्णं ६. अण्णोण्णं (ग)। च विपुलधणकणगरयणमणिमोत्तियसंख- १०. उवागया जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागया सिलप्पवालरत्तरयणमाइयं संतसारसावएज्ज' (ख, ग, घ) । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (प्रभग्गसेणे) उवणेत्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्त मत्थर ° अंजलि कट्ठ महब्बलं रायं एवं वयासी –एवं खलु सामी ! सालाडवीए चोरपल्लीए अभग्गसेणे चोरसेणावई अम्हे बहूहिं गामघाएहि य जाव' निद्धणे करेमाणे विहरइ । तं इच्छामि गं सामी ! तुज्झ बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुविग्गा सुहसुहेणं परिव सित्तए त्ति कटु पायवडिया पंजलिउडा' महब्बलं रायं एयमटुं विण्णवेति ।। ४१. तए णं से महब्बले राया तेसिं जाणवयाणं पुरिसाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म प्रासुरुत्ते' 'रुटे कुविए चंडिक्किा मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडिं निडाले साहट्ट दंडं सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! सालाडवि चोरपल्लि विलुपाहि, विलपित्ता अभागमेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि ।। ४२. तए णं से दंडे तह त्ति एयमढे पडिसुणेइ ।। ४३. तए णं से दंडे बहूर्हि पुरिसेहि सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवएहि जाव गहियाउह पहरणेहिं सद्धि संपरिवुडे मगइएहि फलरहि", निक्कट्ठाहिं असीहि, अंसागएहि तोणेहिं, सज्जीवेहिं अंसागएहि धणूहि, समुक्खित्तेहिं सरेहि, समुल्लालियाहि दामाहि, ओसारियाहिं ऊरुघंटाहि°, छिप्पतुरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि'- सीहणाय-बोल-कलकल-रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव ° करेमाणे पुरिमतालं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ४४. तए णं तस्स अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लढा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली, जेणेव अभग्ग पेणे चोरसेगावई तेणेव उवागया करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु अभग्गसेणं चोरसेणावई ° एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं दडे आणत्ते-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! १. सं० पा०-करयल । १०. वि० १२३।२४ अस्य स्थाने 'भरिपहि' इति २. वि० ११३१६। पाठः। शब्दभेदेपि अनयोः वृत्तिकारेण ३. पंजलियडा (क)। एक एव अर्थः कृतः-'भरिएहि' इति हस्त४. जाणवदाणं (क)। पाशितैः, 'मगइएहि ति हस्तपाशितैः । ५. सं० पा०-आसरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे; ११. सं० पा.-..-फल एहिं जाव छिप्पतरेणं । आसरत्ते (ग, घ)। १२. उक्किट्ठ (ख, ग, घ); सं० पा०--उक्किट्रि ६. मिसेमिसेमाणे (ख)। जाव करेमाणे। ७. उवणेहिति (क); उवणेहिं (ख, ग, घ)। १३. पाहारेत्थ (क)। ८. पुरिसेहिं सद्धि (क, ग घ)। १४. सं० पा०-करयल जाव एवं । ६. वि० १४२११४ । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ विवागसुयं सालाडवि चोरपल्लि विलुपाहि, अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि। तए णं से दंडे महयाभडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ४५. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसिं चारपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म पंच चोरसयाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं दंडे आणत्ते जाव' तेणेव पहारेत्थ गमणाए'। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तं दंड सालाडवि चोरपल्लि असंपत्तं अंतरा चेव पडिसेहित्तए । ४६. तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तहत्ति' 'एयमटुं° पडिसुणेति ।। ४७. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता पंचहि चोरसएहिं सद्धि पहाए 'कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल °-पायच्छित्ते भोयणमंडवंसि तं विउलं असणं पाणं खाइम साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे प्रायंते चोक्खे परमसुइभूए पंचर्हि चोरसएहिं सद्धि अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरुहित्ता सण्णद्ध-वद्ध"वम्मियकवएहिं उप्पीलियस रासणपट्टीएहि पिणद्धगेवेज्जेहिं विमलवरबद्ध-चिधपहि गहियाउह पहरणेहि मगइएहि जाव' उक्किट्रिसीहनाय-वोल-कलकल रवेणं पच्चावरण्हकालसमयंसि सालाडवीयो चोरपल्लीप्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए तं दंडं पडिवालेमाणे-पडिवालेमाणे चिट्टइ ।। ४८. तए णं से दंडे जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा द्धि संपलग्गे यावि होत्था ।। ४६. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तं दंडं खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर घाइय-विवडियचिधधयपडागं दिसोदिसिं° पडिसेहेति ॥ ५०. तए णं से दंडे अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा हय- महिय-पवरवीर-घाइय विवडियचिधधयपडागे दिसोदिसिं° पडिसेहिए समाणे अथामे अबले प्रवीरिए १. वि० २०४४। ५. सं० पा०—सण्णद्धवद्ध जाव पहरणेहिं । २. आगते ततेणं अभग्गसेणे ताई पंचचोरसयाई ६. पहरणे (क, घ)। एवं वयासी (क,ख,ग) गमणाए भागते ततेणं ७. वि० ११३१४३ । से अभम मेणे ताई पचचोरसयाई एवं क्यासी ८. पू०-१३१४३ । ६. सं० पा०-महिय जाव पडिसेहेति । ३. सं० पा०—तहत्ति जाव पडिसुणेति । १०. विप्पडिसेहेइ (व)। ४. सं० पा०-हाए जाव पाच्छित्ते। ११. सं० पा०-हय जाव पडिसेहिए। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तय अभय (भग्ग सेणे ) अपुरिसक्कार रक्कमे धारणिज्जमिति कट्टु जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महब्बले राया, तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु महब्बलं रायं एवं वयासी - एवं खलु सामी ! अभग्गसेणे चोरसेणावई विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए, नो खलु से सक्का केवि सुबहुएणवि ग्रासवलेण वा हत्थिबलेण वा जोहबलेण वा 'रहबलेण वा चाउरंगेणं पि" [ सेण्णबलेणं ? ] उरंउरेणं गिण्हित्तए । ताहे सामेण य' भेण य' उवप्पयाणेण यः विस्सम्भमाणेउं पवत्ते" यावि होत्था । जेविय से भितरगा सीसगभमा, मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणं च विउलेणं धण-कणग-रयण-संतसार-सावएज्जेणं' भिदइ, अभग्गणस्स य चोरसेणावइस्स अभिक्खणं अभिक्खणं महत्थाई महग्घाई महरिहाई रायारिहाई पाहुडाई पेसेइ, ग्रभग्गसेणं चोरसेणावई वीसम्भमाणेइ || ५१. तए णं से महबले राया श्रण्णया कयाइ पुरिमताले नयरे एवं महं महइमहालिय कूडागारसालं कारेइ" - अणेगखंभसयसन्निविद्धं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूव पडरूवं ॥ ५२. तए णं से महब्बले राया अण्णया कयाइ पुरिमताले नयरे उस्सुक्क उक्करं भडवे दंडिमकुदंडिमं अधरिमं प्रधारणिज्जं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं गणियावर नाडइज्जकलियं श्रणेगतालाच राणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ, उग्घोसावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सहावे, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह् णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सालाडवीए चोरपल्लीए । तत्थ णं तुम्भे ग्रभग्गसेणं चोरसेणावई करयल परिग्गहिय सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयह " -- एवं खलु देवाणुपिया ! पुरिमताले नयरे महब्वलस्स रण्णो उस्सुक्के जाव दसरत्ते पमोए उग्घोसिए । तं किं णं देवापिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारे य इहं हव्वमाणिज्जउ उदाहु सयमेव गच्छित्था" ? ० १. सं० पा०करयल ० । २. केइ ( ख, ग, घ ) । ३. X ( क ) 1 ४,५,६. वा (ग) । ७. पयते ( क ) । ८. सीसगसमा (घ); तान् इति शेषः (वू ) 1 ६. सावएजेणं (क, ग ) । ७५३ १०. × (क, ग) । ११. करेइ (क, ख, घ) १२. सं० पा० - उस्सुक्कं जाव दसरतं; उस्सुंकं (क) सर्वत्र । १३. सं० पा० – करयल जाव एवं । १४. वदाह ( क ) 1 १५. गच्छित्ता (क, ख, ग, घ ); मुद्रितवृत्ती Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५४ विवागसुयं ५३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा महब्वलस्स रण्णो करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं वयणं° पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता पुरिमतालाओ नयरानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता नाइविकिहिं अद्धाणेहिं सुहेहिं वसहिपायरासेहिं जेणेव सालाडवी चोरपल्लो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभग्गसेण चोरसेणावई करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट° एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्वलस्स रपणो उस्सुक्के जाव' दसरत्ते पमोए उग्घोसिए। तं कि णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फ-वत्थ-गंध मल्लालंकारे य इह हव्वमाणिज्जउ उदाहु सयमेव गच्छित्था ? ५४. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई ते कोडुबियपुरिसे एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया ! पुरिमतालं नयरं सयमेव गच्छामि । ते कोडुबियपुरिसे सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ ।। ५५. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई बहुहिं मित्त- नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणेहि सद्धि ० परिवुडे पहाए' 'कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल -पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए सालाडवीयो चोरपल्लीओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महब्बले राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु° महब्बलं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता महत्थं 'महग्घं महरिहं रायारिहं° पाहुडं उवणेइ॥ ५६. तए णं से महब्बले राया अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तं महत्थं 'महग्धं महरिहं रायारिहं पाहडं ० पडिच्छइ, अभग्गसेणं चोरासेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ विसज्जेइ, कूडागारसालं च से आवसहिं दलयइ ॥ ५७. तए णं से अभम्गसेणे चोरसेणावई महब्बलेणं रण्णा विसज्जिए समाणे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ ।। ५८. तए णं से महब्बले राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी 'उदाहु सयमेव गच्छित्ता उताहो स्वयमेव ५. सं० पा०—मित्त जाव परिवूडे । गमिष्यसि । हस्तलिखितवृत्ती-'गच्छित्था ६. सं० पा०-हाए जाव पायच्छित्ते । स्वयमेव गमिष्यथ' इत्यस्ति । ७. सं० पा०--करयल ° 1 १. सं० पा०—करयल जाव पडिसुति । ८. सं० पा०--महत्थं जाव पाहुडं । २. नातिविक ० (ख); नाइविग (ब) ६. सं० पा०-महत्यं जाव पडिच्छई। ३. सं० पा०-करयल जाव एवं । १०. वसहिं (क)। ४. वि० १।३।१२। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयणं (अभग्गसेणे ) गच्छहणं तुभे देवाणुपिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाईच सीधुं च पसणं च सुबहं पुप्फ-वत्थ-गंध- मल्लालंकारं च अभग्ग सेणस्स चोरसेणावइस्स कूडागारसालाए उवणेह || ५६. तए णं ते कोडुबियपुरिसा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु " जाव' उवर्णेति ॥ ६०. तए णं से ग्रभग्ग सेणे चोरसेणावई बहूहि मित्त'- नाइ नियग-सयण-संबंधिपरियणेहि सद्धि संपरिवुडे पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सोधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे पत्ते विहरइ ॥ ० ६१. तए गं से महब्वले राया कोटुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! पुरिमतालस्स नयरस्स दुवाराई पिहेह, पित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावरं जीवग्गाहं गिण्हह, निहित्ता ममं उवणेह || ६२. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि ! त्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुगति, पडिसुणेत्ता पुरिमतालस्स नयरस दुवाराई पिहेंति, अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गिरहति, गिव्हित्ता महव्वलस्स रण्णो उवर्णेति ॥ 0 ६३. तए गं से महब्वले राया अभग्ग सेणं चोरसेणावई एएणं विहाणेणं वज्भं श्राणवेइ ॥ ६४. एवं खलु गोयमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरा पोराणाणं' दुच्चिण्णाणं दुप्पfsaiताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ ७५५ ० श्रभग्गणस्स श्रागामिभव-वण्णग-पदं ६५. अभग्गसेणे णं भंते ! चोरसेणावई कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छहिइ ? कहि उववज्जिहि ? गोयमा ! प्रभासेणे चोरसेणावई सत्ततीसं वासाई परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोस सागरोवमट्टिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए • उववज्जिहि । १. सं० पा०करयल । २. वि० १२३।५८ । ३. सं० पा०--मित्त | ४. वि० १।३।५५ । ५. तुमं ( ग ) । ६. सं० पा०-- करयल जाव पडिसुर्णेति । ७. सं० पा०--- पोराणाणं जाव विहरइ । ८. सं० पा०- उक्कोस नेरइएसु । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुय से णं तमो अणंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव' 'वाउ-तेउ-पाउपुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ। तो उव्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए सूयरत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ सोयरिएहि जीवियाओ ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेढिकुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाहिइ । से गं तत्थ उम्मुक्कबालभावो, एवं जहा पढमे जाव' अंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ६६. "एवं खलु जंबू ! समणणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तइयस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । ---त्ति बेमि ।। १. वि०११७०; सं. पा.--जाव पुढवी। २. वि० ११११७०। ३. सं० पा०-~-निक्खेवग्रो । ४, ना० १११७। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अयणं सगडे उक्लेव पदं १. जइ णं भंते' ! समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तच्चस्स अज्झयणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेण के श्रद्वे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू- अणगारं एवं वयासी - एवं खलु जंबू ! तेणं काले तेणं समएण साहंजणी नाम नयरी होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धा ॥ ३. तीसे णं साहंजणीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए देवरमणे नामं उज्जाणे होत्था || ४. तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था - पोराणे ॥ ५. तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे नाम राया होत्था - महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे ॥ ६. तस्स णं महचंदस्स रण्णो सुसेणे नाम अमच्चे होत्था - साम-भय-दंड- उवप्पयाणनीति-सुप्पउत्त-नविष्णू' || ७. तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुदरिसणा नामं गणिया होत्था - वण्णो ॥ ८. तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुभद्दे नामं सत्थवाहे होत्था --- प्रड्ढे । ६. तस्स णं सुभद्दस्स सत्यवाहस्स भद्दा नाम भारिया होत्था - ग्रहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा ॥ १०. तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगडे नाम दारए होत्था - ग्रहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ॥ १. सं० पा० - चउत्थस्स उक्खेवग्रो । २. ना० १११।७ ३. पू० ना० १।१।१६ । ४. वि० ११२७ । ७५७ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ विवामसुयं ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए'! परिसा राया य निग्गए । धम्मो कहियो । परिसा गया । सगडस्स पुव्यभवपुच्छा-पदं १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव रायमग्गं प्रोगाढे। तत्थ णं हत्थी, आसे, अण्णे य बहवे पुरिसे पासइ । तेसिं चणं परिसाणं मझगयं पासइ एग सइत्थियं परिसं अवनोडयबंधणं उक्खित्तकण्णनासं जाव' खंडपडहेण उग्घोसिज्जमाण 'इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणे इ...नो खलु देवाणुप्पिया ! सगडस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माइं अवरझति ।। सगडस्स छन्नियभव-धण्णग-पदं १३. तए णं भगवो गोयमस्स° चिंता तहेव जाव भगवं वागरेइ–एवं खल गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे छगलपुरे नाम नयरे होत्था ॥ १४. तत्थ णं सीहगिरी नाम राया होत्था--महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर महिंदसारे ।। तत्थ णं छगलपुरे नयरे छन्निए नाम छागलिए परिवसइ--अड्ढे जाव' अपरिभूए, अहम्मिए जाव" दुप्पडियाणंदे ।। तस्स णं छन्नियस्स छागलियस्स बहवे [बहूणि ? ] अयाण य एलयाण" य रोज्झाण य 'वसभाण य ससयाण य सूयराण य 'पसयाण य सिंहाण य१३ हरिणाण य मयूराण य महिसाण य सयबद्धाणि सहस्सबद्धाणि य जहाणि वाडगंसि संनिरुद्धाई" चिट्ठति । १. समोसरणं (क, ख, घ)। ८. वि० ११२।१५,१६ । २. वि० १।२।१२-१४ । ६. श्रो० सू० १४१ ३. रायमग्गे (ख, घ)। १०. वि० ११११४७ ४. पू०-वि० ११२१४॥ ११. एलाण (क, ख, ग, घ)। ५. उक्खत्त (ख); उक्कड (ग); उवक्खित्त १२. पसयाण य (क); X (ख, ग)। १३. सिंहाण य (क);X (ख, ग); पसुयाण ° ६. वि० १।२।१४! (घ)। ७. सं० पा.-उग्घोसिज्जमाणं जाव चिंता। १४. निरुद्धाई (क); निरुद्धा (ख, ग)। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थं अज्झयण (सगडे) ७५६ अण्णे य तत्थ बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे अए य जाव महिसे य सारक्खमाणा संगोवेमाणा' चिट्ठति । अण्णे य से वहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे अए य जाव महिसे य जीवियाओ ववरोति, ववरोवेत्ता मंसाई कप्पणीकप्पियाई करेंति, करेत्ता छन्नियस्स छागलियस्स उवणेति । अण्णे य से बहवे पुरिसा ताई बहुयाइं अयमसाइं जाव महिसमसाइ य तवएसु य कवल्लीसु य कंदुसुय भज्जणेसु य इंगालेसु य तलेंति य भज्जति य सोल्लेंति य, तलेत्ता य भज्जेत्ता य सोल्लेत्ता य तो रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणा वि य' णं से छन्निए छागलिए तेहि वहूहि अयमंसेहि य जाव महिसमंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइंच सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वोसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहर।। १७. तए णं से छन्निए छागलिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्म कलिकलुसं समज्जिणित्ता सत्त वाससयाई परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा चोत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववणे ॥ सगडस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १८. तए णं सा सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जायनिंदुया यावि होत्था जाया-जाया दारगा विणिहायमावज्जति ।। १६. तए णं से छन्निए छागलिए चोत्थीए पुढवीए अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए नयरीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ २०. तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। २१. तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेटूओ ठवेंति, दोच्चं पि गिण्हावेंति, अणुपुव्वेणं सारक्खंति संगोवेंति संवड्डेति, जहा उज्झियए जाव' १. संगोयमाणा (क)। ३. कप्पिणी° (ख)। २. चिटुंति । अण्णे य से बहवे पुरिसा अयाण ४. कंडुसु (स, ग)। य जाव गिहंसि संनिरुद्धा चिट्रति (क, ग, ५. ४ (क)। घ); असौ पाठः नावश्यक: प्रतिभाति। ६. वि०१२।४७,४८१ अस्याः पूर्वपाठे समागतोस्ति । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० दिवागसुयं जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेढो ठविए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सगडे नामेणं । सेसं जहा' उज्झियए। सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए, माया वि कालगया। से वि सानो गिहाप्रो निच्छुढे ।। २२. तए ण से सगडे दारए सानो गिहारो निच्छूढे समाणे साहंजणीए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु जूयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेस य सहसहेणं परिवडा॥ २३. तए णं से सगडे दारए अणोहट्टए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी चोर-जूय-वेस-दारप्पसंगी जाए यावि होत्था ।। २४. तए णं से सगडे अण्णया कयाइ° सुरिसणाए गणियाए सद्धि संपलग्गे यावि होत्था ।। २५. तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहायो निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता सुदरिसणं गणियं अभितरियं ठवेइ,' ठवेत्ता सूदरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई माणस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ॥ २६. तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गणियाए गिहारो निच्छुभेमाणे' *सुदरिसणाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थइ सुई च रइं च धिइं च अलभमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदझवसाणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए सुदरिसणाए गणियाए बहुणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरई ॥ २७. तए णं से सगड़े दारए अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए अंतरं लभेइ, लभेत्ता सुदरिसणाए गणियाए गिहं रहसियं° अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुरिसणाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ॥ २८. इमं च णं सुसेणे अमच्चे बहाए जाव' विभूसिए मणुस्सवम्गुरापरिविखत्ते जेणेव सूदरिसणाए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडं दारयं सुरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई भोग भोगाइं भुंजमाणं पासइ, पासित्ता प्रासूरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट सगडं दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिव्हावेत्ता अट्टि -मुट्ठि-जाणु-कोप्पर-पहारसंभग्गं १. वि० ११२१४६-५६ । सुदरिसणाए गिहं। २. सं० पा०-समाणे सिंघाडग तहेव जाव ५. वि० १५२१६४ । सुदरिसणाए। ६. मगुस्सवम्गुराए (ख, ग, घ)1 ३. ठावेइ (क)। ७. वि० १२१६४ । ४. सं० पा०-निच्छुभेमाणे अण्णत्थ कत्थइ ८. सं० पा०-पट्टि जाव महियगत्तं । सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६१ उत्थं अज्झयणं (सगडे) महियगत्तं करेइ, करेत्ता श्रवोडयबंधणं करेइ, करेत्ता जेणेव महचंदे राया तेर्णव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु महचंद रायं एवं वयासो- एवं खलु सामी ! सगडे दारए ममं उरसि प्रवरद्धे ॥ २६. तए गं से महचंदे राया सुसेणं श्रमच्च एवं वयासी - तुमं चेव णं देवाणुप्पिया ! सगस्स दारगस्स दंडं वत्तेहि ॥ ३०. तए णं से सुसेणे मच्चे महचंदेणं रण्णा श्रब्भणण्णाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं वज्भं प्राणवेइ ॥ ३१. तं एवं खलु गोयमा ! सगडे दारए पुरा पोराणाणं दुचिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं सुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ || सगडस्स श्रागामिभव-वण्णग-पदं ३२. सगडे णं भंते! दारए कालगए कहि गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! सगडे णं दारए सत्तावण्णं वासाई परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं प्रयोमयं तत्तं समजोइभूयं इत्थिपडिमं प्रवतासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहि ॥ ३३. से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे नयरे मातंग कुलंसि जमलत्ताए ' पच्चायाहि ॥ ३४. तए णं तस्स दारगस्स सम्मापियरो निव्वत्तवारसाहस्स' इमं एयारूवं नामधेज्जं करिस्संति - तं होउ णं दारए सगडे नामेणं, होउ णं दारिया सुदरिसणा नाणं ॥ ३५. तए णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुष्पत्ते' भविस्सइ ॥ ३६. तए णं सा सुदरिसणावि दारिया उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोय्वणगमणुप्पत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठेसरीरा भविस्स || १. स० पा०—करयल जाव एवं २. अंतेपुरियंसि (क, घ ) । ३. वहिं (क, घ) । ४. सं० पा०- पोराणाणं जाव विहरइ ! ५. जुगलत्ताए (घ) । ६. पयायाहिति ( ग ) 1 ७. निव्वत्तवारसगस्स (क, ख, ग, घ ) 1 ८. पत्ते अलं भोगसमत्थे यावि (वृ) । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ विवागसु ३७. तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य मुच्छिए गिद्धे गढिए प्रभोववणे सुदरिसणाए भइणीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ ॥ ३८. तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहतं उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्स ॥ ३६. तए गं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ - अहम्मिए जाव े दुप्पडियाणंदे, एकम्मे एयपहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ', संसारो तहेव जाव' वाउ-ते- प्राउ - पुढवीसु प्रणेगसयस हस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ° । सेतो अनंतरं उदट्टित्ता वाणारसीए नयरीए मच्छत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तत्थ मच्छबंधिएहि वहिए तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिद । बोहिं पव्वज्जा, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिजिहि ॥ निक्खेव पदं ४०. ' एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं चउत्थस्स ग्रज्झयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि° ॥ १. भारियाए ( क, ख ) ; X ( ग ) । २. वि० १।