Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान ॥१०॥ SCANCRECER-150 यथोपदेशेन मुनीश्वरस्य । स देवसिंहो जुतमोशनायकः ॥ अमेलयल्लालणमोशपंक्तो । ज्ञात्वा | चरित्रम्. स्वसाधर्मिकमेव निश्चितं ॥ ३० ॥ कृत्वा चतुर्मासमथो मुनीश्वरा-स्ततो विजदुर्नविकप्रबोधकाः ॥ स्व शिष्ययुक्ता जयसिंहसूरयः । प्रवादिवादिगजसिंहसन्निन्नाः ॥३५॥ खालणाधिगत एष सुधर्मों। लदधीरमनमि हरुचन्न । निंबकाधिगतचित्तमुदे हा। नोष्ट्रकाय रुचते खलु मृछी॥४०॥ परलोकमगादेष । राव जिदन्यदा ततः ॥ मैत्री च सर्वजीवेषु । धारयन्निजमानसे ॥४॥ हवे ते श्रीजयसिंहमूरिजीना उपदेशथी ओशवालोना नायक एवा ते देवसिंहे लालणने पोताना खरेखरा साधर्मिक जाणीने ओशवालनी ज्ञातिमा भेळवी दीधा. ॥ ३८ ॥ भव्य जीवोने बोध आपनारा तथा वाचाल वादीरूपी हाथीने जीतवा माटे सिंहसरखा एवा ते श्रीजयसिंहमूरि त्यां पीलुडामा चतुर्मास करीने पोताना शिष्योसहित अन्य जगोए विहार करी गया. ॥३९॥ हवे लालणे स्वीकारेलो आ श्रीजैनधर्म (तेना महोटा भाइ) लक्षधीरना मनमा रुच्यो नहीं. केमके अरेरे! लींबडानी प्राप्तिथी Iल॥१०॥ जेना मनमा हर्ष थाय छे, एवा उंटने खरेखर द्राक्ष रुचती नथी. ॥ ४० ॥ त्यारबाद एक दिवसे रावजी पोताना हृदयमा सर्व | जीवोपते मित्राइ धारण करताथका परलोक पाम्या. ॥ ४१ ॥ For Private And Personal Use Only

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