Book Title: Vedhvastu Prabhakara
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 6
________________ औषलवान स्वातनाम स्थपति तो है ही। शिल्प पुस्तक के सपादन से ये वास्तुशासके भी निष्णा-माता है वैसा भी प्रतित होता है। श्री सोमपुराने मामुली स्कूलो तालीम पाई है। फिर भी अपने स्वप्रयत्नोसे उन्होंने शिल्प स्थापत्यका आमूल अभ्यास किया है । भिसके लिये वे धन्यवादके. पात्र ठहरते हैं। कला और विद्या दानेका असा अच्छा समन्वय, क्रियात्मक ज्ञान के साधक असे स्वाही प्राचीन भारतकी समृद्ध परंपराको नया जीवन दे रहे है । बम्बई ता. १-१०-६० - - एशियाके सुप्रसिद्ध पुरातत्वज्ञ, बनारस हिन्दु युतीवीटीके कला और स्थापत्य विभागके अध्यापक डो चामुदेवशरण अग्रवाल जी ग्रंथ संपादक और उनको कलाको सराहते हुए लिखते हैं : श्री प्रभावंकरजी सोमपुग स्थपति मंदिर निर्माणके प्रख्यात और प्रकृष्ट अनुभवी है। असे विद्वान अल्ल देखे जाते हैं। श्री सोमनाथजीके मध्यको सीन भग्न मंदिर पर वास्तुमासके नियमानुसार नव निर्माण उन्होंने किया है। उनमें प्राचीन वास्तु विधाचायेकि कौशल्यके नवसंस्कार देखकर प्रसमना होती है। मेरी इच्छा कबसे एक असे व्यक्ति के दर्शन करने की भी । वही इच्छा नई दिल्ही में करीब पंद्रह साल पहले श्री प्रभाशंकरभाइके परिचय से पूर्ण हुभी । वे शास्त्रीय ज्ञानके साथ क्रिया कौशस्यके मच्चे शाता है। मुझे विश्वास है कि शिप स्थापत्य कलाके असे ग्रंथके प्रकाश नसे समस्त बास्तुशास्त्रके सुस्पष्ट अध्ययनका एक नया द्वार खुलेगा । पिस बातके लिये समाज स्वपति प्रभाशंकरजीका अत्यंत अनुरहित है। - -- भारत सरकारके 'टेम्पल सर्वे प्रोवेकर' के सुप्रीन्टेनन्ट श्री कृष्णदेव नी अन्धके बारेमें अपनी प्रशस्ति जिस प्रकार लिखते है : पश्चिम भारतके परंपरागत शिल्पशास्त्रके महान ज्ञाता श्री प्रभाशं करनी सोमपुरासे सुन्दर और सचित्र अनुवाद सह प्रकाशित किया गया शिस ग्रंथ उत्तम है। मंदिर स्थापत्यकी रचना पद्धतिके विशाल ज्ञानको सक्रिय अनुभव

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