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________________ तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है'। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता हैं। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं । इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे- गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्ण । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है। 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं-अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासदेवकष्ण के छोटे भाई गजसकमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है। छठे वर्ग में अर्जनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य बनताबिगड़ता है-इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं ! ___ अतिमवतक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं। भगवान महावीर ने उपवास और ध्यान दोनों को स्थान दिया था। तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं। भगवान् महावीर ने अपने साधना-काल में उपवास और ध्यान--दोनों का प्रयोग किया था। यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बल क्यों दिया गया? विस्मति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है। १. तत्त्वार्यवातिक १२०, पृ० ७३ :... इत्येते दश बर्धमानतीर्थकरतीर्थे 1 एवमुषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थे वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृत: दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहट भाग ११० १३०: अंतयडदसा णाम अंगं चउम्बिहोवसग्गे दारुण सहिऊण पारिहेर लढण णिम्वाणं __ गदे सुदंसपादि-दस-दस-साहू तित्यं पहि वपणेदि । ३. स्थानांगबत्ति पत्र ४५३..."ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति सम्भाषयामः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003567
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages195
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size4 MB
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