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पढम अज्झयणं (सुबाहू)
जहा दढपइण्णे' सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खा
णमंतं काहिइ ॥ निक्खव-पदं ३७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते।
----त्ति बेमि ।।
१. पू०-ओ० सू० १४१-१५४ ।
२. ना०१।०७।
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