Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kallassagerar Gyanmandir पमान- वारनमारत्रपरसर चरित्रम्. ॥ ५ ॥ वीरप्रभोरत्र परंपरायां। गछे मनोझे विधिपक्षसंझे ॥ सुरिं वरं चार्यसुरक्षिताख्यं । नमामि भक्त्या गुरुवत्सलोऽहं ॥२॥ गच्छाधिष्टायिकां वंदे। महाकालीं महेश्वरी ॥ वांछितार्थप्रदां नित्यं । पावा. दुर्गनिवासिनीं ॥३॥ श्रेष्टिनो वर्धमानस्य । पद्मसिंहयुतस्य च ॥ चरितं वच्मि नव्यानां । बोधि. बीजांकुरोपमं ॥४॥ भारते पार्करे देशे। सिंधुनदतटस्थितः ॥ परितो वाटिकारम्यो । ग्रामोऽस्ति पीबुडानिधः ॥ ५॥ चंद्रवंशवरमौक्तिकरम्यो । भूमिपोऽत्र खट्नु रावजिदाख्यः ॥ शौर्यतादिगुणदयुतोऽसौ । पालयन्निजजनं वसतिस्म ॥ ६॥ अही श्रीवीरप्रभुनी परंपरामा मनोहर एवा श्रीविधिपक्ष नामना गच्छमा (अंचलगच्छमा ) थयेला श्रीआरक्षितजी नामना सूरीश्वरने गुरुपते प्रेमवाळो एवो हुँ भक्तिपूर्वक वंदन करूं छु. ।। २॥ श्रीअंचलगच्छनी अधिष्टायिका, हमेशा इच्छित पदार्थों आपनारी, तथा पावागढपर वसनारी एवी श्रीमहाकाली नामनी महेश्वरीने हुँ नमुं छु.॥३॥ भव्यजीवोना बोधिरूपी बीजना अंकुरासरखं पद्मसिंहसहित श्रीवर्धमान नामना शेठनु चरित्र हुँ कहुं छु. ॥४॥ आ भरतक्षेत्रमा पार्कर नामना देशमा सिंधुनदीने किनारे फरती वाडीओथी मनोहर पीलुडा नामर्नु गाम छे. ॥५ते गाममा चंद्रवंशीय क्षत्रिओमा उत्तम मुक्ताफल सरखो, तथा वीरताआदिक गुणोना समूहवाळो रावजीनामे राजा पोतानी प्रजाने पालतोथको वसतो हतो. ॥६॥ For Private And Personal use only

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