११४७ ३. उववन्ने (क, ख, ग, घ ) ; अशुद्धं प्रतिभाति । ४. वि० १ १ ७०; सं० पा० - जाव पुढवी । ५. सं० पा०-निक्खेवो । ६. ना० १1१1७1 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं बहस्सइदत्ते उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाण चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के पट्टे पण्णत्ते? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी --एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नयरी होत्था-रिद्धत्थिमियसमिद्धा । बाहिं चंदोतरणे उज्जाणे । सेयभद्दे जक्खे ॥ तत्थ णं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे'। मियावई देवी।। तस्स णं सयाणियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए उदयणे नामं कुमारे होत्थाअहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे जुवराया । तस्स णं उदयणस्स कुमारस्स पउमावई नाम देवी होत्था ।। तस्स णं सयाणियस्स सोमदत्ते नाम पुरोहिए होत्था-रिउव्वेय-यज्जुब्वेय सामवेय-अथव्वणवेयकुसले ।। ७. तस्स णं सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता नाम भारिया होत्था । ८. तस्स गं सोमदत्तस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए बहस्सइदत्ते नामं दारए होत्था अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ॥ ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे ॥ १. सं० पा०-पंचमस्स अज्झयणस्स उक्खेवओ। ५. पू०-वि० ११।१०। २. ना० १६११७। ६. समवसरणं (क, ख, ग, घ); वि० ११२।११ ३. पू०-ग्रो० सू० १४ । सूत्राधारेण असौ पाठः स्वीकृतः । ४. पू०-वि० श२१०। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ गोमेण बहस्सइदत्तस्स पुग्वभव पुच्छा-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव जाव' रायमग्गमोगाढे तहेव पासइ हत्थी, ग्रासे, पुरिसमज पुरिसं । चित्ता । तहेव पुच्छइ पुव्वभवं । भगवं वागरेइ बहस्सइदत्तस्स महेसरदत्तभव-वण्णग-पदं ११. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे सव्वोभद्दे नाम नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे || विवानसुर्य १२. तत्थ णं सव्वग्रोभद्दे नयरे जियसत्तू नामं राया होत्था || १३. तस्स णं जियसत्तस्स रण्णो महेसरदत्ते नामं पुरोहिए होत्था - रिउब्वेय:यज्जुब्वेय-सामवेय-अथव्वणवेयकुसले यावि होत्था ॥ १४. तए णं से महेस रदत्ते पुरोहिए जियसत्तुस्स रण्णो रज्जबलववड्ढणट्टयाए कल्लाकल्लि' एगमेगं माहणदारयं, एममेगं खत्तियदारयं, एगमेगं वइस्सदारयं, एगमेगं सुदारयं गिरहावेइ, गिव्हावेत्ता तेसि जीवंतगाणं चैव हिययउंडए गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ || १५. तए णं से महेस रदत्ते पुरोहिए अट्टमीचाउद्दसीसु दुवे-दुवे माहण खत्तिय- वइस्ससुद्दे, चउन्ह मासाणं चत्तारि चत्तारि छन्हं मासाणं श्रट्ट-अट्ट, संवच्छरस्स सोलस- सोलस | जा-जाहेविय जियसत्तू राया परबलेणं अभिजुज्जइ', ताहे ताहे वियणं से महेसरदत्ते पुरोहिए अट्टसयं माहणदारगाणं, असयं खत्तियदारगाणं, असयं वइस्सदार गाणं, असयं सुदारगाणं पुरिसेहि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता तेसि जीवंतगाणं चेव हिययउंडियाओ गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोम करेइ । तए णं से परवले खिप्पामेव विद्धसेइ" वा पडिसेहिज्जइ वा ॥ १६. तए गं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे काल किच्चा पंचमाए" पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्टिइए नरगे उववण्णे || १. वि० १२ १२-१४ । २. x (घ) 1 ३. पू० - वि० ११२१४-१६ ॥ ४. पू० ओ० सू० १ । ५. महिस्सर० (क) 1 ६. रिब्वेद ( क ) । ७. कल्लं कल्लं ( क ) ; कल्ला कल्लं ( ग ) | ८. अभिजुंजइ ( ख, ग ) । ६. जीवंतकाण ( क ); जीवंताणं ( ख ) ! १०. विद्वंसइ ( ख, ग ); विद्धसिज्जड (क्व ) । ११. पंचमीए (ग) 1 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (बहस्सइदत्ते) ७६५ बहस्सइदतस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १७. से णं तो प्रणतरं उवट्टिता इहेव कोसंबोए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ १८. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तवारसाहस्स ‘इमं एयारूवं'' नाम धेज करेति - जम्हा णं अम्ह इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं ।। १६. तए णं से वहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव' परिवड्ढइ ॥ २०. तए णं से बहस्सइत्ते दारए उम्मुक्कवालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणु प्पत्ते होत्था। से णं उदयणस्स कुमारस्स पियवालवयस्सए यावि होत्था सहजायए सहड्डियए सहपंसुकीलियए । २१. तए णं से सयाणिए राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते ।। २२. तए णं से उदयणे कुमारे बहूहिं राईसर'- तलवर-माडंबिय-कोडुविय-इब्भ-सेटि सेणावइ ° -सत्थवाहप्पभिईहिं सद्धि संपरिबुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सयाणियस्स रण्णो महया इड्डीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ ॥ २३. तए णं ते बहवे राईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुविय-इन्भ-से टि-सेणावइ° - सत्थवाहप्पभितरो उदयणं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति ।। २४. तए णं से उदयणे कुमारे राया जाए-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर महिंदसारे॥ २५. तए णं से वहस्सइदत्ते दारए उदयणस्स रण्णो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु अंतेउरे य दिण्णवियारे जाए यावि होत्था ॥ २६. तए णं से वहस्सइदत्ते पुरोहिए उदयणस्स रण्णो अंतेउरं वेलासु य अवेलासु य कालेसु य अकालेसु य राम्रो य विआले य पविसमाणे अण्णया कयाइ पउमावईए देवीए सद्धि संपलगे यावि होत्था। पउमावईए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भंजमाणे विहरइ॥ २७. इमं च णं उदयणे राया हाए जाव' विभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावईए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुते तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट बहस्सइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेइ', •गिण्हावेत्ता १. एमेयारूवं (घ)। २. वि० ११२१४६ । ३. सं० पा०-राईसर जाव सत्यवाह। ४. सं० पा.--राईसर जाव सत्यवाह । ५. पू०-प्रो० सू० १४ । ६. वि० १।२।६४ । ७. सं० पा०-गिण्हावेइ जाव एएणं । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ विवागसुयं अट्ठि-मुद्वि-जाणु-कोप्परपहार-संभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवप्रोडगबंधणं करेइ, करेत्ता ° एएणं विहाणेणं वज्झं प्राणवेइ ।। २८. एवं खलु गोयमा ! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुप्प डिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणु भवमाणे° विहरइ॥ बहस्सइदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २६. बहस्सइदते णं भंते ! पुरोहिए इनो कालगए समाणे कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! बहस्सइदत्ते णं पुरोहिए चोसट्टि वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे' कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' 'उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव' वाउ-ते उ-ग्राउपुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । तो हत्थिणाउरे नयरे मियत्ताए पच्चायाइस्सइ । से णं तत्थ वाउरिएहि वहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए' पच्चायाहिइ । बोहिं, सोहम्मे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं ३०. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । - -त्ति बेमि ॥ १. सं० पाo.-पोराणाणं जाव विहरइ। ५. वि० ११११७०। २. दारए (क, ख, ग, घ)। ६. पुमत्ताए (क)। ३. सूलिभिण्णे (घ)। ७. सं० पा.--निक्खेवो। ४. सं० पा०-पुढवीए संसारो तहेव पढवी। ८, ना० ॥१७॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें अज्झयणं नंदिवद्धणे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! "समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी ° एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नाम नयरी। भंडीरे उज्जाणे। सुदरिसणे' जक्खे । सिरिदामे राया । बंधुसिरी भारिया । पुत्ते नंदिवद्धणे कुमारे-अहीण- पडि पुण्ण-पंचिंदियसरीरे ° जुवराया। ३. तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नाम अमच्चे होत्था - 'साम-दंड-भेय-उवप्पयाणनीति सुप्पउत्त-नयविहष्णू ४. तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था-अहीण-पडिपूण्ण पंचिदियसरीरे।। ५. तस्स णं सिरिदामस्स रण्णो चित्ते नामं अलंकारिए होत्था–सिरिदामस्स रण्णो चित्तं वह विह अलंकारियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे य दिण्णवियारे यावि होत्था ।। १. सं० पा०-छट्ठस्स उक्खेवप्रो। २. ना. ११७ ३. सुदरसणे (ख, ग); सुदंसणे (क्व)। ४. सं० पा० अहीण जाव जुवराया। ५. जुगराया (क)। ६. सामदंड (क,ख,ग,घ); पू०-ना०१1११६ । ७. पू०-वि० ११२।१०।। ८. अलंकारए (क, ख, ग)। १०. अलंकारियं कम्मं (क)! ७६७ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा निरगया, राया निग्गो जाव' परिसा पडिगया॥ गोयमेण नंदिवद्धणस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव' रायमगमोगाढे । तहेव हत्थी, प्रासे, पुरिसे पासइ । तेसिं च णं पुरिसाणं मज्झ गयं एगं पुरिसं पासइ जाव' नर-नारीसंपरिवुडं ।। ८. तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा चच्चरंसि तत्तंसि अयोमयंसि समजोइभूयंसि सीहासणंसि निवेसावेंति ।। तयाणंतरं च णं पुरिसाणं मझगयं बहूहिं अयकलसेहिं तत्तेहिं समजोइभूएहि, अप्पेगइया तंबभरिएहि, अप्पेगइया तउयभरिएहि, अप्पेगइया सीसगभरिएहिं, अप्पेगइया कलकल भरिएहि, अप्पेगइया खारतेल्लभरिएहि महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति । तयाणंतरं च तत्तं अयोमयं समजोइभूयं अयोमयं संडासगं गहाय हारं पिणद्धति। तयाणंतरं च णं अद्धहारं 'पिणद्धति तिसरियं पिणद्धंति पालंबं पिणद्धति कडिसुत्तयं पिणद्धति पढें पिणद्धति मउड पिणद्धति ° । चित्ता तहेव जाव' वागरेइनंदिवद्धणस्स दुज्जोहणभव-वण्णग-पदं ६. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सीहपुरे नामं नयरे होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्धे ।। १०. तत्थ णं सीहपुरे नयरे सीहरहे नामं राया होत्था ॥ ११. तस्स णं सीहरहस्स रण्णो दुज्जोहणे नामं चारगपाले' होत्था-अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे ॥ १२. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स इमेयारूवे चारगभंडे होत्था१३. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे अयकुंडीओ-अप्पेगइयानो तंब भरियायो. अप्पेगइयानो तउयभरियाग्रो, अप्पेगइयायो सीसगभरियानो.अप्पे. गइयाप्रो कलकलभरियानो, अप्पेगइयानो खारतेल्लभरियानो-अगणिकायंसि अद्दहियानो चिट्ठति ॥ १. वि० ११२।११ ! २. वि० १:२।१२-१४ । ३. वि० १।२।१४ ४. सं० पा०---अद्धहारं जाव पटें मउडं । ५. वि० ११२।१५,१६॥ ६. पू०-ओ० सू० १ । ७. चारगपालए (घ)। ८. वि० ११११४७ । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ? अम्झयणं (नंदिवद्धणे) ७६६ १४. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे उट्टियाओ अप्पेगइयाओ आसमुत्त भरियानो, अप्पेग इयानो हत्थिमुत्तभरियाग्रो, अप्पेगइयानो उट्टमुत्तरियानो, अप्पेगइयायो गोमुत्तभरियानो, अप्पे गइयाओ महिसमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयायो अयमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ एल मुत्तरियानो- वहुपडिपुण्णाप्रो चिट्ठति ।। १५. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स वहवे हत्थंडुयाण य पायंडुयाण य हडीण' य नियलाण य संकलाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता' चिट्ठति ।। १६. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे वेणुलयाण' य वेत्तलयाण य चिचाल याण य छियाण य कसाण य वाय रासीण' य पुजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ।। १७. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सिलाण य लउडाण' य मोगराण य कणंगराण" य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ।। १८. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे तंतीण य वरत्ताण य वाग रज्जण य वालयसुत्तरजण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ।। तस्स ण दज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे असिंपत्ताण य करपत्ताण य खरपत्ताण य कलंवचीरपत्ताण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ।। २०. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे लोहखीलाण य कडसक्कराण य चम्मपट्टाण य अलीपट्टाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिटुंति ।। २१. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स वहवे सूईण य डंभणाण य कोट्टिल्लाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिटुंति ॥ २२. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सत्थाण" य पिप्पलाण य कुहाडाण य नहच्छेयणाण य दब्भाण" य पुजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ॥ २३. तए णं से दुज्जोहणे चारगपाले सीहरहस्स रण्णो बहवे चोरे य पारदारिए य गंठिभेए य रायावकारी य अणहारए" य वालधायए य विस्संभधायए य जइगरे५ विद्यते । १. हढीण (क)। घटाण (हस्त० व)। २. संनिकिट्ठा (क)। १०. कोडिल्लाण (ख)। ३. वेलुलयाओ (ग)। ११. एकस्यां हस्तलिखितवृत्ती 'पच्छाण' इति ४. वेत्तलयाओ (ग)। ५. पादरासीण (क)। १२. कुठाराण (ग)। ६. लउलाण (वृ)। १३, दब्भणाण (ख); इन्भणाण (ग); दन्भ७. कणगराण (ख, ग, घ); काणंगराण (वृपा)! तिणाण (घ) । ८. तंताण (ख)। १४. अणधारए (क, घ)। ६. अलाण (क); अलपडाण (ग); अल्लपल्लाण १५. जूयिकरे (क); जूयमरे (ख, ग) : (मुद्रित वृ); अलोण (हस्त० वृ); अली Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० विवागसुयं य संडपट्टे' य पुरिसेहि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता उत्ताणए पाडेइ, लोहदंडेणं मुहं विहाडेइ, विहाडेत्ता अप्पेगइए तत्ततंबं पज्जेइ, अप्पेगइए तउयं पज्जेइ, अप्पेगइए सीसगं पज्जेइ, अप्पेगइए कलकलं पज्जेइ, अप्पेगइए खारतेल्लं पज्जेइ, अप्पेगइयाणं तेणं चेव अभिसेगं करेइ।। अप्पेगइए उत्ताणए पाडेइ, पाडेत्ता पासमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए हत्थिमुत्तं पज्जेइ', *अप्पेगइए उट्टमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए गोमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए महिसमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए अयमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए ° एलमुत्तं पज्जेइ । अप्पेगइए हेट्ठामुहए पाडेइ छडछडस्स' वम्मावेइ, वम्मावेत्ता अप्पेगइए तेण चेव प्रोवीलं दलयइ। अप्पेगइए हत्थंडुयाई बंधावेइ, अप्पेगइए पायंडुए बंधावेइ, अप्पेगइए हडिबंधणं करेइ, अप्पेगइए नियलबंधणं करेइ, अप्पेगइए संकोडियमोडियए' करेइ, अप्पेगइए संकलबंधणं करेइ, अप्पेगइए हत्थच्छिण्णए करेइ, 'अप्पेगइए पायच्छिण्णए करेइ, अप्पेगइए नक्कछिण्णए करेइ, अप्पेगइए उद्दछिण्णए करेइ, अप्पेगइए जिन्भछिण्णए करेइ, अप्पेगइए सीसछिण्णए करेइ, अप्पेगइए ° सत्थोवाडियए करेइ ।। अप्पेगइए वेणुलयाहि य', 'अप्पेगइए वेत्तलयाहि य, अप्पेगइए चिंचालयाहि य, अप्पेगइए छियाहि य, अप्पेगइए कसाहि य, अप्पेगइए° वायरासीहि य हणावेइ । अप्पेगइए उत्ताणए कारवेइ, कारवेत्ता उरे सिलं' दलावेइ, दलावेत्ता तो लउड छुहावेइ, छुहावेत्ता पुरिसेहिं उक्कंपावेइ । अप्पेगइए तंतीहि य", "अप्पेगइए वरत्ताहि य, अप्पेगइए वागरज्जूहि य, अप्पेगइए वालय °सुत्तरज्जहि य हत्थेसु य पाएसु य बंधावेइ, अगडंसि 'प्रोचूलं बोलग पज्जेइ। अप्पेगइए असिपत्तेहि य", अप्पेगइए करपत्तेहि य, अप्पेगइए खुरपत्तेहि य अप्पेगइए° कलंबचीरपत्तहि य पच्छावेइ, पच्छावेत्ता खारतेल्लेणं अब्भंगावेइ। १. खंडपट्टे (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-ज्जेइ जाव एलमुत्तं । ३. थलथलस्स (क, घ)। ४. हत्थुडु (ख); हत्थंड (ख); हत्थियं (घ)। ५. मोडिए (बु)। ६. सं० पा०-करेइ जाव सस्थोवाडियए। ७. सं० पा०-वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि। ८. सिर (क)। है. लउल (क, घ); नउलं (ख)। १०. ओकंपावेइ (क) । ११. सं० पा०--तंतीहि य जाव सुत्तरज्जूहि । १२. ओलंबालगं (क); उचूलंपालगं (ख); उचूलवालगं (ग) उचूलपाणग (घ); ओचूल वालगं (ह. वृ)। १३. पाययति खादयतीत्यादि लौकिकीभाषा कारयतीति तु भावार्थः (व)।। १४. सं० पा०-असिपत्तेहि य जाव कलंबचीर पत्तेहि। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ? अझयण (नंदिवद्धणे) ७७१ अप्पेगइयाणं निलाडेसु य अवदूसु' य कोप्परेसु य जाणू सु य खलुएसु य लोहकीलए य कडसक्करानो य दवावेइ अलिए' भजावेइ। अप्पेगइए सूईयो य डंभणाणि' य हत्थंगुलियासु य पायंगुलियासु य कोट्टिल्लएहिं प्राउडावेइ, पाउडावेत्ता भूमि कडयावेइ। अप्पेग इए सत्थेहि य अप्पेगइए पिप्पलेहि य अप्पेगइए कुहाडेहि य अप्पेगइए° नहच्छेयणेहि य अंगं पच्छावेइ, दब्भेहि य कुसेहि य उल्लवद्धेहि य वेढावेइ, प्रायवंसि दलयइ, दल इत्ता सुक्के समाणे चडचडस्स उप्पाडेइ ॥ २४. तए णं से दुज्जोहणे चारगपाले एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्म' समज्जिणित्ता एगतीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठोए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववणे ॥ नंदिवद्धणस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं २५. से णं तनो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेब महुराए नयरीए सिरिदामस्स रण्णो बंधु सिरीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ।। २६. तए ण बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया। २७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्ज __ करेंति-होउ णं अम्हं दारगे नंदिवद्धणे" नामेणं ।। १. दलावेइ (क)। २. अल (क); अलए (घ)। ३. दंभणाणि (क, घ)। ४. कड्यावेइ (ख, ग)। ५. सं० पा० -सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि । ६. उल्लवज्भेहि (क); उल्लदभेहि (ख); उलदज्मेहि (घ); ओल्लबद्धेहि (कव)। ७. पावं (क)। ८. पुमत्ताए (क)। ६. ओ० सू० १४३ । १०. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ); प्रस्तुतागमस्य प्रथमाध्ययनस्य सप्तमे सूत्रे 'नंदी' इति पदमस्ति । वृत्तिकृतात्र 'नंदिवर्द्धन' इति नाम सूचितम् –'नंदी' त्ति सूत्रत्वादेव नंदिवर्द्धनो राजकुमारः (वृ)। प्रस्तुताध्ययनस्य द्वितीये सूत्रे 'पुत्ते नंदिवद्धणे कुमारे' इति पाठोस्ति । अध्ययनारिसमाप्तौ च वृत्तिकृता पुनरस्यैव नाम्न: उल्लेख: कृतोस्ति-षष्ठाध्ययनविवरण नंदिवर्द्धनस्याधिकारो हि समाप्त: (व)। किंतु अस्याध्ययनस्य सप्तविंशतितमसूत्रादारभ्य मुलपाठे सर्वत्र 'नंदिसेण' नाम्न: उल्लेखोस्ति । स्थानाङ्गसूत्रे (१०११११) "नंदिसेण' नाम्नः उल्लेखोस्ति । द्वयोरप्यागमयोवत्तिकारः अभयदेवसूरिरस्ति । वृत्तिकारस्याभिमतेन प्रस्तुतसूत्रे नंदिवर्द्धनः' इति नामवास्ति'नंदिसेणे य' त्ति मथुरायां श्रीदामराजसुतो नदिसेणो युवराजो विपाकश्रुते च नंदिवर्धन: श्रूयते (स्थानाङ्गवृत्ति) स्थानाङ्गप्रसिद्धस्य 'नदिसेण' नाम्न: प्रस्तुतसूत्रे समावेशो जातः । अतएव नाम्नोमिश्रणमत्र परिलक्ष्यते । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ विवागसुयं २८. तए णं से नंदिवद्धणे' कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव' परिवड्ढइ ।। २६. तए णं से नंदिवद्धणे' कुमारे उम्मुक्कबालभावे •विण्णय-परिणय मेत्ते जोवण गमणुप्पत्ते विहरइ जाव जुवराया जाए यावि होत्था ।। ३०. तए णं से नंदिवद्धणे" कुमारे रज्जे य जाव' अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे इच्छइ सिरिदामं रायं जीवियानो ववरोवेत्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए॥ ३१. तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे विहरइ ।। ३२. तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो अंतरं अलभमाणे अण्णया कयाइ चित्तं अलंकारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुम णं देवाणुप्पिया ! सिरिदामस्स रण्णो सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे य दिण्णवियारे सिरिदामस्स रण्णो अभिक्खणं-अभिक्खणं अलंकारियं कम्मं करेमाणे विहरसि, तं गं तुम देवाणप्पिया! सिरिदामस्स रण्णो अलंकारियं कम्मं करेमाणे गीवाए खुरं निवेसेहि। तो गं अहं तुमं अद्धरज्जियं करिस्सामि । तुमं अम्हेहिं सद्धि उरालाई भोग भोगाई भंजमाणे विहरिस्ससि ।। ३३. तए णं से चित्ते अलंकारिए नंदिवद्धणस्स कुमारस्स वयणं एयमटुं पडिसुणेइ ।। ३४. तए णं तस्स चित्तस्स अलंकारियस्स इमेयारूवे" 'अज्झथिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था जइ णं मम सिरिदामे राया एयमटुं आगमेइ, तए णं मम न नज्जइ केणइ असुभेणं कु-मारेणं मारिस्सइ ति कट्ट भीए तत्थे तसिए उब्बिगे संजायभए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी-एवं खलु सामी ! नंदिवद्धणे" कुमारे रज्जे य जाव" अंतेउरे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ तुम्भे जीवियानो ववरोवित्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए । ३५. तए णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारियस्स अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म १. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ६. ता (ख, घ); तं (ग)। २. वि० १२।४६। १०. नंदिसेणस्स (क, ख, ग घ)। ३. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ११. सं० पा०-इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ४. सं० पा०-उम्मकबालभावे जाव विहरह। १२. सं० पा०-करयल जाव एवं । ५. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। १३. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ६. वि० ११११५७। १४. वि० १।१।५७ ॥ ७,८. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टे अज्झयणं (नंदिवद्धणे) ७७३ आसुरुत्ते' •रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलि भिडि निडाले ° साहटु नंदिवद्धणं' कुमारं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ ।। ३६. तं एवं खलु गोयमा ! नंदिवद्धणे कुमारे' 'पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्प डिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभव माणे ' विहरइ ।। नंदिवद्धणस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३७. नंदिवद्धणे" कुमारे इओ 'चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ? गोयमा ! नंदिवद्धणे' कुमारे सर्टि वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयताए उववज्जिहिइ । संसारो तहेव' । तओ हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ मच्छिएहि वहिए समाणे तत्थेव सेट्टिकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। बोहि, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परि निव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ ।। निक्खेव-पदं ३८. “एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । --त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०—प्रासुरुत्ते जाव साहट्ट । ५,६. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। २. नंदिसेणं (क, ख, ग, घ)। ७. पू०-वि० १३१६६ । ३. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ८. सं० पा.-निक्खेवो । ४. पुत्ते (क); स० पा०-कुमारे जाव विहरइ । ६. ना० १३१७ । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं उंबरदत्ते उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं छटुस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी –एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे । 'वणसंडे उज्जाणे । 'उंबरदत्ते जक्खे" ॥ ३. तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया ।। ४. तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे । गंगदत्ता भारिया !! ५. तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था—अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ।। ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समोस रणं जाव' परिसा पडिगया । गोयमेण उंबरदत्तस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव जेणेव पालिसंडे नयर तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पाडलिसंडं नयरं पुरथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुप्प १. सं० पा.--सत्तमस्स उक्खेवओ। २. ना० १॥७॥ ३. वणसंडं उज्जाणं (क, ख, ग)। ४. उंबरदत्तो जवखो (क)। ५. पू०-ओ० सू० १४३ । ६. वि०-१।२।११। ७. पू०-वि० १।२।