Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam Author(s): Amarsagarsuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanandit ॥ ५ ॥ वर्धमान- है देशनां चक्रिरे तेषां । पुरतः सूरयोऽपि ते ॥ मधुरामधरीभूत-सुधाधारां मनोहराम् ॥ १५ ॥ चरित्रम्. अथान्यदा सूरिवरस्य तस्य । प्रभावयुक्ताचरणं निशम्य ॥ स्वकीयमंत्रीशमुखान्नरेशो। जगाद हृष्टो हृदि देवसिंह ॥ १६ ॥ वरमुनीशमिमं हि निवेदय । निरुगथो तनयोऽत्र नवेन्मम ॥ लघु यथा खलु जालणनामको । मणिजटीप्रतिसदुपायतः ॥ १७ ॥ श्रुत्वा निजस्वामिवचोऽथ सोऽपि । जगाद वृत्तांतमिमं मुनीशं ॥ मुनीशवोऽपि जगौ तमेव-माचार एषस्त्विह नो मुनीनां ॥१०॥ ते आचार्यमहाराजे पण अमृतनी धाराने पण दूर करनारी मनोहर अने मधुर धर्मदेशना तेभोनी पासे करी. ॥ १५ ॥ हवे एक दिवसे त्यांना ते रावजी राजाए पोताना मंत्री देवसिंहना मुखथी ते आचार्य श्रीनु प्रभाववालु आचरण सांभलीने मनमा खुशी थइ ते देवसिंहने कयु के, ॥ १६ ॥ हे मंत्रि! मारो लालण नामनो पुत्र कोइ मणि, जडीबूटी आदिकना उपायथी में जो कोइपण रीते तुरत निरोगी थइ शके, तो तेवा उपाय माटे तुं आ आचार्यश्रीने विनंति कर? ॥ १७ ॥ एवी रीतनुं पोताना ॐ स्वामीनुं वचन सांभळीने ते मंत्रीए पण ते हकीकत आचार्यश्रीने कही. त्यारे आचार्यश्रीए पण तेने कां के, आवी रीतनो 151॥५॥ | (औपधादिक बताववानो) मुनिओनो आचार नथी.॥१८॥ ॐ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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