Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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वर्धमान॥ ७ ॥
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जलेन तेन लिप्तेन । देहे त्वं च भविष्यसि ॥ मुक्तरोगोऽमृतेनेव । विषवारविदूषितः ॥ २३ ॥ क वेति देव सा । गता स्थानं निजंप्रति ॥ लालपोऽपि प्रजातेऽथ । चकाराष्ट्रमपारणां ॥२४॥ देवसिंहेन साकं स । गतोऽथ सुरिसन्निधौ ॥ चरणौ कालयामास । तस्य प्रासुकवारिणा ॥ २५ ॥ सूरीशचरणौ नत्वा । हर्षाश्रुपूरितेक्षणः ॥ पीयूषेणेव तेन स्वं । वारिणांगं लिलेप सः ॥ २६ ॥ गतरोगोऽथ तूर्णे स । शुशुभे कांचनद्युतिः ॥ मेघनिर्मुक्तमार्तम । इवामितप्रजासुरः ॥ २७ ॥
अमृतवडे करीने विपत्रिकारवाळो मनुष्य जेम ( विषरहित थाय) तेम तुं शरीरे ते जलनुं लेपन करवाथी रोगरहित थ इश. ॥ २३ ॥ एम कहीने ते देवी पोताने स्थानके गई, तथा लालणे पण प्रभाते अट्टमनुं पारणं कर्तुं ॥ २४ ॥ पछी ते लाल देवसिंहनी साथै आचार्यमहाराज श्रीजयसिंहरिपासे गयो, अने प्रामुक जलथी तेणे तेमना चरणोतुं प्रक्षालन कर्यु. ॥ २५ ॥ पछी हर्षाश्रुथी भरेला चक्षुवाळा ते लालणे ते आचार्यश्रीना चरणोने नमीने जाणे अमृतवडे करीने होय नही ? तेम ते चरणोदकवडे पोताना शरीरपर लेपन कर्यु. ।। २६ ।। अने तेथी ते तुरत वादळांभोथी रहित थयेला अत्यंत कांतिवाळा सूर्यनीपेठे निरोगी थयोथको सुवर्णसरखी कांतियुक्त शोभवा लाग्यो. ॥। २७ ॥
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चरित्रम्
॥ १ ॥

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