Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान ॥ ८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृष्ट्वैवं नीरुजं पुत्रं । तत्पितरौ जहर्षतुः ॥ दर्षाश्रूणि प्रवर्षतौ । सूरिपादौ प्रणेमतुः ॥ २० ॥ सुरीशोऽपि तदा ताभ्यां । धर्मलानं ददौ मुदा ॥ सर्वकर्म विनिर्मुक्ति-मुक्तिमार्गप्रदं सदा ॥ २९॥ योजित जलयस्तेऽथ । त्रयोऽपि जगडुर्मुनिं ॥ अहो महोपकारस्तेऽस्माकं वाचामगोचरः ॥ ३० ॥ अथादिशोचितं कार्यं । कुर्महे किं त्वदीयकं ॥ येन तेऽस्योपकाराब्धेः । पारं यामः कथंचन ॥३१॥ सूरीशोऽपि जगदाथ | नाविलाजं निभालयन् ॥ स्वीकुरुनाथ भो यूयं । जैनधर्म दयामयं ॥३२॥ एवी रीते पोताना पुत्रने रोगरहित थयेलो जोइने तेना मातापिता हर्षित थया, अने हर्षना आँसु वरसावताथका आचार्यश्रीना चरणोमां नम्या ॥ २८ ॥ ते समये आचार्यश्रीए पण हर्षथी तेओने हमेशां सर्व कर्मोथी रहित एवा मोक्षना मार्गने आपनारो धर्मलाभ आप्यो ।। २९ ।। पछी ते त्रणेए हाथ जोडीने आचार्यश्रीने कधुं के, आपना आ महान् उपकारतुं वर्णन अमाराथी वर्णवी शकाय तेम नथी. ॥ ३० ॥ हवे आपनुं अमो शुं उचित कार्य करीयें ? ते फरमावो ? के जेथी कोइ पण ते आपना आ उपकाररूपी समुद्रनो अमो पार पामीये. ।। ३१ ।। त्यारे आचार्यश्री पण आगामिकालमा लाभ थवानो जाणीने बोल्या के, तमो ( सबला ) दयायुक्त एवा जैनधर्मनो स्वीकार करो १ ।। ३२ ।। For Private And Personal Use Only শ৩% % % चरित्रम् ॥GH

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