Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaturm.org Acharya Shri Kailassagarsurt Gyanmandie वर्धमान ॥४॥ *-5-45 भूमिपस्य खलु तस्य सुमंत्री । देवसिंह इति नामयुतोऽनुत् ॥ जैनधर्मविहितादरमानः । श्राद्धवर्यगुणवृंदसमेतः ॥११॥ गच्छश्रीविधिपक्षभूषणनिन्नाः श्रीसिद्धराजार्चिता । आचार्या जयसिंहसु. रिमुनयः संवेगरंगांकिताः ॥ वादे निर्जितदिक्पटाः सुविहिताः शास्त्रांबुधेः पारगा। लक्षात्रविबोधकाः परहिताः कालीप्रसादा बनुः ॥ १५ ॥ सूरयो विदरंतस्ते । ग्रामेऽत्र पीनुमानिधे ॥ गतरागाः समाजग्मु-मुनिबंदोपसेविताः ॥ १३ ॥ देवसिंहादिनिः श्रा-मिमध्ये प्रवेशिताः ॥ देशकालोचितां शक्तिं । कुर्वाणैः सूरयोऽथ ते ॥ १४ ॥ वळी ते रावजी नामना राजानो देवसिंहनामे मंत्री हतो, के जे जैनधर्ममा आदरमानवाळो तथा श्रावकना उत्तम गुणोना | समृहथी युक्त हतो. ॥ ११ ॥ (हवे ते समये) श्रीविधिपक्षगच्छना अलंकार समान, श्रीसिद्धराजे पूजेला, वैराग्यना रंगवाळा, वादमा दिगंबरोने जीतनारा, उत्तम आचारवाळा, शास्त्ररूपी समुद्रनो पार पामेला, एक लाख क्षत्रिओने प्रतिबोधनारा, परर्नु हित करनारा, तथा महाकालीदेवीना प्रसादवाळा श्रीजयसिंहसूरि नामे आचार्य शोभता हता. ॥ १२ ॥ रागरहित एवा ते श्रीजयसिंहसरि मुनिओना समूहथी सेवायाथका विहार करता (एक वखते) आ पीलुडा नामना गाममा पधार्या ॥१३।। त्यारे देव सिंहआदिक श्रावकोए देश कालने उचित एवी भक्ति करीने ते आचार्यश्रीनो ते गाममा प्रवेश कराव्यो. ॥१४॥ ॐ C ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 159