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________________ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षौम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वर्णित हैं । इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्दे शनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है । तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है । जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी-इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख, जीवन और मरण वा वर्णन करता है । उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं है। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नंदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है । समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नंदी में प्रस्तुत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नदी में उनका उल्लेख मिलता है। यह संभव है कि पूर्णिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविनाधितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम्। दथिल्लोफिनदिकानानां वियः । २. कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२: परमावरणं गाम अंगं परवेणी-विशेवणी-संवेणी-पिन्वेवीणामाश्रो चव्विहं कहाओ पहादो मुकि चिता-लाहालाह- सुखदुक्ख जीवियमरणाणि च वष्णेदि । ३. नंदी सूत्र, चूर्णि सहित पू० ६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003567
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages195
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size4 MB
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