१२-१४ । ७७४ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झयणं (उंबरदत्त) ७७५ विसइ, अणुप्पविसित्ता तत्थ णं पासइ एगं पुरिसं-कच्छुल्लं कोढियं दाश्रोयरियं' भगंदलिय अरिसिल्लं कासिल्लं सासिल्लं सोगिलं 'सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं सडियहत्थंगुलियं सडियपायंगुलियं सडियकपणनासियं' रसियाए य पूएण य थिविथिवितं' वणमुहकिमि उत्तुयंत-पगलंतपूयरुहिरं लालापगलंतकण्णनासं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं कट्ठाई कलुणाई वीस राई कूवमाणं' मच्छियाचडगरपहक रेणं अणिज्जमाणमग्गं फुट्टहडाहडसीस' दंडिखंडवसणं खंडमल्लखंडघडहत्थगयं गेहे-गेहे देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणं पासइ। तया भगवं मोयमे ! उच्च-नीय - मज्झिम-कुलाई अडमाणे° अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ पाडलिसंडाप्रो नयरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाण पालोएइ, भत्तपाणं पडिदसेइ, समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भगुण्णाए' 'समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे ° बिलमिव पण्णगभूते" अप्पाणेण आहारमाहारइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ८. तए णं से भगवं गोयमे दोच्चं पि छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ जाव" पाडलिसंडं नयरं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविसइ, तं चेव पुरिसं पासइ-कच्छुल्लं तहेव जाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। है. तए णं से भगवं गोयमे तच्च पि छटुक्खमणपारणगंसि तहेव जाव पाडलिसंडं नयरं पच्चथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ कच्छुल्लं" ।। १०. "तए णं से भगवं गोयमे चउत्थं पि छट्ठक्खमणपारणगंसि तहेव जाव पाडलिसंडं ___नयरं उत्तरेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ - कच्छुल्लं"। १. उदरियं (वृ), मुद्रित वृत्ती दोउरियं; दोउरियं ६. सं० पा०-अब्भणुष्णाए जाव विलमिव । (क्व)। १०. ° भूतेणं (क्व)। २. भगंदरिय (ग, घ)। ११. वि० ११२११३,१४ । ३. सुयमुहं सुयहत्थं (घ)। १२. वि०११७७ । ४. नासेयं (क)। १३. वि० १७।८। ५. थिविथिवेतं (क)। १४. पू०-- वि० १७१७ ॥ ६. कूयमाणं (ह० वृ)। १५. स. पा०—चउत्थं छद्र उत्तरेणं इमेयारूवे। ७. फुड० (क)। १६. वि० ११७८ ८. सं० पा० --नीय जाव अडइ । १७. पू०-वि० ११७७ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ विवाग सुर्य ११. तए णं भगवो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - ग्रहो णं इमे पुरिसे पुरा पोरागाणं' • दुचिचण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ । न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा । पच्चक्खं खलु प्रयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु जाव' समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - एवं खलु श्रहं भंते ! छक्खमणपारणगंसि जाव' रियंते जेणेव पाडलिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता पालिसंडं नयरं पुरत्थिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविट्ठे । तत्थ गं एगं पुरिसंपासामि कच्छुल्लं जाव' देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणं । 'तए णं" ग्रहं दोच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि दाहिणिल्लेणं दुवारेणं तव । तच्च छट्ठक्खमणपारणगंसि पच्चत्थिभिल्लेणं दुवारेणं तहेव । तए णं श्रहं चोत्थछक्खमणपारणगंसि उत्तरदुवारेणं श्रणुष्पविसामि तं चैव पुरिसं पासामि कच्छुल्ल जाव देवलियाए वित्ति कप्पेमा | चिंता ममं ॥ १२. से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के प्रति ? किं नामए वा किं गोते वा ? कयरंसि गामसि वा नयरंसि वा? किंवा दच्चा किंवा भोच्चा किंवा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं सुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? उंबरदत्तस्स धष्णंत रिभव-वण्णग-पदं १३. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विजयपुरे नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ १४. तत्थ णं विजयपुरे नयरे कणगरहे नामं राया होत्था ॥ १५. तस्स णं कणगरहस्स रण्णो धष्णंतरी नामं वेज्जे होत्था -- टुंगाउव्वेयपाढए [तं जहा - १. कुमारभिच्चं २. सालागे ३. सल्लहत्ते ४. कायतिगिच्छा ५. जंगोले ६. भूयविज्जे ७. रसायणे ८. वाजीकरणे | सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे ॥ १६. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे विजयपुरे नयरे कणगरहस्स रण्णो अंतउरे य, अण्णेसि च बहूणं राईसर-तलवर माडंबिय - कोडुंबिय - इन्भ-सेट्ठि से णावइ सत्थवाहाणं, असि च बहूणं दुब्बलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य सणाहाण १. सं० पा०—पोराणाणं जाव एवं । २. वि० १।२।१५ । 0 ३. वि० १/२/१३,१४ । ४. वि० ११७७ । ५. तं (क, घ) 1 ६. कप्पेमाणे विहरइ (क, ख, ग, घ ) । ७. सं० पा० – पुव्यभवपुच्छा वागरेइ । ८. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतमं अज्झयणं (उंबर दत्ते) ७७७ य प्रणाहाण य समणरण य माहणाण य भिक्खगाण' य करोडियाण य कप्पडियाण य पाउराण य–अप्पेगइयाणं मच्छमंसाई उवदिसइ', अप्पेगइयाणं कच्छभमंसाई, अप्पेगइयाणं गाहमंसाइं. अप्पेगइयाणं मगरमसाई, अप्पेगइयाणं सुसुमारमंसाई, अप्पेगइयाणं अयमसाई, एवं- एलय-रोज्झ-सूयर-मिग-ससय-गोमहिसमसाइं उवदिसइ, अप्पेगइयाणं तित्तिरमंसाइं उव दिसइ, अप्पेगइयाणं वट्ट क-लावक-कवोय-कुक्कुड-मयूरमंसाइं उवदिसइ, अण्णेसि च वहूणं जलयर-थल -यर-खहयरमाईणं मसाई उवदिसइ । अप्पणा विणं से धण्णंतरी वेज्जे तेहिं बहूहिं मच्छमंसेहि य जाव मयूरभंसेहि य, अण्णेहि य बहूहिं जलयर-थलयर-खहयरमंसेहि य, मच्छरसएहि य जाव मयूररसएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ ।। १७. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुवहुं पावं कम्मं समज्जिणित्ता बत्तीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु ने रइएसु नेरइयत्ताए उववष्णे ॥ उंबरदत्तस्स वत्तमरणभव-वण्णग-पदं १८. तए णं सा गंगदत्ता भारिया जायनिंदुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणिधायमावज्जति ।। १६. तए णं तीसे गंगदत्ताए सत्थवाहीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुंडंबजागरियं जागरमाणीए अयं अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धि बहूई वासाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि । तं धण्णासो णं तानो अम्मयानो, संपुग्णाओ णं तानो अम्मयाप्रो, कयत्थानो णं ताप्रो अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं तानो अम्मयाओ, कयलक्खणाओणं ताो अम्मयाग्रो, कयविहवानों णं ताओ अम्मयायो, सूलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणस्सए जम्मजीवियफले, जासिं मण्णे नियगकच्छिसंभयगाई थणदुद्धलुद्धयाई महुरस मुल्लावगाई मम्मणपजंपियाइं थणमूला' कक्खदेसभागं अभिसरमाणयाई मुद्धयाई पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊण उच्छंगे निवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए । १. भिक्खुयाण (क, ख); भिक्खुणाण (ग); भिक्खाचरे (घ)। २. उवदंसेइ (घ)। ३. एला (क, घ); वि० १।४।१६ सूत्रे कतिचन पदानि अधिकानि दृश्यन्ते । ४. थणमूल (क, ख, घ)। ५. अतिसर (क, ख, ग, घ)। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं अहं णं अघण्णा अण्णा अकयपण्णा एत्तो एगतरमविन पत्ता सेयं खल मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सागरदत्तं सत्थवाहं अापूच्छित्ता सूबहं पूप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय वहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि पाडलिसंडामो नय राम्रो पडिनिक्खमित्ता बहिया जेणेव उवरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छित्ता, तत्थ णं उंबरदत्तस्स जवखस्स महरिहं पुप्फच्चणं करेत्ता जाणुपायपडियाए प्रोयाइत्तए'—जइ णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवटिस्सामि त्ति कटु प्रोवाइयं प्रोवाइणित्तए---एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि सद्धि बहूई वासाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणी जाव एत्तो एगमवि न पत्ता । तं इच्छामिण देवाणप्पिया ! तुभाह अब्भणण्णाया जाव ग्रोवाइणित्तए।। २०. तए णं से सागरदत्त सत्थवाहे गंगदत्त भारियं एवं वयासी-मम पि ण देवाण प्पिए ! एस चेव मणोरहे कहं णं तुम दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि ? गंगदत्ताए भारियाए एयमटुं अणुजाणइ ।।। २१. तए णं सा गंगदत्ता भारिया सागरदत्तसत्थवाहेणं एयम; अव्भणण्णाया समाणी सुवहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणमहिलाहिं सद्धि सयाओ गिहारो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडलिसंडं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुवखरिणीए तीरे सुवहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुवखरिणि प्रोगाहेइ, योगाहेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिडं करेइ, करता पहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता उल्लपडसाडिया पुक्खरिणीनों पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता तं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकार गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जवखस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उंबरदत्तस्स जक्खस्स आलोए पणामं करेइ, करेत्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता उंबरदत्तं जक्खं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुखेत्ता पम्हल'-'सुकुमाल-गंधकासाइयाए ° १. ना० १.१।२४। २. उब्याएत्तए (ग); ग्रोवायइत्तए (क्व)। ३. पोक्खरिणी (क); पुक्खरणी (ग)। ४. पुक्खरिणि (क, ग); पुक्खरणीए (ख)। ५. सं० पा०--पम्हल° । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (उंबरदत्त) ७७६ गायलट्ठी अोलूहइ, अोलूहित्ता सेयाई वत्थाई परिहेइ, परिहेत्ता महरिहं पुप्फारुहणं मल्लारुहणं गंधारुहणं चुण्णारहणं करेइ, करेत्ता धूवं डहइ, डहित्ता जण्णुपायवडिया एवं वय इ--जइ णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं' 'अहं तुभं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणवडिस्सामि त्ति कटु अोवाइयं प्रोवाइणइ, प्रोवाइणित्ता जामेव दिसं पाउन्भया तामेव दिसं पडिगया । २२. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे तमो नरयाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे पाडलिसंडे नयरे गंगदत्ताए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ।। तए णं तीसे गंगदत्ताए भारियाए तिहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए–धण्णाओ णं तानो' 'अम्मयाओ, संपुण्णाओ ण तायो अम्मयामो, कयत्थानो णं तापो अम्मयाअो, कयपुग्णाम्रो ण तानो अम्मयानो. कयलक्खणानो णं ताओ अम्मयामो, कयविहवाओ णं तानो अम्मयानो, सूलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीविय ° फले, जाओ णं विउल असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडाति, उवक्खडावेत्ता बहूहि मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि परिवुडाओ तं विउलं असणं पाणं खाइम साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च पुष्फ'- वत्थ गंध-मल्लालंकारं गहाय पाडलिसंडं नयरं मज्झमझेणं पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरिणी प्रोगाति, ओगाहेत्ता व्हायानो' 'कयबलिकम्मानो कयकोउय-मंगल °. पायच्छित्तानो तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं बहूहि मित्त नाइ-नियमसयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं ° सद्धि प्रासाएंति वीसाएंति परिभाएंति परिभजेंति, दोहलं विणेति ---एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव सागरदत्त सत्थवाहे तेणंव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाह एवं वयासीधण्णायो णं तायो अम्मयाओ जाव दोहलं विणेति, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया जाव दोहलं विणित्तए॥ २४. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे गंगदत्ताए भारियाए एयमटुं अणुजाण ॥ २५. तए णं सा गंगदत्ता सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी विउलं १. सं० पा० ---तो णं जाव ओयाइणइ । २. सं० पा०--ताओ जाव फले। ३. सं० पा०-मित्त जाव परिवुडाओ! ४. सं० पा०-पुप्फ जाब गहाय । ५. सं० पा०---हायाओ जाव पायच्छित्ताओ। ६. सं० पा०-~मित्त जाव सद्धि । ७. ना० ११११२४ । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवा असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसरणं च सुबहु पुप्फवत्य-गंध-मल्लालंकारं परिगेण्हावेइ, परिगेण्हावेत्ता बहूहि' मित्त-नाइनियम-संयण - संबंधि- परियणमहिलाहिं सद्धि हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता' जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ जाव' धूवं डहेइ, उहेत्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ ॥ २६. तए णं ताम्रो मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि परियण 'महिलाओ गंगदत्तं सत्यवाहि सव्वालंकारविभूसियं करेंति ।। २७. तए णं सा गंगदत्ता भारिया ताहि मित्त'- नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं, अण्णाहि य वहूहि नगर महिलाहिं सद्धि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं विणे, विणेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया || २८. तए णं सा गंगदत्ता सत्थवाही संपुण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ॥ २६. तए णं सा मगदत्ता भारिया नवग्रहं मासाणं' बहुपडिपुण्णाणं दारगं • पयाया । ठिsaडिया जाव जम्हा णं म्हं इमे दारए उंबरदत्तस्स जक्खस्स प्रोवाइलद्वए तं होउ णं दारए उंबरदत्ते नामेणं ॥ ७८० ३०. तए गं से उंबरदत्ते पंचधाईपरिग्गहिए परिवढए || ३१. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे " श्रण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च - चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुद्दे पोयवहणेण उवागए || ३२. तए गं से सागरदत्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए निब्बुडुभंडसारे प्रत्ताणे सरणे कालधम्मुणा संजुत्ते " ० ॥ ३३. " तए णं सा गंगदत्ता सत्यवाही श्रण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्थविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च प्रणुचितेमाणी- अणुचितेमाणी कालधम्णा संजुत्ता ॥ ° १. सं० पा०-० - बहूहिं जाव ण्हाया । २३. पू० - वि० ११७ २१ । ४. वि० १।७।२१। ५. सं० पा०-मित्त जाव महिलाओ । ६. सं० पा०—मित्त ७. पू० - वि० o (क, ख, ग, घ ) । ११. पू० - वि० १२/५३, ५४ । १२१३०; पसत्यदोहला ५ १२. सं० पा० – गंगदत्ता वि ८. स० पा० - मासाणं जाव पयाया | ९. वि० १।३।३१,३२ । १०. सं० पा०-- जहा विजयमित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (उंबरदत्ते) ३४. "तए णं ते नगरगुत्तिया गंगदत्तं सत्थवाहिं कालगयं जाणित्ता उंबरदत्तं दारगं सानो गिहायो निच्छु भेति, निन्छु भत्ता तं गिह अण्णस्स दलयंति ।। ३५. तए णं तस्स उवरदत्तस्स दारगस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउन्भूया, [तं जहा-सासे कासे जाव' कोढे । ३६. तए णं से उंबरदत्ते दारए सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे 'कच्छल्ले जाव* देहंवलियाए वित्ति कप्पेमाणे विहरइ ! ३७. एवं खलु गोयमा ! उबरदत्ते दारए पुरा पोराणाण' 'दुच्चिणाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाण पावाणं कडाण कम्माण पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणु भवमाणे ' विहरई॥ उंबरदत्तस्स प्रागामिभव-वण्णग-पदं ३८. 'उंबरदत्ते गं भंते ! दारए" कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ? गोयमा ! उंवरदत्ते दारए वावरि वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । संसारो तहेब। तो हत्थिणाउरे नयरे कुक्कुडत्ताए पच्चायाहिइ । 'से णं गोढिल्लएहि वहिए'१० तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्टिकुलसि उववज्जिहिइ । बोही । सोहम्मे कप्पे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं ३६. ०एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते । –त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०-उंबरदत्त निच्छूढे जहा दारए (घ); प्राक्तनाध्ययनक्रमेणायं पाठो उझियए। गृहीतः । २. वि० १४१३५२ । ८. उववणे (क, ख, ग, घ) । भाविप्रश्नप्रसङ्ग३. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांश: प्रतीयते। त्वेन असौ पाठः प्रसङ्गत: प्रतिभाति । ४. वि०११७।७। ६. तहेव जाव पुढवी (ख, ग, घ); पू०-वि० ५. सडियहत्थं जाव विहरई (क, ख, ग, घ)। १।११७० । ६. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ। १०. जाय मत्ते चेव गोट्रिवहिए (घ)। ७. तए णं उंबरदते दारए (क, ख); से णं ११. सं० पा०-निक्खेवो। उंबरदत्ते दारए (ग); तए णं से उबरदते १२. ना.११११७ । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं सोरियदत्त उक्खव-पदं १. जइणं भंते ! "समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णते, अट्ठमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णते ? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी --एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं। सोरियवडेंसगं उज्जाणं। सोरियो जक्खो । सोरियदत्ते राया ॥ तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए' होत्था ॥ तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ-अहम्मिए जाव" दुप्पडियाणंदे ।। तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था--ग्रहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा।। तस्स णं समुद्ददत्तस्स मच्छंधस्स पुत्ते समुद्ददत्ताए भारियाए अत्तए सोरियदत्ते ___ नाम दारए होत्था---अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे॥ ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव' परिसा पडिगया । १. सं० पा०-अट्र मस्स उवखेवओ। २. ना० १११७ । ३. मच्छधे पाडए (ख); मच्छवघपाडए (घ)। ४. वि०१।११४७ । ५. पू०-ओ० सू०१५ । ६. पू०---वि० ११२।१०। ७. बि० १।४।११। ७८२ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८३ अट्ठमं अज्झयगं (सोरियदत्ते) सोरियदत्तस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेटे सीसे जाव' सोरिय पुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाइं अडमाणे ? ] अहापज्जत्तं समुदाणं गहाय सोरियपुरानो नयराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता तस्स मच्छंधपाडगस्स अदूरसामतेणं वीईवयमाणे महइमहालियाए मणुस्सपरिसाए मझगयं पासइ एग पुरिसं-सुक्क भुक्खं निम्मंसं अट्टिचम्मावणद्धं किडिकिडियाभूयं नीलसाडगनियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाई कलुणाई वीस राई उक्कूवमाणं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ । पुव्वभवपुच्छा जाव' वागरणं ।। सोरियदत्तस्स सिरीयभव-वण्णग-पदं ६. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे नदिपुरे नाम नयरे होत्था । मित्त राया ॥ १०. तस्स ण मित्तस्स रणो सिरीए नाम महाणसिए होत्था—अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणदे ।। ११. तस्स णं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया' य दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि बहवे सण्हमच्छा य जाव पडागाइपडागे य, अए य जाव' महिसे य, तित्तिरे य जाव' मयूरे य जीवियानो ववरोवेंति, ववरोवेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति, अण्णे य से बहवे तित्तिरा य जाव मयूरा य पंजरंसि संनिरुद्धा चिटुंति, अण्ण य बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्तवेयणा ते बहवे तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवंतए चेव 'निप्पखेति, निप्पक्खेत्ता' सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति ॥ १. वि० ११२११२-१४ । २. कूवमाणं (घ)। ३. किमिकवले (ख)। ४. सं० पा०-पोराणाणं जाब विहरइ । ५. वि० ११२।१५,१६ । ६. वि० १११५४७ । ७. सोउरिया (ख)। ८. कल्लंकल्लं (क, ग)। ६. पण्ण० पद १। १०. वि. ११७।१६ । ११. वि० ११७।१६। १२. जीवियए (ख)। १३. निप्पेखंति २ (क); निप्पंखेइ २ (घ)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ विवागसुयं १२. तए णं से सिरोए महाणसिए बहूणं जलयर-थलयर-खयराणं मसाई कप्पणी कप्पियाई करेइ, तं जहा-सहखंडियाणि य 'वट्टखडियाणि य दीहखंडियाणि" य रहस्सखंडियाणि य, हिमपक्काणि य जम्मपक्काणि य धम्मपक्काणि य मारुयपक्काणि य कालाणि य हेरंगाणि' य महिठ्ठाणि य आमल रसियाणि य मुद्दियारसियाणि य कविदुरसियाणि य दालिमरसियाणि य मच्छरसियाणि य तलियाणि य भज्जियाणि य सोल्लियाणि य "उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता" अण्णे य बहवे मच्छरसए य एणेज्जरसए य तित्तिररसए य जाव' मयूर रसए य, अण्णं च विउलं हरियसागं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्तस्स रण्णो भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए उवणेति । अप्पणा वि णं से सिरीए महाणसिए तेसिं च बहूहिं जलयर-थलयर-खहयरमंसेहि च रसिएहि य हरियसागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च प्रासाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ ।। १३. तए णं से सिरीए महाणसिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सूबह पावं कम्म कलिकलुसं° समज्जिणित्ता तेत्तीसं वाससयाई परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उववण्णे ।। सोरियदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १४. तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया निंद यावि होत्था -जाया-जाया दारगा विणि घायमाबज्जंति । जहा गंगदत्ताए चिंता, आपुच्छणा, ग्रोवाइयं', दोहलो जाव' दारगं पयाया जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइय लद्धए, तम्हाणं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते नामेणं ।। १५. तए णं से सोरियदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव उम्मुक्कबालभावे विष्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते यावि होत्था । १६. तए णं से समुद्ददत्ते अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते ।। १७. तए णं से सोरियदत्ते दारए बहूहि मित्त'- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेहि सद्धि संपरिवडे ° रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे समुद्ददत्तस्स नीहरणं करेइ, करेत्ता बहई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ, अण्णया कयाइ सयमेव मच्छंधमहत्तरगत्तं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। १. दीहझडियाण वट्टखंडियाण (क)। ६. स० पा०--सुबहुं जाव समज्जिणिता। २. थेमपक्काणि (क,ख,ह०वृ);वपक्काणि (ग); ७. ओवालिय (क)। घमपक्काणी(ध,ह०१);वेगपक्काणि (मु०वृ)। ८. वि० ११७१६-२६ । ३. हराणि (घ)। ९.वि. १७१२६ । ४. उवक्खडावेत्ता (क, घ)। १०. वि०२३१३३,३४ । ५. वि० १७११६ । ११. सं० पा०-मित्त । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमं अभयणं (सोरियदत्ते ) १८. तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे । १६. तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि' एगट्टियाहिं जउणं महाणई प्रोगाहेंति, प्रोगाहेत्ता बहूहिं दहगलणेहि दहिय दहमद्दणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य मच्छंधुलेहि य' 'पयंचुलेहि य" 'पंचपुलेहि य जंभाहि य" "तिसराहि य भिस राहि य" घिसराहि य विसराहिय हिल्लिरीहि य भिल्लिरीहि य गिल्लिरीहि य" झिल्लिरीहि य जालेहिय गलेहि य कूडपासेहि य 'वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य" बालबंधेहि बहवे सहमच्छे जाव' पडागाइपडागे य गेव्हंति एगट्टियाम भरेंति, भत्ता कूल गार्हति गाता मच्छखलए" करेंति, करेत्ता प्रायवंसि दलयंति । अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइ भत्त-वेयणा श्रायव-तत्तएहिं मच्छेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणावि णं से सोरियदत्ते बहूहि सम्हमच्छेहि य जाव पडागाइपडागेहि य सोल्लेहि यतलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च प्रसारमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ || २०. तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंघस्सर अण्णया कयाइ ते मच्छे सोल्ले य तलिए य भजिए य आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था || २१. तए गं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सावे, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुपिया ! सोरियपुरे नयरे सिंघाडग"-"तिग- चउक्क चच्चर-चउम्मुह - महापह पहेसु य महया महया सणं उग्घोसेमाणा एवं वयह - एवं खलु देवाणुप्पिया ! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे । तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुश्रो वा जाणुयपुत्तो वा गिच्छित्रो वा तेगिच्छियपुत्तो वा सोरियदत्तस्स मच्छियस्स १. वि० ११११४७ । २. कल्लेकल्लं (घ) 1 ३. X ( क, ख, ग ) | ४. पर्यधुले हिय ( ख ) ; X ( ग ) । ५. पंचपुलेहि य बम्भारिएहि य ( क ) ; पंचपुलेहि जम्भाहिय ( ख ); पंचन्नलेहि य बम्भाहि य ( ग ); प्रपंच पुलादयः मत्स्यबंधनविशेषाः ( मु० वृ) प्रपंचुलादय: ० ( ह० बु ) : बंधुलादय: ० ( ह० व ) | ७८५ ६. तिमिराहिय भिसिराहिय ( ग ) । ७. X ( क, ख, घ ) | ८. णक्खबंधेहि य (ग); वक्कबंधेहि य बालबंचेहि य (घ ) 1 ६. पण पद ० १ । १०. एमट्टियं ( क, ख, ग ) ! ११. मच्छखलए ( क, ख ) । १२. मच्छंधियस्स (क, ख, ग, घ ) । १३. सं० पा० - सिंघाडग जाव पहेसु । णक्खबंधेहि य Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ विवागसुयं मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ ।। २२. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव' उग्घोसंति ।। २३. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्धोसणं निसाति, निसामेत्ता जेणेव सोरियदत्तस्स गेहे जेणेव सोरियदत्ते मच्छंधे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहिं उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहि परिणामेमाणा-परिणामेमाणा व मणेहि य छड्डणेहि य प्रोवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटयं गलानो नीहरित्तए, नो संचाएंति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा ॥ २४. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटगं गलाओ नोहरित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। २५. तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे वेज्जपडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निवि पणोसहभेसज्जे तेणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे सुक्के भुक्खे जाव' किमियकवले य वममाणे विहरइ ॥ २६. एवं खलु गोयमा ! सोरियदत्ते पुरा पोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुष्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्च्णुभवमाणे° विहरइ ॥ सोरियदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २७. सोरियदत्ते णं भंते ! मच्छंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! सत्तरि वासाइं परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो तहेव' । हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ मच्छिएहिं जीवियाओ १. वि०१८२१ । २. उग्घोसणं उग्घोसेज्जतं (ख, घ)। ३. मच्छंधे (क, ख, ग, घ)। ४. परिगया (क)। ५. वि. शा। ६. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ। ७ वि० ११११७० । तहेव जाव पुढवी (क)। ८. उववण्णे (क, ख, ग, घ)। भाविप्रश्न प्रसंगत्वेन असौ पाठः असंगप्रति प्रतिभाति । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८७ अट्ठम अज्झयणं (सोरियदत्ते) ववरोविए तत्थेव सेट्टिकुलंसि उववज्जिहिइ । बोही । सोहम्मे कप्पे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं २८. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अटुमस्स अझयणस्स अयम? पण्णते। —त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०---निवखेवो। २. ना० १५१७ । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं देवदत्ता उक्खेव-पदं १. जइ गं भंते । "समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्टे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-प्रणगारं एवं वयासी --एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए' नामं नयरे होत्था—रिद्धस्थिमियसमिद्धे । पुढवीव.सए उज्जाणे । धरणो जक्खो। वेसमणदत्ते' राया। सिरी देवी। पूसनंदी कुमारे जुवराया। ३. तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे । कण्हसिरी भारिया ॥ ४. तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामंदारिया होत्था-अहीण पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा' ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव' परिसा पडिगया । देवदत्ताए पुष्वभवपुच्छा-पदं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जेटे अंतेवासी छ? क्खमणपारणगंसि तहेव जाव" रायमग्गमोगाढे हत्थी आसे पुरिसे पासइ । तेसिं १. स. पा०-उक्खेवओ नवमस्स । इति पाठोस्ति । वि० ११४११० तथा २. ना० १११७। १४:३६ सूत्रानुसारेण पाठद्वयोमिश्रण ३. रोहीतके (क, ग) सर्वत्र । संभाव्यते । अस्माभिरत्र एको गृहीतः । ४. वेसमणदत्तो (ख, घ)। ६. वि० १।४।११। ५. सर्वासु प्रतिषु 'अहीण जाव उक्किट्ठसरीरा' ७. वि० ११२।१३,१४ । ७८८ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) ७८९ पुरिसाणं मझगयं पासइ एगं इत्थिय--अवनोडयबंधणं उक्खित्त'-'कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झ-करकडि-जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वज्झपाणपीयं सूले भिज्जमाणं पासइ, पासित्ता भगवो गोयमस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, तहेव निग्गए जाव' एवं वयासी-एस णं भंते ! इत्थिया पुन्वभवे का आसि' ? देवदत्ताए सीहसेणभव-वण्णग-पदं ७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे मारहे वासे सुपइट्ठ नामं नयरे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धे । महासेणे राया। ८. तस्स णं महासेणस्स रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था ॥ ६. तस्स णं महासेणस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए सीहसेणे नामं कुमारे होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे जुवराया ॥ १०. तए णं तस्स सीहसे णस्स कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ पंच पासायवडे सयसयाइं करेंति-अब्भुग्गयमूसियाई ॥ ११. तए णं तस्स सीहसेणरस कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ सामापामो खाणं पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं एग दिवसे पाणि गिण्हावेसु । पंचसो दाओ। १२. तए णं से सीहसेणे कुमारे सामापामोक्खेहि पंचहि देवीसएहि सद्धि उपि पासायवरगए जाव' विहरई ।। तए णं से महासेणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते। नीहरणं । राया जाए। १४. तए णं से सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अवसेसानो देवीनो नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ॥ १५. तए णं तासि एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगुणाई पंचमाइसयाइं इमीसे कहाए लढाई सवणयाए"-एवं खलु सीहेसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे १. सं० पा०-उक्खित्त जाव सूले । २. वि० ११२।१५। ३. पू०-वि० ११२।१६। ४. महसेणे (क)। ५. ओरोधे (क)। ६. पू०-ना० १२१८६ । ७. सम्मा० (क) सर्वत्र । ८. पंचसयओ (व)। ६. ना० १।श६३ । १०. जाए महया (घ)। ११. समणयाए (ख); समाणाई (ध)। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ। तं सेयं खलु अम्हं सामं देवि अग्गियओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए-एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणिय पडिजाग रमाणीओ. पडिजागरमाणीओ विहरति । १६. तए णं सा सामा देवी इमीसे कहाए लट्ठा सवणयाए..--"एवं खलु मम [एगूणगाणं ? ] पंचण्हं सवत्तीसयाणं एगूणाई?] पंचमाइसयाइं इमीसे कहाए लट्ठाई सवणयाए अण्णमण्णं एवं वयासी–एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए जाव' पडिजामरमाणीओ विहरंति" तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्संती ति कटु भीया तत्था तसिया उद्विग्गा संजायभया जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ओहय'मणसंकप्पा करतलपल्हत्थ मुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया • झियाइ॥ १७. तए णं से सीहसेणे राया इमीसे कहाए लढे समाणे जेणेव कोवघरए, जेणेव सामा देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामं देविं ओहय मणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहि अट्टझाणोवगयं भूमिगयदिट्ठीयं झियायमाणि° पासइ, पासित्ता एवं वयासी किं णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहय"मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया • झियासि ? तए णं सा सामा देवी सीहसेणेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा उप्फेणउप्फेणियं' सीहसणं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! ममं एगूणगाणं पंच सवत्तीसयाणं ए गणाई पंच माइंसयाइं इमीसे कहाए लद्धद्वाइं सवणयाए अण्णमण्णं सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु सोहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परिजाणइ जाव" अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ-पडिजागरमाणीओ विहरति ।" तं न नज्जइ णं सामी ! ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्संती ति कट्ट भीया जाव झियामि ॥ १८. १. विरहाणि (क, ग, घ)। ६. सं० पा०-ओहह्य जाव झियासि। २. सवणयाए एवं वयासी (क, ग, घ); समाणी ७. उप्फेगाउप्फेणियं (क)। एवं वयासी (ख); अत्र श्रवणप्रसङ्गोऽस्ति, ८. समाणाई (ख, ग); समाणाई सवणयाए न तु कथनस्य । तेन ‘एवं वयासी' इति पाठः (घ)। प्रकृतो नास्ति, सम्भवतो लिपिदोषेण जातः । ६. सहावेंति २(क, ख, ग, घ)। ३. वि० १६०१५ । १०. वि० १०६।१५। ४. सं० पा०---ओह्य जाव झियाइ। ११. वि० १६१६॥ ५. सं० पा०-ओहय जाव पास। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) १६. तए णं से सीहसेणे राया सामं देवि एवं वयासी --मा णं तुम देवाणु प्पिया ! अोहयमणसंकप्पा जाव' झियाहि । अहं णं 'तह पत्तिहामि" जहा णं तव नत्थि कत्तो वि' सरीरस्स आवाहे वा पबाहे वा भविस्सइ त्ति कटु ताहि इटाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि वग्गूहि समासासे इ, समासासेत्ता तो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सुपइट्ठस्स नयरस्स बहिया एगं महं कडागारसालं --अणेगक्खंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं करेह ‘ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।।। तए णं से कोडुबियपुरिसा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं वयण ° पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सुपइटुनयरस्स" बहिया पच्चत्थिमे दिसीभाए एग महं कूडागारसालं- अणंगवखंभसयसंनिविटुं पासादीयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं करेंति, जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ २१. तए णं से सीहसेणे राया अण्णया कयाइ एगुणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंच माइसयाई पामतेइ ।। २२. तए णं तासि एगूणगाणं पंच देवीसयाणं एगणाइं पंच भाइसयाइं सीहसेणेणं रण्णा आमंतियाइ समाणाई सव्वालंकारविभूसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपइट्टे नयरे, जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उति। २३. तए णं से सीहसेणे राया एगणपंचण्हं देवीसयाणं एगुणगाणं पंचण्हं माइसयाणं कूडागारसालं आवासं दलयइ॥ २४. तए णं से सीहसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवणेह, सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च कूडागारसाल साहरह ॥ २५. तए णं ते कोडुबियपुरिसा तहेव जाव" साहरंति ॥ १. वि० श६१६। ५. एयमटुं (क, ख, ग)। २. तह धत्तीहामि (क); तहा पत्तिहामि (ग); ६. सं० पा०-करयल जाव पडिसुणेति । तहा वत्तीहामि (घ); तहा जत्तिहामि ७. सुपइट्ठिय ° (क, ख, ग, घ)। (क्व); • जत्तीहामि (ह० वृ) ° यती- ८. सालं जाव करेंति (क, ख, ग, घ)। हामि (हव)। ६. उवर्णेति (क); उवागच्छनि (घ) । ३. इ (,ख ग)। १०. आवसह (क, ख); आवहं (ग)। ४. सालं करेह (क, ख, ग, घ)। ११. वि० शह।२४। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ विवागसुयं २६. तए णं तासि एगूणगाणं पंचण्हं देवोसयाणं 'एगणाइं पंच माइस याई" सव्वालंकारविभूसियाई तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुंच मेरगं च जाइं च सीधू च पसण्णं च आसाएमाणाई वीसाएमाणाई परिभाएमाणाई परिभुजेमाणाई गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगीयमाणाई - उवगीयमाणाई विहरंति ॥ २७. तए णं से सीहसेणे राया अद्धरत्तकालसमयंसि बहूहिं पुरिसेहिं सद्धि संपरिवुडे जेणेव कडागारसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कूडागारसालाए द्वाराई पिहेइ, पिहेत्ता कूडागारसालाए सब्वमो समंता अगणिकायं दलयइ ।। २८. तए णं तासिं एगुणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणगाई पंच माइसयाइं सीहसेणेणं रण्णा पालीवियाई समाणाई रोयमाणाई कंदमाणाइं विलवमाणाई अत्ताणाई प्रसरणाई कालधम्मुणा संजुत्ताई ॥ २६. तए णं से सोहसेण राया एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु •पावं कम्म कलिकलुसं ' समज्जिणित्ता चोत्तीस वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु ने रइयत्ताए उववणे ॥ देवत्ताए वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ३०. से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव रोहीडए' नयरे दत्तस्स सत्थवाहस्स कण्हसिरीए भारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए उववण्ण ।। ३१. तए णं सा कण्हसिरो नवण्हं मासा' 'बहुपडिपुण्णाणं ° दारियं पयाया सूमाल सुरुवं ।। ३२. तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहियाए विउल असणं पाणं खाइमं साइम उवक्खडावंति, उवक्खडावेत्ता जाव' मित्त-नाइ-नियग-सयण संबंधि-परियणस्स पुरनो नामधज्जं करेंति होउ णं दारिया देवदत्ता नामेणं ।। ३३. तए णं सा देवदत्ता दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव परिवड्डइ ॥ ३४. तए णं सा देवदत्ता दारिया उम्मुक्कबालभावा* *विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वण गमणुप्पत्ता रूवेण जोव्वणेण लावणेण य° अईव-अईव उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था ॥ १. पंच माइसयाई जाव (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-सुबहु जाव समज्जिणित्ता। ३. रोहीतए (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-मासाणं जाव दारियं । ५. वि०२३३२। ६. वि० ११२१४६ । ७. सं० पा०-उम्मुक्कबालभावा रूवेण लावण्णण य जाव अईव । जोव्वणेण Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) ७६३ ३५. तए णं सा देवदत्ता दारिया अण्णया कयाइ पहाया जाव' विभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता उप्पि पागासतलगंसि' कणगतिदूसएणं कीलमाणी विहरइ ।। ३६. इमं च णं वेसमणदत्ते राया ण्हाए जाव' विभूसिए आसं 'दुरुहति, दुरुहित्ता" बहूहिं पुरिसेहि सद्धि संपरिवुडे अासवाहणियाए निज्जायमाणे दत्तस्स गाहा वइस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं बीईवयइ ॥ ३७. तए णं से वेसमणे राया 'दत्तस्स गाहावइस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे देवदत्त दारियं उपि अागासतलगंसि कणतिदूसएणं कीलमाणि पासइ, पासित्ता देवदत्ताए दारियाए 'रूवे य जोवणे य लावण्णे य" जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-कस्स णं देवाणुप्पिया ! एसा दारिया ? कि च नामधेज्जेणं ? ३८. तए णं ते कोडुबियपुरिसा वेसमणरायं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासो--एस णं सामी ! दत्तस्स सत्थवाहस्स धूया काहसिरीए भारियाए अत्तया देवदत्ता नाम"दारिया रूवेण य जोव्वर्णण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा ॥ ३६. तए णं से वेसमणे राया पासवाहणियानो पडिनियत्ते समाणे अभितरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-- गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! दत्तस्स धूयं कण्हसिरीए भारियाए अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसनंदिस्स जुवरण्णो भारियत्ताए वरेह, जइ वि य सा सयरज्जसुंका" ॥ ४०. तए ण ते अब्भितरठाणिज्जा पुरिसा वेसमणेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्टा करयल परिग्गहियं सिरसावत्त मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं ° पडिसुणति, पडिसुणेत्ता पहाया जाव" सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइ वत्थाई पवर परिहिया संपरिवुडा जेणेव दत्तस्स गिहे तेणेव उवागया ।। ४१. तए ण से दत्ते सत्थवाहे ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे पासणाप्रो अब्भुट्टेइ, अब्भुद्वेत्ता सत्तट्ठ पयाई पच्चुग्गए" पासणेणं १. वि० १५२१६४ ६. वा (घ)। २. ओ० सू०७०। १०. सं० पा०—करयल ° । ३. तलंसि (क)। ११. नामेणं (क)। ४. वि० ११२१६४ । १२. सयं० (ख, घ)। ५. द्रुहति (क)। १३. सं० पा०-करयल जाव पडिसूणेति । ६. आसवाहिणियाए (ग)। १४. ओ० सू० २०; पू०–ना० १।१६।१३४ । ७. स० पा०---राया जाव वीईवयमाणे। १५. अब्भुग्गए (ख, ग)। ८. रूदेण य जोवणेण य लावण्णेण य (ग, घ)। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ विवाग सूर्य निमंते, उवनिमंतेत्ता ते पुरिसे प्रासत्ये वीसत्थे सुहासणवरगए एवं व्यासीसदिसंतु णं देवाप्पिया ! कि आगमणपश्रयणं ? ४२. तए णं ते रायपुरिसा दत्तं सत्थवाहं एवं वयासी - अम्हे णं देवाशुप्पिया ! तव धूयं कण्हसिरीए अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसनंदिस्स जुवरण्णो भारियत्ताए वरेमो । तं जइ णं जाणसि देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा, सरसो वा संजोगो, दिज्जउ णं देवदत्ता दारिया पूसनंदिस्स जुवरण्णो । भण देवापिया ! किं दलयामो सुंक' ? ४३. तए णं से दत्ते ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी - एवं चेव णं देवाणुपिया ! ममं सुकं जं णं वेसमणे राया मम दारियानिमित्तेणं अणुगिण्हइ । ते अब्भितरठाणिज्जे पुरिसे विउलेणं पुप्फ-वत्थ- गंध - मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणे, सक्कारेत्ता सम्मणेत्ता पडिविसज्जेइ !! ४४. तए णं ते प्रभितरठाणिज्जा पुरिसा जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छंति, वेसमणस्स रण्णो एयमटुं निवेदेति ॥ ४५. तए णं से दत्ते गाहावई प्रण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि करण-दिवस-नवखत्तमुहुत्तंसि विउ असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ - नियग-सयण संबंधि-परियणं ग्रामंतेइ पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल - पायच्छिते सुहासणवरगएणं मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि- परियणेणं सद्धि संपरिवडे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं श्रसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमा परिभुंजे माणे एवं च णं विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वियणं प्रायंते चोक्खे परमसुइभूए तं मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि- परियणं 'विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता देवदत्तं दारियं हायं जाव' सव्वालंकारविभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि ' सीयं दुरुहेइ, दुरुहेत्ता सुबहु मित्त'- नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुडे सब्बिड्डी जाव' दुंदुहिनिग्घोस-नाइयरवेणं रोहीड्यं नयरं मज्भंमज्भेणं जेणेव वेसमणरण्णो मिहे, जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु वेसणं राय जणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता वेसमणस्स रण्णो देवदत्तं दारियं उवणे || O १. सुक्कं ( ख, ग, घ ) । २. स० पा०-हाए जाव पायच्छिते । ३. विउलगंधपुष्फ जाव अलंकारेणं ( क, ख, ग, घ ) | ४. वि० १।२।६४ ॥ ५. ० वाहिणी ( ख, ग ) । ६. सं० पा०-मित्त जाव सद्धि । ७. ओ० सू० ६७ । ८. सं० पा० - करयल जाव वद्धावेइ । o Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभयणं (देवदत्ता ) ७६५ ४६. तए णं से वेसमणे राया देवदत्तं दारियं उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयणसंबंधि- परियणं ग्रामंतेइ जाव' सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पूसनंदि कुमारं देवदत्तं च दारियं पट्टयं दुरुहेइ, दुरुहेत्ता सेयापीएहिं कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावेत्ता वरनेवत्थाई करेइ, करेत्ता ग्रग्गिहोमं करेइ', करेत्ता पूसनंद कुमारं देवदत्ताए दारियाए पाणि गिण्हावेइ || ४७. तए णं से वेसमणदत्ते राया पूसनंदिकुमारस्स देवदत्तं दारियं सव्विड्डीए जाव' दुहिनिग्घोस-नाइयरवेणं महया इड्डीसक्कारसमुदएणं पाणिग्ग्रहणं कारेइ", कारेत्ता देवदत्ताए दारियाए सम्मापियरो मित्त' - नाइ - नियग - सयण-संबंधि ०. परियणं च विउलेण असण- पाण- खाइम साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्भाषेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ४८. तए णं से पूसनंदी कुमारे देवदत्ताए भारियाए " सद्धि उप्पि पासाय वरगए फुट्ट - माणेहिं मुइंगमत्थएहि बत्तीसइबद्धनाडएहि उवगिज्जमाणे" उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इट्ठे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधे विउले माणुस कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ || ४६. तए गं से वेसमणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते । नीहरणं जाव" राया जाए नंदी || ५०. तए णं से पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभते यावि होत्था । कल्ला कल्लि जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए पायवडणं करेइ, करेत्ता सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अभंगावे, ग्रसुिहाए मंससुहाए तया सुहाए: रोमसुहाए - चउब्विहाए संवाहणाए संवाहावेइ, संवाहावेत्ता सुरभिणा गंधट्टएणं" उब्वट्टावेइ" उन्वट्टावेत्ता तिहि उदएहिं मज्जावेइ, १. वि० ११६/४५ । ६. विउलं (क, ख, ग, घ ) । २. X ( क, घ ) । १०. दारिया (क, ख ) ३. दूहेति ( क ); दुहति ( ख ) ; दुरहेति ( ग ); ११. सं० पा० - उवमिज्जमाणे जाव विहरइ । दुरुहेत्ति (घ) 1 १२. वि० १।५।२२-२४ । ४. यापीतएहि ( क ) 1 ५. कारेइ (क) 1 ६. ओ० सू० ६७ । ७. करे (क, ख, ग, घ ) । ८. सं० पा०मित्त जाव परियणं । १३. चम्मसुहाए ( ख ) । १४. गंधदूएणं ( क ) ; गंधवट्टएणं ( ख, ग, वृ); ठाणेपि ३८७ सूत्रे 'गंधट्टएणं' इति पाठोस्ति । १५. उब्वट्टेइ (ग)। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ विवागसु [ तं जहा - उसिणोदएणं 'सीओदएणं गंधोदएणं" ] विउलं असणं पाणं खाइम साइमं भोयावेइ, भोयावेत्ता सिरोए देवीए व्हायाए कयबलिकम्माए कयकोउयमंगल - पायच्छित्ताए जिमियभुत्तुत्तरागयाए तओ पच्छा पहाइ वा भुंजइ वा, उरालाई माणुस्साई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ || ५१. तए णं तोसे देवदत्ताए देवीए अण्णया कयाइ पुब्वरत्तावरत्तकालसमयं सि कुडुंब जागरियं जागरमाणोए इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - एवं खलु पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते जाव' विहरइ । तं एएण वक्खेवेण नो संचाएमि ग्रहं पूसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई माणुस्साई भोगभोगाई भुजमाणी विहरित्तए । तं सेयं खलु ममं सिरिदेवि श्रग्गियोगेण वा सत्यप्पयोगेण वा विसप्पनोगेण वा जीवियाम्रो वववेत्ता पूसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमापीए वित्तिए -- एवं संपेहेइ, संपत्ता सिरीए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी' विहरइ || ५२. तरणं सा सिरी देवी अण्णया कयाइ मज्जाइया' विरहियस्यणिज्जंसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था || ५३. इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरि देवि मज्जाइयं विरहियसयणिज्जंसि सुहपसुत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता लोहदंडं परामुसइ, परामुसित्ता लोहदंड तावेइ, तत्तं' समजोइभूयं फुल्लकिसुयमाणं संडास एणं महाय जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए प्रवासि पक्खिवइ" || ५४. तरणं सा सिरी देवी महया-महया सद्दणं प्रारसित्ता कालधम्मुणा संजुत्ता ॥ ५५. तए णं तोसे सिरोए देवए दासचेडाम्रो आरसियस सोच्चा निसम्म जेणेव सिरी देवो तेर्णव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदत्त देवि तत्र अवक्कममाणि पासंति, पासित्ता जेणेव सिरी देवो तेर्णव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिरि देवि निष्पाणं निच्च जोवियविप्पजढं पासति, पासित्ता हा हा ! ग्रहो ! कज्ज १. गंधोदणं सीओदएण (क, ग ) ; कोष्ठकवर्त्ती पाठ: व्याख्यांशः प्रतीयते । २. सं० पा० - व्हायाए जाव पायच्छित्ताए । ३. वि० १।६।५० । ४. सिरिदेवी (क, ख, ग, घ ) । ५. वा मंतपओगेण वा (घ) । ६. पडिजागरमाणा (क, ग) | ७. मज्जातीता (क); मज्जावीता (घ ) । ८. तए णं तं (क, ख ) 1 ६. पुफर्किय ० ( ग ) । १०. पक्खिवेइ ( ख, ग ) । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता ) मिति कट्टु रोयमाणी कंदमाणीग्रो विलवमाणीग्रो जेणेव पुसनंदी राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पूसनंदि रायं एवं वयासी – एवं खलु सामी ! सिरी देवी देवदत्ताए देवीए प्रकाले चेव जीवियाओ ववरोविया ॥ ५६. तए से पूसनंदी राया तासि दासचेडीणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म महया माइसोएणं प्रप्फुण्णे' समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धस त्ति धरणीयसिसव्वंहिं संनिवडिए || ५७. तए णं से पूसनंदी राया मुहुत्तंतरेण ग्रासत्थे समाणे बहूहि राईसर - तलवरमाsबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि सेणावइ - सत्थवाहेहि मित्त'- नाइ नियग-सयणसंबंधि - परियणेण य सद्धि रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सिरीए देवीए महया इडीए नीहरणं करेइ, करेत्ता आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे देवदत्तं देवि पुरिसेहिं गिण्हावेइ, एएणं विहाणेणं वज्भं आणवेइ ॥ ५८. तं एवं खलु गोयमा ! देवदत्ता देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिष्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ देवदसाए प्रागामिभव-वष्णग-पदं ५६. देवदत्ताणं भंते! देवी इम्रो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहि ? ७६७ १. अप्पुष्णे णं ( क ) ! २. स० पा० - राईसर जाव सत्यवाहेहिं । गोयमा ! असीइं वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रणभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहि ' । संसारो [ तहेव जाव' ? ] वणसई । तो अनंत उव्वट्टित्ता गंगपुरे नयरे हंसत्ताए पच्चायाहिइ । सेणं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे नयरे सेट्ठिकुलंसि उववज्जि eिs | बोही । सोहम्मे । महाविदेहे वासे सिज्झिहि ॥ निवखेव पदं ६०. “एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स श्रयमद्वे पण्णत्ते । - त्ति बेमि ॥ ° ३. सं० पा०--मित्त जाव परियणेण । ४. ततेणं (ख, घ); तेणं ( क्व ) । ५. सं० पा० - पोराणाणं जाव विहर।। o ६. उबवण्णे (क, ख, ग, घ ) । ७. वि० १।१।