Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ ЖКЕРЕКЕ eKEk पद्मद्रहादिनिादगर्जनामधुरंबदः । १८ ।' सूर्यावंदाक्षिकस्ताराभरणाभरविभूषितः । खगाव:महापादः पनरागादिकांतिभृत् । १६ । जंबूशाल्मलिसद्धे तिः क्षारोऽोध्यंशुकावृत: 1 नानापननमहारावधेमसिंगजध्वनिः । २० । अंबुद्धीपः (पं) पविः (4) सन् गाव (द) ससक पोहाविमा यिह दो यो हृदयं गतः । २१ । लौकयोजनो मेर्विमाति रंजिताशयः। विषष्टिषु सहस्राणां योजनानां विचित्रत्विट् । २२ । अवशिष्ट हि तन्मध्ये शातकुंभारमकोलक: नानाचेत्यालयाकोण चतुसराममंडितः । २३ । तस्य दक्षिण काष्ठायां भारत वर्तते स्फुट । खगाचलगणेनैव का कातिराजितं । २४ । तत्रैवार्यों महावंडो द्वात्रिंशविण्यभृतः । राजा जिसप्रकार आभरण-भषणोंसे शोभायमान रहता है उसीप्रकार जम्बद्वीप भी तारा रूपी भषणोंसे शोभायमान हैं। राजाके जिसप्रकार पैर होते हैं जम्बुद्वीपके भी खगाचल विजयाधपर्वत रूपी पैर मोजूद है। राजा जिसप्रकार पद्मराग आदि भूषणोंकी कांतिसे देदीप्यमान रहता 2 है जम्बूद्वीप भी खानियों में विद्यमान पद्मराग आदि मणियोंको कांतिसे व्याप्त है। राजा जिसप्रकार अस्त्रशस्त्रोंका धारक होता है जम्बद्वीपके भी जम्बवद और शाल्मालिवनरूपी शस्त्र विद्यमान । हैं। राजा जिसप्रकार वस्त्रोंसे वेष्टित रहता है जम्बद्वाप भी लवणोदधि समुद्रसे चारो ओरसे वेष्टित - *है। राजाके जिसप्रकार हाथियोंके चीत्कार होते रहते हैं उसीप्रकार जम्बद्वीपके भी अनेक पत्तनोमें - रहने वाले प्राणियों के कोलाहलों के वेग हो प्रशस्त गजों के चीत्कार हैं। तथा यह जम्बद्वोप पवित्र : एक लाख योजन चोड़ा है। विदेह क्षेत्र आदि क्षेत्र रूपी विशाल हृदयका धारक है एवं चित्तको । 2 अत्यंत आनन्द प्रदान करने वाला ॥१७ १८ ॥ इसी जवूद्वीपके ठोक मध्यभागमें एक सुमेरु | नामका पर्वत है जो कि एक लाख योजन प्रमाण ऊंचा है। अपनी शोभासे कपने समीपवर्ती | स्थानको शोभायमान करनेवाला है। त्रेसठ हजार योजनोंके इर्द गिर्द में विद्यमान है । विचित्र कांतिका धारक है। सुवर्णमयो खोल स्वरूप है। अनेक चैत्यालयोंसे घ्याप्त है एवं नन्दनवन सौमनस - आदि वनोंसे रमणीक है ॥२२ २३॥ मेरुपर्वतको दक्षिण दिशामें भरत क्षेत्र है जो कि खगाचलों (पर्वतों)के समहसे धनुषके समान आकारवाला शोभायमान जान पड़ता है ॥२४॥इस भरत क्षेत्रके

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 394