Book Title: Vimalnath Puran Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ समारत ले खानां च नानाश्चर्य मोनणां ॥ २५ ॥ नन्नये मगधो देशश्चितारत्ननिय ध्रुवरारक्ति निन हारमध्ये ये हीरको .04 यथा । २ । यो धापादे पद पैश्च कटेहता मानेन पूमिश्रितो घस्तु कुलः । २७ । यत्र नको विजेते सजला: पद्म मंडिताः । राजहंसचकोरा दिलारसमखरीकृताः |२४कुकटोत्पातसंलक्ष्या प्रामा यत्र पदे पदे 1 नागानि प्रपाः पांयसंसपिण्यो भुस्तरां ||२६|| सरलास्तरवो यत्र बलोवातसमाश्रिताः। ममद्धमरसंगबमंडिताः पिकपत्स्वनाः ॥३०॥ अनिता दानशोलाना धर्मान्याः सत्यभाषिणः। ध्यानाविता भयंत्येष मानिनो पत्र सच्छिये ||३१|| तब राजगृह नाम्ना पुर परमानन' । 'तता अन्दर एक आर्य नामका महाखण्ड है जो कि बत्तीस विशाल देशोंका धारक है देवेन्द्र और मनुव्योंको अनेकप्रकार के आश्चयों का करनेवाला है ॥२५॥ भरतक्षत्रके मध्यभागमें मगध नामका प्रसिद्ध देश हैं जो कि मनुष्योंकी अभिलाषा प्ररण करने के लिये चिन्तामणि पस्नके समान है एवं हारके मध्यभागमें जिलप्रकार हीरा रत्न मनुष्योंके चित्तको रंजायमान करनेवाला होता है उसी प्रकार भरतवत्र मध्यभागमें मगध देश भी मनुप्योंके चित्तको आनंद प्रदान करने वाला है ॥२६॥1 यह मगध देश घोष मटय काटोले अनेक प्रकारके वाहनोंसे बड़े बड़े गावोंसे और बड़े बड़े शहरों से व्याप्त है एवं अनेक प्रकारको मनोज २ चीजोंका खजाना है ॥२७॥ इस देश के अंदर बड़ी बड़ी विशाल नदियां हैं जो कि निर्मल जल और महा मनोहर कमलोंसे शोभायमान हैं एवं राजहंस चकोर और सारस (स्यास) आदि पक्षियों के मनोहर शब्दोंसे शब्दायमान हैं ॥२८॥ इसी देशमें एक गांवसे उड़कर कुक्कुट दूसरे गांवमें जा सकें इसरूपसे बिलकुल पास पास बसे हुये गांव हैं और उसके तालाव प्रपा (प्याऊ) पथिकोंके मनको सन्तुष्ट करने वाले महामनोहर जान पड़ते हैं ॥२८॥ इस मगध देशके अन्दर महामनोज्ञ सीधे वृक्षोंकी पंक्तियां विद्यमान हैं जो कि नानाप्रकारकी लताओंसे व्याप्त हैं। घुमते हुए भौरोंकी मधुर भुनभुनाहटसे चित्तको हरण करनेवाली हैं एवं कोकिलाओंको मीठी मीठी ध्वनियोंसे शोभायमान हैं ॥३०॥ इस देशके धनी मनुष्य स्वभावसे ही दानी हैं- आहार आदि किसी भी दानका अवसर देख कभी भी उससे मुह मोड़नेवाले नहीं । पकPage Navigation
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