७० । ८. सं० पा०-- निक्खेवो । २. ना० १1१1७1 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं अंजू उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं ___ भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? । २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी ° -एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्डमाणपुरे नाम नयरे होत्था। विजयवड्डमाणे उज्जाणे । माणिभद्दे जक्खे । विजय मित्ते राया ॥ ३. तत्थ णं धणदेवे नाम सत्थवाहे होत्था–अड्ढे । पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव' उक्किट्ठसरीरा । समोसरणं परिसा जाव' गया ।। अंजूए पुन्वभवपुच्छा-पदं ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेट्रे अंतेवासी जाव' अडमाणे विजय मित्तस्स रण्णो गिहस्स असोगवणियाए अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे पासइ एग इत्थियं-सुक्क भुक्खं निम्मंसं किडिकिडियाभूयं अद्विचम्मावणद्धं नीलसाडगनियत्थं कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूवमाणि पासइ, पासित्ता चिता तहेव जाव एवं वयासी-सा णं भंते ! इत्थिया पुव्वभवे का आसि ? वागरणं॥ १. सं० पा०-दसमस्त उक्खेवप्रो। २. ना० १३११७ । ३. वि० ११४:३६। ४. वि० १।४।११। ५. वि०१२।१२-१४ । ६. नियच्छ (ख)। ७. विस्सराइं (ख, घ); विसराइं (ग); ८. वि० ११२॥१५॥ ६. पू०-- वि० १२।१६ । ७६८ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (अंजू) ७६९ अंजूए पुढविसिरोभव-वण्णग-पदं ५. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नामं नयरे होत्था ! ६. तत्थ णं इंददत्ते राया । पुढविसिरी' नामं गणिया होत्था-वणयो" !! ७. तए णं सा पुढविसिरी गणिया इंदपुरे नयरे बहवे राईसर'- तलवर-माडंबिय कोडुबिय-इन्भ-सेट्टि-सेणावइ-सत्थवाह पभियत्रो बहुहि •य विज्जापोगेहि य मंतपओगेहि य चुण्णप्पप्रोगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभियोगिएहिं आभिनोगित्ता उरालाई भाणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहर।। ८. तए णं सा पुढविसिरी गणिया एयकम्मा एयप्पहाणा एयविज्जा एयसमायारा सुबहुं •पावं कम्म कलिकलुसं° समज्जिणिता पणतीसं बाससयाइं परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीसं सागरोवम ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा । अंजू ए वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ६. साणं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वड्डमाणपुरे नयरे धणदेवस्स सत्थवाहस्स पियंगुभारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए उववण्णा ।। १०. तए णं सा पियंगुभारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया। नाम अंजू । सेसं जहा देवदत्ताए। ११. तए णं से विजए राया आसवाहणियाए निज्जायमाणे जहा वेसमणदत्ते' तहा अंजु पासइ, नवरं-अप्पणो अट्ठाए वरेइ जहा तेयली जाव अंजूए भारियाए सद्धि उपि पासायवरगए जाव" विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहर।। १२. तए ण तीसे अंजूए देवीए अण्णया कयाइ जोणिसूले पाउन्भूए यावि होत्था । १३. तए णं से विजए राया कोडं वियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह १. पुहवि (क, ग) ! ६. सं० पा०~-सुबहुं जाव समज्जिणित्ता । २. वि०२७। ७. अंजूसिरी (घ)1 ३. सं० पाo-~राईसर जाव प्पभियो। ८. वि. ११६।३२-३५ । ४. सं० पा० -- बहूहि चुण्णप्पओगेहिं जाव आभि- ६. वि० १६०३६-४६ । ___ ओगित्ता । द्रष्टव्यम्-वि० १।२१७२। १०. ना० १११४३१६, २० । ५. अहिओगेत्ता (ग)। ११. वि. १६४८ । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०० विवागसुयं णं तुम देवाणुप्पिया ! वड्डमाणपुरे नयरे सिंघाडग'- तिग-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा' एवं वयह एवं खलु देवाणुप्पिया ! विजयस्स रण्णो अंजूए देवीए जोणिसूले पाउन्भूए । तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुप्रोवा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिन्नो वा तेगिच्छियपुत्तो वा 'अंजूए देवीए जोणीसूले उवसामित्तए तस्स णं वेसमणदत्ते राया विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ ॥ १४. तए णं ते कोइंबियपूरिसा जाव उग्धोसेंति ॥ १५. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपत्ता य जाणया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्धोसणं सोच्चा निसम्म जेणेव विजए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उत्पत्तियाहि वेणइग्राहिं कम्मियाहिं पारिणामियाहि बुद्धीहिं परिणामेमाणा इच्छंति अंजए देवोए जोणिसूल उवसामित्तए, नो संचाएंति उवसामित्तए । १६. तए णं ते वहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाण्या य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया ।। १७. तए णं सा अंजू देवी ताए वेयणाए अभिभूया समाणी सुक्का भुक्खा निम्मंसा कट्ठाइं कलुणाई वीसराइं विलवइ ।। १८. एवं खलु गोयमा ! अंजू देवी पुरा पोराणाण' •दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी ° विहरइ ।। अंजूए अागामिभव-वण्णग-पदं १६. अंजू णं भंते ! देवी इग्रो कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा! अंजणं देवी नउइं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं जाव' वणस्सई । सा णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वोभद्दे नयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिइ। १. सं० पा-सिंघाडग जाव एवं। ४. अंजुए देवीए बहवे उप्पत्तियाहिं (क,ख,ग,घ)। २. सं० पा०—ते गिन्छियपुत्तो वा जाव उरघो- ५. सं० पा.--पोराणाणं जाब बिहरइ । सेंति। ६. उववण्णा (क, ख, ग, घ)। ३. वि० १।१०।१३। ७. वि० ११७०। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (अंजू) ८०१ से णं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तत्थेव सव्वोभद्दे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए पव्वइस्सइ । केवलं बोहिं बुज्झिहिइ । पव्वज्जा । सोहम्मे । से णं तो देवलोगानो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जहा पढमे जाव' सिज्झिहिइ वुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिवाहिइ सम्बदुक्खाणमतं काहिह ।। निक्खेव-पदं २०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । 'सेवं भंते ! सेवं भंते" ! --त्ति बेमि ॥ १. पुमत्ताए (क)। २. वि० १३१७० । ३. ना० १४१७ । ४. सेण भते (म); सेयं भने (ग)। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं सुबाहू उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए। सुहम्मे समोसढे । जंब जाव' पज्जवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं अयमद्धे पण्णत्ते, सुहविवागाणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? । २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा सुबाहू भद्दनंदी य, सुजाए य सुवासवे । तहेव जिणदासे य, धणवई य महब्बले ।। भनंदी महच्चंदे, वरदत्ते 'तहेव य" ॥ १॥ ३. जइण भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? १. वि० १२११३,४ २. पज्जुवासइ (क, ख, ग, घ)। ३. ना० १७। ४. ना० १।१७॥ ५. ४ (क, ख, ग, घ); मुद्रितप्रत्यनुसार गृहीतोयं पाठः । ६. ना० १११७ । ८०२ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं ग्रयणं (सुबाहू) सुबाहुकुमार- पर्द ४. तणं से सुहम्मे जंबू- अणगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे || तस्स णं हत्थिसीसस्स बढ़िया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नाम उज्जाणे होत्या - सव्वोउय पुष्क-फल-समिद्धे ॥ तत्थ कयवणमालपियस्स जक्खस्स' जक्खाययणे होत्या - दिव्वे ॥1 ५. ६. ७. ८. £. तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्या - मह्याहिमंवत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे || तए गं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासभवणंसि' सीहं सुमिणे पास, जहा मेहस्स जम्भणं तहा' भाणियव्वं ॥ १०. तए णं से सुबाहुकुमारे बावत्तरिकलापंडिए जाव प्रलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था | तस्स णं प्रदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं प्रोरोहे यावि होत्था || O ११. तए णं तं सुवाहुकुमारं अम्मापियरो बावत्तरिकलापंडियं जाव' • प्रलंभोगसमत्थं वा जाति, जाणित्ता सम्मापियरो पंच पासायवडेंसगसयाई कारेंति"भुग्यमूसियहसियाई" । एगं च णं महं भवणं कारेंति एवं जहा महब्बलस्स रण्णो, नवरं -- पुप्फचूलापामोक्खाणं पंचण्हं रायवर कन्नगसयाणं एगदिवसेणं पाणि गिण्हावेति । तहेव पंचसइओ दाम्रो जाव उप्पि पासायवरगए फुट्ट माहि" मुइंगमत्थाएहिं वरतरुणिसंपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहि उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जगाणे इट्ठे सहफरिस - रस- रूव-गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ || १. तत्थ ( क ) 1 २. जहस्स ( क ) । ३. ० सीसए (क, घ) ४. वासरंसि (क्व ) | ८०३ • ५. ना० १०१।१८-३२, ७२ ६७ नवर अकाल ११. पू० ना० ११११८६ | मेघदोहद वक्तव्यता नास्ति (वृ ) | १२. ० कन्नासया (घ) ६. सं० पा० - सुबाहुकुमारे जाव प्रलंभोगस १३. गिण्हावेंसु (क, ग) मृत्थं । १४. भ० ११११५८-१६१ । १५. सं० पा० - फुट्टमाणेहि जाव विहरइ । ७. ० ० १४८ ॥ ८. ओ० सू० १४६ । ६. वा वि (क, ख, ग ) । १०. करेंति (क, ख ); करेति ( ग ); करावेंति (घ) । -- Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ विवागसुयं १३. १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा निग्गया । अदीणसत्तू जहा कूणिए तहा निग्गए। सुबाहू वि जहा जमाली तहा रहेणं निग्गए जाव' धम्मो कहियो । राया परिसा गया । तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटुतुटे उदाए उद्वेइ जाव एवं वयासी -- सद्दहामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं । जहा णं देवाणु प्पियाणं अंतिए वहवे राईसर- तलवर-माडंबियकोडुबिय-इन्भ-से द्वि-मेणावड-सत्यवाहपभियग्रो मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वयंति • नो खलु अहं तहा संचाएमि पब्वइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्व इयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जामि । अहासुह देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ॥ १४. तए णं से मुबाहू समणस्स भगवनो महावीररस अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खा वइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता तमेव चाउग्घंट प्रासरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए ।। सुबाहुस्स पुवभवपुच्छा-पदं १५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई जाव एवं वयासी - अहो णं भंते ! सुबाहुकुमारे इट्टे इट्ठरूवे कते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुण्णे भणुण्णरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदसणे सुरूवे । वहजणस्स वि य णं भंते ! सुबाहुकुमारे इ8 इट्टरूवे कंते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुण्णे मणण्णरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदसणे सुरूवे। साहुजणस्स वि य णं भंते ! सुबाहुकुमारे इतु इट्टरूवे 'कंते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुण्णे मणुषणरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदसणे° सुरूवे। सुवाहुणा भंते ! कुमारेण इमा एयारूवा उराला माणुसिड्डी किण्णा लद्धा ? किण्णा पत्ता ? किण्णा अभिसमण्णागया ? के वा एस आसि पुव्वभवे" ? 'कि १. समोसर (क, ख, ग, घ)। २. ओ० स० ५५-६६ । ३. भ० ६।१५८-१६३ । ४. ना० १११।१०१। ५. पू० -- राय० सू० ६६५ । ६. सं० पा०-गाईसर जाव नो खलु अहं । ७. वि० १११५२४,२५ । ८. सं० पा०---इट्टरूवे जाव सुरूवे। ६. इमे (क, ख)। १०. माणुस्सिड्ढी (ख); माणुस्सरिद्धी () । ११. सं० पा०--पुन्वभवे जाव अभिसमण्णागया। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (सुबाहू) नामए वा कि वा गोएणं ? कयरंसि वा गामंसि वा सण्णिवेसंसि वा ? कि वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिए एगमवि पायरियं सुवयणं सोच्चा निसम्म सुबाहुणा कुमारेण इमा एयारूवा उराला माणुस्सिनो लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया ? सुबाहुस्स सुमुहभव-बण्णग-पदं १६. 'गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी' १७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नाम नयरे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धे ।। १८. तत्थ णं हथिणाउरे नयरे समुहे नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे ।। १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाइसंपण्णा जाव पंचहि समणसएहि सद्धि संपरिवुडा पुवाणुपुद्वि चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छति', उवागच्छित्ता ग्रहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे माणा विहरति ।। २०. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सदत्ते नाम अणगारे आराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचे रवासी उच्छृढसरीरे संक्खित्त विउल° -तेयलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ ॥ २१. तए णं से सुदत्ते अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव 'धम्मघोसे थेरे' प्रापुच्छइ जाव अडमाणे समुहस्स गाहावइस्स गिहे अणुप्पवितु ॥ २२. तए णं से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतट्रे प्रासणायो अभदेइ, अभनेत्ता पायवीढायो पच्चोहइ, पच्चोरुहिता पाउयानो प्रोमुयइ, प्रोमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता सुदत्तं अणगारं सत्तट्र पयाई पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिवखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वदित्ता नमंसित्ता 'जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता सयहत्थेण" विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेस्सामीति तुटे पडिलाभेमाणे वि तुटे पडिलाभिए वि तुढे ॥ १. X (क, ख, ग)। २. ना० ११११४ । ३. उवागया (ग)। ४. सं० पा० - उराले जाव लेस्से । ५. खवमाणे (क)। ६. सुहम्मे थेरे (क); सुदत्ते थेरे धम्मघोसे (ख); 'सुहम्मे थेरे' ति धर्म घोषस्थविरानित्यर्थः, धर्मशब्दसाम्याच्छन्दद्वयस्याप्ये कार्थत्वात् (वृ) । ७. वि० ११२।१३,१४ । ८. अणुगच्छई (घ)। ६. X (क, ख, ग)। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०६ विभाग सूर्य २३. तए णं तस्स सुमुहस्स' गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धेणं 'गाहगसुद्धेणं दायगसुद्धेणं" तिविणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परितीकए', मगुस्सा उए निबद्धे, गेहंसि य से इमाई पंच दिव्वाई पाउब्भूयाई [ तं जहावसुहारा बुट्ठा, दसद्धवण्णे कुसुमे निवातिते', चेलुक्खेवे कए, ग्राहयाओ देवदुदुभो, अतरावियणं आगाससि 'अहो दाणे श्रहो दाणे " घुट्टे य' । ] हत्थणाउरे सिघाडग”--तिग-चउवक चच्चर- चउम्मुह महापह पहेसु बहुजणो ग्रण्णमण्णस्स एवं इक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेद -- धण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई' पुणे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई एवं- कयत्थे णं कयलक्खणे ण सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयाख्वा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया || o तं णे णं देवाप्पिया ! सुमुहे गाहावई पुण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई एवं- कयत्थे णं कयलक्खणे णं सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता अभि समण्णा गया || २४. तए णं से सुमुहे गाहावई बहूई वाससयाई प्राउयं पालेइ, पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हत्थिसीसे नयरे प्रदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ २५. तए णं सा धारिणी देवी सर्याणिज्जंसि सुत्तजागरा ग्रोहीरमाणी-ओहीरमाणी तहेव सीहं पासइ, सेसं तं चेव जाव उप्पि पासाए विहरइ । तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा इमा एयारूवा माणुसिडी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया || २६. पभूणं भंते! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता श्रगाराम्रो अणगारयं पव्वइत्तए ? हंता पभू || २७. तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अपागं भावेमाणे विहरइ || २८. तए णं समणे भगवं महावीरे ग्रण्णया कयाइ हत्थिसीसाओ नयराओ पुप्फकरंडय उज्जाणाओ कयवणमालपियजक्खाययणाओ पडिनिक्खमइ, पडनिमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ || १. 'तस्स सुमुहस्स' ति विभक्तिपरिणामात् ५. अहोदाणं २ (घ) । 'तेन सुमुहेने' ति द्रष्टव्यम् (वृ) । २. दायगसुद्धे पडिगासुद्वेणं (घ ) | ३. परितकए (घ) 1 ४. निवाडिए ( क्व ) 1 ६. कोष्ठकवर्त्ती पाठ: व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. सं० पा० - सिंघाडग जाव पहेसु । ८. सं० पा० - गाहावई जाव तं धण्णे । ६. वि० २११६-११ । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (सुबाहू) ८०७ २६. तए णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' पडिलाभेमाणे विहरइ॥ ३०. तए णं से सुबाहुकुमारे अण्णया कयाइ चाउद्दसट्टमुठ्ठिपुण्णमासिणीसु जेणेव __ पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारं दुरूहइ, दुरूहित्ता अट्टमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ !! सुबाहुकुमारस्स पवज्जा-पदं ३१. तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि' धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—धण्णा णं ते गामागर'-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बडदोणमुह-मडब-पट्टणासम-संबाह °-सण्णिवेसा, जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ। धण्णा णं ते राईसर-तलवर-माउंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियो, जे णं समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडा' भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वयंति ।। धण्णा णं ते राईसर - तलवर - माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्थवाहप्पभियो, जे ण समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं *सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जति। धण्णा ण ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियग्रो, जे णं समणस्स भगवरो महावीरस्स अंतिए धम्म सुणेति । तं जइ णं समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुब्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागच्छेज्जा" इह समोस रेज्जा इहेव हत्थीसीसस्स नय रस्स बहिया पूप्फकरडय उज्जाणे कयवणमालपियस्स जक्खस्स जवखाययणे अहापडिरूवं प्रोग्गह अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे ' विहरेज्जा, तए णं अहं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं° पव्वएज्जा ॥ ३२. तए ण समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस्स इमं एयारूवं १. ओ० सू० १६२ । २. पडिगिण्हइ (क)। ३. वरत्तकाले (क, ख)। ४. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसा । ५. सं० पा० – मुंडा जाव पव्वयति । ६. सं० पा०-~पंचागुब्वइय जाव गिहिधम्म । ७. स० पा० - इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा। 5. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वएज्जा। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०८ विवागसुयं अज्झत्थियं जाव' वियाणित्ता पुव्वाणुपुवि 'चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव पुप्फकरंडयउज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययण तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्ग योगिण्डित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे बिहरह। परिसा राया निग्गए। ३३. तए ण तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स त महया' जणसई वा जाव जणसण्णिवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं जहा जमाली तहा निम्गयो । धम्मो कहियो । परिसा राया पडिगया ।। ३४. तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवरो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु जहा महो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ । निक्खमणाभिसेग्रो तहेव जाव' अणगार जाए इरियासमिए' जाव' गुत्तवंभयारी ।। सुबाहुकुमारस्स प्रागामिभव-वण्णग-पदं ३५. तए णं से सुवाहू अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता वहूहि चउत्थछ8मतवोवहाहि अप्पाण' भावेत्ता, बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सढि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता आलोइयपडिक्कत समाहिपत्त कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे ॥ ३६. से णं तो देवलोगाग्रो आउक्खएण भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ, केवलं बोहि बुज्झिहिइ, तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ° पव्वइस्सइ । से णं तत्थ बहूई वासाइं सामण्णं पाउणिहिइ । आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालगए सणंकूमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहि । से णं तारो माणुस्सं, पव्वज्जा, वंभलोए। माणुस्सं, महासुक्के ! माणुस्सं, प्राणए । माणुस्सं, पारणे। माणुस्सं सव्वट्ठसिद्धे । से गं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाई भवंति अड्डाई -..-- - - - - -- १. वि० २११३१॥ ६. रियासमिए (क)। २. सं० पा०--पुवाणुपुस्वि जाव दूइज्जमाणे। ७. वि० १५१०७० । ३. सं० पा०-तं मया जहा पढमं तहा। ८. अत्ताण (ख)। ४. भ० ६१५८ । ६. सं० पा०- भवित्ता जाव पव्वइस्सइ। ५. ना० १११०१-१५१ । १०. उववण्णे (क, ख, ग, घ)। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०३ पढम अज्झयणं (सुबाहू) जहा दढपइण्णे' सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खा णमंतं काहिइ ॥ निक्खव-पदं ३७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते। ----त्ति बेमि ।। १. पू०-ओ० सू० १४१-१५४ । २. ना०१।०७। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. १. वीयं अयणं भद्दनंदी वितियस्स उक्खेव । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे । थूभकरंडग उज्जाणं । घण्णो जक्खो | धणावहो राया । सरस्सई देवी । सुमिणदंसणं कहणा, जम्मं बालत्तणं कलाओ य । जोव्वणं पाणिग्गहणं, दाश्रो पासाय भोगा य ॥१॥ जहा सुबाहुस्स, नवरं - भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा णं पंचसया । सामीसमोसरणं । सावगधम्मं । पुव्वभवपुच्छा | महाविदेहे वासे पुंडरीगिणी' नयरी | विजए कुमारे। जुगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए । मणुस्साउए निबद्धे । इह उप्पण्णे | सेसं जहा सुबाहुस्स जाव' महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहि मुच्चिहि परिणिव्वाहि सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ । निक्खेव ॥ तच्चं अभयणं सुजाए तच्चस्स उक्खेवो । वीरपुरं नरं । मणोरमं उज्जाणं । वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी | सुजाए कुमारे। बलसिरीपामोक्खा पंचसया । सामीसमोसरणं । पुव्वभवपुच्छा | उसुयारे नयरे । उसभदत्ते गाहावई । पुष्कदंते अणगारे पडिलाभिए । मस्साए निबद्धे । इहं उप्पण्णे जाव' महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ चिहि परिणिवाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ । निक्व ॥ १. पुंडरिंगिणी (क); पुंडरगिणी (घ ) । २. तित्थंकरे ( ख ) । ३. वि० २।१९।६-३६ । ४. वीरकिह ( क ) । ५. वि० २।१६-३६ । ८१० Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. चउत्थस्स उक्खेवप्रो । विजयपुरं नयरं । नंदणवणं उज्जाणं असोगो जक्खो । वासवदत्ते राया । कहा देवी । सुवास कुमारे। भद्दापामोक्खाणं पंचसया जाव पुग्वभवे । कोसंबो नयरी | धणपाले राया । वेसमणभद्दे अणगारे पडिलाभिए । इह जाव' सिद्धे ॥ १. चउत्थं अयणं सुवासवे पंचमस्स उक्खेवओ । सोगंधिया नयरी | नीलासोगं उज्जाणं । सुकण्णा देवी । महचंदे कुमारे । तस्स तित्थयरागमणं । जिणदासो पुव्वभवो । धम्मे अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे || १. वि० २।१२६-३६ । २. सुकोसलो ( ग ) । ३. वि० २।१।६-३६ । पंचमं यणं जिणदासे १. छट्टस्स उक्खेवो । कणगपुरं नयरं । सेयासोयं उज्जाणं । वीरभद्दो जक्खो | पियचंदो राया । सुभद्दा देवी | वेसमणे कुमारे जुवराया । सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया । तित्थयरागमण | धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो । मणिवइया' नयरी । मित्तो राया । संभूतिविजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे ॥ सुकालो जक्खो | अप्पडिस्रो राया । रहदत्ता भारिया । जिणदासो पुत्ती । मज्झमिया नयरी | मेहरहे राया । चट्ठ अभयणं धणवई ४. मणिवया (घ ) । ५. वि० २।११९-३६ ८११ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयण महब्बले १. सत्तमस्स उवखेवनो। महापुरं नयरं । रत्तासोगं उज्जाणं । रत्तपायो जक्खो। बले राया। सुभद्दा देवी। महब्वले कुमारे । रत्तवईपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं जाव पुवभवो। मणिपुरं नयर । नागदत्ते गाहावई। इंदपुत्ते अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे ।। अट्ठमं अज्झयणं भद्दनंदी १. अट्ठमस्स उक्खेवयो। सुघोस नयर ! देवरमणं उज्जाणं । वीरसेणो' जक्खो ! अज्जुणो राया । तत्तवई देवी । भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया जाव पुन्वभवे । महाघोसे नयरे । धम्मघोसे गाहावई । धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे ।। नवमं अज्झयणं महच्चंदे १. नवमस्स उक्खेवओ। चंपा नयरी । पुण्णभद्दे उज्जाणे । पुण्णभद्दे जक्खे । दत्ते राया। रत्तवती देवी। महचंदे कुमारे जुवराया। सिरिकतापामोक्खा णं पंचसया जाव पुव्वभवो। तिगिंछी नयरी। जियसत्तू राया। धम्मवीरिए अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे ।। १. वि० २०१९-३३ २. वेरसेणो (क)। ३. वि० २।