Book Title: Vimalprabha Tika Part 02
Author(s): Samdhong Rinpoche, Vajravallabh Dwivedi, S S Bahulkar
Publisher: Kendriya Uccha Tibbati Shiksha Samsthan

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Page 184
________________ 157 पटले, 9-10 श्लो.] उत्पत्तिक्रमण कायनिष्पत्तिमहोद्देशः समाधिधारिणीभिश्च वेदिका मण्डलत्रये। दशपारमितापूर्णैर्विचित्रा रत्नपट्टिका // हारार्धा वेणिकाधमॆरष्टादशभिरेव ते। बकुली वशिताभिश्च कुशलैः कवशीर्षकम् // शून्यतादिविमोक्षश्च घण्टादिध्वनिपूरितम् / ऋद्धिपादैर्ध्वजाकीर्णं प्रहाणैर्दर्पणोज्ज्वलम् // बोध्यङ्गैश्चामरोद्भूतं नवाङ्गैः स्रग्दाममण्डितम् / चतुर्भिः संग्रहैः कोणं विश्ववचैरलङ्कृतम् // खचितं सत्यच(सच्च) तूरत्नैरनिर्यहसन्धिषु / पञ्चाभिज्ञामहावलयैर्वेष्टितं पञ्चभिः सदा॥ सर्वाकारसँ बोध्यङ्गवजावल्या सुवेष्टितम् / सुखेकचक्र वाडेन ज्ञानवजार्चिषा तथा॥ . प्रज्ञोपायविभागेन चन्द्रसूर्य सदोदितम् / चित्तवाक्कायसंशुद्धं धर्मचक्रं महाघटम् // दुन्दुभिर्बोधिवृक्षश्च तच्चिन्तामणिकादिकम् / एतच छीकालचक्रस्य मण्डलं धर्मधातुकम् // सर्वसम्पत्करं ध्यात्वा आदिकाद्यं ततो न्यसेत् / इति गर्भशोधनाविधिर्भगवतो गर्भा[255b]वक्रमणकाले // 9 // . इदानीं बाह्ये 'देवतानिष्पत्तिरध्यात्मनि गर्भनिष्पत्तिरुच्यतेआद्याः कायेन्दुसूर्येऽपि कुलिशसहिताः पञ्चकादर्शकायेर्मुञ्चन्तं पञ्चरश्मीन् स्फुरदमलकरं भावयेत् कालचक्रम् / वज्रालङ्कारदेहं जिनवरकमलं सूर्यबाहुं युगास्यं त्रिग्रीवं सूर्यनेत्रं विकसितवदनं चार्धदंष्ट्राकरालम् // 10 // आद्या इत्यादिना। इह मण्डलकर्णिकोपरि चन्द्रसूर्यराहुमण्डलोपरि चन्द्रमण्डले आद्या द्वात्रिंशल्लक्षणार्थ वामदक्षिणावर्तेन देया त्रिंशत् स्वरा बिन्दुर्विसर्गश्चेति। द्वात्रिंशत् तत्र अ इ ऋ उ ल इति प्रथमकलापञ्चकम् / ततो गुणभेदेन अए अर् ओ 25 3. छ. भूरल। ४.च. ज्ञता / 1. भो. क्रम, ग. क्रव। 2. क. ख. छ. द्भुतं / 5. च. वाटेन / 6. क. ख. ग. भो. बाह्य /

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