Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान-3 वयं सदैव व्रतधारिणश्च । मंत्रौषधीच्यस्तु पराङ्मुखाः स्मः ॥ तथापि मत्वा जिनशासनस्य । प्र- 15चरित्रम्, नावकं लालणमत्र वच्मः ॥ १५॥ कृत्वाष्टमं सोऽथ तपो महोग्रं । देवीं समाराधयतु प्रसन्नः ॥ तां कालिका शर्मकरी मनोझा । नविष्यतिस्मारमसावरोगी ॥१०॥ कृताष्टमो लालणराजपुत्र । आराधयामास च कालिकां तां ॥ भृत्वा प्रसन्नाथ सुरीश्वरी सा । जगाद वाचं प्रति तं प्रसिका ॥ २१ ॥ प्रहालयस्वाथ जलेन तस्य । मुनीशितुस्त्वं चरणौ प्रसन्नः ॥ महाप्रभावौ जयसिंहसूरेः । सुप्रासुकेनामितशर्मदौ ते ॥ २२ ॥ अमो व्रतधारी मुनिओ हमेशा मंत्र, तथा औषधीआदिकथी विमुख रहीये छीये; तो पण आ लालणने जिनशासननो IP प्रभाविक जाणीने अमो ( तेना रोगनो उपाय ) कहीये छीये ॥ १९ ।। हवे ते लालणे आनंदथी अमनो उग्र तप करीने सुख करनारी तथा मनोहर एवी ते महाकालीदेवी, आराधन करवू, के जेथी ते तुरत नीरोगी थशे. ॥ २० ॥ पछी ते लालण नामना राजपुत्रे अहमनो तप करवापूर्वक ते महाकालीदेवीनुं आराधन कर्य, त्यारे ते प्रसिद्ध महाकालीदेवीए प्रसन्न थइ ते लालगने कयु के, ।। २१ ।। (हे लालण!) तुं खुशी थयो थको ते श्रीजयसिंहसरिजीना महामभाववाळा तथा तने घणु * सुख आपनारा बन्ने चरणोनुं मासुक जलवडे प्रक्षालन कर? ॥ २२॥ For Private And Personal Use Only

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