१।६-३६ । ४. वि०२।१६-३६ । ८१२ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. दसमस्स उक्खेवप्रो । तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं नामं नयरं होत्था । उत्तरकुरुउज्जाणे । पासा - fast जक्खो | मित्तनंदी राया । सिरिकंता देवी । वरदत्ते कुमारे । वरसेणापामोक्खा पंच देवीसया । तित्थयरागमणं । सावगधम्मं । पुव्वभवपुच्छा । सयदुवारे नरे । विमलवाहणे राया | धम्मरुई अणगारे पांडेलाभिए । मणुस्साउप निबद्धे । इहं उप्पण्णे । सेसं जहा सुबाहुस्स कुमारस्स | चिंता जाव पव्वज्जा । कप्पंतरिते जाव' सव्वसिद्धे । तम्रो महाविदेहे जहा दढपणे जाव' सिज्झिहि बुज्झिहि मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंत काहिइ | २. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते । सेवं भंते ! सेवं भंते ! परिसेसो दसमं अयणं वरदत्ते विवागस्यस्स दो सुक्खधा दुहविवागो सुहविवागो य । तत्थ दुहविवागे दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चैव दिवसेसु उद्दिसिज्जति । एवं सुहविवागे वि । सेसं जहा आयारस्स ॥ १. वि० २।१।६-३६ । २. ओ० सू० १४१-१५४ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर ५६७१८, अनुष्टुप् श्लोक १७७२ अक्षर १४, ३. ना० १११।७ । ८१३ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संक्षिप्त - पाठ अंतिए जाव पव्वयामि अंतेउरे य जाव अभोववण्णे अगडे वा जाव सागरे अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे अग्घेणं जाव आसणेणं परिशिष्ट - १ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकाओ अन्वणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे अज्जग जाव परिभाएत्तए अज्जाओ तहेव भणति तहेव साविया जाया तव चिता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति अज्झत्थिए अथिए किमपणे जाव वियंभइ अज्झथिए जाव समुपज्जित्था अज्झत्थिय जाव जाणित्ता अट्टदुहट्टवसट्टमाणस गए जाव रयण अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि अट्ठाई जाव नो वागरेइ अट्ठाई जाव वागरेइ ग्राहियं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए अड्ढा जाव अपरिभूया अड्डा जाव भत्तपाणा पूर्त-स्थल २११।२५ * १११६१४१ १८ १५४ १।१।१११ १।१६।१६७ १३२७६ १२६५ ११६६८-१०४ १८७६ १।१६।२७२ १।१६।११८, २८५,२/१३८ १११६।२८६ १३१।१५५ १।१।५३,५६,१५४, १५५, १६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,१।५।११८,१२४; १।७।२५; २८१,२ १५५६६ ११५६६ श८२२६ १५/७ १।३१८ पूर्ति आधार-स्थल १।१।१०१ १ १६ २८ १८१५४ १।१।१११ १।१६ १८६ ओ० सू० २ १।१।११० १।१४१४४-५० १।११४८ १११६।२७२ १११४८ ११११४८ १।१।१५४ २२१,२ ११५२६६ ११५१६६ १८२२४ ओ० सू० १४१ ओ० सू० १४१ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति १११८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२ ११७ शपा४२ १२११४६ १११४॥३६ १२१४१३६ अणते जाव समुप्पण्णे ११८१२२५ अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा १।१६।३२४ अणगारवण्णओ भाणियब्वो ११।१६४ अणगारे जाव इहमागए ११५१६८ अणगारे जाव पज्जवासमाणे २।११४ अणिट्टतराए चेव जाव गंधेणं १।१२।३ अणिवा जाव अमणामा ११६९७ अणिट्ठा जाव दंसणं १११४१४३ अणिवा जाव परिभोगं १।१४।५० अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पब्वइस्ससि १।१।११३ अण्णं च तं विउलं १८।२०७ अण्णमण्णं जाव समणे श१३।३८ अत्यत्थिया जाव ताहि इट्टाहिं जाव अणवरयं ११४३ अस्थामा जाव अधारणिज्ज १।१६२५३ अपत्थिय जाव परिवज्जिए ११८५१२८ अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए १॥५॥१२२ अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया शा७४ अपुष्णाए जाव निबोलियाए १११६२५ अब्भण्णाए जाव पव्वइतए श१२।३६ अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए १।५।११८,१।१६२८ अब्भुढेंसि जाव वंदसि ११५१६७ अभिसिंचइ जाव पडिगए १११६६२८० अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ ११५/६३-६५ अमच्चे जाव तुसिणीए श१२।१५ अम्मयाओ जाव पब्वइत्तए १३१५१०६ अम्मयाओ जाव सुलद्धे १३१४१२ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१६५ अरहण्णग जाव वाणियगाणं ११८६७ अरहण्णग संज्जत्तगा ११८८४ अरिटुनेमि जाव गमित्तए १।१६३२० अरिटुनेमिस्स जाव पव्वइत्तए ११५।२० अवंगुणेइ जाव पडिगए श११११२ ११८।२०५ १३१५३ ओ० सू०६८ ११६।२१ ११५११२२ उवा०।२।२२ ११५४१२२ १४१६१८ शश१०४ १।५।१२४ ११५२६६ ११११६१ ११११११७-११६ १।१२१७ १११११०७ १।१।३३ १११४८ ११८६४ १८६६ १।१६।३३४ ११.१०६ १११६१६१ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१६१२७६ ११०९६-१०१ १।१८।१२ १११६२२० ११मा१६६ १.१६।२४६ ११८१७२ १।२।१२ २१४१३६ शरा२० ११२२५२,५३ १०१२।४ १।१६।२६२ १५॥३४-३८ १११८८ १११६।२१६ १११६१२१ १।१६।२४५ ११८१५६ १।२।१२ १२१४१३८ १२।१४ ११२।३७,३८ १।२।१४ ११७२२ १।१६।१५२ ११७६ १४१६४१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज असक्का रिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परि जे मागी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणिद्वतराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहर आइपण वेदो १।१६:५२ १।१६३४ ११५१७६ १५७६ वृत्ति श१६१३३ १३५१७६ १३७६ १९५१२४ १।१८।१६ १६१८१६ १।१२०१ १११।१७११६११ ११।११६ १।१।२०१ १॥५॥११७,११८ वृत्ति १११८।१६ ११११११८ ११४ ११।११५ १११११६८ ११८४२ ११११६ १।१२।१६ २श२० ११७१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १२१२११३ ११११९५ वत्ति Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८.१६८ १।१२१२ १।१६।१८६ १।८।१७० ११८।१७० १।१६।१८६ १३१४१६० शक्षा१७० १११११५४ २१५४ २११६१ १७६ शश१०१ १।१।१०१ १।१।२० ११।१८६ आएहि य जाव परिणामेमाणा ११म१०४ आउक्खएणं जाव चइत्ता १।१६।१२३ आईति जाव पज्जुवासंति १११६:१८८ आढाइ' जाव तुसिणीए १।१२।७१।१६१५ आढाइ जाव तुसिणीया २१११३६ आढाइ जाव नो पज्जुवासह १२१६१६० आढाइ जाव भोगं १।१४१६१ आढाइ जाव संचिइ १।१६।३० आढायति १।१२१५५ आढायंति जाव संलवेंति १२१११५४ आपुच्छइ जाव पडिगए १६१६१२०० आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं १७४२ आपुच्छामि जाव पव्वयामि। १११२।३८ आपुच्छामि तएणं जाव पव्वयामि १।१६।१२ आरोग्गतुट्ठी जाव दिठे १।१।२६ आलंबे वा जाव भविस्सइ १।१६।३१२ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु १२३३१६ आलोएहि जाव पडिवज्जाहि १।१६।११५ आसयंति वा जाव तुयति १।१७१२२ आसाएइ जाव अणुपरियाट्टिस्सइ १११६४२ आसाएमाणीओ जाव परिभंजेमाणीओ ११२११७ आसाएमाणी जाव विहरइ १।२११४ आसाएमाणे जाव विहरइ १२१२१२२ आसायणिज्ज जाव सन्विदिय० १।१२।२० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय० १।१२।१६ आसिय जाव गंधवट्टिभूयं शश६७ आसिय जाव परिगीयं ११७६ आसुरुत्ता जाब मिसिमिसेमाणा १।१६।२८ आसुरुते जाव तिवलियं ५८.१५६ आसुरुते जाव तिवलियं एवं १।१६२८६ आसुरुते जाव प उमनाभं १११६२८० आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे १६५१२२ आहारे वा जाव पव्वयामो ११८४१३ आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था ११४१६७ आहेवच्चं जाव पालेमाणे १११७१२२ १९४४ १११ १११८१ १।१।८१ १११२।४ १।१२।४ ११.३३ वृत्ति ११११६१ शा१०६ १८।१०६ १८१०६ १११११६१ १५६० १११.१५७ १११११८ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहेवच्चं जाव विहरइ आहेवच्च जाव विहरs आहेवच्च जाव विहरसि इट्ठा जाव मणामा इट्ठा तं चैव वाहिं जाव आसाइ इट्टाहि जाव एवं जाहि इट्ठाहिं जाव समासासेइ इट्ठे जाव से गं ईसर जाव नीहरणं ईसर जाव पभितीणं ईहामिय जाव भत्तिचित्तं उक्किट्ठे जाव समुद्दरवभूयं उक्किट्ठाए जाव देवगईए afrage जाए विज्जाहरगईए उक्कट्ठाe tफ कुम्माईए उक्खेवओ तइयवग्गस्स उक्खेवओ पढमज्झयणस्स उज्जलंजाव दुरहियासं उज्जला जाव दाहवक्कंतीए उज्जला जाव दुरहियासा उज्जाणे जाव विहरइ इड्ढी जाव परक्कमे इमे वे जाव समुपज्जित्या इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १ । १४४० इहमागए जाव विहरइ १।५।५३ १। १४ । ५६ ११७१६ ११११८६; १८१४६ १११८४० उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरताओ उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १।३३८ १।१८।२० १।१।१५७ १।१६।७० १।१६:४८ १।१६ । १३१ १८२०३ १८६७ १११।५० ११५ २० १८६१७६६१।१६।२६५ ११७।६२।१।१२ १।१६।२०४,२०६ १।१६।१६० १।४।२१ २।३।१ २५/३ १।१।१६३ १।१।१८७ १/५/१०६१।१६।२०;१११६/४५ १।१६।३२१ १५८० १८१७६ ११८/१७८ १८१५१ १।२।१४ १।१६।१२८ १|८|३८;१।१६।३७ १।१।११८ ११५४६ ११५५६ १११:४६ १११६/४७ १११।४६ ११११४६ ११११४८ ११११४६ १|१|१४५ उवा० २१४० १।११४८ १।१।१६४ १|१|६७ ११५१५२ १।५।६; १।२।३४ ११५५६ ११११२५ ११८६७ राय० सू० १० १।४।२१ वृत्ति २२१ २/२/३ १।१।१६२ १११।१६२ १।१।१६२ १।१६।३१६ भ० २।५२:१।५।५२ १८१७७ १/८/१७७ १८१४१ राय० सू० ६७ १।१६।३७ वि० ११४ ३६ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२० उम्मुक्कबालभावे जाव जोव्वणग० ११४२२ उरालस्स क सिध मं जाव सुमिणस्स १११६ उरालाई जाव भुंजमाणा १।१२।४० उरालाई जाव विहरइ १११४०२० उरालाई जाव विहरिज्जामि १२१६११३ उरालाई जाव विहरिस्सइ १।१६।२०४ उराले जाव तेयलेस्से १।१६.१२ उरालेणं तहेव जाव भासं ११११२०४ उबवेए जाव फासेणं १।१२।४ उव्वत्तिज्जमाणे जाव टिट्रियावेज्जमाणे १।३।२२ उन्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ ११३१२६ उठवेत्तेंति जाव दंतेहि निक्खुडेंति जाव करेत्तए १४.१६ उध्वत्तेति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए १।४।१२ एगदिस जाव वाणियगा एगयओ जहा अरहन्लए जाव लवणसमुई श१७।५ एज्जमाणि जाव निवेसेह १।८।१७१ एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहि परियणेणं १६१४७७ एवं कुलत्था वि भाणियल्वा । नवरं इम नाणत्तं-इत्थिकुलत्था य धनकुलत्था य । इस्थिकुलत्था तिविहा पुण्णत्ता, तं जहाकुलबहुयाइ य कुलमाउयाइ य कुलधूयाइ य। धन्नकुलत्था तहेव ११५७४ एवं जहा मल्लिणाए १।१६।२०० एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स ११८३१,३२ एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं २११४१५ एवं जहेव तेयलिणाए सुब्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणपविट्रे तहेव जाव सूमालिया १६१६१६४-६७ एवं जहेव राई तहेव रयणी वि २।११५७-६० एवं जाब घोसस्स २।३।११ एवं जाव सागरदत्तस्स १।१६।८८-६१ एवं पत्तियामि णं रोएमिणं १११११०१ एवं पाएहि सीसे पोट्ट कायंसि १११११५३ एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि कण्णसक्कुलीओ वि नासापुडाई १।१४।२१ १।१६।११३ १।१२।४० १।१६।११३ १।१६:११३ ११.६ ११२०२ १११२१३ १।३।२१ १1३२१ ११४१११ ११४१११ ११८६२ १८६६ १।१।४०,१११६६१३१ १.१४१७७ श।७३ ११८११५४ १११८०२०,२२ राय० सू०६६८ २१४१४०-४३ २।११४७-५० ठाणं २।३५६-३६२ १।१६१६३-६६ १११११०१ श६१५३ १११४।२१ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं पासत्ये कुसीले पमत्ते एवं मासा वि । नवरं इमं नाणतं -मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- कालमासा य अत्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुबालस तं जहा --- सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया । अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल्लए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरs ओसन्ने जाव संथारए ओह जाव किया ह ओहमण जाव कियायइ ओह्मण संकष्पं जाव झियायमाणि ओह मणसं कप्पा ० ओहमणसंकप्पा जाव भियाइ ओमणसंकप्पा जाव भियायइ ओहमणसंकप्पा जाव भियायंति ओहमण संकप्पा जाव झियायह ओह मणसंकप्पा जाव झियायामि saraणसंकप्पा जाव भियाहि ओहमणसंकरपे जाव भियामि ओह मणसंकरपे जा कियायइ ओहमणसंकप्पे जाव भियायमाणे ओहमणसंकप्पे जाव झियायसि कंडरीए उट्टाए उट्ठेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कंत्ता जाव भवेज्जामि कंते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्से सु कट्टु जाव पडिसइ कटुस्स य जाव भरेंति ف १।५।११७ १५।७५ १११८८ २७६ २२८६ १।१६/२२५ ११५/१२५ १८१७१ १।३।२३ १।१४।३८; १ । १६ २०६ ११४१३८ १११।३४ १/१४/३७, १/१६ / ६२,८७,२०७ १६३१५ १/८/१७३ १/१६/६५ १।१६६४,६२,२०८ १।१७/१० १/८/१६८; १ | १४ | ७७ १ १७१८ ११६१३२ ११७१६ १।१६।१२ १११६/६७ १।१।१४५ १११।१६२ १७/४२ १।१६।२५५ १।१७/२८ १।५१११७ ११५/७३ भ० १८।२१५-२१६ १११८१८ २७२ शार १।१६ १६५ १/५/११७ १|१|३४ १।१।३४ १/१/३४ १/१/३४ वृत्ति १।११३४ १।१।३४ १।११३४ |१|१|३४ १११।३४ १।१।३४ १|१|३४ १ १/३४ १।१।३४ १।१।१०१ १११४४३ १/१/१०६ वृत्ति १२५/६० १।१६/२५१,२५२ १।१७।२२ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणंग जाव दलय कणग जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्ज कणग जाव सिलप्पवाले कयकोउय जाव सव्वालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवलिकम्म जाव सव्वालंकारविभूसियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव विपुलाइं जाव विहरइ । कयवलिकम्मे जाव रायगिह कयवलिकम्मे जाव सरीरे कयबलिकम्मे जाव सब्वालंकार १११११ १८.४१ १११११ १११।११ शरा२६ १३१३१२५ १६१८१ १२११३३ १२०६६ १।१२८१ १३११२७ ११११८१ करयल० १५११६ करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं १६१६६१६८ १८.१०० १६१८१३८ १११८१३३ १।१०८१ १११३१२५ १२१६७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२।५८ ११११६६ शश४७ १२५२६८,१२३;१।८1७३,८१,६८, १५८,१६०,११९३१११४।३१,५० १८।२०३,२०४।१।१६:१३७,१६१, २१६,२६४।१।१७।११ १११६१२४६ श१६५८,६० १।१।३०:१।१६।१७०,२६२; १।१६।१३,४६,२।११२० १९:१७१११४।२७,२८,१११६:४३ ११११११८,१११६।१३३:२।११११ १११६।१४२ १११६.१३८ १८।१६६ १।।१६५ १।१५।१८ १।१६।२३६ १।१७।२६ १२८१३१,१११६।२४४ १८.१०७ १।१६१३४ १११४११३ १२१२१ श१२६ १११।३६ १११११६ करयल जाव एवं करयल जाव कटु करयल जाव कटू तहेव जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पिणंति करयल जाव पडिसुणेइ करयल जाव वद्धावेइ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेत्ता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चेव जाव समासोरह करयल तहत्ति जेणेव करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि १।१।२६ ११११२१ ११।२६ १।१६.१३२ १।१६।१३७ १९१६५ १।१२६ २११४८ श०४८ ११११३६ ११११४८ ११।४८ १६१६६१३२ ११५:१३ १११४ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२६ ११११४८ ११११४८ ११११४८ १।१३६ वृत्ति करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल बद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव मेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंवभूया कभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोटामारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाब एडेह ११११३६ ११८१२६ १५५१२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १।१४१४१,४२ १शक्षा१५ १११८।२७ १।१६।२८८ ।१।१२ १८४० शक्षा५१ १९५१२४ १।२।३३ १६२।६७ १२।४५ ११५।१० १११६।३२२ १२।६७ श१६।३० १११७१२२ १।१३।२० १७११३ १।८।१७४ ११७११७,१८ १११११११ १११७१२२ श७२५ १२।१४ ११९४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ ११८५१ ११।२४ ११५१२४ १॥२॥३३ १४२१३३ १२२।३३ १११११६ ११२८४ वृत्ति १।१३।२८ १।१७।२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ १।८१७३ १६७।१५,१६ १११११०७ २७७ ११८।५२ १११५७ ११११११७ १३१६६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८१५१ १११॥६ ११११११६ १।१२३ १.१६७४ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं खिज्जणाहि य जाव एयमटुं खीरधाईए जाव गिरिकंदरमल्लीणा गंध जाव उस्सुक्कं गंध जाव पडिविसज्जेइ गंध जाव सक्कारेत्ता गंधब्वेहि य जाव विहरंति गज्जियं जाव थणियसद्दे गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउम्विहभंडगस्स गब्भस्स जाव विणेति गय० गवलगुलिय जाव खुरधारेणं गवल जाव एडेमि गहाय जाब पडिगए गामघा वा जाव पंथकोट्टि गामागर जाव अणुपबिस सि गामागर जाव आहिंडह गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं गुणे० किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ धडएसु जाव संबसावेइ चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थ जाव विहरइ चउत्थ जाव विहरंति चउत्थस्स उक्खेवओ चंपगपायवे० चच्चर जाव महापहपहेसु चरगा वा जाव पच्चप्पिणंति चरमाणा जाव जेणेद चरमाणे जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरह चवलं नहेहि चारगसोहणं जाव ठिइपडियं ११०१५ १।१८।१४ ११६३६ १८८४ १।१६।१६९ ११७१६ १११६:१५२ १२९६ १1१1८१ श६६ २०१७ शमा६३ श६।१६ १९६३७ १११८१३६ १११८१२४ १४१६१२२६ १२१४१४३१११७११७ १।२।२६ १८७६ १।१२।१६ ११८१६ १२५२१०१,२।११३३ ११८।१७,२५ २४११ १।१८।४६ १६११६७ १११५७ १२।६६ १५१० १।१०३ १।१८।१० आयारचूला १५११४ २११३० ११८१६० १११२३० १११६३१५० १९७१ १।१२४ १९६६ १।२१७ ११६७ उवा० २०२२ १।९।१६ १४१८१३८ १।१८२२ १८१५८ ११८५८ १।२।२७,२६ ११८७४ १।१२।१६ ११।१६५ १।१।१६५ १११११६५ २।२।१ १२१२१०५ १११३३ १११५६६ १३१४ १।१४ २५११०८ १।४।१७ १११४१३३,३४ १११४ १।४।१४ १११७६-७४ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ११।१७ ११८७६ १।१।१५० १।१।१५१ ११११२३ ११११४ २११४ १।११४ २२११४ १११८१२१ १।१८।२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ १११११६५ श१८१२२ चारवेसा जाव पडिरूवा રાક चालितए जाव विप्परिणामित्तए १८७६ चिट्ठइ जाव उट्टाए १११।१५१ चिट्ठइ जाव संजमेणं १११।१६३ चित्तेह जाव पच्चप्पिणह ११८११७ चेइए जाव अहापडिरूवं श२०६६ चेइए जाव विहरइ ११११६४ चेइए जाव संजमेणं २।११३ चोक्खा जाव सुहासणवरगया १६१६:१५२ चोरनायगं जाव कुडंगे १११८१३० चोरविज्जाओ य जाब सिक्खाविए १।१८।२८ छटुंछट्टेणं जाव विहरइ १।१३६३६ छटुंछटेणं जाब विहरइ १।१६।१०८ छ छट्रेणं जाव विहरित्तए १२१६११०७ छट्ठट्ठम जाव विहरइ १४१६४१०५ जणवयं जाव नित्थाणं ११८।३२ जहा पोट्ठिला जाव परिभाएमाणी १।१६।६२ जहा मंडुए से लगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १:१६२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा १११७११ जहा महब्बले जाव परिवड्डिया १शक्षा३७ जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १।१७।६ जहा बद्धमाणसामी नवरं नवहत्थुस्सेहे० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए ११:४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १११६२० जायं च जाव अणुवड्ढेमि १।२।१४ जाया जाब पडिलाभेमाणी १११४१४६ जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे श१२।२३ जाव जहा २४१२२ जाव पज्जुवासइ शश१७ जाव सणियं १४.१६ जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे शश६३,६४ जाव हावभावं शमा१२१ २०११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ १९18 आ० सू० १६;वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ ११५.१०६ १२।१२ ११४७ १।१२।२२ ११२।७६ १।१।६६ ११४११३ राय० सू० ६६३११५२४७ ११।११७ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२११४ ११८।१० १११११२ ११७५२२ १।२।२५ ११११२७ १।१६।२६४ १११११२४ १।१४.१८ ११२७ श८१७६ ११२७ १७।६ २।११४६ २१११६३ जिमिय जाव सूइभूया ११२।१४ जिमियभुत्तुत्तरागयं जाव सुहासण. ११६।२१६ जोव्वर्णण य जाव नो खलु शा१५४ झोडा जाव मिलायमाणा १११११४ ठवेंति जाव चिटुंति १।१७।२२ डिभएहि य जाव कुमारियाहि १।२।२७ पहाए जाव पायच्छित्ते १११४१६४ ग्रहाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १२१६१२६५ बहाए जाव सुद्धप्पावेसाई । १२।७१ व्हायं जाव पुरिससहस्सवाहिणीयं १।१४।५३ व्हाया जाव पायच्छित्ता शरा६६,शा१७६ व्हाया जाव बहूहि ११८।१६८ व्हाया जाव सरीरा ११३।११ हायाणं जाव सुहासण. १।१६।८ तइयज्झयणस्स उक्खेवओ २१११५६ सइयवग्गस्स निक्खेवओ २।३।१२ तएणं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव १४१६११४३,१४४ तं इक्छामि गंजाव पव्वइत्तए १०१०१११ तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पश्वइस्ससि १११११०७ तं चेव सब्वं भणइ जाव अत्थस्स ११८५२ तं रणि च णं चोद्दस महासुमिणा वण्णओ १८२६ तक्करे जाव गिद्धे विव आमिसभक्खी १।२।३३ तच्च दुयं चंपं नयार। तत्थ णं तुम कण्णं अंगरायं सल्लं नंदिराय करयल तहेव जाव समोसरह। चउत्थं दूयं सोत्तिमई नयरिं । तत्थ णं तुम सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं करयल तहेब जाव समोसरह । पंचम दुयं हथिसीसं नयरिं। तत्थ णं दुर्म दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । छठें दूयं महुरं नरि । तत्थ णं तुम १।१६।१३४-१४१ १२१२१०४ १।१।१०६ ११८५१ कल्पसूत्र ४ १२।११ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घरं शयं करयल जाव समोसरह । सत्तमं वयं रायगिहं नगरं तस्य णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह अट्टगं दूयं कोटिपणं नवरं । तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगमुषं करयल तहेब जाव समोसरह नवमं दूयं विराटं नयर । तत्थ णं तुमं कीयगं भाउससमगं करयल जाव समोस रह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरे अणेगाई रायहस्साइं जावरसमोसरह तए णं से दूए तहेब निग्गच्छ जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्च पि जाव संचिट्ठ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे ० तत्थे जाव संजायभए तयावर ईहापूह जाब सणिजा इसरणे तलवर जाब एभितमो तलवर जाव सत्थवाह तहत जाव पछिसुर्णेति तहारुहि जाव विपुलं तहेव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया देवस जाव अंत तहेव सेयापीएहि कलसेहि व्हावेइ जाव अरहओ अरिनेमिस्स छत्ताइ पागाइडाग पास २ ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंतं तिक्तो जाव एवं तिग जाव हेसु तिग जाव बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुकबंधणे तुट्टी वा जाग आणंदो तुग्भण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेइय १।१६।१४५ १।१९।३५ १।१२।३१ ११४।७७ १।१।१६८ १मा१५१ १११४/६५ ११५१६ १।५।१३ १।१।२१५ ११८११३६,१३७ २११५१-५४ ११५२५, २१ १।१६:२२६ १।१२।३४ १।५।२६ १।१६:२६ १।६०४ ११२६४ १।१२।४३ १८१६६ १।१६।१३२-१३४ १।१२।३५ १।१२।१९ १११४/७६ १।११६० १.१.१६० १।५८६ ओ० सू० ५२ १।१।२६ ११:२०६ १२८/६९,१०० २११:३२-४४ १।१।१२९,१४४,९९ १।१।२१२ १।१९।२६ १।१।३३ १५०५३ १/६/४ ११२/६३ १।१।१०४ ૪૨૪ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभूयं तेसि जाव बहूणि थलय० थलय जाव दसद्धवण्णं थलय जाब मल्लेणं थावच्चापुत्ते जाव मुंडे थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा थेरा जाव आलिते दीम जाव वीईवइस्सइ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ दुरुति जाव कालं दुरूढा जान पाउन्भवंति दुइज्ज माणा जाव जेणेव दुइज्जमाणे जाव विहरइ देवकन्ना १/१६।३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ ११३/२४ दस मस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २१०११, २ दाणधम्मं च जाव विहरइ १८१४११५२ दारियं जाव भियायमाणि दास चेडियाहिं जाव गरहिज्ज माणी दाहिणभरहस्त जाव दिसं दिट्ठे जाव आरोग्ग दित्ते जाब विउलभत्तपाणे देवकन्ना वा जाव जारिसिया darभूयाए जाव निव्वत्तिए देवलगाओ जाव महाविदेहे देवाप्पिया जाव कालगए देवाप्पिया जाव जीवियफले देवाप्पिया जाव नाइ देवाप्पिया जाव पव्वतिए देवापिया जाव साहराहि देवाप्पिया जाव सुद्धे देवी जाव पंडुस्स १४ १।१६।१५५ ११७१६ ११८४६ ११८३१ १/८/३२ १११८६० 21515 १।१६०६४ १/८/१४७ १।१६।२६६ ११/२० १।२।७ ११२१७६ १८१२६ १।१७/१३ १।१६।३२३ १८१४ १।१६।३२१ १११६१३२० १८ १५४ १८८६,१११ ११८११२८ १।१६।२४ १।१६।३२३ ११८७६ १।१६।२६५• १११६/३४ १।१६।२४२ १११६२६ १।१६।३०१ ११११२२ ११८।७१ ११८१३० १/८/३० ११५१३० १/५/३४ १८१२ १११।१४६ सूर्य० २२७८ १/३/२४ २।२।१,२ ११८१४० १।१६।६२ १/८/१४६ १।१६।२६७ ११.२० वृत्ति १२६७ ११५११६ ११११०२ १११६/३२३ १५/६१ ११११४ |१|१|४|१|१६|३१६ १८८६ वृत्ति ११८१२६ १।१।२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० १५/१२३ १११६२६ १११६/२४० १११६२९ १ १६ २६२ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी जाव पउमनाभ १२१६१२३६ १११६१२३३ देवी जाव साहिया श१६/२४० १११६०२०८ देवेण वा जाव निग्गंथाओ १९७५ उवा० २।४५ देवेण वा जाव मल्लीए ११८१३५ १९७५ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवयो २।२।१ २११६ घण कणग जाव परिभाएउं २११४९२ १११०६१ धण जाव सावएज्जस्स १७१३४ १९१ धण जाव सावएज्जे १११६६ ११६१ धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ १।१३।१५ १।११३३ धम्म सोच्चा जं नवरं ११५८७ १२१११०१ धम्म सोच्चा जहा णं देवाणु प्पियाणं, अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरणं जाव पव्वइया तहा गं अहं णो संचाएमि पवइए १।१४५ राय० सू० ६६५ धम्मकहा भाणियब्बा १९५७८ १६५१६३ धम्मोत्ति वा जाव विजयस्स श।७५ शरा६४ धोबसि जाव आसयसि २।१३५ २।११३४ धोवेइ जाव आसयइ २।११३८ २।११३४ धोवेइ जाव चेएइ १।१६१११९ १।१६११४ धोवेसि जाव चेएसि १११६।११५ १११६।११४ नंदीसरे अट्टाहियं करेंति जाव पडिगया १८१२२४ जंबू० वक्ष०५ नगरगिहाणि १६७ १८१५८ नगर जाव सण्णिवेसाणं आहेवच्चं जाव विहराहि श११११८ नच्चासन्ते जाव पज्जुवासइ १२१४/८५ ११६६ नट्टा य जाव दिन्न १५१३२२० नठमईए जाव अवहिए १।१७।१० १२१७१८ नरि अणुपविसह १६१६२१६ १११६१२१८ नवमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ राक्षा१,२ २।२।१,२ नवरं तस्स १७२८,२६ ११७८,२५,२६ ताइ० ११५।२६:११७४६,६,२२,२६,४२१११५।११:१।१६।५०,५४,१।१८,५१,५६ श१८१ नाइ० १३१४११८,१।१५।