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विवागसुयं
अट्ठि-मुद्वि-जाणु-कोप्परपहार-संभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवप्रोडगबंधणं
करेइ, करेत्ता ° एएणं विहाणेणं वज्झं प्राणवेइ ।। २८. एवं खलु गोयमा ! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुप्प
डिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणु
भवमाणे° विहरइ॥ बहस्सइदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २६. बहस्सइदते णं भंते ! पुरोहिए इनो कालगए समाणे कहिं गच्छिहिइ ? कहि
उववज्जिहिइ ? गोयमा ! बहस्सइदत्ते णं पुरोहिए चोसट्टि वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे' कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' 'उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव' वाउ-ते उ-ग्राउपुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । तो हत्थिणाउरे नयरे मियत्ताए पच्चायाइस्सइ । से णं तत्थ वाउरिएहि वहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए' पच्चायाहिइ । बोहिं,
सोहम्मे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं ३०. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।
- -त्ति बेमि ॥
१. सं० पाo.-पोराणाणं जाव विहरइ। ५. वि० ११११७०। २. दारए (क, ख, ग, घ)।
६. पुमत्ताए (क)। ३. सूलिभिण्णे (घ)।
७. सं० पा.--निक्खेवो। ४. सं० पा०-पुढवीए संसारो तहेव पढवी। ८, ना० ॥१७॥
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