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विवागसु
३७. तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य मुच्छिए गिद्धे गढिए प्रभोववणे सुदरिसणाए भइणीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ ॥
३८. तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहतं उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्स ॥
३६. तए गं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ - अहम्मिए जाव े दुप्पडियाणंदे, एकम्मे एयपहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ', संसारो तहेव जाव' वाउ-ते- प्राउ - पुढवीसु प्रणेगसयस हस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ° । सेतो अनंतरं उदट्टित्ता वाणारसीए नयरीए मच्छत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तत्थ मच्छबंधिएहि वहिए तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिद । बोहिं पव्वज्जा, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिजिहि ॥
निक्खेव पदं
४०. ' एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं चउत्थस्स ग्रज्झयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते ।
-त्ति बेमि° ॥
१. भारियाए ( क, ख ) ; X ( ग ) । २. वि० १।११४७
३. उववन्ने (क, ख, ग, घ ) ; अशुद्धं प्रतिभाति ।
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४. वि० १ १ ७०; सं० पा० - जाव पुढवी ।
५. सं० पा०-निक्खेवो ।
६. ना० १1१1७1
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