१६ १३२२० ओ० सू० ६८ ओ० सू० १ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाइ उष् य कुल जान विहराहि ११७२५ नाइ जाव आमंत १११४१५३ नाइ जाव नगरमहिलाओ नाइ जान परियणं नाइ जान परियणेण नाइ जाव परिवुडे नाइ बाब संपरिवुडे नाम का जाव परिभोग नाम जान परिभोग नासानीसासवायवोज्भं जाव हंस लक्खणं निक्लेव निक्लेवओ प्रभवगस्स निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स निक्खेवओ दस मवग्गस्स निक्लेव पढमभयणस्स निक्लेवओ विश्वग्गस्स निगंधा जान पडिसुर्णेति निधाणं जाव विहरितए निगंधी वा निग्गंधी वा जाव पव्वइए निग्गंथे वा जाव पव्वइए निचो वा निग्गंधी वा जाव पंचसु निम्गंध वा २ जाव विहरिस्स निट्ठियं जाव विज्झायं निप्पाणे जाव जीवविप्पज ढे नियग० निम्बतियनामधेन्वे जाव चाउदंते निव्वाचासि जाव परिबडइ निसंते जाव अभण ण्णाया निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेमि निसीब जार कुमलोदतं ११२:१६ १०१४११९ ११६४८ १६ १।१६।५० १।१३।१५. ९।१४।५३ १।१६।९७ १०१४१३७ १।१।१२६ २२४६ शराब २४६ २११०१७ २३३६ २१२११० १।१६।२३ १।५।१२४ १२१८६१ १७१२७१।२०१३ १।११।३,५ १।२।७६ १११७/२५,३६ १।१५।१४ १।५।१२६ १११।१८४ १११८१५४ १२७/६ १।१।१६७ १।१६/३६ १।१४।५० PISIS १।१६।११५ ११७१६ ११७१६ ११२।१२ ११११८१ १।१८ १ १५२० ११५२० १।१४।३६ १।१४:३६ आधारचूला १५२८ २२१२४५ २।१।४५ २१६३ २।१।६३ २।११४५ २।१।६३ १।१।२६ ११५३११४ ११२६८ ११२२६८ ११२२६६ ११२६८ १।३।२४ १।२१७६ १|१|१८३ १।२३२ १२१८१ १।१।१५६ राय० सू० ८०४ १।१।१०४ 818150 १.१६/१८७ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८।१७२ १११८१४६ १।१४।७३ १५१४१७७ १।१६।२८७ १८.१६७ १९।१६ १९१६ १११४।७३ १।१६।२८५ १३५११२७,१२८ ११५८३,८४ २१५.१,२ ११७३३ १।१६।२७६ २।२।१,२ १७२५६ १।१६।२७५ निस्संचारं जाव चिटुंति नीलुप्पल नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाय खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियब्वं पंचयण्णं जाव पूरियं पंचाण ब्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं पंडवा. पंथएणं जाव बिहरह पगइभद्दए जाव विणीए पच्चक्खाए जाव आलोइय० पच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पम्वइस्ससि पच्चप्पिणह जाव पच्च प्पिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पड़ागे जाव दिसोदिसिं पडिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल. पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुणेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्लेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कुवं पण्णत्ते जाव सग्गं ११२४५-४७ ११६१३१३ ११५४१२६ ११११२०६:११६।२४ १।१६।४६ १.१३।४२ वृत्ति; ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १॥५॥१२४ ओ०सू०११६ ११।२०६ १०१२०६ १११११११ १११७७ १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८१३६ १८।४७ ११५।५६ १।१६।२३ २।७।३२८1३;२०६३ २।१०।३ १।१६।२४४ १५।६० ११११२३ राय सू० ६६४ वृत्ति १११६१६२ १।८।२७ १।११३६ ११५।५२ १।५।११३ २।२।३ २।३ १।१६।२४३ ११५१५५ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।६२ १७.१५ पतिवया जाव अपासमाणी पत्तिए जाव सल्लइयपत इए पत्तिया जाव चिटुंति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्गहिए जाव परिवसित्तए परिणमंति तं चेव परिणममाणा जाव ववरोति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेरतेणं जाव चिटुंति परियागए जाव पासित्ता परियाणह जाव मत्थयंसि पल्लंसि जाव विहरंति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उपसंपज्जित्ता पवावेइ जाव जायामायाउत्तियं पसन्थदोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदसणसल्लेणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाणाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए अपामोक्खा जाव वाणियगा ० पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघद्राणाणि य जाव रयरेण गुंडणाणि पावयणं जाव पव्वइए पावयणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा १।१६।१७१ ११५१३३ १११५।१४ १।८।१३१ १।१२।१७ १११५१५ १२१३१३५ १।१४:५३ १।१३।३१ १३१७।२२ ११३।१६ १६११४८ १७।२० १।१६।२५६ १।१८१४४ १।१६।२५३ १॥५॥१०४,१०५ २१११३०,३१ १११११६२ १८३३ १।६।४ १।१।१८६ १११११८२ १८८१ ११८८३ १११११८६ शरा७३ १११२१३५ ११८६ ११श६७ ११.२०६ १।१६।५६ ११७११४ १११११२ १।१६।१४६ १२१२१४८ १।२१७६ ११८।१०७ १११२१६ १।१५।११ ११।१० १३१३१६० १।४।१६ श१७१२२ ११३१५ ११११४८ ११७११६ १।८।१६५ १।१८।४२ शमा१६५ १३०८३,८४ १११११५०,१५१ १११।१५० ११११६८,६६ १११२०६ १।१२१८१ १।११८१ ११८६६ १८६६ १.१.१५३ १२१२१०१,भ०६।१५०,१५१ १११११०१ १.११८६ भ० २१५२ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११३० १।१।१६ १६५।११० १२१२२०६ श२०४० १०२११२ १११११२ वृत्ति पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया २०१०११ पीढ़ ११।११७ पुच्छणाए जाव एमहालियं १११।१५४,१५५ पुढवि जाव पाओवगमणं ११५१८३ पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स १।२१५६,६४ पुप्फ जाव मल्लालंकार श२।१४ पुफिया जाव उवसोभेमाहा श१३११६ पुरापोराणं जाव पच्चणुब्भवमाणी १२१६१६२ पुरापोराण जाव विहरइ १।१६१११३ पुश्वभवपुच्छा एवं २।११५० पोखरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ १११३११५ पोसहसाल जाव पुव्वसंगइयं १।१६।२०१-२०३ पोसहसालाए जाव विहरइ १११३।१४ फलिया जाव उवसोभेमाणा १।११।४ फासुएस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं १२५२११४ फासुयं पीढ़ जाव विहरह ११।११३ बंधित्ता जाव रज्जू १११४१७७ बहिया जाव खणावेत्तए १११३११५ बहिया जाव विहरंति ११५।११८ वहिया जाव विहरित्तए १५।११७ बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे १।१६।६७ बहूई जाव पडिगयाई १११६।१८२ वहूणि गामाणि जाव गिहाई १।१६।१६६ बहहिं जाव चउत्थ विहरइ २५/३८ बहूसु जाव विहरेज्जाह शहा२० बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणति पंडुस्स जहा १।१६।२२३,२२४ बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगसमत्थे १।१६।३०८,३०६ बासष्ट्रिं जाव उत्तरइ १६१६१२८७ बासदि जाव उत्तिण्णा १।१६।२७ बिइयज्झयणस्स निक्लेवओ २॥१॥५५ बुज्झिहिइ जाव अतं २१३१४४ १२१६।१२ २।१।१५ रायसू० १७४ १।१६:२३७-२३६ १।११५३ १।११।२ १११११० १।५।११० १११४।७३ १११३३१५ १११११६६ १११३१६६ १।१४।४३ शमा१६१ ११८१५८ १२११६५ ११९२० श१६।२१३,२१४ ११११८४,८५ १४१६।२८५ १११६।२८५ २।१।४५ १।११२१२ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० भगवओ जाव पव्वइत्तए भड० भवणवइ० तित्थयर० भवित्ता जाव दोद्दसपुवाई भवित्ता जाव पवइत्तए भवित्ता जाव पव्वइस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणियवाओ जाव महाधोसस्स भारहाओ जाव हथिणारं भाव जाव चित्ते भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजायभए भीया जाव संजायभया भीया वा भीया सजायभया भुंजावेंति जाव आपुच्छति भुतुत्तरागए जाव सुइभूए भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छ भोगभोगाई जाव विहरई भोगभोगाई जाब विहरति भोगभोगाइं जाव विहरा हि मइविकप्पणाहि जाव उवणेति मज्झमझेणं जाव सयं मट्टियाए जाव अविग्घेणं मट्टियालेवे जाव उप्पतित्ता मणपणे तं वेव जाब पल्हायणिज्जे मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए मयूरपोयग जाव नदुल्लग महत्थं० महत्थं जाव उवणेति महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं महत्थं जाव निक्खमणाभिसेय महत्थं जाव पडिच्छइ ११११११३ १३१४१०४ ११९:१४ ११८५७ १९३६ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण ११५८० ११८२०४;२१११२७ ११११०४ १११२४० १११११०१ ११८१८६११६६३१० २१४१५ ठाणं० २:३५५-३६२ १।१६।२४० १।१६।२५४ ११।११८ ११८११७ ११।३५-३७ वृत्ति १२१२१३६ ११५१२१ १११४१६६ १११११६० १६२५,२७ १११११६० ११८७६ ११८७३ ११८७२ ४११६० ११८६६ १८६६ १।१२।४ १२।१४ १६१६२२ ११५।११० ११११६६ १।१।१७ १११६१८३ १।१६।२०० ११११३२ १११६।२४७ ओ० सू० ५७ १।१६।१६६ १२१६२१८ ११८१४३ ११५४६० ११६४ १६६४ १११२स १५१२६४ ११८४१,४२ ११८।४१ ११३१२८ ११३१२७ शा८१ १९८१ १८.८४ ११८८१ १८ा२०५ शश११६ ११५६८ १११७११७ दा८२ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मित महत्थं जाव पाहुडं १११७११६ ११२२० महत्थं जाव पाहुडं रायारिह १११३१५ ११५२० महत्थं जाव रायाभिसेय ११श६२११६।३७ ११११११६ महब्बले जाव महया १८।१६ १॥५॥३४ मयाहय जाव विहरह २।११० राय० सू०८ महालियं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि १११४१७७ १।१४।७५ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि ११११११० १।१।१०६ महिडीए जाव महासोक्खे सूय०२।२।७३ महुरालाउयं जाव नेहावागाद १११६ १।१६८ माणुस्सगाई जाव विहरइ ११५१६ १६११६७ माया इ वा जाव सुण्हा ११४१७१ सूय० २।२७ मासाणं जाव दारियं १।१६।१२४ ११२।२० माहण जाव वणीमगाण १११४१३८ आयारचूला १।१६ माहणी जाब निसिरइ ११६२४ १।१६।१४ १७।२२ ११२८१ मित्त जाव चउत्थ १७:१० १९७६ मित्त जाव बहवे १७।३० ११७२५,११ मित्त जाव संपरिवुडा ११।२० १॥२।१२ मित्त नाइ गणनायग जाव सद्धि १।२८१ शश८१ मित्तपक्खं जाव भरहो १११११८ मुडावियं जाव सयमेव १६११६१ १।१।१४६ मुंडे जाव पव्वयाहि १।१६।१४ १५१११०१ मुच्छिए जाद अज्झोववण्णे १।१६।२६ १११६२८ मेहे जाव सवणाए ।१५४ १।१।१०६ य णं जाव परमसुइभूए १।१२।२२ ११८१ रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय. १११६६४६ १२१७४२५ रज्जं च जाव अंतेउरं १११६।२६ १।१।१६ रज्जे जाव अंतेउरे १।१४।६० १।१४।२१ रज्जे य जाव अतेउरे श८.१५१:१।१६।१८७१।१६।२६ १११११६ रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ १११४१२२ १।१४।२१ रज्जे य जाव वियत्तेइ १३१४१२२ १।१४।२१ रणो जाव तहत्ति श१६१३०३ १८५१०४ रणो वा जाव एरिसए १८.१५३ १।८।६७ रयण जाव आभागी १।१८५६ १११६१:१११८१५१ वृत्ति Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रहमया १११६.१४७ राईसर जाव गहाई १।१४।४३ राईसर जाव विहरइ १८।१४६ रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा श१४१५६ रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया श८।१३६ रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी १२।५७ रूवेण य जाव उक्किटुसरीरा १।१६।२०० रूवेण य जाव लावण्णेण १।१६।१६० रूवेण य जाव सरीरा १६१४।११ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण १.१८।१३ रोयमाणि जाव नावयक्खसि १।४० रोयमाणे जाव विलवमाणे १२।३४ रोयमाणे जाव विलवमाणे १।६।४७ लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए १।१७।१३ लवण जाव ओगाहित्तए ११६६ लवण जाव ओगाहेह १५ लवणसमुद्दे जाव एडेमि शा२० लोइयाई जाव विगयसोए ११८।५७ वंदामो जाव पज्जुवासामो १११३।३८ वंदित्तए जाव पज्जवासित्तए २।१।१२ वण्णहेडं वा जाव आहारेइ १११८१४८ वण्णेणं जाव अहिए ११०१४ वण्णणं जाव फासेणं १।१२।३ वत्थ जाव पडिविसज्जेइ १२१४/१६ वत्थ जाव सम्माणेत्ता १।१६:५४ वत्थस्स जाव सुद्धेण ११५४६१ वत्थे जाव तिसं १७.३३ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि १६१२१४५ वयासी जाव तुसिणीए १११६४१६,१७ बरतरुणी जाव सुरूवा १११३७ ववरोवेह जाव आभागी १११८१५३ वाइय जाव रवेणं १शमा२०२ वाणियगाणं जाव परियणा शक्षा६७ बाबाह वा जाव छविच्छेयं १।४।२० १८।५७ ११८०५८ १८।१४० १।१४।५६ ओ० सू०६७ ११।१६१ शमा ११८३८ ११८/१० १११८18 १४६४० १।२।२६ १।९।४० १।१७।१२ ११।४ १।६।४ ११६१६ ११९०४८ ओ० सू० ५२ रायः सू० ६ वृत्ति १।१८६१ १११००२ १११२११२ १८११६० ११७६ ११५॥६१ ११७६ ११५१० १३१६१४,१५ १११११३४ श१८५२ १.११११८ शक्षा६६ १।४।११ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणाए जाव धम्माणओगचिताए १३१२१८६ वाराओ तं चेव जाव नियघरं १६।४ वावीस य जाव विहरेज्जाह १९२० वासाई जाव दति १।२।१२ वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए २१६६१७७ वासुदेवे धणुं परामुसइ वेढो १।१६।२५८ वासे जाव असीइंच सयसहस्सा दल इत्तए शक्षा१६४ विउला पगाढा जाव दुरहियासा १।१६।४० विगोवइत्ता जाव पब्वइए १।१६।२६ विजया जाव अवक्कमामो १।२।४७ विणिम्मुयमाणी २ एवं श५।३३ वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता १।१३१३० सई वा जाव अलभमाणा १९२२,२४ सई वा जाव जेणेव १।६।२३ संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं शा८४ संकिए जाव कलुससमावणे १३।२४ संगयगयहसिय० ११३१८ संचाएइ जाव वित्तिए संचाएंति० करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति २४।१४,१५ संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ १८८२ संता जाव भावा १२१२१३२ संताणं जाव सब्भूयाणं १।१२।२६ संते जाव निविणे १८७६ संते जाव भावे १।१२।२६ संपरिबुडे एवं जाव विहरइ १०८।१४७ संभग्गं जाव पासित्ता १।१६।२६३ संभग्गं जाव सण्णिवइया १३१६१२७८ संभागं तोरण जाव पासह १।१६।२७८ संसारभउविम्गा जाव पब्वइत्तए १.१४१५३ संसारभउब्विग्गे जाव पव्वयामि १३५१ सकोरेट जाव सेयवर० शपा५७ सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवरचामराहि महया १८११६१ सकोरेंट सेयचामर हयगयरहमहयाभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता १।१६।१५३ १।१।१५३ १२३४ १९२० १।२।१२ १२१६१७६ वृत्ति ११८१६४ १११११६२ ओ० सू० ५२ ११२।४४ १।१।१४८ १।१३।२४ १।६।२१ १६२१ ११८८१ ११३।२१ १११११३४ ११५११७ ११४:११,१२ १८८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १२४।१२ १।१२।१६ १२१६११७८ १२१६।२६२ १११६१२६२ १२१६।२६२ १११११४५ १११११४५ ११८५७ १८५७ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउस सिरी सज्जइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण जाव गहिया समद्ध जाव पहरणा सणद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तद्रु जाव उप्पयद सततलाई जान अरहन्तगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्सेय एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अजम्मरस सत्यवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधा सफरिसर सद्दहति जाव रोएंति सहावे जाय जेणेव सहावे जाव तं सदावेद जान तब पहारेत्य सदावेद जाव पहारेत्य सहावेह जाव सहावेति सद्देणं जाव अम्हे गंधे जाव भुजमाणे समणस्स जाव पव्वइस ए समणस्स जान पयस्स समणाउसो जाय पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाब माणूस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं सगणाणं जाव बीईवइस्सइ सममाणं जाव साबियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जड समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २४ १।१६।१५७ १।५।२५ १८२०३ १।१२६४ १।१५/१६ १।१६।२४८ |१|१६|१३४; १।१८/३५ १।१६।२५१ १।१६:२३६. १२६।३७ ११८२७७ २७ १,२ ११११६ १।१६०३१ ४१।१७/२ १५२६ १।१५।१३ १८१६,१०० ११७१० १२६/११२,११३ १८१५५,१५६ १।१:१३९ १:३।१९ १।१।१०७ १|१|१०८, ११२ ११७/३५,४३ १|१०|५; १।१८/४८ १।१९।४२,४७ १।६।५३ ११५।११८ १।२३३३४ १२/१७/३६ १/८/२०० १।१६।१४० १८५७ १।५।२४ १२८७६ १२१५६ १/३/२४ १२।३२ ११२/३२ १२/३२ १।२/३२ १२६ ३६ १२८/७३ २।२।१,२ ओ० सू० ८२ १।१६:३१ १।१७/२२ ओ० सू० १५ १।१।१०१ ११८६२,६३ 81019,0,€ १८६६,१०० ११८१६,१०० १।१।१३८ १२३१६ १।१।१०४ १।१।१०६ ११७/२७ १।३।२४ tien १।५।११७ १२२७६ १।२२७६ १८/१९६, १६७ ओ० सू० ६३ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाणा जाव चिट्ठति समाणी जाव विहरितए समोवइए जान निसीइसा समोसरणं सम्मज्जिवलितं जाव सुगंध वरगंधियं सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलिये सम्माड जान पडिविसज्जेइ सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्ख इ सरिसगं जाव गुणोवत्रेयं सरिसियाओ जाव सगणस्स पव्वइस्ससि सब्वओ जाय करेमाणा सव्वं तं चैव आभरणं सम्बन्ईए जान निग्धोसनाइयरवेणं सासु जाव रज्जपुराचितए सहइ बाब अहियासेद सहजायया जाय समेच्या सहियाणं जाव पुण्वरता० साइमं जाव परिभाएमाणी सामदंड० साल पूर्ण जाव नेहावगाढेणं सालय जान आहारेसि सालइयं जाव गोबेड सालइयं जाव नेहावगाढं सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स सालइयस्स जाव एगंभि साहरह जब बोलत सिंगारा जाव कुसला सिंगारागारनारूबेसाओ जाव कुसलाओ सिंघाडग० सिंघाड जान पहे तिचा जाब बहुजणो सिघाडा जान महया सिक्लावइए जान पडिवण्ण सिम्झिहिर जान मंत २५ १।१५।१० १२ १७ १।१६:२२७,२२८ १२५६५ १।१।३३ १।३।६ ११६.३०० १।१।१५० ११६१२० ११.१०६ १।१६।२३ १२५/३०-३२ १/१/३३ १।१४।५६ १।११:३ ११०३१०,११ १।५।११८ १०१६/६३ १८:४५ १|१४|४ १/१६/२५,२६ १।१६०१६ १।१६०८ १०१६ १६,१९,२० १।१६।२२ १।१६ १९ १५१२ १।१।१३६ १।१:१३५ १।५।५३ १।३।३३:१/१३/२६; १।१६।१५३:१।१८१६ ११७१४१; १८६/२००; १।१३ २६ १।१।१५ १.१३/३६ १।१५।२१ १४१५६ १।२।१७ १११६१६७,११८ १ १/४ '१।१।२२ १।११२२ १।१४।१६ १।१।१४६ ११६१४१ १११११०८ १।१६।२३ १०१।१४५-१४० ओ० सू० ६७ १।१४५६ १।१।१६ १।१११५ १२३४६,७ १।३।७ १।१६/६२ १११।१६ १/१६/५ १११६/१६ १।१६।८ १/१६/८ १११६१८ १।१६।१६ १८४८ १।१।१३४ १।१।१३४ १:१।३३ १।१।३३ १।५१५३ ओ० सू० ५२ उवा० ११४५ १।१।२१२ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।४६ ११५१८४ १८.७४ ११८७७,७८ शक्षा६७ श१८३५ १।९।३७ श१६।२१५ १११६।२२१ १४१६२२६ ११५८ १।१५।१३ १।८।२६ सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण. सिद्धे जाव पहीणे सीलब्वय जाव न परिच्चयसि सीलब्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीहनाय जाव रवेणं सोहनाय जाव समुद्दरवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाव लभामि सुई वा जाव उवल द्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे सुभरूवत्ताए सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ सुमिणा जाव भुज्जो २ अणुवहति सुरं च जाब पसन्न सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ सुरूवा जाव वामहत्थेणं सुमाल निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जाब गए से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा पब्वइत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोगियासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स हए जाव पडिसेहिए हट्ट जाव हियया हट्ठतु? जाव पच्चप्पिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हट्टतुटु जाव हियए हत्थाओ जाव पडिनिज्जाएज्जासि हत्थिखंध जाव परिवुडे हत्थिखंधवरगए जाव सेयवरचामराहिं हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए १११२१२ ठाणं ११२४६ शपा७४ ११८।७४,७५ ओ०सू० ५२ श८।६७ ११२१२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६२१२ ओ०० १४३ १११५।११ १११:३२ १।१०२६ १२१६११४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६।३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ ११८५७ १।१८।३३ १११६१३१६ १।१६।१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१६।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १९१८१६१ १९१८।४८ १।१६।२५७ २।१२०,२१,२४,२५ ११११२३ १५१३ १।१।२०७१।१६३१३५ ११७।६ १४१६४१४६ ११८१६३ ११६।२०३ १।१।१८५ १११।१०६ १।१।१०६ शबा१६५ ११।१६ १६१६१६,२२ १६१।२६ १११११६ ११६ १११६३१४६ ११८५७ १४१६१२०० १११११५७ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिबुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवुडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगड्या ह्य जाव सेणं यमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमयि जाव पडिसे हित्ता हयमहिय जाव पडिसे हिया हयमयि जाव पडिसे हेइ हयमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियताए हिरण्यं जाव वइर हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे होलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवति होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्टा जाव विहरइ १११११६८ १५१११५८ ११६।२४८ १११६११३६ १११६१५६ १।११६६ १।१६।३०३ १११६।१७४ ११६१३८ श८१६२ १।१६।२८५ श८१६६,१११६१२५६ १११६१२८६ ११८१४२ १४१८१२४ १।१८।४१ १११।१६१ १११।१२६ १।१३।३८ १११७११६ १११७११८ १४।१८ ११।१२५ १।१६।११८ १३१६।११७ १११११५७ १११११५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ ११८५७ १।११६७ ११८५७ १८५७ ११।१५ शा५७ १८।१६५ १८।१६५ १८.१६५ ११८।१६५ १।८।१६५ १८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १११७:१६ १।१७।१४ १३।२४ १।३।२४ १।६।११७ ११३।२४ १११११७ उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवणे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७१७ ५।२,२१ ७।१० ३३२०,२१ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ७१२६ २१२२ ११६६ ६।२८ ६.२८ २१३,४ ११११-१३ ओ०सू० १४१ ३।४२ ३२४२ ६१२० ना० १।१।१६६ ११६५ अम्गिमित्ताए वा जाव विहाइ अज्ज जाव ववरोविज्जसि ३।४४ अज्भवसाणे जाव खओवसमेणं ८.३७ अट्टेहि य जाव वागरणेहि ७१४८ अट्टेहि य जाव निप्पट्ट ६.२८ अड़ढे चत्तारि ६।३,४;१०१३,४ अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठहिरण को. डीओ सकसाओ निहाणपउत्ताओ अहि वड्डि अहि ससाओ पवि अद्रवया दस गो साहस्सिएग वएणं अड्ढे जाव अपरिभूए १।११ अणारिए जहा चुलणोपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ ५.४२ अणारिए जाव समाचरति ३।४४,४१४२ अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ६२१,२२,२३,७१२३,२४ अण्णदा कदाइ बह्यिा जाव विहर इ १९५४ अपच्छिम जाव अणवखमाणे ११७२ अपच्छिम जाव भत्तपाण ८।४६ अपच्छिम जाव झूसियस्स ८।४६ अपच्छिम जाव वागरित्तए ८.४६ अब्भणुण्णाए तं चेव सब्बं कहेइ जाव ११७६ अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे ११५५ अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ८.१६ अभिगयजीवेजीणं जाव अणइक्कमणिज्जेणं ११३१ अभीए जाब विहरइ २१२६,३५; ३१२२ अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं ।२४ अभीयं जाव पासई २।४०,३१२३ अभीयं जाव विहरमाणं २।२८,३० अवहरइ वा जाव परिवेइ अस्मिणी भारिया । सामी सामासढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ ६।५-१५ असोगवणिया जाव विहरसि ७१७ अहीण जाव सुरूवा ११४ अहीण जाव सुरूवाओ ८६ ८।४६ १७१-७८ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ २।२३ २१२३ २।२४ २।२४ ७२५ २१५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ س आओसेसि वा जाव ववरोवेसि ७.२६ ७२५ आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २०१६ आलोइज्जइ जाव तवोकम्म ११७८ ठा० ३१३४८ आलोइज्जइ जाव पडिवज्जिज्जइ ११७८ वृत्ति अ०३ आलोएइ जाव जहारिहं ८५० वृति अ० ३ आलोएइ जाव पडिवज्जइ ३१४६ वृत्ति अ० ३ आलोएयब्वं जाव पडिवज्जेयव्वं ११८० वृत्ति अ० ३ आलोएह जाव पडिवज्जेह १७८ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव अहारिहं ८/४६ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव तवोकम्म ११७७ वत्ति अ०३ आलोएहि नाव पडिवज्जाहि १३१८,३।४५८४६ वत्ति अ०३ इ? जाव पंचविहे १।१४ ओ० सू० १५ इड्डी जाव अभिस मण्णागए २२४० २४० इमेणं जाव धमणिसंतए १२६५ ११६४ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ३४२ ११७३ उक्खेवो ३११४।१५।१६।१७।१८।१९।११०११ २१ उज्जलं जाव अहियासेइ २।३३,३९,३१२६ उज्जलं जाव अहियासेमि ३१४४ उज्जलं जाव दुरहियामं २।२७ उहाणे इ वा जाव अणियता ६२१,२३ उठाणे इ वा जाब नियता ६।२१,२३,७।२६ ६।२० उदाणे इ वा जाव परक्कम ६।२०,२३;७।२६ उढाणे इ वा जाव परिसक्कार० ७.२४ ६।२० उहाणणं जाव परक्कमेणं ६।२३ ६।२० उदाणेणं जाव पूरिसक्कारपरक्कमेणं ६॥२१७२३ ६२० उद्धाविए जहा चुलणी पिया तहेव सव्वं भाणियब्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहल सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चलणीपिया बत्तन्वया सव्वा नवरं अरुणच्चा विमाणे उबवातो जाव महाविदेहे ३१४२-५२ उद्धाविए जहा सुरादेवो। तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ । सेसं जहा चलणीपियस्स जाव सोहम्मे ५।४२-५२ ३१४२-५२ वृत्ति वृत्ति ६१२० ६२० ७७५-८८ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ७।११,१८ ७/१० ८२७ ८.१८ ३१५०-५२ पा३५ पा१६ ८.१८ २१५३-५५ ११६४ ११६२ ६।३५.४१ २१५०-५६ ३१२७-३८ ३१४४ १९६६,८१३७ उप्पण्णणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्च० उरालाइं जाव भुंजमाणे उरालाइं जाव विहरित्तए उरालेणं जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाब किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आणंदो तहेव अपच्छिम० एक्कारसमजाव आराहेइ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आईचइ । अहं तं उज्जलं जाद अहियासेमि एवं दक्षिणेणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्कक्के पंच सोल्लया ! तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्केके पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिग्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ कज्जेसु य आघुच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपणत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स निरवसेस जाव सोहम्मे कल्लं जाव' जलते ४।४१ ४।३६ ४/२२-३८ ३।२२-३८ २।४५ ८।४२ १६५६ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १११३ २।१८,१६ ওও ७७ ७।२२ ४।४५-५२ १५७,७११२ ३१४५.५२ ओ० सू० २२ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४५ १६५७ २१२२ २।२२,२३ २३०,३१ २।३-६ ४.३६ १२११-१४ वृत्ति २।३.६ ८.१८ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि बिहरइ कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वभिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्व्या दसगोसाहम्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केगटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचइ गिहाओ तहेव जाव कणीय जाव आईचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएत्ता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चुल्लसया गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुबासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ७१४६ ७.