Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी महाराज : एक परिचय -सौम्यगुणाश्री प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म. सा. समता, समन्वय व उदारता का एक अद्भुत उदाहरण थीं। क्यों न होती, उन्होंने अपने जीवन में श्वेताम्बर जैन परम्परा की तीनों मुख्य धाराओं का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया था। तेरापंथी परिवार में जन्म लिया, स्थानकवासी परिवार में ब्याही गई और मूर्तिपूजक साध्वी संघ में दीक्षित विक्रम संवत् १९६५ की वैशाख पूर्णिमा के दिन जयपुर के तेरापन्थ समाज के अग्रणी श्रावक श्री गुलाबचन्दजी लूणिया व उनकी धर्मपत्नी मेहताब बाई के घर जन्म लिया सज्जन कुमारी ने। धर्मपरायण परिवार में पलती-बढती इस कन्या के पूर्व जन्म के संस्कार ही ऐसे थे कि उसे साध्वियों के आचार-व्यवहार की नकल करना भाता था। मात्र तीन वर्ष की आयु से ही वह प्रात:काल अपने माता-पिता के साथ सामायिक करने बैठ जाती थी। पाँच वर्ष की आयु में एक बार वह अपने पिताश्री के साथ योगिराज शिवजीरामजी म० के दर्शन करने गई। शिवजीरामजीम० ने बालिका के मुख मण्डल पर कुछ अद्भुत चिन्ह देखकर कहा कि यह तो कुलदीपिका विदुषी साध्वी बनेगी। माता-पिता चिन्तित तो हुए किन्तु अन्तत: सज्जन कुमारी का विवाह जयपुर के प्रसिद्ध दीवान नथमलजी गोलेछा के पौत्र कल्याणमलजी के साथ कर दिया। यह परिवार स्थानकवासी आम्नाय का था। सज्जन कुमारी का रुझान सांसारिक कृत्यों में न होकर आध्यात्म की ओर ही बना रहा। वह मीरा की भाँति ससुराल में रहकर भी अर्हत् भक्ति में निमग्न रहीं। ___संयोगवश उन्हें अपनी बुआ सास के पास कोटा जाकर रहना पडा। उस समय कोटा में महोपाध्याय श्री सुमतिसागरजी म. सा., उपाध्याय श्री मणिसागरजी म. सा., प्रवर्तिनी ज्ञानश्रीजी म. सा. आदि का बिराजना था। सज्जन कुमारी अपनी बुआ सास के साथ प्रवचनों में जाया करती थीं और अपनी धर्म-जिज्ञासा को संतुष्ट करती थीं। इसी प्रवास के समय उन्होंने तपस्याओं का क्रम आरंभ किया। अनेक कठोर तप करने के पश्चात् वर्षी तप करने हेतु अपने पति से आज्ञा ली। जयपुर में उन्होंने ही उ. श्री मणिसागरजी म. सा. की निश्रा में अपने पति के साथ उपधान तप भी किया। धर्म साधना के प्रति ऐसा अनुराग देख अन्तत: परिवार ने उन्हें दीक्षा की अनुमति दी। आषाढ शुक्ला-२ विक्रम संवत् १९९९ को जयपुर में प्रवर्तिनी ज्ञानश्रीजी म. सा. के सान्निध्य में तथा उपाध्याय श्री मणिसागरजी म. सा. के कर-कमलों से नथमलजी के कटले में दीक्षित हो सज्जन कुमारी से सज्जनश्री बन गई। नूतन साध्वी सज्जनश्रीजी म. सा. की बडी दीक्षा संवत् २००० में लोहावट में आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरिजी म० सा. के वरदहस्त से हुई। इसके पश्चात् अपनी गुरुवर्या प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्रीजी म. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 186