Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ Shui Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम्. वर्धमान- एवं मुनेस्तस्य तु निःस्पृहत्वं । विज्ञाय चित्तेऽथ चमत्कृतास्ते ॥ स्वीकारयामासुर नग्ननावा। जैन सुधर्म नवतारकं वै ॥ ३३ ॥ लालणोऽथ महाकालीं। पूजयामास भावतः ॥ सूरीशस्योपदेशेन । ॥ए॥ पावादुर्गनिवासिनी ॥ ३४ ॥ रावजितु मुनिसत्तममेन-मारराध मधुपोव मधूरु।लालणोऽपि जननीजनकाच्यां । संयुतोऽथ जिनधर्मममोघं ॥ ३५ ॥ सूरीश्वरोपदेशेन । कारिता लालणेन वै॥ तत्रैका देवकुलिका । शांतिनाथ जिनेशितुः ॥ ३६॥ प्रतिमा प्रतिष्ठिता तत्र । स्फटिकोपलनि. मिता ॥ श्रीमतः शांतिनाथस्य । सूरिणा लालणेप्सया ॥ ३७॥ एवी रीतनुं ते आचार्यश्रीनु निःस्पृहीपणुं जाणीने हृदयमा चमत्कार पामेला ते त्रणेए अस्खलित भावथी संसारने तारनारो 5 जैनधर्म स्वीकार्यो. ॥ ३३॥ त्यारवाद लालण आचार्यश्रीना उपदेशथी भावपूर्वक पावागढपर वसनारी श्रीमहाकालीदेवीने पूजवा लाग्या. ।। ३४ ॥ हवे भमरो जेम मनोहर मधने सेवे, तेम रावजी पण ते श्रीजयसिंहसूरीश्वरजीने आराधवा लाग्या, अने लालण पण पोताना मातपितासहित सफल एवा जिनधर्मर्नु आराधन करवा लाग्या. ॥३५॥ पछी लालणे ते पीलुडा गाममा ते श्रीजसिंहसूरीश्वरजीना उपदेशथी श्रीशांतिनाथमभुनी एक देरी बंधावी. ॥ ३६॥ ते देरीमा लालणनी इच्छाथी ते आचार्यश्रीए स्फटिकरत्ननी बनावेली श्रीशांतिनाथमभुनी प्रतिमानी प्रतिष्ठा करी. ॥ ३७॥ ॥ ॥ For Private And Personal Use Only

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