३४ ३१४२ ३।४२ ৮s ११४८ ३१४२ ३२४२ ३१४२ ११७६ २०१८ ३१४१ ३१२१ १७६,७७ ६१८ २४४ ३।४२ ३।२७-३८ ३२२१-२६ ५५२ २।५५,५६ ४।३-६ भ० १२११ २।४३ ८।१०-१५ है।१६,१७ १११६-२४ २११६,१७ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ १:५६ ७।१४ ७.५० ४।४२ १६५७ ७।१५ ७.३५ ११५७ ७।१५ १९२० ७.३५ राय० सू० १२ ३१४२ ११५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ११५७ ५.४० ५४१ जाया जाव पडिलाभेमाणी जाव पज्जुवासइ जुगवं जाव निउण सिप्पोवगए जेट्टपुत्तं जाव कणीयसं जाव आइंचइ ठावेता जाव विहरित्तए । णमंस इ जाव पज्जुवासइ णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ णाइटूरे जाव पंजलियडा पहाए जाव अप्पमहग्धा० बहाए जाव पायच्छित्ते ण्हाए सुद्धप्पावेस अप्प० बहाया जाब पाच्छित्ता तं मित्त जाव विउलेणं पुष्फ ५ सक्कारेइ सम्माणेइ, २त्ता तस्सेव मित्त जाव पुरओ तञ्च पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि तत्थ णं बाणारसीए चूलणी पिया नाम गाहावई परिवसई अड्डे सामा भारिया अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ अट्ठ वडिप० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं जहा आणंदो ईसर जाव सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था तव जाव कणीयसं तिक्खुतो जाव वंद तीमे य जाव धम्मकहा सम्मत्ता तुम जाव ववरोविज्जसि दुहट्ट जाव ववरोविज्ज सि देवराया जाव सबकसि देवाणुप्पिए समग्रे भगवं महावीरे जाव समोसढे तं देवाणुधिया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स नाममुद्दगं च तहेव जाव पडिगए ३.३-६ ३२४५ ७१३५ २।४४ ३.४४ ७७५ २१४० २॥३-६ ३२४४ ११२० २०११ २।२२ २०२२ वृत्ति ११४५ ७.४४ ७.३१ ७.४६ ७.५० ७१५१ ७१५० ६०२०-२४ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८५ वृत्ति ३१२१-३७ ३।२१-३८ २।२२ २।२२ ११६६ श६२,६३ निक्खेवो २।५७,३१५३:४।५३,५१५४% ६१४१७८६८।५४६२७ निक्खेवो पढमस्स १८५ नोमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केके सत्त मंसमोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि श२१-३७ नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसरगं करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २त्ता जाव आइंचइ ७।५७-७३ नीलुप्पल जाव असि २१४५,३।२१,४४,४२१ नीलुप्पल जाव असिणा रा२२,२६ पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं १९७६ पढम अहामुत्तं जाव एक्कारस वि .३३,३४ पढम उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाद एक्कारस वि ३३४८,४६ पाउणित्ता जाव सोहम्मे १३५३ पाडिहारिएण जाव उवनिमंतिस्सामि ७.११ पावयणं जाव ज हेयं ७।३७ पीढ जाव ओगिरिहत्ता ७५२ पीढ़ जाव संधारएणं ७१५१ पीढ जाव संथारयं ७११८ पीढ-फलग जाव उवनिमतेत्तए ७११८ पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सलद्धे २०४० पुत्तं जाव आइंचइ ७७८ पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया धन्ना वि पडिभाइ जाव कणीयसं ४।४४ पुवरत्ता जाव धम्मजागरियं ११६५ पुन्वरतावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७.५४ पोसहिए. फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव मिहिधम्म पडिवज्ज इ जहा कामदेवो तहा जेपत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपज्जित्ताणं श६२-६३ ११८४ ११४५ श२३ १।४५ २४५ ११४५ ११४५ २१४० ३१४२ ३.४४ ११५७ २०१८ ना० ११११५३ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१५-२५ ७.१६ २।४० ३।१६ २१५५ १४५७ २।५-१६,५०-५५ ११४५ १९४५ १९६० १२६० ११८४ १६५७ २०१८ १२३ ७/७५ सू० ५२ वृत्ति ८२७ ८।२७ विहरइ । नवरं निरुवसगो एक्कारस्स वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियवाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे फलग जाव ओगिण्हित्ता फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए बंभयारी समणस्स बहूहिं जाव भावेत्ता बहूणं राईसर जहा चितिथं जाव विहरित्तए बहूहिं जाव भावेमाणस्स भवित्ता जाव अहं भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अज्झोबवण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकमाणी महइ जाव धम्मकहा समत्ता महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो तहेव मारणंतिय जाव कालं मित्त जाव जेट्टपुत्तं मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहुम्माय जाव एवं वयासी तहेव जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्थवाहाणं राईसर जाव सयस्स लढे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ! धम्मकहा । वदणिज्जे जाव पन्जुवास गिज्जे वंदामि जाव पज्जुवासामि ७।३७ ७७८ ७१३७ का२० ८।३८ ८।४६ ७१६ २।४२ २।४३,७:१५ १११७७११२ २।११ १।१७ श२० ओ० सू०१६-२२ ८.३८-४० ८।२७-२६ ११५७ श५७ ११५७ ओ० सू० ५२ ११२३,५३ ८१४६ बा२७-२६ ११२३ १११३ ११५७ २१४३,४४ ६।२६,२७ ७१० ७११५ ओ० सू०२ ओ० सू० ५२ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवासाहि वंदितामि जाव पज्जुवासिस्सामि वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि व्यासी जाव उववज्जि हिसि वाताहतं वा जाव परिवेइ विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे विहरइ । तर गं बीताई तव पुत्तं ठवे धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियागं नाणस अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ वीइक्कता एवं तव जेट्ठपुत्तं ठवेइ जाय पोसहसालार धम्मपणति संचाएइ जाव सनियं संताणं जाव भावाणं संतेहि जाव वागरित्तए संतेहि जाव वागरिया सखिखनियाई जाव परिहिए सहामि णं जाव से जहेयं सद्दालपुत्ता तं चैव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुवासमा समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि समणोवास जाव अहियासेड समणोवास जाव विहरइ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया समणोवासया ! तं चैव भणइ समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३५ ११४५ ७१३१ ७१११ ७|१० ८४६ ७१२६ ७२४७,४६ २१५१-५४ ६१८-२६ ८२५, २६ २/३४ १२७८ ८।४६ ४ ७ १० १/२३ ७ १७ ११३-५ १।२० ५। ३८ ४ ४०,५३८ जाव न भंजेसि समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३१२१ समणोवासया ! जाव न भंजेसि ३।४४७।७५ २/३४,५१२१,३६ ७७७ ३२३, २४ ३०४४ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ ८।४१ ७/२५ ७१४६ १/६२-६५ २११८, १९, ५०-५६ २१८, १६ २२८ १७८ ८ ।४६ ८४६ २४० रा० सू० ६८६; ओ० सू० ८२,८३ ओ० सू० ५२ २।२७ ३/२२ रा० सू० ६६५ ७ १०, ११ २/२२ २/२२ २२२ ७७४ ३२१,२२ ३।२३-२५ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३६ २०२२ ७७८ ३.४२ श१७-२३,५४-६० वृत्ति २।२७ २२७ भ० ३१०२ २१७-१६ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि ३६४१ समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भंजेसि ॥२८ समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चितेइ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव सावयधम्म पडिबज्जइ । साचेव वत्तव्बया जाव जेट्टपुत्तं २१७-१६ सहइ जाव अहियासेइ २।२७ सहति जाव अहियाति २०४६ सहितए जाव अहिया सित्तए २०४६ साइमं जहा पुरणो जाव जेट्टपुत्तं - १५७ सामी समोसढे । चुलणी पिया वि जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए ३१७-१६ सामी समोसहे जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्ति ५॥७-१६ सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जद्द । सा सव्वेव वत्तब्बया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ ६१७-१७ साहस्सीण जाव अधणेसि २१४० सिंघाडग जाव पहेम ५१३६ सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए ५१४२ सीलब्बय-गुणेहिं जाव भावेत्ता ८.५३ सील जाव भावमाणस्स सीलव्वय जाव भावेमाणस्स बा२५ सीलाई जाव न भंजेसि ४।२१ सीलाई जाव पोसहोववासाई २०२२ सीलाई वयाई न छई सि तो जीवियाओ रा२४ सुक्के जाव किसे ११६४ सुद्धप्पावेसाईजाव अप्पमहरघा ७.१५,३५ सुरादेवे गाहावइ अड्ढे छ हिरण्णकोडोओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएण २१७-१६ २१७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५०३६ ११८४ ११५७ ११५७ ७१५४ २१२२ २।२२ २।२२ भ० २०६४ ११४६ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३-१६ १।११-१४:२१७-१६ २।३६,३७ २३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडि बज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ठ जाब एवं वयासी हट्ठत? जाब गिहिधम्म हट्टतुट्ट जाव समण हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियए जहा आणदो तहा गिहिधम्म पडि दज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्टतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेइ, २ सा एवं बयासी खिप्पामेव लहकरण जाव पज्जुवासइ पा२६,३० ११२३ ११५१,५२ २।४८ १७४८१४८ ८।२७,२८ ओ० सू० ८० ११२३,२४ ११२३ १२३ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्टा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छ जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७३७ ७।२६ २१४० ओ० सू० ८० भ० ६१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ ७.५० अंतगडदसाओ अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाब इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ८२० ६५२ ३१२० ८७ ना० १।५३५ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६२ ३१२३ ३१८६ ३।१०२ ३१७४ ५।११ ८८ ६१६५ १११६ ३।१०१ १।१४ ३११०१ १११४ ६७६ ६५५५ ३१२६,३० अणुत्तरे जाव केवल अतुरियं जाव अडंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे जाव पव्वाहि अरिटुनेमिस्स जाव पन्वइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि० आपुच्छामि देवाणुप्पियाणं आसुरुत्ते जाव सिद्धे आहेवच्चं जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ता ईसर जाव सत्थवाहाणं उच्च जाव अडई उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाव अडामो उच्च जाव पडिलाभेइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर उम्मुक्क जाव अणुप्पत्ते उरालेणं जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदंसेइ उवागच्छित्ता जाव बंद ओहय जाव झियाइ ओहय जाव झियायइ करयल करेइ जहा गोयमसामी जाव अडइ काएणं जाव दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहियव्वा कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं वृत्ति भ०२।१०८ उवा०२१२२ ३१८६ ३.७० ३७६ ठा० ७११३ नाभ ११११११४ ना०श८७ ३८६-६२ ना० १शश६ ३१८७,८८ ना० ११५६ भ० २।१०८ भ०२।१०६ ३१२४ २१२४ ३१२३ ३१२४,२५ ना० १११६६ ना० १११।१६२ २२६ ना० ११०२० भ० २०६४ ६६५७ ६८० ३१२८,२६ ३.६१ ३३९० ६।५२ ३१५० ८।१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३२४३ ५।२२,६१३५,४१ ६५४ ३२८८ ३१७६ १११६ દાદ ३४३ ना० ११॥३४ ना० १११।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १११११०६ रायः सू० ६८ ५३१ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ८.३३ ११२१ ४७ ३२२१ ३२१७ ६।१,२ ५॥३१ ५।३१ १।२५ ३२० .३।३ ८.१७,१८ १।५,६ १७ ७।१,२ ३११ ८.१६ २११,२ ११५,६ ११५ ११७ १५,६ चउत्थ जाव भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थस्स वग्गरस निक्खेवग्रो छटुंछट्टेणं जाव विहरंति जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स जइ छुट्टस्स उक्खेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अट्ठमस्स बगस्स उक्खेवओ जाव दस जइ णं भंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वगस्स उक्खेवओ जाव तेरस जइ तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसे इ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव सलेहणाकालं पहाए जाव विभूसिए व्हाया जाव पायच्छित्ता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे य धम्मकहा तीसे य धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सीहं सुमिणे नमसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडित्तए नवमस्स उक्खेवओ निगया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजभइ ३।४७-४६ ६५७ ३।२२ ८.३६ ३४४ ना०१।१२५३-५८ भ० २।११० भ० २।१०७ ६।५३ ८.१५ ओ० सू०७० ओ० सू० २० १११९,२० राय० सू० ६६३ ना० १११।१०० वृत्ति ३११३ ३१६२ ६१५०,८८ ३१६५ ३।११६ ३१२२ ३१११२ ओ० सू० ५२ भ० २११०७ ३३३ ना० १।१६५ ३१७८-८५ भ०११४१६८,ना०१११११५-१५१ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६४ ५८ ५२८ ८६ ६५१ ३।१०४ ३।३० ३१७७ ३।२६,२७ ६१९४ रायसू० ६६३ ना० १११११५० ८१८ ना० ११११०१ ३।९५ ३१२२,२३ ना० १११११४ ३१२४,२५ ना० १११६४ ५।१२ ५.१२ ५।१४ ५।१३ ६।२८ नेरइय जाव उववज्जति पउमावईए य धम्मकहा पव्वावेइ जाव संजमियब्वं पारेइ जाव आराहिया पाक्यणं जाव अब्भुट्टेमि पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुयाहिं अणु लोमाहि जाव आघवित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोसढे विहरइ भूतं जाव पव्वइस्संति भूतं वा जाव पव्वइस्सति मालागारे जाव घाएमाणे मासियाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाब सिद्ध मुडा जाव पव्वइया मुंडा जाव पव्वयामि मुडे जाव पव्वइए मुंडे जाव पव्वइत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सइ रज्जे य जाद अंतेउरे रूवेणं जाव लावण्णेणं लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठवेंति विण्णवणाहि जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरित्तए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छ?स्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाब विहरइ सरिसया जाव नलकूबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा ना० १११८४ ३।२० ३१२० ३।२० ३१२० ३२० ना० १११११६ श२४ ३१३०,५।११ ५।२१,२२ ६१५३ ५।१६ ३१५० ५।११ ३१५७ ३१३१ ६.४५ ६।८४ ८.१४ ३३१३ ६.१०२ ना० १।१६।१३३ मा१४ श२४ ४१७ ३३२० ना० १।१० ३११६ ना० १२१२६० ३।१२ ३१३० ३३१० ५।१४ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥२८ ३।६२ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाब महापहपहेसु सिद्धे जाव पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वत्रियकुले ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० १।१६६ ३।६३-७३ ६।५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७:११०-११३ ना० ११०१०१ ओ०सू०२० ३२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१ वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकं खति ३२४ ३१२२ इमासि जाव साहस्सीणं ३१५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३२३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३१३१ उच्च जाव अडमाणे ३१२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठइ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २०६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ एवं जाव सोणियत्ताए ३२३४ ३।३१ एवामेव ३३६-४४,४६,४७,४६,५० ३।३१ गोयमे जाव एवं १।१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ श जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३२५२ भ०२।६४; मा०१॥श२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पब्वयामि । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाव जहा जमाली तहा आपुच्छर । मुच्छिया । सपदिवत्तया जहा महम्बले जाव जाहे नो संचाए जहा थावच्चापुत्तस्स जियस तुं आम्बद्द छतचागराओ सपमेव जियसत्तू निरमणं करेति जहा थावच्चातस्स कण्हो जाव पव्वद अणगारे जाए इरियासमिए जाब गुत्तबंभवारी 1 जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चि तरुणिया एवामेव लिमिव जाव आहारेह मुंडावली वा मुंडे जाव पब्वइए सजमेणं जाव विहरइ संजमेणं जाव विहरामि सुक्के० सुक्काओ जाव सोणियत्ताए सुपुष्णे सुकवत्वे कलक् सोहम्मीसाण जाव आरणए अंतरष्णा जाव चरेड एवं जाव इमस्स एवं जाव चिरपरिगत ० एवं जान परियति पत्थणिज्जं एवं चिरपरि० रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियब्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिंदिए -- ४२ ३।११-२१ १७ ३।५१ ३१४५ ३।५७ ३६३८ ३६६ ३।६६ ३।५७ ३/३७ ३१३२ ३।५८ १३८ पण्हावागरणाई १०/१५ ५।१० ३:२६ ५८ ४/१५ १०/१७ १०/१५ १०/१७ १०।१६ १०.१६ २०] १।३३.११.११: ना० १११, ११५ ना० १।१।६३ ३।४३ ३/४३ ३।२७ ३।३१ ३।२२ મારક ३।२७ ३।३१ ३।३१ ३१५८ ना० १।१।२११ १०1१४ ५।१ ३।१ ४/१३ ४११ fals * १०/१४ १०/१४ १०/१४ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ विवागसुयं ११८।१,२ १।४।२८ श२८ १।२।१,२ १।२१६४ वृत्ति वृति १७७ १।२।२४ १।३।१३ श२१२६ १२६२३ १.१४४७,१४३११६ १३।७ ११११७० ११११२ अं०६५७ ना० ११११३३ ११२।१४ श।२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ अट्ठमस्स उक्वेवओ अट्रि जाव महियगतं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउड़ अब्भणुण्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्जमाणं अविणिज्जमाणंसि जाव भियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुष्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापडिरूव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणिट्रतराए चेव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरूवे आसि जाव पच्चणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुत्ते जाव साह? आहेवच्चं जाव विहर इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति इंदमहे इ वा जाव निरगच्छति इगुरूवे जाव सुरूवे इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उबरदत्ते निच्छुढे जहा उज्झियए उक्किट्टि जाव करेमाणे उक्किट्टि जाव समुद्द० १।१।३६ ११६२ १।२७ १२।१० श।१६ ११३३१६ ११३१४१ ११६।३५ शरा७:१३१७ ११।१६ ११०२० २।१२१५ ना० ११८६४२ २०४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १।११४२ ११११४२ १।२।६४ ११२१६४ वृत्ति ना० १११६६ ना० १११११७ २११११५ ११११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ ११२६५६ १।३।२४ ओ०सू० ५२ १।१७० २।१।३१ २७३४ श३४३ १।३।२४ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११७० ११२।१४ ११२।१,२ श२११,२ १।२।१४,१५ वृत्ति वृत्ति उक्कोस नेरइएसु उक्खित्त जाब सूले० १६ उक्खेवओ नवमस्स १।६।१,२ उक्खेवओ सत्त मस्स ११७५१,२ उग्छोसिज्जमाण जाव चिता १।४।१२,१३ उज्जला जाब दुरहियासा ११११५६ उम्मुक्क जाव जोवणग० १२११७० उम्मुक्कबालभावा जोवणेण स्वेण लावण्णण य जाव अईव १।६।३४ उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ ११६२६ उराले जाव लेस्से २।१२० उवगिज्जमाणे जाव विहरद ११९४८ उस्सुक्कं जाव दसरत्तं ११३१५२ एवं पस्समाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ११११५० ओहय० १२।२७ पोह्य जाव झियाइ १२।२४;११६१६ ओहय जाव झियासि ११२।२५,१।६।१७ ओहह्य जाव पास १।२।२५१।६१७ करयल० ११३१४०,५५,५६११६।३८ करयल० १४३१५० करयल जाव एवं ११३१४४,१।४।२८ करयल जाव एवं ११३१५२,५३; १६६१३४ करयल जार पडिसुणेति १९३१५३,६२११६:३४,११६२०,४० करयल जाव वद्धावेइ १।९।४५ करेइ जाव सस्थोवाडिए कुमारे जाव विहरद १२६।३६ खुत्तो १४१०७० गंगदत्ता वि १७।३३ गामागर जाव सण्णिवेसा २।१।३१ गाहावई जाव तं धणे २१११२३ गिण्हावेइ जाव एएणं ११५२७ घाएति २ ११३।१४ चउत्थं छ? उत्तरेणं इमेयारूवे ११७।१०,११ चउत्थस्स उक्खेवओ ११४११,२ ११४१३६ १२४१३५ ओ० सू०८२ ना० १११६३ वृत्ति १४१२५० १०।२४ वृत्ति ११।२४ १।२।२४ ११३१४० ११३१४० १।११६६ ओ० सू० ५६ ११३१५५ वृत्ति १४११६६ १।१।७० १२२१५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति १०२१६४ ११३।१४ श७१२।१५ १।२।१,२ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ ओ० सू० ८३ छुटुंछद्रेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव १४२११२-१४ भ० २११०६-१०८ छठुस्स उक्खेवओ १५६।१,२ १९२११,२ छिदइ जाव अप्पेगइयाणं शश२८ शरा२४ जणसह च जाव सुणेत्ता १११।१६ ओ० सू० ५२ जहा विजय मित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा ११७।३१,३२ ११२१५०,५१ जातिअंधे जाव आगितिमेते १६११६४ ११।१४ जायसड्ढे जाव एवं ११११२५ जाव पुढवी ११३।६५१।४३६ ११११७० द्विइएसू जाव उववज्जिहिइ १११७० ११११५७ हाए जाव पायच्छित्ते ११३।४७,५५,१११।४५ शश६४ ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए १।५० १५२।६४ हायाओ जाव पायच्छित्ताओ ११७।२० १॥२०६४ व्हाया जाव पायच्छित्ता १।३।२४ ११२१६४ तं चेव जाव से णं १३।१५ १।२।१५ तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि १६६०२३ ११६।१८ तं महया जहा पढम तहा २।११३२ २११:१२, भ० ६।१५८ तच्चस्स उक्खेवो ११३३१,२ श२।१,२ तह त्ति जाव पडिसुणति १।३१४६ शश६६ ताओ जाव फले १७।२३ १२७११६ तीसे य० १२१२२३ ना० १११११०० तेगिच्छियपुत्तो वा जाव उग्घोसेंति १६१०११३,१४ ११८।२१,२२ तो णं जाव' ओवाइणइ ११७।२१ ११७११६ दसमस्स उक्खेवओ १११०११,२ १२।१,२ दारगस्स जाव आगितिमित्ते शश२६ १११।१४ नगरगोरूवा जाव भीया १२।३४ १।२।३३ नगरगोरूवा जाव वसभा १२।३३ १।२।२४ नगरपोरूवाणं जाव वसभाण शरा२८ ११।२४ नगर जाव विणिज्जामि ११२।२४ ११।२४ निक्खेवओ ११३१६६ १११७१ निक्खेवो १।२१७४;११४१४०, ११५।३०।१।६।३८:१७४३६१।८।२८,१९६० १११७१ निच्छ्भेमाणे अन्नत्य कत्थइ सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणाए गिह १।४।२६,२७ ११२१६२,६३ नीय जाव अडइ १७७ १।२।१५ पंचमस्स अज्झयणस्स उवखेवओ ११५।१,२ ११२।१,२ पंच्चाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म २।१।३१ सश१३ पज्जेइ जाव एलमुत्त ११६२३ १।६१४ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वृत्ति पम्हल० ११७२१ पावं जाव समज्जिणइ १४११७० ११११५१ पुढवीए संसारो तहेव पुढवी १।५।२६ १॥३॥६५ पुष्फ जाव गहाय १७२३ ११७२१ पुरा जाव विहर १११४१,४२,१४२१६५ ११११४१ पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं १२१५ १५११४१ पुव्वभवपुच्छा वागरेइ ११७.१२,१३ १।११४२,४३ पूवभवे जाव अभिसमण्णागया २२१४१५ वृति पुवाणुपुब्धि जाव जेणेव २१२ ना० १११४ पुख्वाणपुटिव जाव दुइज्जमाणे २१११३२ २।१।३१ पोराणाणं जाव एवं २७।११ १२।१५ पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे ११११६६ ११११४१ पोराणाणं जाव विहरइ ११३१६४।१।४।६१,११५।२८,१।७३७,१८१८,२६:१।९।५८ १।१०।१८ १।११४१ फलएहि जाव छिप्पत्रेणं १1३.४३ ११३१२४ फुट्ट माणेहिं जाव विहरइ २।१।११ ना० १६१६३ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि १२२१२६ १।२।२४ बहहिं चूण्णप्पओगेहि य जाव आभिओगित्ता १११०१७ ११।७२ बहहिं जाव हाया १७४२५ ११७२३ भगवं जाव जओ णं १९३४ ११:३३ भगवं जाव पज्जुवासामो १६११२१ ओ०सू० ५२ भवित्ता जाव पब्वइस्लाइ २।१।३५ २१११३ भवित्ता जाव पवएज्जा २१११३१ २।१।१३ मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ ११२।१५ भ० २।११० महत्थं जाव पडिच्छइ ११३१५६ ११३१४० महत्थं जाव पाहुडं ११३०५५ १०३।४० महावीरे जाव समोसरिए १११११७ वृत्ति महिय जाव पडिसेहेति ११३१४६ मासाण जाव आगितिमेत्ते १४१०६४ मासाण जाव दारियं १।३१ १।२।३१ मासाण जाव पयाया १७२६ ११२१३१ मित्त ११३२६०,११५१७ १।२।३७ मित्त० १७२७ १७११६ मित्त जाव अण्णाहि ११३१२८ ११३।२४ मित्त जाब परियणं ११६४७ १२।३७ मित्त जाव परियणेण १६५७ ११२३७ वृत्ति Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति वृत्ति मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिवुडाओ मित्त जाव परिवूडे मित्त जाव महिलाओ मित्त जाव सद्धि मित्त जाव सद्धि मियादेवी जाव पडिजागरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति रटुं च रट्रेय जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जाव पभियो सईसर जाव प्पभियओ राईसर जाव सत्थवाह. राईसर जाव सत्थवाहाण राईसर जाव सत्थवाहेहि राया जाव जीईवयमाणे वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि सगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सण्णद्ध जाव पहरणे सण्णद्धबद्ध जाव पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा० सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि समणे जाव विहरइ समाणे सिंघाडग तहेव जाव सूदरिसणाए समुप्पणे जाव तहेव निग्गए सागरोवम० सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव पहेसु संदरथण सुबहुं जाव समज्जिगित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं हट्ठतुहियया हय जाव पडिसेहिए ११२।५४ १॥२३७ ११७४२३ ११७११६ १।३१५५ २।३७ १७/२६ १७.१६ १७.२३ १।७।१६ ११६।४५ १।२।३७ १।१।२६ १२१११५ २११६३१ २।१।१३ ११११५७ १५११५७ ११११५७ २१११३ ११२१७२ ११५० १।१०१७ १.१५० १६५२२,२३ ११११५० ११११५० ओ०सू० ५२ १९५७ १।१३५० १।९।३७ १६६२३ श२४७ शरा२४ १।२।२० १२।२८ १२।१४ ११३।४७ १।२।१४ १२३।२४ ११२।१४ १२६१२२ १६१०२० ना० १११९ ११४१२२-२४ ११२।५७-५६ १।३।१५ १४२११५ १६१७० १।११५७ १११०।१३ १६११५३ १।२।५७,१८२१:२।११२३ ११११५३ १२।७ वृत्ति १८११३११६१२६७१।१०१८ शा५१ २।१११०,११ ओ०सू० १४८,१४६ १।१।२६ ओ०सू०२० ११३१५० ११३१४६ वृत्ति Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि-पत्र मूलपाठ पंक्ति शुद्ध अशुद्ध मणप्पत्ते २० जहेसु ~ हीत्थ कट्ट १७७ २०६ ३०६ मणप्पत्ते जूहेसु हत्थी कटु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस ~ ~ विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवासण्णयाए देवदेसंस ४२६ ~ ~ ४५५ ४६१ ५१६ ५५१ तुम तुम ताई ताइ °समुदएणं सस्सिरीएण दस GG KE -WWW समुदएण सस्सिरीएणं दस खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणदे खणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियाणदे पा०६ पाठान्तर पटटसि पिणद्धति आसुरुत्त पट्टसि पिणद्धेति ४८ पा० ४ पा०२ आसुरुत्ते परिशिष्ट अभिगयजीवेजी णं अभिगयजीवाजीवेणं Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रही जीवानाम